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आर्थिक संकट : अभी दूर है ऊंची वृद्धि दर की राह

नयी दिल्ली: विकसित देशों में जारी आर्थिक संकट के मद्देनजर एक किताब में अनुमान लगाया गया है कि 1992-2007 की ऊंची वृद्धि दर शीघ्र ही फिर मिलने की संभावना नहीं है. इसमें कहा गया है कि मौजूदा हालात में ज्यादा से ज्यादा यह हो सकता है कि धीमे ही सही लेकिन वृद्धि में सुधार हो. […]

नयी दिल्ली: विकसित देशों में जारी आर्थिक संकट के मद्देनजर एक किताब में अनुमान लगाया गया है कि 1992-2007 की ऊंची वृद्धि दर शीघ्र ही फिर मिलने की संभावना नहीं है. इसमें कहा गया है कि मौजूदा हालात में ज्यादा से ज्यादा यह हो सकता है कि धीमे ही सही लेकिन वृद्धि में सुधार हो.

आर्थिक संकट के बारे में यह किताब हुब्रिस: व्हाई इकनामिस्ट फेल्ड टु प्रडिक्ट द क्राइसिस एंड हाउ टु एवाइड द नेक्स्ट वन मेघनाद देसाई ने लिखी है. देसाई लंदन स्कूल आफ इकनामिक्स में एमिरेट्स प्रोफेसर व ब्रिटेन की संसद के उच्च सदन हाउस आफ लार्ड्स के सदस्य हैं.
किताब के अनुसार, हम यूरो क्षेत्र में मुद्रास्फीति की दर में कमी तथा वृद्धि में स्थिरता को लेकर पहले ही चिंतित हैं. चीन में वृद्धि घट रही है. अमेरिका व ब्रिटेन जैसी जिन अर्थव्यवस्थाओं में सुधार हुआ है उनके 1992-2007 की पुरानी उंची वृद्धि दर की राह पर लौटने की संभावना कम ही है.
संकट का जिक्र करते हुए देसाई ने कहा कि 2007 के मध्य में एक के बाद एक दो घटनाएं हुईं जिन्होंने संकेत दिया कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की दिशा बदल रही है. इनमें से एक तो 2006 की शरद ऋतु में हुई जबकि अमेरिका में आवास ऋण क्षेत्र लुढक गया.इसके बाद फरवरी 2007 में शांगहाए शेयर बाजार ढहा.
किताब में कहा गया है कि हालांकि वैश्विक अर्थव्यवस्था में अब सुधार के संकेत दिख रहे हैं लेकिन आर्थिक संकेतों के पूर्व स्तर पर आने में अभी कई साल लगेंगे.

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