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Tariff War: भारत के दो कट्टर दुश्मनों को शह क्यों दे रहे डोनाल्ड ट्रंप, आखिर चाहते हैं क्या?

Tariff War: डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका-चीन टैरिफ युद्ध को टालते हुए पाकिस्तान को कम टैरिफ और तेल सौदे में राहत दी है, जबकि भारत पर 50% रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने का संकेत दिया है. यह फैसला अमेरिकी व्यापार नीति में दक्षिण एशिया के प्रति स्पष्ट भेदभाव को दर्शाता है. ट्रंप की रणनीति चीन से समझौता, पाकिस्तान को सहूलियत और भारत पर दबाव बनाने की ओर इशारा करती है, जिससे क्षेत्रीय व्यापार समीकरण और कूटनीतिक रिश्तों में नई चुनौतियां पैदा हो सकती हैं.

Tariff War: अमेरिका के राष्ट्रपति का दूसरी बार पदभार ग्रहण करने के साथ डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ वॉर छेड़कर दुनिया भर में चिंताएं पैदा कर दी हैं. सबसे खास बात यह है कि इस टैरिफ वॉर में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के दो कट्टर दुश्मन पाकिस्तान और चीन पर रहमो-करम बरसाते हुए शह पर शह देते चले जा रहे हैं, जबकि भारत पर टैरिफ का बोझ लाद रहे हैं. डोनाल्ड ट्रंप ने 9 अप्रैल 2025 को भारत पर करीब 26% रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने का ऐलान किया, लेकिन बाद में इसे 90 दिनों के लिए टाल दिया. वहीं, 1 अगस्त 2025 को मियाद पूरी होने के बाद उन्होंने 25% अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया. इस प्रकार, अमेरिका ने भारत पर कुल 50% रेसिप्रोकल टैरिफ लगा दिया. वहीं, उसने भारत के कट्टर दुश्मन चीन को 90 दिनों की एक बार फिर मोहलत दी है, जबकि एक अन्य कट्टर दुश्मन पाकिस्तान पर मात्र 19% टैरिफ लगाया है. अमेरिका की इस नीति के बाद सवाल खड़े किए जा रहे हैं कि आखिर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के दो कट्टर दुश्मन को शह क्यों दे रहे हैं? वे आखिर करना क्या चाहते हैं? आइए, इन दोनों सवालों का जवाब जानते हैं.

चीन को मिली 90 दिनों की मोहलत

इंडिपिडेंट डॉट को डॉट यूके और अलजजीरा की एक रिपोर्ट के अनुसार, 11 अगस्त, 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने एक बड़े फैसले में चीन के साथ चल रहे टैरिफ वॉर को 90 दिनों के लिए टाल दिया है. उनके द्वारा यह कदम ऐसे समय में उठाया गया, जब दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर था और बाजार संभावित झटकों के लिए तैयार थे. ट्रंप के इस निर्णय के पीछे कई आर्थिक और राजनीतिक कारण हैं.

  • ट्रंप प्रशासन और चीन के बीच जेनेवा और स्टॉकहोम में हुई बातचीत में व्यापार असंतुलन, बौद्धिक संपदा संरक्षण, और दुर्लभ खनिजों के निर्यात जैसे मुद्दों पर प्रगति हुई है.
  • अमेरिकी खुदरा विक्रेताओं ने छुट्टियों के मौसम से पहले सप्लाई चेन में व्यवधान और मूल्य वृद्धि की चेतावनी दी थी, जिसने ट्रंप पर दबाव डाला.
  • चीन ने अमेरिकी मांगों, जैसे सोयाबीन खरीद बढ़ाने और दुर्लभ खनिजों पर निर्यात प्रतिबंध हटाने में सहयोग दिखाया.
  • ट्रंप का लक्ष्य चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ शिखर सम्मेलन की तैयारी करना है, जिसके लिए समय चाहिए. यह मोहलत वैश्विक बाजारों को स्थिरता प्रदान करती है, जैसा कि स्टॉक मार्केट में सकारात्मक प्रतिक्रिया से दिखता है. हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि गहरे संरचनात्मक मुद्दे अनसुलझे रह सकते हैं.

पाकिस्तान पर मामूली टैरिफ

हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1 अगस्त, 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश के माध्यम से पाकिस्तान पर 19% टैरिफ लगाया, जो पहले के 29% से कम है. यह निर्णय एक तेल और व्यापार समझौते के बाद लिया गया, जिसमें पाकिस्तान ने अमेरिकी कच्चे तेल का आयात शुरू किया. यह टैरिफ ट्रंप की “पारस्परिक” व्यापार नीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य व्यापार घाटे को कम करना और अमेरिकी उद्योगों को बढ़ावा देना है.

पाकिस्तान पर नरमी के क्या हैं कारण

टैरिफ के मामले में डोनाल्ड ट्रंप की ओर से पाकिस्तान पर नरमी के पीछे सबसे बड़ा कारण ऊर्जा साझेदारी है, जिसमें दोनों देश पाकिस्तान के “विशाल तेल भंडार” विकसित करने पर सहमत हुए. इस समझौते में पाकिस्तान की सबसे बड़ी रिफाइनरी, अक्टूबर में अमेरिकी वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) से कच्चे तेल का आयात करेगी. यह टैरिफ दक्षिण एशिया में भारत (25%) और बांग्लादेश (20%) जैसे पड़ोसियों की तुलना में कम है. हालांकि, यह टैरिफ पाकिस्तान के निर्यात विशेषकर कपड़ा क्षेत्र, को प्रभावित कर सकता है.

ट्रंप की क्या है रणनीति

ट्रंप के समर्थक मानते हैं कि अमेरिका का टैरिफ कम करना, नए बाजार खोलना और अमेरिकी कंपनियों को बढ़ावा देना यह सब महज आर्थिक गणित है, लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक इसमें गहरी भू-राजनीतिक परतें भी हैं.

  • टैरिफ बना हथियार: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप टैरिफ का इस्तेमाल महज राजस्व जुटाने के लिए नहीं करते, बल्कि इसे कूटनीतिक दबाव के साधन के रूप में करते हैं. चीन और पाकिस्तान के साथ हालिया कदम इसी नीति का हिस्सा हैं.
  • भारत पर अप्रत्यक्ष दबाव: भारत फिलहाल अमेरिकी 25% टैरिफ के बोझ तले है. इसके साथ ही, रूस से कच्चा तेल खरीदने पर 25% अतिरिक्त टैरिफ झेल रहा है. ऐसे में पाकिस्तान को रियायत देना भारत को संदेश देने जैसा है, “या तो हमारी शर्तें मानो या बढ़ते आर्थिक दबाव का सामना करो.”
  • घरेलू राजनीति: डोनाल्ड ट्रंप को अमेरिकी उद्योगों और किसानों का समर्थन चाहिए और चीन-पाकिस्तान के साथ व्यापारिक समझौते इस दिशा में एक चुनावी हथियार बन सकते हैं.

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शक्ति संतुलन का खेल खेल रहे डोनाल्ड ट्रंप

ट्रंप की चीन और पाकिस्तान नीति यह साफ दिखाती है कि उनके लिए वैश्विक व्यापार सिर्फ आर्थिक लेन-देन नहीं, बल्कि शक्ति संतुलन का खेल है. पाकिस्तान को दी गई रियायत और चीन को मिली मोहलत, भारत के लिए सीधी चुनौती है. यह एक ऐसी चुनौती है, जिसमें आर्थिक और रणनीतिक दोनों जोखिम छिपे हैं. अब यह भारत पर है कि वह इस खेल को कैसे पढ़ता है और अपने पत्ते कैसे खेलता है, क्योंकि आने वाले महीनों में दक्षिण एशिया की राजनीति और व्यापार में नई बाजी खुलने वाली है. चीन और पाकिस्तान को दी गई मोहलत उनकी “अमेरिका फर्स्ट” नीति का हिस्सा है, जो भारत के लिए रणनीतिक चुनौतियां पैदा करती है. भारत को इस बदलते वैश्विक परिदृश्य में सावधानीपूर्वक कदम उठाने होंगे.

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KumarVishwat Sen
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कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं.

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