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कर्ज के एक हिस्से को वापस करने की माल्या की पेशकश बैंकों ने ठुकराई

लंदन : ब्रिटेन में प्रत्यर्पण से जुड़ी सुनवाई के दौरान विजय माल्या के बचाव पक्ष ने दावा किया कि भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की अगुवाई में बैंकों के समूह ने इस शराब कारोबारी की उस पेशकश को ठुकरा दिया था जिसमें उसने कर्ज की करीब 80 फीसदी राशि लौटाने की बात की थी. इस पर […]

लंदन : ब्रिटेन में प्रत्यर्पण से जुड़ी सुनवाई के दौरान विजय माल्या के बचाव पक्ष ने दावा किया कि भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की अगुवाई में बैंकों के समूह ने इस शराब कारोबारी की उस पेशकश को ठुकरा दिया था जिसमें उसने कर्ज की करीब 80 फीसदी राशि लौटाने की बात की थी. इस पर भारत सरकार की ओर से दलील पेश कर रही क्राउन प्रोसेक्यूशन सर्विस (सीपीएस) ने प्रतिवाद करते हुए संकेत दिया कि ऐसे प्रस्ताव को ठुकराने का कारण यह था कि बैंकों को पता था कि संपूर्ण बकाये के भुगतान के लिए माल्या के पास साधन हैं.

माल्या की वकील क्लेयर मोंटगोमरी ने सवाल किया कि क्या छह अप्रैल, 2017 को करीब 4,4000 रुपये वापस करने की उनके मुवक्किल की पेशकश को एक दिन ही बाद ही बैंकों द्वारा ठुकराया जाना चाहिए था. ब्रिटेन की वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट अदालत में यह सुनवाई चल रही है. इस सुनवाई का फैसला तय करेगा कि माल्या को वापस भारत भेजा जाना चाहिये या नहीं, जहां वह 9,000 करोड़ रुपये के धन शोधन और बैंकों के साथ धोखाधडी के मामलों में वांछित हैं. माल्या के बचाव में बैंकिंग विशेषज्ञ को एक गवाह के तौर पर पेश किया गया. बैंकिंग विशेषज्ञ पॉल रेक्स ने अपनी दलील में इस बात पर जोर दिया कि वास्तव में माल्या का धोखाधडी करने का कोई इरादा नहीं था.

बैंकिंग विशेषज्ञ पॉल रेक्स, जिनके बारे में बताया गया कि उनका बैंकिंग क्षेत्र में 20 साल से अधिक का अनुभव है. उन्होंने बैंकिंग क्षेत्र में स्वतंत्र विशेषज्ञ के तौर पर काम किया. उन्हें आज सुनवाई के तीसरे दिन अदालत में पेश किया गया. माल्या की वकील क्लेयर मोंटगोमरी ने आज अपनी दलीलों को पेश करते हुए कहा कि भारत सरकार की ओर पेश हुई क्राउन प्रोसीक्यूशन सर्विस (सीपीएस) उनके मुवक्किल पर दायर मामले को प्रथम दृष्टया धोखाधडी का मामला स्थापित करने में विफल रही है.

उधर, रेक्स की दलील के मुताबिक माल्या की धोखाधडी करने की कोई मंशा नहीं थी. जबकि सीपीएस की दलील थी कि माल्या ने जो कर्ज लिया उसे चुकाने की उसकी मंशा नहीं थी क्योंकि उनकी विमानन कंपनी का बंद होना अपरिहार्य हो गया था. क्लेयर ने यह स्थापित करने की कोशिश की कि किंगफिशर के बंद होने में परिस्थितियां जिम्मेदार रहीं क्योंकि 2009 से 2010 के बीच वैश्विक आर्थिक मंदी का दौर रहा था और कंपनी का बंद होना कंपनी के नियंत्रण से बाहर होने का परिणाम था.

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