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पूरी दुनिया के शेयर बाजार टूटे : जानें क्‍या कहना है प्रमुख बिजनेस अखबारों का

।। बिजनेस डेस्‍क ।। दुनियाभर में चीन की अर्थव्यवस्था को लेकर निवेशकों की चिंता के बीच सोमवार को यूरोपीय व अमेरिकी शेयर बाजार नीचे आ गये. ऐसे में आशंका बनी है कि भारतीय शेयर बाजार में मंगलवार को भी ‘हाहाकार’ जैसी स्थिति रह सकती है. चीन की अगुवाई में एशियाई बाजारों में गिरावट के असर […]

।। बिजनेस डेस्‍क ।।

दुनियाभर में चीन की अर्थव्यवस्था को लेकर निवेशकों की चिंता के बीच सोमवार को यूरोपीय व अमेरिकी शेयर बाजार नीचे आ गये. ऐसे में आशंका बनी है कि भारतीय शेयर बाजार में मंगलवार को भी ‘हाहाकार’ जैसी स्थिति रह सकती है. चीन की अगुवाई में एशियाई बाजारों में गिरावट के असर से लंदन से लेकर पेरिस और न्यूयार्क सभी जगह बाजार धराशायी हो गये. दोपहर के कारोबार में प्रमुख यूरोपीय बाजार आठ प्रतिशत तक नीचे चल रहे थे. अमेरिकी शेयरों की भी कमजोर शुरुआत हुई थी. बेंचमार्क 30 शेयरों वाला डाउ इंडेक्स तीन प्रतिशत से अधिक टूट गया था. बंबई शेयर बाजार के सेंसेक्स में सोमवार को एक दिन की सबसे बडी गिरावट आयी और यह 1,624.51 अंक टूटकर 25,741.56 अंक पर आ गया. इस बीच, बेंचमार्क यूरोपीय सूचकांक, फ्रांस का सीएसी-40 सात प्रतिशत टूटकर 4,305.95 अंक पर और लंदन का एफटीएसइ-100 करीब पांच प्रतिशत टूटकर 5,906.43 अंक पर आ गया.

अमेरिका में डाउ इंडेक्स शुरुआत में काफी तेजी से नीचे आया लेकिन बाद में संभल गया. शुरुआती कारोबार में यह 310 अंक से अधिक के नुकसान से 16,147.61 अंक पर चल रहा था. एसएंडपी 500 दो प्रतिशत से अधिक टूटकर 1,927.11 अंक पर और नास्डैक करीब तीन प्रतिशत टूटकर 4,594.17 अंक पर आ गया. शंघाई का बाजार 8.49 प्रतिशत के नुकसान से 3,209.91 अंक पर आ गया. जापान का निक्की 225 करीब पांच प्रतिशत के नुकसान से 18,540.68 अंक पर और हांगकांग का हैंगसेंट पांच प्रतिशत से अधिक टूटकर 21,251.57 अंक पर आ गया. यूरोपीय और अमेरिकी बाजारों में जोरदार गिरावट के मद्देनजर ऐसी आशंका है कि कल भी भारतीय बाजारों में उतार-चढाव रहेगा.

यूनान के शेयर बाजारों में 10 प्रतिशत से अधिक की गिरावट

चीन की अगुवाई में वैश्विक बाजारों में गिरावट तथा घरेलू राजनीतिक मोर्चे पर अनिश्चितता से यूनान के शेयर बाजारों में सोमवार को 10 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई. एथेक्स एक्सचेंज 10.54 प्रतिशत के नुकसान से तीन साल के निचले स्तर 568.38 अंक पर आ गया. कारोबार बंद होने से करीब आधे घंटे पहले तक बाजार 11.3 प्रतिशत नीचे चल रहा था.

लाइव मिंट

एस एंड पी 500 सूचकांक सोमवार को 10 महीने के निचले स्तर 3.9% गिर गया. अखबार ने लिखा है कि 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद पहली बार इतनी बड़ी गिरावट देखी गयी. यूरो और येन उधार लेने की कुछ निवेशकों की धारणा से बाजार प्रभावित हुआ है. चीन की मुद्रा येन में आयी भारी गिरावट के कारण बाजार हतोत्‍साहित हुआ है. इसके साथ ही अमेरिकन बाजार में गिरावट की मुख्‍य वजह कच्‍चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट को माना जा रहा है. अखबार ने लिखा है कि यूरो और येन में आयी गिरावट और कच्‍चे तेल की कीमतों का असर केवल अमेरिकन बाजार पर ही नहीं, बल्कि एकशयन और यूरोपियन बाजारों में भी देखने को मिली. हालांकि यूएस क्रूड ऑयल की कीमतों में गिरावट सोमवार को 42.3 डालर से चढकर 43.20 पर पहुंच गयी है. वैश्विक स्‍तर पर महंगाई को लेकर भी बाजार प्रभावित है और वैश्विक स्‍तर पर गिरावट देखने को मिल रही है. शंघाई बाजारों में दर्ज लगभग साढे आठ फीसदी की गिरावट का असर विश्‍वभर के बाजारों पर देखने को मिला है.

बिजनेस स्‍टैंडर्ड

प्रमुख भारतीय बिजनेस अखबार का कहना है कि चीन के बाजार में गिरावट को वैश्विक स्‍तर पर बाजारों में गिरावट की मुख्‍य वजह बतायी गयी है. अखबार का हेडलाइन है चीन की आह में सात लाख करोड़ स्‍वाहा. यह भारतीय बाजारों के संदर्भ में कहा गया है. गौरतलब है कि कल 1600 से अधिक अंकों की गिरावट के बाद बीएसई में लगे निवेशकों के 7 लाख करोड़ रुपये स्‍वाहा हो गये. अखबार ने कहा कि चीन की गिरावट की वजह से पूरी दुनिया के बाजार दहशत में आ गये और सिंगापुर से लेकर अमेरिका तक हर तरफ लुढ़कन शुरू हो गयी. पड़ोसी भारत तो इतना परेशान हुआ कि उसके शेयर बाजारों को अब तक की सबसे बड़ी चोट लग गई.

बंबई स्टॉक एक्सचेंज का सेंसेक्स खुलते ही भरभरा गया और कारोबार खत्म होने पर 1624.51 अंक लुढ़कर 25,741.56 पर बंद हुआ. नैशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी भी 491 अंक टूटकर 7,809 पर बंद हुआ. अंकों के लिहाज से देसी बाजार इतने ज्यादा कभी नहीं लुढ़के थे और 7 जनवरी 2009 के बाद बाजार में पहली बार बड़ी गिरावट आयी है. गिरावट भी इतनी तेज कि करीब साल भर की कमाई एक ही दिन में खाक हो गयी. निवेशकों के 7 लाख करोड़ रुपये फूंकने के बाद दोनों सूचकांक अक्टूबर 2014 के स्तर पर रह गये. इसका असर रुपये पर भी पड़ा और डॉलर के मुकाबले 1.23 फीसदी गिरकर रुपया 66.65 पर बंद हुआ, जो दो साल का न्यूनतम स्तर है. मुद्रा विशेषज्ञ मान रहे हैं कि रुपया 67 के पार लुढ़क सकता है. अखबार का छापा है कि गिरावट भारत तक ही नहीं रही. उसने एशिया और यूरोप के तमाम बाजारों को चपेट में ले लिया. कमोबेश सभी एशियाई बाजार 5 फीसदी से ज्यादा लुढ़के. एफटीएसइ में 5.53 फीसदी की गिरावट दिखी और डीएसी 40 करीब 7 फीसदी गिर गया. हैंगसेंग में भी 5.45 फीसदी चोट लगी. डाउ जोंस भी 5.8 फीसदी गिरावट के साथ खुला. चारो ओर हाहाकार की शुरुआत चीन में हुई, जहां बाजार को सहारा देने के तमाम सरकारी प्रयास धरे के धरे रह गये और शांघाई कंपोजिट सुबह ही 8.5 फीसदी ढह गया.

इकोनॉमिक टाइम्‍स

एक और प्रसिद्ध बिजनेस अखबार इकोनॉमिक टाइम्‍स ने बाजार की गिरावट के 6 बडे कारणो का उल्‍लेख किया है. अखबार का कहना है कि प्रमुख कारणों में कुछ पुरान कारक शामिल हैं. 2008 की वैश्विक मंदी और 2013 की मंदी का जिक्र करते हुए अखबार का कहना है कि इन्‍हीं पुराने कारणों से चीन के बाजार लगभग 8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गयी, जिसने सभी बाजारों को प्रभावित किया. दूसरा कारण निवेशकों के डर को बताया गया है. निवेशक चीन के संकट से डर रहे हैं और बाजार से अपना पैसा खींच रहे हैं. तीसरा कारण जापान को बताया जा रहा है. जापान दुनिया के तीन बड़े अर्थवयवस्‍थाओं में शामिल है. जापान की अर्थव्‍यवस्‍था 1.6 फीसदी प्रति वर्ष की दर से सिकुड़ रहा है.

एक और कारण का जिक्र करते हुए अखबार ने कहा कि चीन की मु्द्रा में भारी गिरावट बाजार को खासा प्रभावित कर सकती है. सोमवार की गिरावट को भी चीन की गिरावट से ही जोड़कर देखा जा रहा है. अखबार ने चीन को संकट से उबरने के संकेत भी दिये हैं. कुल वैश्विक निर्यात का 13.7 फीसदी भागीदारी चीन की है. ऐसे में येन में आयी गिरावट के कारण वैश्विक बाजार प्रभावित हुआ है. क्रुड आयल की कीमतों में गिरावट को भी बाजार की गिरावट का मुख्‍य कारण माना जा रहा है. अखबार के अनुसार क्रूड आयल की कीमतें लगभग 40 डालर तक कम हुई हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की अर्थव्‍यवस्‍था में गिरावट के कारण ही क्रूड आयल की कीमतों में गिरावट आयी है. इस प्रकार माना जायेगा तो वैश्विक स्‍तर पर बाजारों में गिरावट का मुख्‍य कारण चीन ही है.

बाजार में गिरावट पर क्‍या कहना है विशेषज्ञों को

वैश्विक स्‍तर पर आयी गिरावट को लेकर उद्योग जगत के बड़े जानकारों ने अलग-अलग राय दी. इस बीच उद्योग जगत भारत के संदर्भ में कहा कि देश में नीति निर्माताओं को जल्द ही जल्द सुधारात्मक उपाय करने की जरुरत है जिससे घरेलू और वैश्विक निवेशकों का भरोसा बहाल किया जा सके.

सीआइआइ के अध्यक्ष सुमित मजूमदार ने कहा, ‘सेंसेक्स में गिरावट से निवेश के लिए विश्वास डिगता है. पिछले कुछ महीनों से बहुत अधिक निवेश नहीं आया है. आपको बाजार में निवेशकों का विश्वास बहाल करना होगा.’ मजूमदार ने सरकार की भूमिका में भरोसा जताते हुए कहा, ‘मेरा विश्वास है कि कदम उठाये जाएंगे और बाजार में सुधार आएगा. मैं आज की गिरावट को एक अस्थायी चरण के तौर पर देखता हूं.’

सीआइआइ के पूर्व अध्यक्ष अजय श्रीराम ने बाजार में गिरावट को ‘वैश्विक स्थिति का प्रतिबिंब’ करार दिया.

एसोचैम के महासचिव डी.एस. रावत ने कहा कि जिन देशों के साथ हम मुक्त व्यापार समझौते कर सकते हैं, उनके द्वारा भारतीय बाजारों में सामानों की डंपिंग से भारतीय अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए कदम उठाने होंगे.

बाजारों में उतार-चढाव आते रहते हैं : जयंत सिन्हा

केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने आज कहा कि उतार चढाव शेयर बाजार का हिस्सा है और निवेशकों को बनती-बिगडती स्थितियों के बीच अपनी चाल चलनी होती है. यहां सीबीइसी के एक कार्यक्रम में सिन्हा ने संवाददाताओं को बताया, ‘इस समय बाहरी कारक हैं जिनसे उतार-चढाव हो रहा है. इसका असर खत्म होने में समय लेगा. उतार-चढाव इन पूंजी बाजारों का हिस्सा है.’ उन्होंने कहा कि बाजार में काम करने वालों को बाहरी कारकों के मुताबिक काम करना पडता है चाहे वह चीन की अर्थव्यवस्था हो या फेडरल रिजर्व द्वारा दर में संभावित वृद्धि.

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