40 साल पहले 20 जुलाई 1973 को प्रसिद्ध मार्शल आर्ट कलाकार और फ़िल्म अभिनेता ब्रूस ली की 32 साल की अल्प आयु में मौत हो गई थी. लेकिन इस छोटे से जीवन में ही ब्रूस ली कामयाबी की एक बड़ी दास्तान लिख गए.
ब्रूस ली की मौत के वक़्त उनकी बेटी शैनॉन ली सिर्फ़ चार साल की थी. अपने पिता की यादों को ज़िंदा रखने के लिए उन्होंने पिछले साल एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म बनाई थी. शैनॉन ने उस वक़्त ब्रूस ली से जुड़ी कुछ यादें बीबीसी से साझा की थी.
"मुझे ज्यादा कुछ याद नहीं है लेकिन अपने घर के आँगन में उनके साथ खेलना याद है. हांगकांग में हमारे पास अपना अलग घर था जो वहाँ के हिसाब से बड़ी बात थी. मार्शल आर्ट के बिना हमारे घर में रहना नामुमकिन था. वे हमें लात-घूँसे चलाना सिखाते थे. हम कुश्ती बहुत ज्यादा खेलते थे. मेरे पिता को लगता था कि बच्चों के लिए जूडो ज्यादा बेहतर है."
‘नई फ़िल्म पर काम’
अपनी मार्शल आर्ट और अदाकारी से ब्रूस ली कामयाबी की नई इबारत लिख रहे थे. वे फ़िल्मों की शूटिंग और अपनी कुंग फू अकादमी के काम में व्यस्त थे. मौत के वक़्त न वे बहुत बीमार थे और न ही किसी और परेशानी का शिकार थे. अचानक उनकी तबीयत ख़राब हुई और उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.
उनकी मौत को याद करते हुए शैनॉन कहती हैं, "यह एक दुखद दुर्घटना थी. वे बहुत स्वस्थ और फ़िट थे और अपने क्षेत्र में ऊँचाई पर थे. अचानक एक एलर्जिक रिएक्शन से उनकी मौत हो गई. उस दिन वह अपने एक सहकर्मी के अपार्टमेंट में थे. वे लोग एक नई फ़िल्म पर काम कर रहे थे. अचानक उनके सिर में दर्द हुआ. उन्हें दर्द की दवाई दी गई. उनके दिमाग़ में सूजन आ गया था. वे लेट गए और फिर ज़िंदा नहीं उठे."
ब्रूस ली की अंतिम यात्रा को याद करते हुए शैनॉन कहती हैं, "मुझे हांगकांग में हुई अंतिम यात्रा याद है. हज़ारों, लाखों लोग सड़कों पर खड़े थे. मैंने शोक के दौरान पहनी जाने वाली पारंपरिक सफ़ेद चीनी पोशाक पहन हुई थी. उन्हें खुले ताबूत में रखा गया था. बहुत अफ़रा-तफ़री थी."
ब्रूस ली ने अपने करियर में बहुत ज्यादा फ़िल्में नहीं की. लेकिन जो फ़िल्में की वे उन्हें इतिहास के सबसे चर्चित लोगों में से एक बना गईं. मार्शल आर्ट की उनकी कला ने दुनिया को दीवाना बना दिया. शैनॉन मानती हैं कि उन्हें असली ख्याति मौत के बाद ही हासिल हुई.
अभिनेता से ज़्यादा मार्शल आर्टिस्ट
अपने पिता के करियर को याद करते हुए शैनॉन कहती हैं. "मौत से पहले वह हांगकांग और दक्षिण पूर्वी एशिया में बड़े स्टार बन चुके थे. वे सड़क पर नहीं चल सकते थे. वे जहाँ जाते थे भीड़ इकट्ठा हो जाती थी. लोग उनका ऑटोग्राफ़ लेना चाहते और उनके साथ फ़ोटो खिँचाना चाहते थे. लेकिन पश्चिम में वे इतने बड़े स्टार नहीं थे. हॉलीवुड की कंपनी वार्नर ब्रदर्स के सहयोग से बनी उनकी फ़िल्म "एंटर द ड्रैगन" उनकी मौत के एक महीना बाद रिलीज़ हुई थी. इस फ़िल्म ने उन्हें नई ऊँचाई दी और उनकी बाक़ी फ़िल्मों के अंतरराष्ट्रीय दर्शकों तक पहुँचने का रास्ता साफ़ किया. उसके बाद से उनके प्रति क्रेज़ बढ़ता ही जा रहा है."
लेकिन ब्रूस ली को दुनिया सिर्फ़ एक फ़िल्म अभिनेता के रूप में ही नहीं बल्कि एक उम्दा मार्शल आर्ट कलाकार के रूप में ज्यादा याद रखेगी. ब्रूस ली भी मार्शल आर्ट को ही सबसे ज्यादा महत्व देते थे.
ब्रूस ली की मार्शल आर्ट के बारे में शैनॉन कहती हैं, "उन्होंने अपने जीवन में मार्शल आर्ट की अपनी अलग कला विकसित की. वे इसे जीत कुन डो कहते थे. वे खुद को अभिनेता या लेखक से पहले हमेशा एक मार्शल आर्टिस्ट मानते थे. उन्होंने अपनी कला में सादगी, सरलता और स्वतंत्रता को सर्वोपरि माना. पुराने और पारंपरिक तरीक़ों से स्वतंत्रता ही उनकी कला का आधार था."
‘पूर्वाग्रह के शिकार’
ब्रूस ली के लिए जब हांगकांग में रहना मुश्किल हो गया तो वे बेहतर जीवन की तलाश में अमरीका आ गए. कामयाबी के शिखर पर पहुँचा यह सितारा हालात से संघर्ष करता रहा. लेकिन यहाँ भी कई बार उन्हें पूर्वाग्रहो का सामना करना पड़ा.
इस बारे में शैनॉन, "मेरे पिता को अपने जीवन में हर स्तर पर पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ा. हॉलीवुड में उन्हें चीनी होने का पूर्वाग्रह झेलना पड़ा लेकिन बचपन में उन्हें हांगकांग में भी पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ा. दरअसल मेरे पिता पूरी तरह चीनी नहीं थे. उनकी माँ एक अर्धगोरी महिला थी. जब वे एक स्कूल में विंग चुन सीख रहे थे तो उनके पूरी तरह चीनी न होने पर उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया था. वे चाहते थे जो व्यवहार उनके साथ हुआ वह किसी और के साथ न हो. किसी और को बेवजह पूर्वाग्रहों का सामना न करना पड़े."
ब्रूस ली को दुनिया को अलविदा कहे आज चालीस साल पूरे हो गए हैं. अपनी मौत के इतने अर्से बाद भी वे एक चर्चित चेहरा हैं. दुनिया न सिर्फ़ उन्हें जानती है बल्कि उनकी कमी महसूस भी करती है. एचके हेरिटेज म्यूजियम ब्रूस ली की याद में एक प्रदर्शनी शुरू कर रहा है. यह प्रदर्शनी पाँच साल तक चेलगी. इसमें उनके जीवन से जुड़ी 600 चीज़ें प्रदर्शित की जाएंगी. इसमें चीनी और अंग्रेजी में लिखी उनकी कविताएँ भी शामिल हैं. एचके फ़िल्मेकर्स एसोसिएशन द्वारा बनाई गई एक नई डाक्यूमेंट्री फ़िल्म भी दिखाई जाएगी.
बीबीसी