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”टॉयलेट: एक प्रेम कथा” को लेकर भूमि ने बताई कई दिलचस्‍प बातें…

फिल्म ‘दम लगाके हईशा’ में अपने स्वभाविक अभिनय से वाहवाही से लेकर अवार्ड बटोरने वाली अभिनेत्री भूमि पेडनेकर इस बार भी एक छोटे शहर की कहानी को फिल्म ‘टॉयलेट एक प्रेमकथा’ के साथ सामने लेकर आए हैं लेकिन इस बार उनकी यह फिल्म चेहरे पर मुस्कुराहट लाने के साथ साथ एक अहम मुद्दे को भी […]

फिल्म ‘दम लगाके हईशा’ में अपने स्वभाविक अभिनय से वाहवाही से लेकर अवार्ड बटोरने वाली अभिनेत्री भूमि पेडनेकर इस बार भी एक छोटे शहर की कहानी को फिल्म ‘टॉयलेट एक प्रेमकथा’ के साथ सामने लेकर आए हैं लेकिन इस बार उनकी यह फिल्म चेहरे पर मुस्कुराहट लाने के साथ साथ एक अहम मुद्दे को भी सामने लेकर आती है. फिल्‍म में अक्षय कुमार मुख्‍य भूमिका में हैं. फिल्‍म का ट्रेलर रिलीज हो चुका है जिसे दर्शकों ने पसंद किया है. इस फिल्म और कैरियर को लेकर भूमि पेडनेकर से उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश :

‘टॉयलेट एक प्रेमकथा’ फिल्म से आपका जुड़ना कैसे हुआ.

मेरी एक मुलाकात हुई थी नीरज सर के साथ जैसे आमतौर पर हम किसी से मिलते हैं. वैसे ही दस मुलाकात थी. उसके कुछ दिनों बाद मुङो कॉल आया. मैं अमृतसर के जिस होटल में थी. वहां नीरज सर की इस फिल्म के लेखक भी मौजूद थे. उन्होंने मुझे कहा कि आप नरेशन लेना चाहेंगी. मैंने कहा जरुर. ये सबकुछ बहुत जल्दी हो गया. जब उन्होंने नरेशन दिया तो मैं पागल हो गयी. मुझे फिल्म की स्क्रिप्ट इतनी अच्छी लगी. उसी वक्त ही मैंने तय कर लिया कि ये तो करनी ही है. अक्षय सर इस फिल्म से जुड़े हैं. यह मुङो बाद में मालूम पड़ा पहले मैंने स्क्रिप्ट की वजह से ही फिल्म को हां कहा. वैसे अक्षय सर इस फिल्म में हैं. यह जानने के बाद तो मैं फूले नहीं समा रही थी.

आपको इस स्क्रिप्ट में क्या खास लगा.

खास ये लगा कि यह फिल्म एक बहुत ही खास लवस्टोरी है जिसमे एक संदेश भी है. ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है जब आप एक इतने अहम सोशल मुद्दे पर अपनी राय रख रहे हैं लेकिन उसका जरिया एक प्रेम कहानी है. यह एक फैमिली इंटरटेनर फिल्म है. जो आपके चेहरे पर एक मुस्कुराहट लाएगी. साधारण लोगों की कहानी है. उनके प्यार की कहानी है. इनका विलेन है टॉयलेट. संदेशप्रद होने के बावजूद यह फिल्म आपको ज्यादा ज्ञान नहीं देती है. ऐसा नहीं लगता कि क्या यार कितना बोर कर रही है. आपका मनोरंजन करेगी और अपनी बात भी कह देगी.

क्या आपको लगता है कि टॉयलेट की समस्या सिर्फ गांवों या छोटे शहरों तक ही सीमित है.

मैं इस बात को नहीं मानती हूं. यह बड़े शहरों की भी समस्या है. मैं मुंबई से हूं हमेशा से मुंबई में ही रही हूं. मुझे याद है जब मैं सुबह स्कूल जाती थी तो कितने लोगों को मैं रेल की पटरियों के आसपास छाता लेकर बैठे देखती थी तब पता नहीं था कि यह परेशानी इतनी बड़ी है. उस वक्त या हाल तक यही लगता था कि चलो ठीक है. बाहर कर रहे हैं तो ज्यादा से ज्यादा क्या होगा गंदगी फैलेगी लेकिन परेशानी बहुत बड़ी हैं और ऐसे लोगों की संख्या भी. आांकडे दूं तो आप चौंक जाएंगे हमारी देश की 54 प्रतिशत आबादी के पास टॉयलेट नहीं है. भारत विश्व का पहला देश है जहां इतनी तादाद में लोग खुले में शौच जाते हैं. आंकड़े बताते हैं कि पचास परसेंट इंडिया में बलात्कार की घटनाएं इस दौरान ही होती है .जब औरतें हल्के होने जाती हैं क्योंकि वो जाती हैं सूरज उदय के पहले और सूरज अस्त के बाद. जब अंधेरा होता है. वो लोटा और हाथ में दिया लेकर जाती है. ये भूल जाइए कि वो चौदह घंटे बाथरुम नहीं गयी बल्कि उन चौदह घंटे में वह घर में काम कर रही होती हैं तो खेतों में. खाना बना रही हैं. बच्चों को संभाल रही हैं. हमारे देश में कई जगह औरतें पुरुषों से ज्यादा काम करती हैं. हम दस मिनट भी बाथरुम रोक नहीं सकते हैं. वो दस से चौदह घंटे तक रोकती हैं. उसके बाद भी वो जाती हैं तो चैन से नहीं जा पाती हैं. ये डर होता है कि कहीं कोई सांप या बिच्छू आकर डस न ले. रेप न हो जाए. कोई आकर वीडियो न बना ले. कोई छेड़छाड़ न कर दे. वो लोग इस डर में जिंदगी जी रहे हैं मतलब वो लोग रोज सोचते हैं कि आज सुबह जब मैं जाऊंगी तो ऐसा कुछ न हो जाए. आप सोचिए मैं ऐसी चीज करने जाऊंगी जो भगवान ने नेचुरली बनायी है लेकिन उसमे इतनी दिक्कतें हो तो क्या होगा. ये तो ऐसा है कि मेरे सांस लेने में भी परेशानी आने लगे.

जो आंकडे आप बता रही हैं क्या इसके लिए आप सरकार को दोष देंगी जो लोगों को एक अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर भी नहीं दे पा रहे हैं.

मैं सरकार से ज्यादा इसके लिए लोगों की सोच को दोषी करार दूंगी. फिल्म के ट्रेलर में भी यह दिखाया गया है कि जिस आंगन में तुलसी है. वहां शौच कैसे बनाएं. जिस घर में खाना बना रहा हो. वहां उन चीजों के लिए कैसे जगह हो. सरकार ने आपको इंफ्रास्टचर दिया है भले ही वह बेस्ट न हो लेकिन दिया है मगर आप कहां उसका उपयोग करते हैं. ऐसे भी आंकड़े हैं. जहां पर सरकार से पैसे लेकर टॉयलेट की जगह पर लोगों ने दुकान बना लिया और सब्जी बेच रहे हैं कहीं पर तो उस पैसे से मंदिर भी बना लिया लेकिन टॉयलेट नहीं. इन सब अहम मुद्दे को हमने बहुत ही प्यार से अपनी फिल्म की कहानी में पिरोया है. मेरा दावा है कि जब लोग इस फिल्म को देखने के बाद थिएटर से बाहर निकलेंगे तो उनके चेहरे पर एक मुस्कुराहट होगी. एक भावना होगी कि सोच बदलना होगा.

आप क्या अब निजी जिंदगी में क्या इस मुद्दे से जुड़कर उसके लिए कुछ करना चाहेंगी

मैं ऐसे परिवार से आती हूं जहां पर हम सोशली मुद्दों से हम हमेशा जुड़े रहे हैं. मैं जरुर इसके अलावा कई और मुद्दों से जुड़ना चाहूगी. बहुत कम पैसे लगते हैं एक बाथरुम बनाने में. एक गांव में अगर डेढ सौ घर है और पूरे डेढ सौ घर मिलकर दो टॉयलेट भी बनवा लें तो उनकी समस्या का हल हो जाएगा लेकिन परेशानी यह है कि वह टायलेट बनाना नहीं चाहते है. सबसे बड़ी समस्या है कि आप उनकी सोच को बदलों. हमारी फिल्म वही कर रही है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभिनेता अक्षय कुमार के हैं क्या आपको लगता है कि यह फिल्म नरेंद्र मोदी के अभियान को और पुख्ता करती हैं

(हंसते हुए) जी मुझे भी उतना ही पता है जितना आपको. हमारे प्रधानमंत्री रियल मास्टर माइंड हैं स्वच्छ भारत अभियान के. ये बात हम सभी जानते हैं. इस फिल्म के जरिए हम भारत ही नहीं बल्कि सोच भी स्वच्छ करने की कोशिश कर रहे हैं.

जैसा कि आपने कहा कि इस फिल्म के पात्र साधारण हैं तो क्या आप अपने किरदार के लिए आम लोगों से मिली.

हां, मैं थोड़ी दीवानी टाइप की ही हूं. मैं तो हर फिल्म की शूटिंग के पहले होमवर्क करती ही हूं. यह फिल्म भी अलग नहीं थी. जहां पर हमारी शूटिंग होनी थी. मैं वहां पर पहले ही पहुंच गयी थी. वहां की लड़कियों से मिली. उनकी परेशानी को समझा. ऐसा नहीं है कि उनके पास सपना या जज्बा नहीं है. उनके पास भी सपने हैं. वह अपने बलबूते पर पैसे कमाना चाहती हैं. अपने घरवालों की मदद करना चाहती हैं लेकिन उनके पास जरिया नहीं है. हां अहिस्ता अहिस्ता बदलाव आ रहा है.अच्छी बात यह है कि अब इनका परिवार इनके सपनों को समझने लगा है. जिसकी वजह से ये लड़कियां साइन करने लगी हैं.

एक बार फिर आप परदे पर देशी गर्ल के किरदार को निभाने वाली हैं.

हां संध्या के बाद जया भी उसी हिंदी स्पेशल हर्टलैंड से आती है. मेरे लिए यह बहुत बड़ी चुनौती थी. दोनों लड़कियां उसी तबके से आती हैं लेकिन कैसे उन्हें परदे पर अलग दिखाऊं . वैसे देशी लडकियां भले ही बोलने में हम एक बोल देते हैं लेकिन जैसे मुंबई की पांच लड़कियां एक सी नहीं होती है. वैसी वहां की भी नहीं होती है. वैसे देशी लड़कियां बहुत ही स्ट्रांग वॉइस रखती है. वह बदलाव चाहती हैं और बदलाव लाने के लिए संघर्ष भी करती हैं. ऐसी ढेरों कहानियां की गवाह हमारी गांव और छोटे शहर की लड़कियां रही हैं. मैं तो और भी ऐसे किरदार निभाना चाहूंगी.

आप अब तक की अपनी फिल्मों में नॉन ग्लैमरस ही नजर आयी है क्या आप ग्लैमर को मिस करती हैं.

मैं तो तीन साल की उम्र से मेकअप कर रही हूं. स्टाइलिश कपड़े पहन रही हूं. अभी भी पूरा मेकअप करके आयी हूं. रोज डेढ घंटे तैयार होने में लगते हैं. सोशल मीडिया पर मेरी ग्लैमरस तस्वीरें आती रहती हैं. मैं खुश हूं उसी से. फिल्मों में मैं किरदार जीना चाहूंगी मेकअप और कपड़े नहीं.

अक्षय कुमार के साथ शूटिंग का अनुभव कैसा रहा

बहुत ही खास था. वह इंडस्ट्री में 25 साल से काम कर रहे हैं. उनका प्रोफेशनलिज्म काबिलेतारीफ है. उनके कुछ मूल्य रहे हैं. जो बहुत खास है. मैं चाहती हूं कि मेरे कैरियर में भी मैं उसी तरह की वैल्यूज को बरकरार रख पाऊं. इस फिल्म की शूटिंग के दौरान वो सामने वाले को सहज करने के लिए उसके लेवल पर आ जाते है.ं सुपरस्टार नहीं दोस्त की तरह बर्ताव करते हैं. उन्होंने शूटिंग के दिन मुङो नर्वस देखकर कहा कि हम मजा करेंगे टेंशन मत लो. उन्होंने मेरी फिल्म दमलगाकर हईशा भी देखी थी. उन्हें मेरा काम भी पसंद आया था.

आपकी आने वाली फिल्म
शुभ मंगल सावधान है. इस फिल्म का ट्रेलर जल्द ही आनेवाला है.

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