Saudi Pakistan US Security Alliance: दुनिया की राजनीति में कई बार बदलाव चुपचाप होता है, लेकिन असर बड़ा छोड़ जाता है. ऐसा ही माहौल इस समय सऊदी अरब, पाकिस्तान और अमेरिका के बीच बन रहा है. क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान का अमेरिका दौरा सिर्फ कूटनीति नहीं, बल्कि आने वाले समय की नई रणनीति का इशारा माना जा रहा है. सवाल यह है कि क्या यह सब ईरान पर नजर रखने की बड़ी तैयारी है? और सबसे अहम इस पूरे खेल में भारत कहां खड़ा होता है?
सऊदी क्राउन प्रिंस का अमेरिका दौरा
क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) के दौरे से उम्मीद है कि अमेरिका और सऊदी के रिश्ते और मजबूत होंगे. इस मुलाकात में कई अहम मुद्दों पर चर्चा तय है. अमेरिका में बड़े सऊदी निवेश. F-35 लड़ाकू विमान और अमेरिकी सुरक्षा उपकरणों की सप्लाई. सऊदी का नागरिक परमाणु कार्यक्रम. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ऊर्जा और सेमीकंडक्टर सहयोग. साथ ही अब्राहम अकॉर्ड्स के तहत सऊदी–इस्राइल सामान्यीकरण पर भी बातचीत जारी रहेगी. यानी यह दौरा दोनों देशों की कई दिशा में साझेदारी को नया रूप देने वाला है.
Saudi Pakistan US Security Alliance: सऊदी-पाकिस्तान की मजबूत होती रणनीतिक साझेदारी
सितंबर में सऊदी और पाकिस्तान ने Strategic Mutual Defence Agreement किया. यह समझौता साफ कहता है कि किसी एक देश पर हमला होता है माना जाएगा कि दोनों पर हमला हुआ. यह बिल्कुल NATO के Article 5 जैसी व्यवस्था है. यह फैसला ऐसे समय आया जब भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव था और भारत ने पाहलगाम हमले के बाद ऑपरेशन सिंदूर चलाया था.
सऊदी को यमन के हूती विद्रोहियों से खतरा है. पाकिस्तान की सेना और ट्रेनिंग लंबे समय से सऊदी की सुरक्षा व्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है. कभी-कभी चर्चा होती है कि जरूरत पड़े तो पाकिस्तान की परमाणु क्षमता सऊदी की “डिटरेंस” में काम आ सकती है.हालांकि दोनों देश इसे आधिकारिक तौर पर नकारते हैं. भारत में इस समझौते को लेकर चिंता जताई गई थी, क्योंकि इससे पाकिस्तान को अतिरिक्त समर्थन मिल सकता है.
अमेरिका की पाकिस्तान में नई दिलचस्पी
डोनाल्ड ट्रंप का पाकिस्तान में बढ़ता ध्यान तस्वीर को और दिलचस्प बनाता है. पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ और सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनी हाल ही में वाशिंगटन पहुंचे, जहां आतंकवाद के खिलाफ सहयोग और सैन्य रिश्तों को फिर से मजबूत करने पर बात हुई. यह साफ संदेश था कि अमेरिका पाकिस्तान को अपने क्षेत्रीय खेल से बाहर नहीं रखना चाहता. भारत के लिए यह बात थोड़ी असहज जरूर है.
ईरान- तीनों देशों की साझा चिंता
ईरान और सऊदी के बीच 2023 में चीन की मदद से सुलह जरूर हुई, लेकिन असल तनाव अभी भी खत्म नहीं हुआ है. कारण भी साफ हैं. ईरान की मिसाइल क्षमता, परमाणु कार्यक्रम और उसके समर्थित समूहों की गतिविधियां. सऊदी इन्हें अपने लिए लंबे समय की चुनौती मानता है. पाकिस्तान भी ईरान के साथ लगातार उतार-चढ़ाव वाले रिश्तों में रहा है. सीमा पर तनाव, फिरकावादी हिंसा और अफगानिस्तान में दखल की प्रतिस्पर्धा.
सऊदी का बड़ा लक्ष्य
MBS की विजन 2030 योजना जिसमें बड़े आर्थिक और सामाजिक बदलाव शामिल हैं इसलिए जरूरी है कि पूरा क्षेत्र शांत रहे. इसीलिए सऊदी ईरान से टकराव घटाने की कोशिश कर रहा है और अमेरिका की मदद से इस्राइल से रिश्ते सामान्य करने की दिशा में बढ़ रहा है. गौर करने वाली बात यह है कि सऊदी जानता है कि लंबे विकास के लिए क्षेत्र में शांति जरूरी है.
भारत के लिए बदलता दृश्य
सऊदी-पाकिस्तान रक्षा समझौते ने भारत में शुरुआती चिंता पैदा की. हालांकि सऊदी ने साफ कहा है कि यह समझौता भारत के खिलाफ नहीं है. भारत के सऊदी से गहरे संबंध हैं. जैसे में कि ऊर्जा सप्लाई, व्यापा और लाखों भारतीय प्रवासी भारत-अमेरिका संबंध भी काफी मजबूत हैं, भले ही कभी-कभी ट्रंप के फैसले कुछ मुश्किल पैदा कर दें. फिर भी, यह सच है कि सऊदी, अमेरिका और पाकिस्तान की बढ़ती नजदीकियां भारत के लिए भविष्य में नए सवाल खड़े कर सकती हैं. अभी भारत के पास कूटनीतिक ताकत भी है और आर्थिक क्षमता भी. लेकिन अगर यह तीनों देश एक सख्त रणनीतिक समूह बनाते हैं, तो भारत को अपनी नीति और ज्यादा सावधानी से बनानी पड़ सकती है.
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