आलोक पुराणिक
आर्थिक मामलों के जानकार
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आनेवाले दिन का ट्रेलर है यह
आलोक पुराणिकआर्थिक मामलों के जानकार असंगठित क्षेत्र के करीब दस करोड़ कामगार, करीब 12 करोड़ छोटे किसानों का भला- ऐसी बातें अंतरिम वित्त मंत्री पीयूष गोयल अपने 2019-20 के बजट भाषण में करते दिखे. सूट-बूट की सरकार, अंबानी-अडानी की सरकार जैसे आरोपों में घिरे होने के बाद, हाल में हिंदी भाषी क्षेत्रों के तीन महत्वपूर्ण […]
असंगठित क्षेत्र के करीब दस करोड़ कामगार, करीब 12 करोड़ छोटे किसानों का भला- ऐसी बातें अंतरिम वित्त मंत्री पीयूष गोयल अपने 2019-20 के बजट भाषण में करते दिखे. सूट-बूट की सरकार, अंबानी-अडानी की सरकार जैसे आरोपों में घिरे होने के बाद, हाल में हिंदी भाषी क्षेत्रों के तीन महत्वपूर्ण राज्यों में सत्ता गंवाने के बाद केंद्र सरकार एकदम से जनप्रिय, किसान प्रिय, मजदूर प्रिय दिख रही है. ऐसा होने की ठोस वजहें हैं, ठीक सामने ही लोकसभा चुनाव हैं. कुल मिलाकर इस बजट की घोषणाएं उन वर्गों, उन लोगों को हाशिये से केंद्र में लाती हुई दिख रही हैं, जिनके पास वोट हैं, सरकार बदलने की ताकत है.
जय किसान, हो मेहरबान
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत दो हेक्टेयर तक जमीन रखनेवालों को किसानों को साल में छह हजार रुपये दिये जायेंगे. करीब बारह करोड़ किसानों को इस स्कीम का लाभ मिलने की उम्मीद है. किसानों को इस स्कीम का लाभ पहुंचाने के लिए सरकार इतनी तत्पर है कि दिसंबर 2018 से लागू की जायेगी.
यह बात बताते हुए पीयूष गोयल यह भी याद कराना नहीं भूले कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी हो जायेगी. किसानों के राजनीतिक महत्व को हाल के वक्त में तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसी राव समझ चुके हैं. उनकी रैयत बंधु स्कीम के तहत भी किसानों के खाते में रकम ट्रांस्फर की जाती है. किसान के खाते में सीधे रकम जाये, तो बीच में लूटपाट का खतरा खत्म हो जाता है.
साल में छह हजार रुपये से किसानों का कितना भला और कितना दीर्घजीवी उद्धार होगा, यह तो आगे देखा जायेगा. पर यह बात साफ होती है कि हाल की चुनावी हारों और 2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव में भी ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा के खराब प्रदर्शन से केंद्र सरकार को समझ में आया कि किसानों के लिए कुछ ऐसा किया जाना जरूरी है, जो उन्हें भी होता हुए दिखे.
पेंशन कामगारों के लिए
असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए अंतरिम वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने फिक्र दिखायी है. घोषणाओं के मुताबिक दस करोड़ असंगठित क्षेत्र के कामगारों को तीन हजार प्रति माह की पेंशन मिलेगी, अगर असंगठित कामगार 18 साल की उम्र में पेंशन स्कीम में आकर सिर्फ 55 रुपये प्रति माह का भुगतान करें या 29 साल की उम्र में पेंशन स्कीम में आकर सिर्फ 100 रुपये प्रति माह का भुगतान करें. दरअसल, अब अर्थव्यवस्था में एक प्रवृत्ति साफ तौर पर देखने में आ रही है.
वह यह है कि अर्थव्यवस्था का विकास हो रहा है, तो काम करने के लिए लोगों की जरूरत है. नौकरियां हैं पर पक्की नहीं हैं. ऐसी सूरत में असंगठित क्षेत्र के कामगारों की वृद्धावस्था को लेकर भारी चिंताएं हैं. यह स्कीम एक हद तक उन चिंताओं को दूर सकती है. जाहिर है आगामी चुनावी भाषणों में किसान और मजदूर प्रिय होने का दावा भाजपा कर पाये, ऐसे इंतजाम इस बजट में कर लिये गये हैं.
मुखर मध्य वर्ग प्लीज शांत
मध्य वर्ग की चिंता हर बजट के बाद यही रहती है कि उसकी आय में से कितना कर जानेवाला है. हाल के बरसों में तनख्वाहें लगातार बढ़ी थीं, पर सरकार बजट में वेतनभोगी वर्ग को आम तौर पर राहत देने के लिए तैयार नहीं दिखती थी. बल्कि एक बजट के बाद साक्षात्कार में वित्त मंत्री अरुण जेटली के बयान का आशय यह था कि मध्यवर्ग को अपने आप ही खुद को संभालना चाहिए, सरकार से राहतों की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए.
इस बार अंतरिम वित्तमंत्री वेतनभोगी मध्यवर्ग की सुनी है. कर योग्य आय की सीमा बढ़ाकर पांच लाख हुई है, यानी अब पांच लाख रुपये तक की आमदनी कर मुक्त होगी और कर बचत करनेवाले छह लाख पचास हजार रुपये की आमदनी कर मुक्त रख पायेंगे. पांच लाख रुपये सालाना आय का मतलब करीब 42 हजार रुपये प्रति माह कमानेवाले भी कर-मुक्त रह पायेंगे. मुखर मध्यवर्ग के लिए यह खासी राहत है और सरकार के लिए भी. मुखर मध्यवर्ग की आवाज मीडिया में जल्दी और ज्यादा जगह पा जाती है.
ट्रेलर के बाद की फिल्म
कुल मिलाकर ये सारी घोषणाएं बतौर ट्रेलर ही देखी जानी चाहिए, क्योंकि फाइनल बजट तो लोकसभा चुनावों के बाद आनेवाली सरकार ही पेश करेगी. अगर भाजपा को बजट पेश करने का मौका मिला, तो निश्चय ही ये घोषणाएं फाइनल ही होंगी.
अगर कोई और पार्टी बजट पेश करती है, तो भी साफ है कि किसानों, मजदूरों और मध्यवर्ग के लिए जो भी घोषणाएं हुई हैं, उन्हे वापस लेने का साहस किसी पार्टी में नहीं होगा. क्योंकि भाजपा तब एक मजबूत विपक्ष के तौर पर इन्हें वापस लेना आसान नहीं होने देगी. कुल मिलाकर किसान, मध्यवर्ग और असंगठित क्षेत्र के मजदूर कुछ हासिल करने की उम्मीद बांध सकते हैं.
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