II उर्मिला कोरी II
फ़िल्म: खजूर पर अटके
निर्देशक: हर्ष छाया
कलाकार: विनय पाठक, सीमा पाहवा, मनोज पाहवा, सारा कपूर, सना कपूर और डॉली अहलूवालिया
रेटिंग: ढाई
मौत के इर्द गिर्द कहानी इस विषय पर सत्यजीत राय की शाखा प्रशाखा से प्रियंका चोपड़ा की मराठी फिल्म वेंटिलेटर बन चुकी है. हिंदी में इस कहानी को खजूर पर अटके ब्लैक कॉमेडी जॉनर के ज़रिए बयां किया गया है. फ़िल्म की कहानी तीन भाइयों और एक बहन वाले परिवार की है. एक भाई ज़िन्दगी और मौत की लड़ाई में अस्पताल पहुच जाता है.
उस के दूसरे भाई और रिश्तेदार उसे मिलने के लिए अलग अलग शहरों से मुम्बई आ धमकते हैं लेकिन परिवार के बीमार सदस्य के बजाय वहां सभी का अपना अपना स्वार्थ है.
किसी का बड़ा स्वार्थ है तो किसी का छोटा लेकिन सभी के रिश्तों की नींव स्वार्थ है. फ़िल्म का अंत आदर्श वादी है जो अंत में सभी की ज़िंदगी और उनकी सोच को बदल देता है. क्या है वह बात इसके लिए फ़िल्म देखनी होगी.
फ़िल्म की कहानी मराठी फिल्म वेंटिलेटर से बहुत हद तक मेल खाती है लेकिन उस फिल्म की तरह यह फ़िल्म एंगेजिंग और ह्यूमर लिए नहीं है बल्कि जबरदस्ती खींची हुई जान पड़ती है. हॉस्पिटल वाला प्रसंग एक वक्त के बाद दोहराता हुआ लगता है. फ़िल्म का फर्स्ट हाफ ठीक ठाक है लेकिन सेकंड हाफ में फ़िल्म बिखर गई है.
फ़िल्म और टीवी में अच्छा खासा नाम बनाने वाले हर्ष छाया ने इस फ़िल्म से अपने कैरियर की शुरुआत की है. वह न सिर्फ फ़िल्म के लेखक निर्देशक बल्कि गीतकार, गायक और कैमियो भूमिका में भी हैं. फ़िल्म में कई ज़िम्मेदारियाँ निभाने वाले हर्ष अपनी इस फ़िल्म को लेकर कंफ्यूज दिखे हैं. वह फ़िल्म को कॉमेडी फिल्म बनाना चाहते थे या संवेदनशील फ़िल्म को देखते हुए यह बात समझ ही नहीं आती है.
कॉमेडी और संवेदनशील फ़िल्म के बीच में बहुत पतली लाइन होती है खोंसला का घोसला और भेजा फ्राई जैसी फिल्में ही इस कसौटी पर खरी उतरी हैं.
अभिनय की बात करें तो इस फ़िल्म में कई मंझे हुए अभिनेताओं का नाम जुड़ा हुआ है लेकिन मनोज पाहवा,सीमा पाहवा और प्रथमेश परब अच्छे रहे हैं. ये तीन कलाकार अपने सहज अभिनय से कई दृश्यों में हँसाने में कामयाब रहे हैं।विनय पाठक औसत रहे हैं. अलका अमीन,डॉली अहलूवालिया को करने को कुछ खास नहीं था. सना कपूर का काम अच्छा बन पड़ा है. बाकी के किरदारों काम ठीक ठाक है.
संगीत की बात करें तो विक्रम घोष का संगीत फ़िल्म की कहानी की तरह ही निराश करता है. फ़िल्म में सिचुएशनल गानों की कमी है. फ़िल्म के संवाद ठीक ठाक हैं. कुलमिलाकर खजूर पर हटके एक औसत फ़िल्म है जो टुकड़ों में मनोरंजन करती हैं.