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फिल्‍म रिव्‍यू : परमाणु द स्टोरी ऑफ पोखरण

II उर्मिला कोरी II फ़िल्म: परमाणु द स्टोरी ऑफ पोखरण निर्देशक: अभिषेक शर्मा निर्माता: जॉन अब्राहम कलाकार: जॉन अब्राहम,डायना पेंटी,योगेंद्र रेटिंग: साढ़े तीन निर्माता के तौर पर जॉन अब्राहम ने अलग अलग विषयों को अपनी फिल्म के लिए हमेशा चुना है. फ़िल्म ‘परमाणु’ सुनहरे अतीत की कहानी है।जिसने भारत के मजबूत भविष्य की नींव रखी.1998 […]

II उर्मिला कोरी II

फ़िल्म: परमाणु द स्टोरी ऑफ पोखरण

निर्देशक: अभिषेक शर्मा

निर्माता: जॉन अब्राहम

कलाकार: जॉन अब्राहम,डायना पेंटी,योगेंद्र

रेटिंग: साढ़े तीन

निर्माता के तौर पर जॉन अब्राहम ने अलग अलग विषयों को अपनी फिल्म के लिए हमेशा चुना है. फ़िल्म ‘परमाणु’ सुनहरे अतीत की कहानी है।जिसने भारत के मजबूत भविष्य की नींव रखी.1998 में भारतीय सेना ने राजस्थान के पोखरण में दूसरा परमाणु परीक्षण किया था. यह फ़िल्म उसी घटना की दिलचस्प कहानी है जो भारत का सबसे कामयाब अंडरकवर मिशन था.

फ़िल्म की कहानी की शुरुआत 1995 से होती है जब चीन एक के बाद एक परमाणु हथियारों का प्रशिक्षण कर रहा है. भारत के एक जूनियर ब्यूरोक्रेटस अश्वत रैना(जॉन अब्राहम) भारत को भी परमाणु परीक्षण करने की सलाह देते हुए एक रिपोर्ट तैयार करके उस वक़्त के मंत्रिमंडल को देता है लेकिन रिपोर्ट को बिना पूरी तरह समझे उस पर काम शुरू हो जाता है.

अश्वत को मिशन में शामिल भी नहीं किया गया होता है लेकिन मिशन फ्लॉप होने पर उसका सारा ठीकरा अश्वत पर ही फोड़ा जाता है. उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है. तीन साल के बाद सरकार बदलती है और फिर से परमाणु मिशन की शुरुआत होती है.

अश्वत को इस मिशन को लीड करने के लिए बुलाया जाता है. अश्वत इस मिशन के लिए 5 बेहतरीन लोगों को चुनता है लेकिन ये परीक्षण इतना आसान नहीं है पोखरण में अमेरिकी और पाकिस्तानी खुफिया तंत्र के लोगों के साथ साथ खलनायक अमेरिकी सेटेलाइट भी है और हमारी राजनीति उठापटक भी।किस तरह अश्वत और उसकी टीम अपने मिशन में कामयाब होती है. इसी की तर्ज पर आगे की फ़िल्म है.

फ़िल्म की कहानी में इमोशन, थ्रिलर, ड्रामा और देशभक्ति सबकुछ सही मात्रा में है जिस वजह से फ़िल्म की कहानी ही हीरो है. फ़िल्म असल घटना पर आधारित है लेकिन अभिषेक शर्मा ने इसे इंटरटेनिंग और एंगेजिंग तरीके से कहा है.

परमाणु परीक्षण को लेकर पूरे घटनाक्रम को जिस तरह से दिखाया गया है वह सराहनीय है. परमाणु परीक्षण एक जटिल विषय है है लेकिन अभिषेक ने इसे इस तरह से पेश किया है कि इसे हर आम आदमी समझ सकेगा।फ़िल्म का क्लाइमेक्स बहुत अच्छा बन पड़ा है।थिएटर से निकलते हुए आपको अपने देश पर गर्व होता है.

कुछ खामियां भी हैं जैसे अटल बिहारी और उस वक़्त की सरकार को यह फ़िल्म परमाणु परीक्षण का लगभग पूरा श्रेय दे जाती है जो कई बार अखरता भी है क्योंकि न्यूक्लियर पावर देश को बनाने में कई और नाम राजनीति और विज्ञान से सालों से जुड़े नाम थे. जिनकी वजह से 98 का वह दिन आया जब भारत न्यूक्लियर पावर देश बना. वैसे उन नामों का जिक्र नहीं करने से 11 मई 1998 के उस दिन का महत्व कम नहीं होगा जब भारत न्यूक्लियर पावर देश बना था.

अभिनय की बात करें तो सभी किरदार पूरी तरह से अपनी भूमिकाओं में रचे बसे हैं. जॉन अब्राहम फ़िल्म के इमोशनल सीन में थोड़ा ज़रूर चुके हैं लेकिन परदे पर उनकी मेहनत और ईमानदारी किरदार के प्रति दिखती हैं जिसकी तारीफ की जानी चाहिए.डायना का किरदार प्रभावी ढंग से फ़िल्म से जोड़ा है. फ़िल्म में कोई हीरो हीरोइन नहीं है बल्कि एक टीम हैजो साथ में काम कर रही है. योगेंद्र टिंकू,आदित्य हितकारी,विकास कुमार का काम सधा हुआ है. बोमन इरानी गिने चुने दृश्यों में दिखें हैं लेकिन वह असरदार रहे हैं.

फ़िल्म का गीत संगीत कहानी के अनुरूप है. राजस्थान की मिट्टी की खुशबू लिए हैं. संवाद अच्छे बन पड़े हैं.

आखिर में कुछ फिल्में सिर्फ मनोरंजन तक ही सीमित नहीं रहती हैं. वह दिल को छू आपके भारतीय होने पर आपको गर्व का भी एहसास करवाती है. परमाणु उसी लीग की फ़िल्म है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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