गुलशन कुमार का जन्म 5 मई 1951 को हुआ था. उनका पूरा नाम गुलशन कुमार दुआ था. उन्होंने संगीत को एक नयी पहचान दी. संघर्षपूर्ण जीवन बिताने के बाद अपने संगीत के प्रति लगन से उन्होंने एक खास मुकाम हासिल किया. शुरुआती दिनों में वे अपने पिता के साथ दरियागंज मार्केट में जूस की दुकान चलाते थे. इसके बाद उन्होंने यह काम छोड़कर दिल्ली में ही कैसेट की दुकान खोली जहां वे सस्ते में गानों की कैसेट्स बेचते थे. जानें उनके बारे में ये दिलचस्त बातें…
गुलशन कुमार यहां नहीं थमे उन्होंने अपना खुद का सुपर कैसेट इंडस्ट्री नाम से ऑडियो कैसेट्स ऑपरेशन खोला. इसके बाद उन्होंने नोएडा में खुद की म्यूजिक कंपनी खोली और बाद में मुंबई शिफ्ट हो गये.
इसके बाद उन्होंने टी-सीरीज के कैसेट के जरिये संगीत को घर-घर पहुंचाने का काम किया. उनके निधन के बाद इसका कार्यभार उनके बेटे भूषण कुमार और बेटी तुलसी कुमार ने अपने कंधों पर लिया.
गुलशन कुमार हमेशा जमीन से जुड़े रहे और उन्होंने अपनी उदारता भी खुलकर दिखाई. उन्होंने अपने धन का एक हिस्सा समाज सेवा के लिए दान किया. उन्होंने वैष्णो देवी में एक भंडारे की स्थापना की जो आज भी वहां आनेवाले तीर्थयात्रियों को भोजन उपलब्ध कराता है.
12 अगस्त 1997 को मुंबई में एक मंदिर के बाहर गुलशन कुमार की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. गुलशन कुमार 1992-93 में सबसे ज्यादा टैक्स भरनेवालों में से एक थे. ऐसा माना जाता है कि गुलशन ने मुंबई के अंडरवर्ल्ड की जबरन वसूली की मांग के आगे झुकने से मना कर दिया था, जिसके कारण उनकी हत्या कर दी गई थी.
गुलशन कुमार की हत्या में सह-संदिग्ध के तौर पर नदीम सैफी को नामजद किया गया था. हालांकि नदीम सैफी ने हमेशा खुद को निर्दोष बताते हुए यह कहा है कि उनका गुलशन कुमार हत्याकांड से किसी भी तरह का कोई जुड़ाव नहीं है. बता दें कि, नदीम सैफी अपने साथी श्रवण राठौर के साथ मिलकर नदीम-श्रवण के नाम से फ़िल्मों में संगीत देते थे.
पिछले साल एक निजी टीवी चैनल को मिले टेप में अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद को खुद को फोन पर भारत सरकार की मुहीम और नदीम को लेकर फिक्र जताते हुए सुना जा सकता था. चैनल के पास मौजूद टेप से कॉल इंटरसैप्ट्स से सबसे सनसनीखेज माने जाने वाले गुलशन कुमार हत्याकांड की तह तक जाने में मदद मिली थी. साल 2015 से ही रिकॉर्ड की जानेवाली बातचीत के इन टेप्स में दाऊद को चिंता जताते हुए सुना गया था.
चैनल के मुताबिक बातचीत में कोडवर्ड्स का इस्तेमाल हुआ था. नदीम सैफी का हवाला देने के लिए ‘लंदन फ्रेंड’ और ‘उस्ताद’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है. हालांकि इस कोडवर्ड वाली भाषा को डिकोड करने वाले खुफिया अधिकारियों ने ‘लंदन उस्ताद’ की पहचान नदीम सैफी के तौर पर ही की थी.