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शेख भिखारी के शहादत दिवस पर विशेष : अंग्रेजों को पीछे हटने पर किया था मजबूर

अंग्रेजी शासन के खिलाफ शेख भिखारी सबसे अधिक खतरनाक हमलावर थे -नसीम अहमद- भारत देश महापुरुषों, वीरों तथा शहीदों का देश है. अत्याचार के विरुद्ध लड़ना और जंग-ए-आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देना, इसकी रीति-रिवाज में शामिल है. अमर शहीद शेख भिखारी का नाम भी इसी श्रेणी में आता है. उन्होंने अपने जीवनकाल […]

अंग्रेजी शासन के खिलाफ शेख भिखारी सबसे अधिक खतरनाक हमलावर थे
-नसीम अहमद-
भारत देश महापुरुषों, वीरों तथा शहीदों का देश है. अत्याचार के विरुद्ध लड़ना और जंग-ए-आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देना, इसकी रीति-रिवाज में शामिल है. अमर शहीद शेख भिखारी का नाम भी इसी श्रेणी में आता है.
उन्होंने अपने जीवनकाल में अंग्रेजी शासन व्यवस्था को आसानी से झारखंड की धरती पर पांव पसारने नहीं दिया. अंग्रेजों के खिलाफ 1857 में जंग-ए-आजादी के लिए जो विद्रोह हुए, उसमें केवल सिपाहियों का ही नहीं, उत्तर भारत के विभिन्न पारंपरिक बौद्धिक वर्ग के प्रतिनिधि मौलवी फकीर और दरबारी अमले पंडित आदि भी शामिल थे. उसमें न जाने कितने युद्ध के मैदान में शहीद हुए व कितने गोली के शिकार हुए. उन्हीं में से ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव, शेख भिखारी ,तात्या टोपे, टिकैत उमराव सिंह, गणपत राय और सोमा भगत जैसे अनगिनत लोगों को फांसी की सजा दी गयी.
अमर शहीद शेख भिखारी का जन्म 1819 ई में ओरमांझी प्रखंड की कुटे पंचायत स्थित खुदिया लोटा गांव में हुआ था. बचपन से ही वह चतुर और शिकार के शौकीन थे. उनकी कार्यकुशलता और बहादुरी को देख कर ही उन्हें दीवान बनाया गया था. छोटानागपुर के पूर्वी इलाके में शेख भिखारी अपना शासन चलाते थे. उनकी जागीर 12 मौजों के अलावा स्वर्णरेखा नदी के आसपास के ऊपरी क्षेत्र के सभी गांव में थी, जो हजारीबाग का इलाका था. लॉर्ड डलहौजी के अत्याचार से विवश होकर शेख भिखारी ने भी उनके खिलाफ जंग का एलान कर दिया था. अपनी सेना के साथ सबसे पहले सिकिदिरी की कांजी घाटी और जोबला घाटी में मोर्चा संभालकर विद्रोह का नारा बुलंद किया.
अंग्रेजी फौज काफी बड़ी संख्या में रामगढ़ की अोर बढ़ने लगी. उससे लोहा लेने के लिए शेख भिखारी व टिकैत उमराव सिंह ने रामगढ़ जाकर मोर्चा बंदी कर दी. अंग्रेजों और शेख भिखारी की फौज के बीच घमसान युद्ध हुआ. शेख भिखारी ने तब अपना अड्डा चुटूपालू घाटी को ही बनाया था. अंग्रेजी फौज के साथ लड़ते-लड़ते हथियार समाप्त हो जाने के बावजूद उनकी फौज ने तीर और धनुष से मुकाबला किया.
अंग्रेजी फौज को वहां से जान बचा कर भागना पड़ा. जनवरी 1857 में अंग्रेजी फौज के कमांडर मैकडोनाल्ड ने पिठौरिया गांव में परगनैत के जमींदार को चांदी के चंद टुकड़ों का लालच देकर गद्दारी के लिए तैयार कर लिया. उनके साथ मिल कर शेख भिखारी तक पहुंचने की साजिश रची गयी. शेख भिखारी और उमराव सिंह को एक साजिश के तहत अपने यहां बुलाया. निर्धारित तिथि पर जब दोनों बहादुर पिठौरिया जाने के लिए निकले, तब अंग्रेजी हुकूमत को जानकारी दे दी.
कमांडर मैकडोनाल्ड ने फौज की एक टुकड़ी को लेकर शेख भिखारी और टिकैत उमराव सिंह पर पीछे से हमला कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के बाद उन्हें आठ जनवरी 1858 को रांची जिला स्कूल मैदान में एक पेड़ पर लटका कर फांसी दे दी गयी. बाद में उनके शव को चुटूपालु घाटी के एक पेड़ में लटका दिया गया. उन्हें फांसी देने के बाद मैकडोनाल्ड ने लिखा- शासन के खिलाफ शेख भिखारी सबसे अधिक खतरनाक और लोक प्रसिद्ध हमलावर थे. आज शेख भिखारी के वंशज अपने पूर्वजों की उपेक्षा से न सिर्फ खफा हैं, बल्कि भूखों मरने के लिए विवश हैं.
(लेखक अखिल झारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ के मुख्य प्रवक्ता हैं)
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