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भारत का एनआरआई गांव, जहां के लोगों के लिए खिलौना हैं बीएमडब्ल्यू और मर्सिडीज कारें

NRI Village of India: गुजरात के आणंद जिले का धर्मज गांव भारत का एनआरआई गांव कहलाता है, जहां हर परिवार का कोई न कोई सदस्य विदेश में रहता है. यह गांव समृद्धि, आधुनिक सड़कें, स्वच्छता और बैंकिंग में अग्रणी है. यहां मर्सिडीज, बीएमडब्ल्यू जैसी लग्जरी कारें आम हैं और 1,000 करोड़ रुपये से अधिक बैंक जमा है. 2007 से लागू विकास मॉडल ने पंचायत और प्रवासियों की भागीदारी से गांव को आधुनिक बनाया. धर्मज का पंचायत मॉडल और एनआरआई योगदान देशभर के लिए मिसाल बन गया है.

NRI Village of India: भारत में आपने कई समृद्ध गांवों के बारे में सुना होगा, लेकिन उस गांव के बारे में नहीं सुना होगा, जिसे एनआरआई का गांव कहा जाता है. यह एक ऐसा अमीर गांव है, जहां के लोगों के लिए मर्सिडीज और बीएमडब्ल्यू जैसी कारें खिलौनों की जैसी लगती हैं. इतना ही नहीं, यहां के लोगों का 1000 करोड़ से अधिक पैसा बैंकों में जमा होगा. अब आप कहेंगे कि एनआरआई लोगों का यह गांव इतना समृद्ध है, तो लगे हाथ इसका नाम भी बता दीजिए. यह गांव गुजरात के आणंद जिले में है और इसका नाम धर्मज है.

गुजरात के आणंद जिले का धर्मज गांव सचमुच खास है. यह वह जगह है, जहां हर परिवार की कहानी दुनिया के किसी न किसी कोने से जुड़ी है, लेकिन दिल अब भी अपने गांव से मिट्टी के साथ बंधा है. इस गांव को लोग प्यार से भारत का एनआरआई गांव कहते हैं, क्योंकि यहां के लगभग हर परिवार का कोई न कोई सदस्य विदेश में रहता है.

1895 से शुरू हुआ विदेश जाने का सफर

धर्मज की समृद्धि की कहानी आज से करीब 130 साल पहले वर्ष 1895 में शुरू हुई थी. उस समय गांव के दो युवाओं (जोताराम काशीराम पटेल और चतुरभाई पटेल) ने युगांडा जाने का साहसिक फैसला लिया. इसके बाद दूसरे लोग भी विदेश जाने लगे. प्रभुदास पटेल मैनचेस्टर गए और “मैनचेस्टरवाला” के नाम से प्रसिद्ध हुए. गोविंदभाई पटेल ने अदन में तंबाकू का कारोबार शुरू किया. यहीं से धर्मज की विदेश यात्रा शुरू हुई, जिसने आगे चलकर गांव को वैश्विक पहचान दिलाई.

दुनिया भर में फैले हैं धर्मज के प्रवासी परिवार

धर्मज गांव का प्रवासी परिवार दुनिया भर में फैले हैं. अंग्रेजी की वेबसाइट मनी कंट्रोल की रिपोर्ट के अनुसार, आज धर्मज गांव के करीब 1,700 परिवार ब्रिटेन में, 800 अमेरिका में, 300 कनाडा में और 150 ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में बसे हैं. इसके अलावा अफ्रीका, दुबई और अन्य देशों में भी सैकड़ों परिवार रहते हैं. लेकिन इन सबमें सबसे खास बात यह है कि ये लोग अपनी जड़ों को कभी नहीं भूले. वे न केवल गांव लौटते हैं, बल्कि विकास में पैसा और समय दोनों का योगदान देते हैं.

2007 से शुरू हुआ विकास का संगठित मॉडल

विकास को सामूहिक रूप देने की शुरुआत साल 2007 में हुई, जब गांव के एनआरआई और स्थानीय पंचायत ने मिलकर “धर्मज विकास मॉडल” लागू किया. इस पहल के बाद गांव ने भारत के ग्रामीण जीवन की परिभाषा ही बदल दी. हर सड़क आरसीसी ब्लॉक से पक्की है. सफाई व्यवस्था शहरों से बेहतर है. पंचायत और ग्रामीण मिलकर रोजाना स्वच्छता सुनिश्चित करते हैं. यहां आपको कूड़े के ढेर या बदबूदार पानी के गड्ढे कहीं नहीं मिलेंगे, जो भारत के अधिकांश गांवों के लिए एक सपना जैसा लगता है.

धर्मज का हरा-भरा और मनोरंजक जीवन

धर्मज गांव में जीवन सिर्फ समृद्ध नहीं, बल्कि संतुलित और खुशहाल भी है. गांव के गौचर (चरागाह) में सूरजबा पार्क बना हुआ है, जहां बच्चे और बुजुर्ग स्विमिंग, बोटिंग और बगीचों का आनंद ले सकते हैं. गांव ने लगभग 50 बीघा जमीन हरी घास उगाने के लिए समर्पित की है, ताकि स्थानीय पशुपालकों को सालभर चारा मिल सके. इतना ही नहीं, 1972 से यहां भूमिगत जल निकासी प्रणाली काम कर रही है, जो आज भी कई भारतीय शहरों में नहीं है.

बैंकिंग और निवेश में भी अव्वल

रिपोर्ट में कहा गया है कि सिर्फ 17 हेक्टेयर में फैले और 11,333 लोगों की आबादी वाले इस छोटे से गांव में 11 बैंक शाखाएं हैं, जिनमें सरकारी, प्राइवेट और को-ऑपरेटिव बैंक शामिल हैं. इन बैंकों में 1,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की जमा राशि है, जो धर्मज को एक “निवेशकों का गांव” बनाती है. धर्मज का बैंकिंग इतिहास भी गौरवशाली है. 1959 में देना बैंक की पहली शाखा यहां खुली. 1969 में ग्राम सहकारी बैंक की स्थापना हुई, जिसके पहले अध्यक्ष एचएम पटेल थे. वे आगे चलकर भारत के वित्त मंत्री बने.

लग्जरी गाड़ियां और आलीशान घर

धर्मज की सड़कों पर आपको मर्सिडीज, ऑडी, बीएमडब्ल्यू जैसी लग्जरी गाड़ियां आम दिखाई देंगी. यहां के घरों की वास्तुकला भी अनोखी है. कई मकानों के नाम विदेशों से जुड़े हैं. इनमें रोडेशिया हाउस या फिजी रेजिडेंस जैसे नाम शामिल हैं. यह नाम बताते हैं कि किस परिवार की जड़ें किस देश से जुड़ी हैं. यहां के कब्रिस्तान में लगी दान की पट्टिकाएं भी विशेष हैं, जिन पर रकम शिलिंग (अफ्रीकी मुद्रा) में लिखी होती है, जो धर्मज के ऐतिहासिक संबंधों की याद दिलाती हैं.

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पंचायत मॉडल बना देशभर के लिए मिसाल

धर्मज की सबसे बड़ी ताकत इसकी स्वावलंबी पंचायत व्यवस्था है. यहां पंचायत को सिर्फ सरकारी सहायता पर निर्भर नहीं रहना पड़ता, बल्कि गांव के प्रवासी भारतीय स्वयं विकास कार्यों में पैसा लगाते हैं. इससे गांव में स्कूल, अस्पताल, पार्क, जल निकासी, सड़कें सब आधुनिक स्तर के हैं. हर साल 12 जनवरी को धर्मज दिवस मनाया जाता है, जब दुनिया भर से एनआरआई लौटकर अपने गांव का जश्न मनाते हैं. यह आयोजन गांव की एकता और गर्व का प्रतीक बन गया है.

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KumarVishwat Sen
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कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं.

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