Tariff Threat: अमेरिका ने एक बार फिर टैरिफ की धमकी दी है और इस बार उसका निशाना वे देश बने हैं, जो रूस से तेल खरीदते हैं. अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट और व्यापार प्रतिनिधि राजदूत जैमीसन ग्रीर ने जी-7 के वित्त मंत्रियों के साथ हुई बैठक में यह अपील की कि सदस्य राष्ट्र रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर टैरिफ लगाएं. वॉशिंगटन का मानना है कि इस कदम से मॉस्को की “युद्ध मशीन” को मिलने वाले आर्थिक स्रोत को कमजोर किया जा सकेगा.
ट्रंप का आह्वान
बैठक में अमेरिकी प्रतिनिधियों ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का मानना है कि केवल एकीकृत प्रयासों से ही रूस पर वास्तविक दबाव बनाया जा सकता है. ट्रंप ने जी-7 देशों से आह्वान किया कि वे रूस से तेल खरीदने वाले देशों को शुल्क के दायरे में लाएं, ताकि यूक्रेन युद्ध को खत्म करने की दिशा में मजबूती से कदम बढ़ाया जा सके. उनका कहना है कि इस दबाव से रूस को “बेवकूफी भरी हत्या” रोकने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.
कनाडा की भूमिका और जी-7 की बैठक
इस बैठक की अध्यक्षता कनाडा के वित्त और राष्ट्रीय राजस्व मंत्री फ्रांस्वा-फिलिप शैम्पेन ने की. चर्चा का मुख्य विषय था कि यूक्रेन पर रूस के हमले को रोकने के लिए और किन नए उपायों को लागू किया जा सकता है. जी-7, जिसमें अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और ब्रिटेन शामिल हैं, इस साल कनाडा की अध्यक्षता में कई अहम फैसले ले रहा है.
रूस पर आर्थिक दबाव की रणनीति
अमेरिकी वित्त विभाग के बयान में कहा गया कि यदि जी-7 देश सचमुच यूक्रेन में युद्ध खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, तो उन्हें रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर शुल्क लगाने में अमेरिका का साथ देना चाहिए. अमेरिका का तर्क है कि इस रणनीति से रूस की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचेगा और युद्ध जारी रखने की उसकी क्षमता पर असर पड़ेगा.
भारत और चीन पर अप्रत्यक्ष निशाना
हालांकि, अमेरिकी बयान में किसी देश का नाम नहीं लिया गया, लेकिन लंबे समय से अमेरिका भारत और चीन पर रूस से बड़े पैमाने पर तेल खरीदने का आरोप लगाता रहा है. भारत ने कई बार स्पष्ट किया है कि उसकी ऊर्जा नीति राष्ट्रीय हितों के अनुरूप है और वह सस्ती ऊर्जा के विकल्प तलाशता रहेगा. दूसरी ओर, अमेरिका ने अब तक चीन पर इसके लिए कोई सीधा शुल्क नहीं लगाया है, लेकिन दबाव की रणनीति बरकरार है.
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क्या होगा परिणाम
अमेरिका की इस नई पहल ने एक बार फिर वैश्विक ऊर्जा बाजार और कूटनीति को चर्चा में ला दिया है. अगर जी-7 देश सचमुच रूसी तेल खरीदारों पर टैरिफ लगाने का निर्णय लेते हैं, तो इसका असर न केवल रूस बल्कि भारत और चीन जैसे देशों की ऊर्जा नीति पर भी पड़ सकता है. आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि जी-7 देश अमेरिका की इस अपील को कितना गंभीरता से लेते हैं और क्या यह कदम रूस-यूक्रेन युद्ध को रोकने में वास्तविक प्रभाव डाल पाएगा.
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