उम्मुल खेर जैसी बहादुर लड़की समाज में बहुत कम मिलती है. उम्मुल विकलांग पैदा हुई, पर उसने इस विकलांगता को अपनी ताकत बनाते हुए सफलता की सीढ़ियां बनाई. उम्मुल बोन फ्रेजाइल डिसऑर्डर से पीड़ित हैं. उन्होंने गरीबी, बीमारी, पारिवारिक विद्रोह सबकुछ झेलते हुये अपना यह सफर तय किया है.
राजस्थान के पाली मारवाड़ में जन्मी उम्मुल खेर का तीन भाई-बहन का परिवार था. पिता यहां दिल्ली आ गए. पिता के जाने से मां को सीजोफ्रीनिया(मानसिक बीमारी) के दौरे पड़ने लगे। वह प्राइवेट काम करके उन्हें पालती थीं. मगर बीमारी से उनकी नौकरी छूट गई. दिल्ली में फेरी लगाकर कमाने वाले पिता उन्हेंअपने साथ दिल्ली ले आए. यहां वो हजरत निजामुद्दीन इलाके की झुग्गी-झोपड़ी में रहने लगे. 2001 में यहां से झोपड़ियां उजाड़ दी गईं. उम्मुल का परिवार फिर से बेघर हो गया.
मजबूरी में उन्हें त्रिलोकपुरी में किराये का कमरा लेना पड़ा. पिताजी का काम निजामुद्दीन में था, जो यहां आने से चला गया. उस समय उम्मुल सातवीं कक्षा में पढ़ती थी. उसी समय उन्होंने फैसला किया कि वे बच्चों को ट्यूशन पढ़ायेंगी. ऐसे उनके घर का खर्च और पढ़ाई का खर्च निकलने लगा. उम्मुल ने आगे भी कई वर्षों तक ट्यूशन पढ़ाकर ही अपनी पढ़ाई का पैसा इकट्ठा किया.
दसवीं में उम्मुल खेर ने कला वर्ग से स्कूल में 91 प्रतिशत से टॉप किया. 12वीं में भी 89 प्रतिशत में मैं स्कूल में सबसे आगे रही. यहां वो हेड गर्ल ही रही. कॉलेज जाने की बारी आई तो मन में हड्डियां टूटने का डर तो था. फिर भी उन्होंने डीटीसी बसों के धक्के खाकर दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला लिया. यहां से फिर जेएनयू से शोध और साथ में आईएएस की तैयारी.
फ्रेजाइल डिसऑर्डर से पीड़ित हैं उम्मुल
उम्मुल बोन फ्रेजाइल डिसऑर्डर से पीड़ित हैं. इस बीमारी में हड्डियों के अत्यधिक नाजुक होने की वजह से झट से टूट जाती हैं. जितना प्रेशर या चोट एक आम आदमी का शरीर सह लेता है, इस रोग से ग्रसित व्यक्ति नहीं सह सकता. यही वजह है कि छोटी सी उम्र में उम्मुल ने 15 फ्रैक्चर और 8 सर्जरी करवायीं.
2014 में उम्मुल का जापान के इंटरनेशनल लीडरशिप ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए चयन हुआ. 18 साल के इतिहास में सिर्फ तीन भारतीय इस प्रोग्राम के लिए सेलेक्ट हुये थे और उम्मुल ऐसी चौथी भारतीय थीं. एमफिल के बाद उम्मुल ने जेआरएफ क्लियर किया और यहां से उनके पैसे की समस्या को लगाम लग गई.
पहले ही प्रयास में पास की परीक्षा
जेआरएफ के साथ ही उम्मुल आईएएस की तैयारी करने लगीं. उनके अभी तक के जीवन में उन्होंने पूरा समय केवल शिक्षा को समर्पित किया था. वे न सिर्फ पढ़ने में अच्छी थीं बल्कि उनकी मेहनत का भी कोई जोड़ नहीं था. शायद इसीलिये जब उम्मुल ने अपने पहले ही प्रयास में यूपीएससी की यह कठिन परीक्षा 420वीं रैंक के साथ पास कर ली तो किसी को हैरानी नहीं हुई. उम्मुल का जन्म ही शायद सफलता की नई कहानियां गढ़ने के लिये हुआ है.
Posted By: Shaurya Punj

