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सही समय पर इलाज से ठीक हो सकता है बोन टीबी
डॉ संजय अग्रवाला हेड-आर्थोपेडिक्स विभाग, पीडी हिंदुजा नेशनल अस्पताल मुंबई डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में टीबी के 20 लाख से ज्यादा मरीज सामने आये हैं, जिनमें से 20 प्रतिशत यानी करीब 4 लाख लोगों को स्पाइनल टीबी या रीढ़ की हड्डी में टीबी की शिकायत है. इनकी मृत्यु दर 7 प्रतिशत है. 2016 […]
डॉ संजय अग्रवाला
हेड-आर्थोपेडिक्स विभाग, पीडी हिंदुजा नेशनल अस्पताल
मुंबई
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में टीबी के 20 लाख से ज्यादा मरीज सामने आये हैं, जिनमें से 20 प्रतिशत यानी करीब 4 लाख लोगों को स्पाइनल टीबी या रीढ़ की हड्डी में टीबी की शिकायत है.
इनकी मृत्यु दर 7 प्रतिशत है. 2016 में 76 हजार बच्चों में स्पाइनल टीबी की शिकायत पायी गयी थी. बाल और नाखून को छोड़कर टीबी शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है. जो लोग सही समय पर इलाज नहीं कराते या इलाज को बीच में ही छोड़ देते हैं, उनकी रीढ़ की हड्डी गल जाती है, जिससे स्थायी अपंगता आ जाती है. यह रोग किसी भी आयु वर्ग के लोगाें को हो सकता है.
भारत में हर वर्ष टीबी के 20-25 हजार केस (सभी प्रकार के) सामने आते हैं. आम लोगों की धारणा है कि टीबी यानी क्षयरोग सिर्फ हमारे फेफड़ों को क्षतिग्रस्त करता है, मगर हड्डियों पर भी टीबी का गहरा असर होता है.
हड्डियों में होनेवाली टीबी को ‘बोन टीबी’ या ‘अस्थि क्षयरोग’ कहा जाता है. भारत में टीबी के कुल मरीजों में से 5 से 10 प्रतिशत मरीज बोन टीबी से पीड़ित होते हैं. अमूमन रीढ़ की हड्डी, हाथ, कलाइयों और कुहनियों के जोड़ों पर इसका असर ज्यादा होता है. इसकी सही समय पर पहचान और इलाज कराया जाये, तो यह रोग पूरी तरह से साध्य है.
कौन लोग अधिक खतरे में : सामान्यत: टीबी की बीमारी शुरुआत में फेफड़ों को ही प्रभावित करती है, लेकिन धीरे-धीरे रक्त प्रवाह के जरिये शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल सकती है. यह रोग हर उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है, लेकिन इस बीमारी का खतरा 5 से 15 साल तक के बच्चों और 35 से 50 साल के लोगों को अधिक होता है.
इन लक्षणों पर रखें नजर : बुखार, थकान, रात में पसीना आना और बेवजह वजन कम होना आदि मुख्य लक्षण हैं. हड्डी के किसी एक बिंदु पर असहनीय दर्द होता है, जैसे- कलाई या रीढ़. धीरे-धीरे मरीज का बॉडी पॉश्चर और चलने का तरीका बिगड़ने लगता है. कंधे झुकाकर चलना, आगे की ओर झुक कर चलना और कई बार हड्डियों में सूजन भी आ जाती है. दर्द का प्रकार क्षयरोग के सटीक स्थान पर निर्भर करता है. मसलन, स्पाइन टीबी के मामले में पीठ के निचले हिस्से में दर्द होता है.
इससे पीड़ित लगभग आधे मरीजों के फेफड़े भी संक्रमित हो जाते हैं. कई बार बोन टीबी से पीड़ित मरीजों को कफ न निकलने से यह पता नहीं चल पाता कि वे टीबी से पीड़ित हैं. इसके शुरुआती लक्षण स्पष्ट होने में वर्षों लग जाते हैं. वजन कम होना, मूवमेंट में परेशानी, बुखार और गंभीर मामलों में हाथ व पैर में कमजोरी के तौर पर इसके लक्षण देखने को मिलते हैं. मरीज को रात में ज्यादा दर्द होता है.
बोन टीबी को कैसे पहचानें
बोन टीबी का पता लगाने के लिए एक्स-रे और प्रभावित जोड़ वाले हिस्से से बहते तरह पदार्थ की जांच जरूरी है. ब्लड टेस्ट, इएसआर टेस्ट, एक्स-रे से इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है. रीढ़ और स्केलेटल टीबी के मामले में सीटी स्कैन एमआरआइ रिपोर्ट के आधार पर इलाज की प्रक्रिया शुरू की जाती है.
बोन टीबी को शुरुआती चरण में अर्थराइटिस समझने की भूल हो जाती है. लेकिन अर्थराइटिस के मरीजों को रात में सोते समय दर्द में राहत महसूस होती है, जबकि टीबी मरीजों को सोते समय बैक्टीरिया की गतिविधि बढ़ने के कारण अधिक दर्द होता है.
क्या सावधानी बरतें : फेफड़ों के टीबी के विपरीत बोन एवं स्पाइन टीबी के इलाज में संक्रमण की गंभीरता को देखते हुए थोड़ा ज्यादा वक्त लगता है.
सामान्य हड्डी के टीबी के इलाज में करीब छह माह से एक साल लग जाता है जबकि स्पाइन टीबी के मामले में लकवे का इलाज और रिकवरी में डेढ़ से दो साल भी लग सकता है. टीबी के मरीजों के लिए दवाइयों का कोर्स पूरा करना अत्यंत आवश्यक है. इसे बीच में कभी नहीं छोड़ना चाहिए. बोन टीबी में बेड रेस्ट, अच्छा खान-पान, नियमित व्यायाम, दवाइयां और फिजियोथेरेपी सामान्य जिंदगी की ओर लौटने में मददगार होती हैं.
प्रमुख जांच
हड्डी की टीबी की जांच के लिए एक्स-रे, एम आर आइ, रेडियो न्यूक्लाइड बोन स्कैन की मदद ली जाती है. अंतिम फैसला प्रभावित टिश्यू के माइक्रोबायोलॉजिकल एग जामिनेशन (एएफबी स्टेनिंग, एफ बी कल्चर/सेंसिटिविटी व पीसीआर) के बाद ही लिया जाता है. बच्चों व बूढ़ों में इसके मामले ज्यादा देखने को मिलते हैं. एचआइवी व डाइबिटीज पीड़ितों में भी इसके होने की आशंका अधिक जाती है.
रीढ़ की हड्डी पर ज्यादा खतरा
दो-तीन हफ्ते तक पीठ में दर्द रहने के बाद भी आराम न मिले, तो तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए. आंकड़ों के मुताबिक, डॉक्टर के पास पहुंचने वाले पीठ दर्द के केसों में से 10 फीसदी मरीजों में रीढ़ की हड्डी की टीबी (स्पाइनल टीबी) का पता चलता है. इसकी पहचान भी जल्दी नहीं हो पाने से मरीज अक्सर सामान्य दर्द समझकर अनदेखा करते हैं और पेनकिलर लेकर काम चलाते हैं. जबकि इसका सही समय पर इलाज न कराने से व्यक्ति गंभीर लकवे का शिकार रहे सकता है.
इलाज की कमी से यह रीढ़ की हड्डी में एक से दूसरी हड्डी तक फैलता है, जिससे हड्डियां कमजोर होने लगती हैं और इनके बीच कुशन का काम करने वाले डिस्क क्षतिग्रस्त हो जाती है. गंभीर मामलों में रीढ़ पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो सकती है. मेरुदंड संकुचित हो सकता है, जो शरीर के निचले हिस्से में लकवे का कारण बन सकता है. रीढ़ की हड्डी बाहर निकल कर कूबड़ का भी रूप ले सकती है.
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