नयी दिल्ली : आर्थिक विशेषज्ञों का अनुमान है कि आगामी बजट में कर मुक्त आय की सीमा ढाई से बढ़ाकर तीन लाख रुपये की जा सकती है. कुछ विश्लषकों का मानना है कि सरकार वेतन भोगियों को कुछ राहत देने के लिए फिर स्टैंडर्ड डिडक्शन शुरू कर सकती है. उनका मानना है कि बजट में कृषि क्षेत्र में निवेश और बड़ी ढांचागत परियोजनाओं पर खर्च बढ़ाने पर जोर होगा. वित्त मंत्री अरुण जेटली एक फरवरी को आम बजट पेश करेंगे. मोदी सरकार के मौजूदा कार्यकाल का पांचवां और अंतिम पूर्ण बजट होगा. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संकेत दिया है कि आगामी बजट लोकलुभावन नहीं होगा और सरकार सुधारों के रास्ते पर आगे बढ़ती रहेगी.
क्या होगी बड़ी चुनौती
इस लिहाज से सरकार के समक्ष राजकोषीय अनुशासन को बनाये रखने की चुनौती होगी. विशेषज्ञों के अनुसार चालू वित्त वर्ष के दौरान राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.2 प्रतिशत तक सीमित रखना सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती है. मध्यावधिक योजना के अनुसार अगले वित्त वर्ष में इसे कम करके 3 प्रतिशत पर लाना वित्त मंत्री के लिये और बड़ी चुनौती होगी. उद्योग संगठन एसोचैम के कर विशेषज्ञ निहाल कोठारी के अनुसार वित्त मंत्री आयकर स्लैब में कुछ बदलाव कर सकते हैं. तीन लाख रुपये तक की आय को पूरी तरह से कर मुक्त किया जा सकता है.
स्लैब में बदलाव संभव
मौजूदा व्यवस्था में भी तीन लाख रुपये तक की आय कर मुक्त है, लेकिन बजट में स्लैब में ही बदलाव कर इस व्यव्स्था को पक्का किया जा सकता है. इस समय ढाई लाख रुपये तक की सालाना आय कर मुक्त है जबकि ढाई से पांच लाख रुपये की आय पर पांच प्रतिशत की दर से कर लगता है. इसके अलावा इस वर्ग में 2,500 रुपये की अतिरिक्त छूट भी दी गई है जिससे तीन लाख रुपये तक की आय पर कोई कर नहीं लगता है. संभवत: वित्त मंत्री इस स्लैब को तीन से पांच लाख रुपये कर सकते हैं. इसके बाद पांच से दस लाख रुपये की आय पर 20 प्रतिशत और दस लाख रुपये से अधिक की आय पर तीस प्रतिशत दर से कर देय होगा. आयकर विशेषज्ञ एवं चार्टर्ड एकाउंटेंट आरके गौड़ ने कहा,’ एक सुझाव है कि पांच लाख रुपए तक की आय को कर मुक्त कर दिया जाए. पर संभावना है कि बजट में आयकर से छूट वाली आय की वर्तमान सीमा में 50 हजार रुपये तक की वृद्धि की जा सकती है.
कितने की हो सकती है कटौती
‘ गौड़ ने कहा, ‘..यह भी हो सकता है कि वित्त मंत्री इस बार के बजट में वेतनभोगी वर्ग को खुश करने के लिए स्टैंडर्ड डिडक्शन (मानक कटौती) को फिर ला सकते हैं.. यह 50 हजार रूपए तक की हो सकती है. ‘ आकलन वर्ष 2006-07 से स्टैंडर्ड डिडक्शन को समाप्त कर दिया गया था. उससे पहले पांच लाख तक की सालाना आय वाले वेतनभोगी करदाताओं को अधिकतम 30,000 रुपये तक की मानक कटौती का लाभ मिल रहा था, जिसके लिए उन्हें निवेश या खर्च का कोई रिटर्न नहीं देना पड़ता था.
आयकर पर छूट
वित्त मंत्री ने अपने पिछले बजट में कहा था कि यदि आयकर की धारा 80 सी के तहत विभिन्न प्रकार के निवेश पर मिलने वाली 1.5 लाख रुपये तक की कर छूट को भी शामिल कर लिया जाये तो 4.5 लाख रुपये की सालाना आय पर कोई कर देनदारी नहीं बनती है. इसके अलावा आवास रिण पर दिये जाने वाले दो लाख रुपये तक के ब्याज पर भी कर छूट का प्रावधान है. पीएचडी उद्योग मंडल के मुख्य अर्थशास्त्री डा. एस. पी. शर्मा ने कहा कि निजी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए कार्पोरेट कर 25 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिये. वित्त मंत्री ने वादा किया था कि चार साल में कापोर्रेट कर की दर को घटाकर 25 प्रतिशत कर दिया जायेगा.
‘‘इस दिशा में शुरुआत हुई है लेकिन इसे पूरी तरह अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है. ” उन्होंने कहा सार्वजनिक क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों, अधिकारियों का मानना है कि आम वेतनभोगी तबके पर करों का भारी बोझ है. वेतनभोगी तबका लगातार नियमानुसार कर देता है. इसके लिये उसे कुछ न कुछ प्रोत्साहन अवश्य मिलना चाहिये. अप्रत्यक्ष कर क्षेत्र के मामले में पेट्रोल, डीजल सहित तमाम पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने की मांग जोर पकड़ रही है. कच्चे तेल के दाम बढ़ने के साथ ही घरेलू बाजार में पेट्रोल, डीजल के दाम चढ़ गये हैं. ऐसे में खुद पेट्रोलियम मंत्रालय ने पेट्रोलियम पदार्थों पर उत्पाद शुल्क घटाने की मांग की है.
डा. शर्मा ने कहा कि कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश और रोजगार के अवसर बढ़ाने पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. इसके लिये निर्माण कार्य, खाद्य प्रसंस्करण, कपड़ा क्षेत्रों पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिये ताकि रोजगार बढ़ने के साथ-साथ आर्थिक गतिविधियां भी तेज हो सकें. कोठारी ने कहा कि बजट में वित्त मंत्री कंपनियों के लिये लाभांश वितरण कर (डीडीटी) समाप्त कर सकते हैं.
निवेशकों के हाथ में लाभांश मिलने पर वहां कर लगाया जा सकता है. कंपनियों के प्रवर्तक सहित कई बड़े निवेशक हैं जिन्हें लाभांश के रूप में बड़ी राशि प्राप्त होती है जिसपर उन्हें कोई कर नहीं देना होता है. मौजूदा व्यवस्था में कंपनियों को लाभ पर कंपनी कर देने के साथ साथ लाभांश वितरण कर भी देना होता है. जबकि लाभांश पाने वाले पर कोई कर नहीं बनता.
आगामी बजट में यह व्यवस्था बदल सकती है. लाभांश पाने वाले को कर देना पड़ सकता है. सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्योग मंडल के अध्यक्ष मुकेश मोहन गुप्ता ने कहा कि सरकार बैंकों को मजबूत करने के उपाय कर रही है. दूसरे मायनों में सरकार के इस कदम से बैंकों का कर्ज नहीं चुकाने वालों को ही अप्रत्यक्ष समर्थन मिला है. इसके बजाय बैंकों को अपने दम पर बाजार से पूंजी जुटानी चाहिये. गुप्ता ने डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिये सरकार को नवोन्मेषी उपाय करने चाहिये.
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