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माइक्रोफाइनेंस सेक्टर में गिरावट, 2024-25 में 13% क्लाइंट और 14% लोन घटे

Microfinance Report: भारत माइक्रोफाइनेंस रिपोर्ट 2025 के अनुसार, वित्त वर्ष 2024-25 में माइक्रोफाइनेंस सेक्टर में 13% क्लाइंट और 14% लोन की गिरावट दर्ज की गई. कुल बकाया 3.81 लाख करोड़ रुपये रहा, जिसमें एनबीएफसी-एमएफआई का 39% हिस्सा रहा. वहीं, एनएबीएआरडी के अनुसार स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) बैंक लिंकेज ने सकारात्मक वृद्धि दिखाई. रिपोर्ट में ओवर-लेवरेजिंग को सेक्टर की बड़ी चुनौती बताया गया है, जबकि 91% लोन आय-सृजन गतिविधियों में इस्तेमाल हो रहे हैं.

Microfinance Report: भारत के माइक्रोफाइनेंस सेक्टर के लिए वित्त वर्ष 2024-25 अच्छा नहीं रहा. क्रेडिट इन्फॉर्मेशन कंपनियों के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, इस अवधि के अंत तक सेक्टर का कुल सक्रिय क्लाइंट बेस घटकर 8.28 करोड़ पर आ गया, जबकि कुल बकाया लोन 3,81,225 करोड़ रुपये रहा. इसका मतलब यह कि साल भर में क्लाइंट बेस में 13% और बकाया लोन में 14% की गिरावट दर्ज की गई.

बैंकों और एनबीएफसी-एमएफआई का दबदबा

भारत माइक्रोफाइनेंस रिपोर्ट 2025 के अनुसार, कुल लोन में सबसे बड़ा हिस्सा एनबीएफसी-एमएफआई (39%) का रहा, जिनका बकाया 1.48 लाख करोड़ रुपये था. इसके बाद बैंकों का हिस्सा 32% (1.24 लाख करोड़ रुपये), स्मॉल फाइनेंस बैंकों का 16% (59,817 करोड़ रुपये), एनबीएफसी का 12% (45,042 करोड़ रुपये) और दूसरे संस्थानों का हिस्सा 1% (3,516 करोड़ रुपये) रहा. इसी तरह, कुल 13.99 करोड़ लोन अकाउंट्स में से 39% एनबीएफसी-एमएफआई के, 33% बैंकों के, 15% एसएफबी के, 12% एनबीएफसी के और 1% दूसरे कर्जदाताओं के रहे.

एसएचजी का सकारात्मक रुख

जहां माइक्रोफाइनेंस सेक्टर में गिरावट आई, वहीं एनएबीएआरडी के अनुसार स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) बैंक लिंकेज ने सकारात्मक रुख दिखाया. कुल बकाया 3.04 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया और 84.94 लाख एसएचजी क्रेडिट-लिंक्ड हुए. इसके अलावा, 143.3 लाख एसएचजी में 17.1 करोड़ परिवार बचत-लिंक्ड रहे, जो ग्रामीण महिला सशक्तिकरण और वित्तीय समावेशन का संकेत है.

98% माइक्रो लेंडिंग बिजनेस को कवर करती रिपोर्ट

सा-धन और एनएबीएआरडी की ओर से तैयार की गई यह रिपोर्ट देश के 203 माइक्रो लेंडिंग इंस्टीट्यूशन्स (एमएलआई) से प्राप्त आंकड़ों पर आधारित है, जो भारत के कुल एमएलआई बिजनेस का 98% प्रतिनिधित्व करती है. रिपोर्ट का उद्देश्य माइक्रोफाइनेंस सेक्टर की मौजूदा स्थिति और चुनौतियों का समग्र विश्लेषण प्रस्तुत करना है.

क्या कहते हैं नाबार्ड चेयरमैन

रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए नाबार्ड के चेयरमैन शाजी केवी ने कहा कि माइक्रोफाइनेंस भारत के सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन का महत्वपूर्ण स्तंभ बन गया है. उन्होंने कहा, “इससे महिलाओं, सीमांत किसानों और कारीगरों को सशक्त बनाया गया है. बिना गिरवी रखे ऋण प्राप्त कर उन्होंने अपनी आजीविका और छोटे व्यवसायों को स्थायी बनाया है.” शाजी केवी के अनुसार, रिपोर्ट के आंकड़े डेटा-आधारित नीतियों के निर्माण में मदद करेंगे और विकसित भारत के लक्ष्य को गति देंगे.

क्रेडिट ओवर-लेवरेजिंग बनी सबसे बड़ी चुनौती

सा-धन के सीईओ जीजी मम्मेन ने कहा कि सेक्टर की सबसे बड़ी समस्या ‘क्रेडिट का ओवर-लेवरेजिंग’ रही, यानी एक ही उधारकर्ता पर कई कर्जदाताओं का बोझ बढ़ गया. इसे रोकने के लिए इंडस्ट्री लीडर्स और स्व-नियामक संगठनों ने अतिरिक्त सुरक्षा उपाय (गार्डरेल्स) लागू किए. पहला गार्डरेल सेट जुलाई 2024 में और दूसरा अप्रैल 2025 में लागू हुआ. इन कदमों से कर्ज वितरण पर नियंत्रण हुआ, जिसके कारण सेक्टर की वृद्धि अस्थायी रूप से नकारात्मक दिखी.

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91% लोन आय-सृजन गतिविधियों में इस्तेमाल

मम्मेन ने उम्मीद जताई कि मौजूदा वित्त वर्ष में स्थिति बेहतर होगी, क्योंकि अब 91% माइक्रोफाइनेंस लोन आय-सृजन गतिविधियों, जैसे छोटे व्यापार, पशुपालन और कुटीर उद्योगों में इस्तेमाल किए जा रहे हैं. इससे सेक्टर की स्थिरता और उधारकर्ताओं की भुगतान क्षमता दोनों में सुधार की संभावना है.

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KumarVishwat Sen
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कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं.

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