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रुपये में जोरदार गिरावट मगर चिंतित नहीं है सरकार, सीईए ने बताया कि कब सुधरेगी स्थिति?

Rupees Record Low: रुपया पहली बार 90 प्रति डॉलर के पार पहुंचा, लेकिन सरकार चिंतित नहीं है. मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन के अनुसार, गिरावट से न तो मुद्रास्फीति बढ़ रही है और न ही निर्यात पर नकारात्मक असर पड़ रहा है. एफडीआई प्रवाह मजबूत है और अगले साल रुपये में सुधार की उम्मीद जताई जा रही है. विदेशी बिकवाली और कच्चे तेल की कीमतें दबाव बढ़ा रही हैं.

Rupees Record Low: भारत के रुपये ने बुधवार को इतिहास में पहली बार अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 90 का स्तर पार कर लिया, जिसने आर्थिक और राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी. इसके बावजूद सरकार ने मुद्रा की इस कमजोरी पर असामान्य रूप से शांत प्रतिक्रिया दी है. मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) वी अनंत नागेश्वरन का कहना है कि रुपये में यह गिरावट न तो मुद्रास्फीति को असहज कर रही है और न ही निर्यात पर कोई प्रतिकूल असर डाल रही है. सरकार के मुताबिक, यह स्थिति नियंत्रण से बाहर नहीं है और अगले साल इसमें सुधार की उम्मीद की जा सकती है.

भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत

सीईए वी अनंत नागेश्वरन के अनुसार, कई देशों में स्थानीय विनिर्माण बढ़ने से ग्लोबल सप्लाई चेन नई दिशा ले रही हैं. इसके बीच भारत में बढ़ते विदेशी निवेश से संकेत मिलते हैं कि अर्थव्यवस्था की बुनियादी मजबूती डगमगाई नहीं है. चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीनों में ही भारत को लगभग 50 अरब डॉलर का एफडीआई मिला है, जो पिछली अवधि से अधिक है. उनका कहना है कि वर्ष 2025 में एफडीआई 100 अरब डॉलर पार कर सकता है, जो रुपये को भविष्य में सहारा देगा.

रुपये की गिरावट का वास्तविक कारण क्या है?

अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में बुधवार को रुपये ने 89.96 से शुरुआत की, लेकिन कुछ ही घंटों में यह फिसलकर 90.30 प्रति डॉलर के अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया. दिन के अंत में यह 90.21 प्रति डॉलर पर बंद हुआ. लगातार दो दिनों से रुपये पर दबाव बढ़ रहा था. मंगलवार को भी इसमें 43 पैसे की कमजोरी आई थी.

क्या कहते हैं विदेशी मुद्रा कारोबारी

विदेशी मुद्रा कारोबारियों ने इस गिरावट की वजह विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली, कच्चे तेल की बढ़ी कीमतें और भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की घोषणा में अनिश्चितता को बताया. यही नहीं, इस बार रिजर्व बैंक ने शुरुआती दौर में रुपये को सपोर्ट नहीं दिया, जिससे गिरावट और तेज हुई. हालांकि 90.30 के स्तर पर पहुंचने के बाद आरबीआई ने हस्तक्षेप कर हालात को स्थिर किया. विश्लेषकों का मानना है कि दिसंबर में अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती की संभावना और डॉलर इंडेक्स में कमजोरी, आने वाले दिनों में रुपये को कुछ राहत दे सकती है.

रुपये की गिरावट का महंगाई और व्यापार पर असर

रुपये का डॉलर के मुकाबले कमजोर होना आयात-निर्भर क्षेत्रों के लिए चिंता का विषय है. पेट्रोलियम, इलेक्ट्रॉनिक्स और आभूषण जैसे सेक्टरों में लागत बढ़ने से उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त दबाव आ सकता है. हालांकि, सीईए ने दोहराया कि अभी तक ऐसी कोई स्थिति नहीं बनी है जिससे मुद्रास्फीति नियंत्रण से बाहर हो जाए. वहीं, निर्यातकों के लिए कमजोरी राहत की तरह काम करती है, क्योंकि उन्हें वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने का अवसर मिलता है. सरकार का तर्क है कि यह संतुलन किसी बड़े आर्थिक संकट की ओर संकेत नहीं करता.

वैश्विक संकेतों का घरेलू मुद्रा पर असर

वैश्विक बाजार की चाल भारतीय मुद्रा पर गहरा प्रभाव डालती है. दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती को मापने वाला डॉलर सूचकांक 0.20% गिरकर 99.16 पर आ गया. इसके साथ ही कच्चे तेल का अंतरराष्ट्रीय मानक ब्रेंट क्रूड भी 63.02 डॉलर प्रति बैरल पर फिसल गया. इसके बावजूद रुपये पर दबाव कम नहीं हुआ, क्योंकि घरेलू बाजार में एफआईआई की बिकवाली भारी रही और आर्थिक अनिश्चितताओं ने माहौल को कमजोर रखा. शेयर बाजार ने भी रुपये की कमजोरी की छाया महसूस की. सेंसेक्स 31 अंकों की गिरावट के साथ 85,106 पर बंद हुआ, जबकि निफ्टी 46 अंक टूटकर 25,986 पर आ गया.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

मिराए एसेट के विश्लेषक अनुज चौधरी का कहना है कि रुपये में थोड़ी और कमजोरी संभव है, लेकिन अमेरिकी फेड की संभावित नरम नीति और डॉलर इंडेक्स की गिरावट से धीरे-धीरे सुधार हो सकता है. उनका अनुमान है कि डॉलर-रुपया विनिमय दर कुछ समय तक 89.80 से 90.50 की सीमा में रह सकती है. फिनरेक्स ट्रेजरी एडवाइजर्स के अनिल भंसाली ने कहा कि आरबीआई की ओर से हस्तक्षेप में देर करना इस गिरावट का बड़ा कारण रहा, लेकिन यह रणनीति शायद रुपये को अपनी प्राकृतिक दिशा लेने देने के इरादे से अपनाई गई.

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चिंता नहीं, मगर सतर्कता जरूरी

रुपये का 90 के पार जाना प्रतीकात्मक रूप से बड़ा झटका है, लेकिन सरकार के शांत रुख और बढ़ते एफडीआई के रुझानों से संकेत मिलता है कि स्थिति नियंत्रण से बाहर नहीं है. वैश्विक परिस्थितियां और घरेलू नीतियां अगले कुछ महीनों में निर्धारण करेंगी कि रुपये की यात्रा आगे ऊपर जाएगी या कमजोर रुख बनाए रखेगी. फिलहाल, यह आर्थिक संतुलन की उस नाजुक रेखा पर खड़ा है, जिसे संभालकर रखना ही नीति निर्धारकों की सबसे बड़ी चुनौती है.

भाषा इनपुट के साथ

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KumarVishwat Sen
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कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं.

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