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2250 करोड़ रुपये का महंगा पानी पीएगा पाकिस्तान, भारत के बाद इस देश ने किया जल प्रहार

Pakistan Water Crisis: अफगानिस्तान द्वारा पाकिस्तान को जल आपूर्ति रोकने से खैबर पख्तूनख्वा में गंभीर पेयजल संकट पैदा हो गया है. भारत की सहायता से बने शहतूत और अन्य बांधों के चलते पाकिस्तान को अब वैकल्पिक स्रोतों से पानी जुटाने के लिए सालाना 2250 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ सकते हैं. इससे कृषि, बिजली और अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर पड़ने की आशंका है. यह संकट भारत द्वारा सिंधु जल संधि रद्द करने के बाद और गंभीर हो गया है.

Pakistan Water Crisis: आतंकवादियों का पनाहगाह बनना अब पाकिस्तान को सताने लगा है. पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत की ओर से सिंधु जल संधि रद्द किए जाने के बाद अब अफगानिस्तान ने भी जल प्रहार करते हुए नदियों के जरिए पाकिस्तान जाने वाले पानी को रोकने का ऐलान कर दिया है. अफगानिस्तान के इस ऐलान के बाद पाकिस्तान को खैबर पख्तूनवा इलाके में पीने के पानी के लिए सालाना करीब 2250 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे. हालांकि, अफगानिस्तान ने जिन नदियों का पानी रोका है, उससे न केवल पीने के पानी, बल्कि सिंचाई के लिए भी उसका इस्तेमाल किया जाता है.

पाकिस्तान में किन अफगानिस्तानी नदियों का जाता है पानी

अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच कई साझा नदी बेसिन हैं, जो पाकिस्तान की जल सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं.

  • काबुल नदी: यह अफगानिस्तान में हिंदू कुश पहाड़ों से निकलती है और पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में प्रवेश करती है. यह नदी पेशावर, नौशेरा, और अटक जैसे क्षेत्रों में कृषि और जलापूर्ति का प्रमुख स्रोत है. काबुल नदी सिंधु नदी में मिलती है.
  • कुनर नदी: यह काबुल नदी की एक सहायक नदी, जो अफगानिस्तान से शुरू होकर पाकिस्तान में बहती है. यह नदी खैबर पख्तूनख्वा के निचले भागों के कृषि क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण है.
  • अन्य नदियां: अफगानिस्तान और पाकिस्तान 9 नदी बेसिन साझा करते हैं, जिनमें गोमल नदी (जो दक्षिण वजीरिस्तान में बहती है), पिशिन-लोरा, कंधार-कंद, कदनई, अब्दुल वहाब धारा, और कैसर नदी शामिल हैं. ये सभी बलूचिस्तान में सिंधु बेसिन का हिस्सा बनती हैं.

पाकिस्तान को पानी देने के लिए बांध का निर्माण और भारत की भूमिका

अफगानिस्तान ने अपनी नदियों पर बांध बनाने की योजनाओं को तेज किया है, जिसमें भारत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

  • शहतूत बांध परियोजना: यह काबुल नदी पर बनाया गया है. भारत ने इस परियोजना के लिए 236 मिलियन डॉलर की वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान की है. यह बांध अफगानिस्तान की राजधानी काबुल और लगभग 20 लाख लोगों के लिए साफ पेयजल उपलब्ध कराएगा, साथ ही सिंचाई और बिजली उत्पादन में भी मदद करेगा.
  • कुनर नदी पर बांध: अफगानिस्तान ने कुनर नदी पर भी बांध बनाने की योजना बनाई है. तालिबान के एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी जनरल मुबीन ने हाल ही में कुनर क्षेत्र का दौरा किया और पानी रोकने के लिए बांध निर्माण की वकालत की. उन्होंने कहा, “यह पानी हमारा खून है, इसे बहने नहीं देंगे.”
  • सलमा बांध: यह परियोजना पहले ही पूरी हो चुकी है, जिसमें भारत ने तकनीकी और वित्तीय सहायता दी. यह बांध हरि नदी पर बना है और अफगानिस्तान को बिजली और सिंचाई के लिए पानी प्रदान करता है, लेकिन इसका प्रभाव पाकिस्तान तक नहीं है.

अफगानिस्तान का पानी रोकने पर क्या होगा?

अफगानिस्तान द्वारा पानी रोकने का निर्णय पाकिस्तान के लिए गंभीर परिणाम ला सकता है. खासकर, पाकिस्तान की जल आपूर्ति और कृषि इन नदियों पर निर्भर है.

  • कृषि पर प्रभाव: काबुल और कुनर नदियां खैबर पख्तूनख्वा और अन्य क्षेत्रों में कृषि के लिए जीवनरेखा हैं. पानी रुकने से खरीफ फसलों के लिए पानी की कमी हो सकती है. एक अनुमान के अनुसार, पाकिस्तान को खरीफ फसलों के लिए 21% पानी की कमी का सामना करना पड़ सकता है.
  • पेयजल संकट: पाकिस्तान के कई शहर जैसे पेशावर और नौशेरा काबुल नदी के सतही पानी पर निर्भर हैं. पानी की आपूर्ति बंद होने से इन क्षेत्रों में पेयजल संकट गहरा सकता है.
  • बिजली उत्पादन: तरबैला बांध जैसे जलविद्युत प्रोजेक्ट्स पानी की कमी से प्रभावित होंगे, जिससे बिजली उत्पादन में कमी आएगी और औद्योगिक गतिविधियां प्रभावित होंगी.
  • आर्थिक प्रभाव: पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में कृषि का बड़ा योगदान है. पानी की कमी से फसल उत्पादन प्रभावित होगा, जिससे खाद्य सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता पर संकट आ सकता है.

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पानी रुकने पर पाकिस्तान का बढ़ेगा करोड़ों का खर्च

अफगानिस्तान की ओर से नदियों का पानी रोकने के बाद पाकिस्तान में पेयजल संकट को दूर करने के लिए वैकल्पिक स्रोतों पर निर्भरता बढ़ेगी, जिससे सालाना खर्च में भारी वृद्धि होगी.

  • पानी की मांग: पाकिस्तान की 80% आबादी सतही पानी (जैसे काबुल नदी) पर निर्भर है. खैबर पख्तूनख्वा में लगभग 2 करोड़ लोग प्रभावित हो सकते हैं, जिन्हें प्रतिदिन प्रति व्यक्ति 50 लीटर पानी की जरूरत होती है. यह प्रतिदिन 1 अरब लीटर पानी की मांग बनती है.
  • ग्राउंडवाटर पंपिंग: पाकिस्तान पहले से ही भूजल पर अत्यधिक निर्भर है, लेकिन भूजल स्तर पहले ही गिर रहा है. भूजल पंपिंग की लागत लगभग 0.5 रुपये प्रति लीटर हो सकती है, जिसमें बिजली और रखरखाव शामिल है. इससे प्रतिदिन 50 करोड़ रुपये और सालाना 1825 करोड़ रुपये (लगभग 22 मिलियन डॉलर) का खर्च होगा.
  • वाटर टैंकर सप्लाई: शहरी क्षेत्रों में पानी टैंकरों से सप्लाई किया जा सकता है. एक टैंकर (5000 लीटर) की कीमत लगभग 2000 रुपये है. यदि 20% आबादी (40 लाख लोग) टैंकरों पर निर्भर हो, तो प्रतिदिन 4 लाख लीटर की जरूरत होगी, यानी 80 टैंकर रोजाना. इससे प्रतिदिन 1.6 लाख रुपये और सालाना 5.84 करोड़ रुपये (लगभग 0.7 मिलियन डॉलर) का खर्च होगा.
  • डिसेलिनेशन और अन्य तकनीकें: यदि पाकिस्तान डिसेलिनेशन संयंत्रों की ओर बढ़ता है (जो बलूचिस्तान जैसे क्षेत्रों में संभव है), तो लागत और बढ़ेगी. डिसेलिनेशन की लागत लगभग 1-2 रुपये प्रति लीटर हो सकती है. यदि 10% पानी की मांग डिसेलिनेशन से पूरी की जाए, तो सालाना 365 करोड़ रुपये (लगभग 4.4 मिलियन डॉलर) का अतिरिक्त खर्च होगा.
  • कुल अनुमानित खर्च: भूजल, टैंकर और डिसेलिनेशन के खर्च को मिलाकर पाकिस्तान को पेयजल के लिए सालाना लगभग 2250 करोड़ रुपये (27 मिलियन डॉलर) खर्च करने पड़ सकते हैं. यह अनुमान केवल पेयजल पर केंद्रित है और इसमें कृषि, बिजली उत्पादन और अन्य क्षेत्रों की लागत शामिल नहीं है.

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