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FILM REVIEW: सामाजिक विषय को दर्शाती ”टॉयलेट एक प्रेम कथा”

II उर्मिला कोरी II निर्माता: नीरज पांडेय निर्देशक: श्री नारायण सिंह कलाकार: अक्षय कुमार, भूमि पेडनेकर, दिवेन्दु, अनुपम खेर और अन्य रेटिंग: तीन बॉलीवुड के पोस्टर बॉय कहे जा रहे अक्षय कुमार इस बार अपनी फिल्म के ज़रिए खुले में शौच की समस्या को सामने लेकर आएं हैं. इस समस्या की वजह से महिलाओं को […]

II उर्मिला कोरी II

निर्माता: नीरज पांडेय

निर्देशक: श्री नारायण सिंह

कलाकार: अक्षय कुमार, भूमि पेडनेकर, दिवेन्दु, अनुपम खेर और अन्य

रेटिंग: तीन

बॉलीवुड के पोस्टर बॉय कहे जा रहे अक्षय कुमार इस बार अपनी फिल्म के ज़रिए खुले में शौच की समस्या को सामने लेकर आएं हैं. इस समस्या की वजह से महिलाओं को किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. यह फ़िल्म उसी विषय को छूती हैं. फ़िल्म की कहानी केशव (अक्षय कुमार)और जया(भूमि पेडनेकर)की कहानी है. शादी के बाद जया टॉयलेट की मांग रखती है. केशव के पिता और पूरा गांव सभ्यता की दुहाई देते हुए घर और गाँव में टॉयलेट बनाने के खिलाफ है. जया तय करती है कि टॉयलेट नहीं तो शादी नहीं. वह केशव से तलाक लेने का फैसला करती है. जिसके बाद केशव की लड़ाई शुरू होती है पिता और गाँव के खिलाफ जाकर टॉयलेट बनाने की.

क्या वह लोगों की सोच बदलने में कामयाब होगा क्या वह जया के लिए टॉयलेट बनवा पाएगा इसके लिए आपको फ़िल्म देखनी पड़ेगी. फ़िल्म का विषय अच्छा है. ऐसे विषयों को सिनेमा के रुपहले परदे तक लाने के लिए इस फ़िल्म से जुड़ा हर शख्स बधाई का पात्र है. फ़िल्म का फर्स्ट हॉफ बहुत मनोरंजक हैं दूसरे हाफ में कहानी मूल मुद्दे पर आती है. खेतों और खुले में जाकर शौच करने की हमारी पुरानी आदत पर फिल्म में बखूबी तंज किया गया है. फ़िल्म का फर्स्ट हॉफ बहुत मनोरंजक हैं दूसरे हाफ में कहानी मूल मुद्दे पर आती है.

फ़िल्म की कहानी का विषय बहुत सशक्त है लेकिन कहानी थोड़ी कमज़ोर रह गयी है. पंडितजी के विचार कैसे बदल जाते हैं इस बात को और सशक्त प्रसंग के ज़रिए कहानी में जोड़ने की आवश्यकता महसूस होती है. ऐसे ही गांव की औरतें अचानक से क्यों लोटा पार्टी के खिलाफहो जाती है. यह बात भी हजम नहीं होती है. फिल्म का क्लाइमेक्स रटा रटाया है. गौरतलब है कि फ़िल्म सरकार का गुणगान करने से भी पीछे नहीं हटती है.

फ़िल्म में कई बार इस बात पर ज़ोर दिया ग़या है कि लोगों को खुद का पैसा लगाकर शौचालय बनवाना चाहिए सरकार का नहीं. अक्षय कई बार इस बात को फिल्म में दोहराते दिखेंगे कि हम हर काम के लिए सरकार पर ही क्यों निर्भर रहते हैं फ़िल्म का मुद्दा शौचालय है. शौचालय का इस्तेमाल करने की की ज़रूरत को सामने लाना था. सरकारी पैसों से हो या सरकार का नहीं. फिल्म में टॉयलेट स्कैम को भी सतही तौर पर छुआ गया है. फिल्म का स्क्रीनप्ले में दोहराव दिखता है.

अभिनय की बात करें तो अक्षय कुमार हमेशा की तरह इस बार भी लाजवाब रहे हैं. यह पूरी तरह से उनके कंधों पर हैं और वह बखूबी अपनी जिम्मेदारी को निभा जाते हैं. भूमि पेडनेकर की भी तारीफ करनी होगी. उन्होंने यूपी के लहजे को बखूबी पकड़ा है. अक्षय और उनके बीच की केमिस्ट्री अच्छी बन पड़ी है. दिव्येन्दु की कॉमिक टाइमिंग खास है. अक्षय के साथ वाले उनके सीन खास है.

सुधीर पांडेय ने भी उम्दा अभिनय का परिचय दिया है फ़िल्म के बाकी किरदारों के लिए करने को फ़िल्म में भले ही ज़्यादा न हो लेकिन वह याद रह जाते है. गाँव का लोकेशन और किरदारों का लुक इस फ़िल्म को और रियल बना जाते हैं. कैमरावर्क भी अच्छा है. फ़िल्म के संवाद कहानी के अनुरूप हैं हाँ उनमें द्विअर्थी शब्दों का भी जमकर इस्तेमाल किया गया है. फिल्म का गीत संगीत औसत है. आखिर में फिल्म में खामियों के बावजूद जो मुद्दा उठाया गया है. वह सभी को जानने की ज़रूरत है इसलिए ये फिल्म सभी को देखनी चाहिए.

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