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लो, अब GST में भी 34000 करोड़ रुपये का घोटाला, फाइलों को खंगालने जुटा आयकर विभाग!

नयी दिल्ली : पंजाब नेशनल बैंक में हुए हजारों करोड़ रुपये के घोटाले के बाद अब वित्तीय धोखाधड़ी के कर्इ मामलों का खुलासा हो रहा है. इस बार सरकार ने खुद यह आशंका जाहिर की है कि वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) का रिटर्न्स दाखिल करने के दौरान देश के कारोबारियों ने उसे हजारों करोड़ रुपये […]

नयी दिल्ली : पंजाब नेशनल बैंक में हुए हजारों करोड़ रुपये के घोटाले के बाद अब वित्तीय धोखाधड़ी के कर्इ मामलों का खुलासा हो रहा है. इस बार सरकार ने खुद यह आशंका जाहिर की है कि वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) का रिटर्न्स दाखिल करने के दौरान देश के कारोबारियों ने उसे हजारों करोड़ रुपये की चपत लगायी है. दरअसल, जुलाई-दिसंबर के बीच जीएसटी नेटवर्क में फाइल रिटर्न्स का प्राथमिक विश्लेषण करने पर संदेह पैदा हो रहा है कि कारोबारियों ने 34,000 करोड़ रुपये की टैक्स देनदारी छिपा ली है. यह मुद्दा शनिवार को आयोजित जीएसटी काउंसिल मीटिंग में उठाया गया है. अब उन कारोबारियों को नोटिस भेजा जा सकता है कि जिन्होंने जीएसटी रिटर्न्स- 1 और जीएसटीआर- 3बी में अलग-अलग देनदारी बतायी है. जीएसटीआर- 1 का इस्तेमाल अभी मुख्य रूप से सूचना के मकसद से हो रहा है.

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सूत्रों के हवाले से मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार, उन लोगों पर विशेष जोर दिया जाना है, जिन्होंने दोनों रिटर्न फाइलिंग्स में बड़ा अंतर रखा है. कई मामलों में व्यक्तिगत करदाताओं की विस्तृत जानकारी का विश्लेषण करने के बाद परिणाम को राज्यों के साथ साझा किया जायेगा, ताकि ‘संदेहास्पद’ लोगों पर कार्रवाई की जा सके. संदेह का सिर्फ यही एक कारण नहीं है.

सीमा शुल्क विभाग ने रिटर्न्स के आंकड़े का विश्लेषण करने के बाद बताया है कि आयातित उत्पादों की कीमत बहुत कम बतायी गयी है. एक अधिकारी ने उदाहरण दिया कि हो सकता है 10,000 रुपये के मोबाइल फोन की कीमत 7,000 रुपये दिखायी गयी हो. अधिकारियों को संदेह है कि ऐसा हर पायदान पर कम जीएसटी चुकाने के मकसद से किया गया.

दरअसल, जीएसटी कलेक्शन अनुमान से लगातार कम रहे हैं, क्योंकि सरकार टैक्स चोरी रोकने के विभिन्न पहलुओं को लागू करने में असफल रही है. इनमें खरीद-बिक्री की कीमत का पता लगाने के लिए इनवॉइस मैचिंग और फैक्टरियों से शोरूम तक सामान के पहुंचने की पूरी गतिविधि पर नजर रखने के लिए ई-वे बिल्स जैसे पहल शामिल हैं.

अधिकारियों का कहना है कि कई कारोबारियों को लगा कि सरकार जीएसटीआर-1 और जीएसटीआर-3बी का मिलान नहीं करनेवाली. इस वजह से भी कारोबारियों ने दोनों में अलग-अलग आंकड़े भरे. हालांकि, टैक्स कंस्लटंट्स का कहना है कि दोनों में अंतर के उचित कारण भी हो सकते हैं, क्योंकि टैक्स पेमेंट के वक्त कई महीनों से जमा इनपुट टैक्स क्रेडिट का इस्तेमाल मौजूदा अवधि के क्रेडिट के साथ किया जाता है.

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Prabhat Khabar Digital Desk
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