नयी दिल्लीः संसद ने अर्थव्यवस्था को गति देने के उद्देश्य से देश में कंपनियों के वास्ते कारोबारी प्रक्रिया और नियमों के अनुपालन को सरल बनाने के प्रावधान वाले कंपनी (संशोधन) विधेयक को मंगलवार को पारित कर दिया. विधेयक के जरिये कंपनियों की सरंचना,उनके द्वारा सूचनाओं के खुलासे और नियमों के अनुपालन के संबध में कंपनी अधिनियम 2013 की व्यवस्थाओं में संशेाधन किये गये हैं. नयी व्यवस्थाओं के तहत जहां कंपनियों के लिए कारोबारी प्रक्रियाओं की जटिलता खत्म की गयी है. वहीं, निवेशकों की सुरक्षा की भी पुख्ता व्यवस्था की गयी है, ताकि बाजार और अर्थव्यवस्था पर उनका भरोसा कायम रहे. कंपनियों को कारोबारी सहूलियतें देने के साथ उनके लिए काॅरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) का निर्वहन अनिवार्य बनाते हुए इसका अनुपालन नहीं करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवार्इ की व्यवस्था भी इसमें की गयी है.
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विधेयक पर हुई चर्चा का कंपनी मामलों के राज्य मंत्री पीपी चौधरी ने जवाब दिया. इसके बाद सदन ने इसे ध्वनिमत से पारित कर दिया. लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है. उच्च सदन में इस विधेयक पर विपक्ष द्वारा लाये गये संशोधन को खारिज कर दिया. इससे पहले चौधरी ने चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि वर्ष 2015 में इस संबंध में संशोधित विधेयक को दोनों सदनों में पारित किया गया था. उन्होंने कहा कि राज्यसभा ने कुछ और संशोधनों की मांग की थी, जिसपर कंपनी विधि समिति गठित की गयी. समिति ने एक दिसंबर, 2016 को विस्तृत रिपोर्ट दी, जिसने र्क संशोधन सुझाये और बाद में इसे स्थायी समिति के पास भेजा गया था. समिति की अधिकांश सिफारिशों को मौजूदा विधेयक में शामिल किया गया है.
उन्होंने कहा कि मौजूदा विधेयक में धन शोधन के खतरे से बचने के लिए अधिक पारदर्शिता लायी गयी है. चौधरी ने कहा कि मौजूदा साल आर्थिक सुधारों की पहल का वर्ष रहा है. यह विधेयक इसी क्रम में लाया गया है. उन्होंने कहा कि लघु एवं मझोली कंपनियां समय पर रिटर्न दाखिल कर सकें, इस संबंध में तमाम उपयुक्त प्रावधान किये गये हैं. उन्होंने कहा कि निदेशकों को विशेष प्रस्ताव के जरिये ही ऋण देने और इसका कहीं अन्यत्र उपयोग न होने देने के लिए मौजूदा विधेयक में पर्याप्त बचाव किये गये हैं. सदस्यों द्वारा स्वतंत्र निदेशकों को रखने और उनकी स्वतंत्रता को कायम रखने के संदर्भ में उपयुक्त कानूनी व्यवस्था को लेकर जतायी जा रही आशंकाओं के बारे में उन्होंने कहा कि यह बाध्यता छोटी कंपनियों पर लागू नहीं है. उन्होंने कहा कि कंपनी में कम से कम एक महिला निदेशक हो इस बात का प्रस्ताव किया गया है और यह महिला कहीं बाहर की भी हो सकती हैं.
इससे पूर्व विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस के पी चिदंबरम ने विधेयक का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि जब निदेशक पहचान संख्या (डिन) पहले से मौजूद है, तो ऐसे में दूसरे पहचान संख्या की आवश्यकता सरकार क्यों महसूस कर रही है. उन्होंने कहा कि छोटी और मझोली कंपनियों के लिए अलग से कानून बनना चाहिए और कंपनी के कार्यकारियों को अधिक से अधिक शक्ति नहीं सौंप दी जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि निजी नियोजन (प्राइवेट प्लेसमेंट) के संदर्भ में जो प्रस्ताव किये गये हैं, उस पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए और इसे विश्व के कानूनों के अनुरूप होना चाहिए.
चर्चा में भाजपा के अजय संचेती, रंगसायी रामाकृष्णन, सपा के संजय सेठ, तृणमूल कांग्रेस के विवेक गुप्ता, जदयू के डाॅ हरिवंश, बीजद के एवी सिंह देव, माकपा के तपन कुमार सेन, शिरोमणि अकाली दल के नरेश गुजराल, भाकपा के डी राजा, कांग्रेस के टी सुब्बारामी रेड्डी, वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के विजय साय रेड्डी ने भी हिस्सा लिया.
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