लाओ-सू’ एक प्रकार की सम्मान प्रकट करनेवाली उपाधि है, जिसमें ‘लाओ’ का अर्थ आदरणीय वृद्ध और ‘सू’ का अर्थ गुरु है. लाओत्सु चीन के एक प्रसिद्ध दार्शनिक थे, जिन्हें ताओ ते चिंग नाम के मशहूर उपदेश लेखक के रूप में जाना जाता है. उनके जीवन से जुड़ी कई प्रेरक घटनाएं हैं.
एक बार लाओत्सु ने मछली पकड़ने की एक छड़ी बनायी, जिसमें डोरी और हुक लगाया, साथ ही चारा भी फंसा दिया. अब वे उस लकड़ी को लेकर नदी किनारे बैठ गये. कुछ ही समय बाद एक मछली हुक में फंसी.
लाओत्सू इतने उत्साहित हो गये कि उन्होंने अपनी पूरी ताकत से उस हुक को खींचा और मछली ने भी भागने में पूरी ताकत लगायी. ज्यादा उत्साहित होने के कारण उनका इस बात पर ध्यान ही नहीं गया कि छड़ी में फंसी मछली काफी बड़ी है और उन्हें उस मछली के अनुसार सम्यक ताकत लगानी चाहिए. परिणामस्वरूप ज्यादा ताकत लगाने के कारण छड़ी टूट गयी और मछली भाग गयी.
लेकिन लाओत्सु ने हार नहीं मानी, दूसरी छड़ी बनायी और फिर से नदी किनारे बैठ गये. कुछ ही समय बीता था कि उनकी छड़ी में फिर एक बड़ी मछली फंसी, लेकिन इस बार लाओत्सु ने मछली खींचने में जरूरत से कम ताकत लगायी. परिणामस्वरूप इस बार मछली उनकी छड़ी लेकर ही भाग गयी.
लाओत्सु ने फिर से एक छड़ी बनायी और पिछली दो बार की तरह ही तीसरी बार भी फिर से एक बड़ी मछली हुक में फंसी, परंतु इस बार तक लाओत्सु पूरा सबक ले चुके थे. मछली ने अपने आपको छुड़ाने के लिए जितनी ताकत लगायी, उतनी ही ताकत लाओत्सु ने उसे छड़ी में फंसाये रखने के लिए लगायी और लाओत्सु की तरकीब काम कर गयी.
उसी शाम को इस पूरी घटना का वर्णन उन्होंने अपने शिष्यों से किया और कहा- इस घटना से मैंने इस संसार के सबसे अद्भुत सिद्धांत का पता लगाया, वह है व्यवहार का सिद्धांत. यह बताता है कि जैसा व्यवहार आपके साथ कोई करता है, वैसा ही व्यवहार आप उसके साथ करो. न ज्यादा, न कम, एक समान. तभी आप सफलतापूर्ण जीवन व्यतीत कर सकते हैं.
यदि आप ज्यादा करोगे, तो नष्ट हो जाओगे और यदि कम करोगे तो यह संसार आपको नष्ट कर देगा. इसलिए जैसा सामनेवाला आपके साथ व्यवहार करे, उसी के समान व्यवहार आप भी उसके साथ करें. तभी आप इस संसार मैं अपना अस्तित्व बनाये रख सकेंगे.
