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राष्ट्रकुल को उद्देश्यपूर्ण बनाने की नयी कवायद

काॅमनवेल्थ- 2018 यूरोपीय समूह से बाहर आने की प्रक्रिया से गुजर रहा ब्रिटेन एक अगुअा के तौर पर राष्ट्रकुल देशों के साथ अपने संबंधों में नयी ऊर्जा भरने की भरपूर कोशिश कर रहा है. तमाम विविधताओं वाले 53 देशों के इस वैश्विक समूह की अहमियत भारत के नजरिये से भी कम नहीं है. दुनियाभर में […]

काॅमनवेल्थ- 2018

यूरोपीय समूह से बाहर आने की प्रक्रिया से गुजर रहा ब्रिटेन एक अगुअा के तौर पर राष्ट्रकुल देशों के साथ अपने संबंधों में नयी ऊर्जा भरने की भरपूर कोशिश कर रहा है. तमाम विविधताओं वाले 53 देशों के इस वैश्विक समूह की अहमियत भारत के नजरिये से भी कम नहीं है. दुनियाभर में सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने में भारत एक कुशल नेतृत्वकर्ता के तौर पर इस मंच पर अपनी बड़ी भूमिका निभा सकता है.

भारतीय प्रधानमंत्री ने हालिया सम्मेलन के दौरान जिस प्रकार से राष्ट्रकुल देशों के प्रमुखों के साथ गर्मजोशी दिखाते हुए चर्चाएं की, उससे उम्मीदों को नयी दिशा मिली है. मौजूदा दौर में आतंक, साइबर अपराध जैसी चुनौतियों का हल सभी छोटे-बड़े देशों के सहकार से ही संभव है. ‘कॉमनवेल्थ- 2018’ के हासिल और भारत की भागीदारी की अहमियतों को रेखांकित करते हुए प्रस्तुत है इन-दिनों….

राष्ट्रकुल (कॉमनवेल्थ) विश्व के सभी महादेशों और महासागरों में फैले उस पूर्व ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्र हुए 53 देशों का समूह है, जिसमें कभी सूर्य अस्त नहीं हुआ करता था. इस संगठन में विकसित से लेकर विकासशील दोनों ही श्रेणियों और अनेक जातीय, धार्मिक, सांस्कृतिक तथा भाषायी आबादियों के राष्ट्र शामिल हैं. इन देशों की कुल जनसंख्या 2.4 अरब है, जो विश्व की कुल आबादी की लगभग एक-तिहाई है.

दुनिया के गरीब और अमीर देशों के अलावा, इस समूह में नाऊरू जैसे लघुतम देश (जो इतना छोटा है कि उसकी कोई औपचारिक राजधानी तक नहीं है) से लेकर विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश कनाडा तक शामिल है. स्वाभाविक है कि विश्व की विराट विविधताओं का प्रतिनिधित्व करते इतने देशों के राज्याध्यक्ष (सरकारों के प्रमुख) जब एक जगह मिलते हैं, तो उस सम्मेलन के नतीजों की ओर पूरे विश्व की निगाहें लगी रहती हैं.

भारतीय भागीदारी की अहमियत

भारत की जनसंख्या कॉमनवेल्थ की कुल जनसंख्या की आधी से अधिक तो है ही, साथ ही यह कॉमनवेल्थ की सबसे बड़ी और विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी है, जो ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को भी पीछे छोड़ चुकी है. इस अर्थ में राष्ट्रों के इस संगठन में भारत का महत्व जाहिर है. और इस सम्मेलन के वक्तव्यों में जब पहली बार एशिया-प्रशांत (एशिया-पैसिफिक) की जगह हिंद-प्रशांत (इंडो-पैसिफिक) शब्दावली का प्रयोग किया गया, तो यह प्रकारांतर से भारत के इसी महत्व का रेखांकन ही था.

पिछले ही वर्ष प्रिंस चार्ल्स द्वारा अपनी पत्नी के साथ की गयी भारत यात्रा और उसके बाद कॉमनवेल्थ की महासचिव पैट्रीशिया स्कॉटलैंड के भी भारत आगमन के वक्त भारतीय नेताओं से उनकी चर्चाओं में इस सम्मेलन का एजेंडा मुख्य रहा था और प्रिंस चार्ल्स ने इस पर जोर दिया था कि प्रधानमंत्री मोदी को न केवल इस सम्मेलन में भाग लेना चाहिए, बल्कि इसे नया रूप देने की कोशिश में मदद भी करनी चाहिए. यहां यह स्मरणीय है कि पिछले तीन सम्मेलनों में भारतीय प्रधानमंत्री इस सम्मेलन से अनुपस्थित ही रहते आये हैं.

यह स्वाभाविक है कि इस संगठन के उत्स होने तथा इस अर्थ में कि परंपरागत रूप से इसकी अध्यक्षता भी ब्रिटेन के राष्ट्राध्यक्ष को ही करनी है, इस संगठन तथा सम्मेलन से स्वयं ब्रिटेन भी पूरी दुनिया पर अपने पुराने वर्चस्व की एक प्रतीकात्मक गौरवानुभूति के अतिरिक्त कई राजनीतिक तथा व्यापारिक उद्देश्य भी साधना चाहता है. यही वजह है कि समय-समय पर इस संगठन की प्रासंगकिता को लेकर उठती शंकाओं के बावजूद ब्रिटेन इसे अधिक प्रासंगिक और उद्देश्यपूर्ण बनाने की जुगत में लगा रहता है. यूरोपीय यूनियन से बाहर निकलने की प्रक्रिया में फंसा ब्रिटेन अभी अपने लिए एक नयी वैश्विक पहचान पाने के प्रयास में लगा है और उसका यह यकीन है कि अंगरेजी बोलने-समझनेवाले विश्व के 53 लोकतंत्रों का यह संगठन आसानी से विश्व का एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय मंच बनाया जा सकता है.

व्यापारिक वृद्धि की कोशिशें

यहां यह तथ्य भी काबिलेगौर है कि यूरोपीय यूनियन से भारत का व्यापार ब्रिटेन से उसके व्यापार की अपेक्षा काफी अधिक है. इस नयी सदी के आगमन के बाद ब्रिटेन के साथ भारत का व्यापार स्थिर रहा है, जबकि इस दौरान यूरोपीय यूनियन से यह तीन गुना बढ़ चुका है. स्वाभाविक है कि ब्रिटेन भारत के साथ अपनी व्यापारिक संभावनाएं बढ़ाने को बहुत इच्छुक है. यदि ब्रिटेन से भारत में और अधिक निवेश आ सके तथा ब्रिटेन भारत के सेवा क्षेत्र के स्वागत को तैयार हो, तो इस बिंदु पर भारत के हित भी ब्रिटेन के साथ एकाकार हो सकते हैं. इस सम्मेलन ने सदस्य देशों के बीच व्यावसायिक संबंध बढ़ाने पर खास गौर भी किया, जो अभी 800 अरब डॉलर का है और जिसे 2030 तक बढ़ाकर 1,000 अरब डॉलर किये जाने का लक्ष्य रखा गया है.

इस बात की चर्चा चलती रही है कि इस संगठन की प्रशासनिक मशीनरी को विकेंद्रित कर उन्हें लंदन स्थित मार्लबोरो हाउस मुख्यालय से निकाल अन्यत्र स्थानांतरित किया जाना चाहिए, ताकि यह नये रूप में एक नयी प्रासंगकिता हासिल कर सके. पूरे विश्व में बढ़ते व्यापारिक संबंधों तथा सुगमताओं के परिप्रेक्ष्य में इस संगठन का भी एक प्रभाग सदस्य देशों के बीच व्यापार तथा निवेश संबंधी मामलों की देखरेख कर सकता है, और सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में निस्संदेह यह जिम्मेदारी भारत के हिस्से आ सकती है. ऐसा समझा जाता है कि भारत यह जिम्मा हासिल करने को इच्छुक भी है. निश्चित रूप से इन संभावनाओं के विषय में अनौपचारिक विमर्श तो चल रहे हैं, पर उनकी कोई स्पष्ट अभिव्यक्ति इस सम्मेलन के वक्तव्यों में नहीं हुई है और अभी यह अनिश्चित ही है.

हालांकि, इस सम्मेलन में आतंकवाद की चर्चा तो हुई, पर इसके अंतिम वक्तव्य में उसका कोई जिक्र नहीं है. इसके विपरीत, उसमें साइबर अपराधों का जिक्र है, वर्तमान में जिसकी भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान तथा श्रीलंका जैसे दक्षिण एशियाई देशों के लिए बड़ी अहमियत है. यह एक अलग बात है कि इसे लेकर ये देश विभाजित भी हैं, क्योंकि भारत तथा बांग्लादेश इस हेतु पाकिस्तान को दोषी मानते रहे हैं.

छोटे सदस्यों को सहूलियतें

इस सम्मेलन में अपने छोटे सदस्य देशों की समस्याओं पर अधिक गौर किया है. यह समझ में आने योग्य भी है, क्योंकि 53 सदस्यों में 32 देश तो छोटे ही हैं. इस बिंदु पर भारत 50 लाख डॉलर के एक साझा फंड में हिस्सेदारी के लिए सहमत हुआ, जिसके अन्य साझीदार भी श्रीलंका, मॉरिशस तथा माल्टा जैसे छोटे देश ही होंगे. इस फंड से छोटे सदस्य देशों को आसान अंतरराष्ट्रीय व्यावसायिक वित्त उपलब्ध कराया जायेगा, ताकि वे अपनी अर्थव्यवस्थाओं में विविधता लाते हुए सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति कर सकें. इस हेतु पहले चरण में बहामास, बोत्सवाना, ब्रुनेई, डोमिनिका, फिजी, मॉरिशस, नामीबिया एवं सेशेल्स जैसे लाभुक देशों का चयन किया गया है.

यह तो स्पष्ट है कि इस सम्मेलन के नतीजों से भारत की बढ़ी-चढ़ी आशाएं प्रकटतः तो पूरी नहीं हो सकी हैं, पर शायद उसकी अनौपचारिक चर्चाओं से आगे की राह आसान हो सके.

(अनुवाद: विजय नंदन)

राष्ट्रमंडल के सदस्य एशियाई देश

बांग्लादेश

ब्रुनेई दारुस्सलाम

भारत

मलयेशिया

पाकिस्तान

सिंगापुर

श्रीलंका

क्या है यह संगठन

राष्ट्रमंडल 53 स्वतंत्र और समान संप्रभु राष्ट्रों का एक स्वैच्छिक संगठन है, जिसमें उन्नत अर्थव्यवस्था वाले और विकासशील देश दोनों शामिल हैं. एक प्रकार से देखा जाये, तो यह 2.4 अरब लोगों का घर है. इस संगठन के 30 सदस्य छोटे राष्ट्र हैं, जिनमें कई द्वीपीय देश हैं. इन सभी सदस्य देशों को 80 से ज्यादा अंतर-सरकारी, नागरिक समाज, सांस्कृतिक और पेशेवर संगठनों के नेटवर्क द्वारा समर्थन दिया जाता है. इस संगठन में सबसे आखिर में शामिल होनेवाला देश रवांडा है, जो 2009 में इसका सदस्य बना.

किस तरह के कार्य करता है यह

जहां तक इसकी गतिविधियों की बात है, तो यह संगठन विविध गतिविधियों में संलग्न रहता है. इनमें सदस्य देशों को व्यापार वार्ता में मदद करने से लेकर महिला नेतृत्व को बढ़ावा देने, छोटे व्यवसाय क्षेत्र का निर्माण करने, समाज के सभी स्तरों पर युवाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने और कानून बनाने के लिए विशेषज्ञ प्रदान करना तक शामिल है. चूंकि इस संगठन को अनेक कार्य संपन्न करने होते हैंं, इसलिए इस संगठन ने सचिवालय (कॉमनवेल्थ सेक्रेटेरिएट) की स्थापना और तकनीकी सहयोग के लिए धनराशि की (फंड फॉर टेक्निकल को-ऑपरेशन) व्यवस्था की.

राष्ट्रमंडल सचिवालय

राष्ट्रमंडल सचिवालय की स्थापना 1965 में हुई थी. इसकी स्थापना का उद्देश्य सदस्य देशों के विकास, प्रजातंत्र और शांति को बनाये रखने में सहयोग देना था. राष्ट्रमंडल का यह हिस्सा शासन को मजबूत बनाने, समावेशी संस्थाओं का निर्माण करने और न्याय व मानव अधिकारों को बढ़ावा देने के साथ ही अर्थव्यवस्था और व्यापार को बढ़ावा देने व युवाओं को सशक्त बनाने में मदद करता है. इतना ही नहीं, यह जलवायु परिवर्तन, ऋण और असमानता जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए चर्चा करता है. संगठन का यह विभाग कानून बनाने और नीतियों को लागू करने के लिए प्रशिक्षण व तकनीकी सहायता प्रदान करने के साथ ही यह राष्ट्रीय समस्याओं से निपटने के लिए निष्पक्ष सलाह और समाधान प्रदान करने के वास्ते सचिवालय विशेषज्ञों और पर्यवेक्षकों की नियुक्ति भी करता है. संसाधनों के प्रबंधन के लिए यह सिस्टम, सॉफ्टवेयर और रिसर्च की व्यवस्था भी करता है.

इतना ही नहीं, राष्ट्रमंडल सचिवालय प्रत्येक दो वर्षों में राष्ट्रमंडल देशों के सरकार प्रमुखों के शिखर सम्मेलन का आयोजन भी करता है. इस शिखर सम्मेलन के बहाने प्रभावशाली सरकारी नेताओं को एक मंच पर एकत्रित किया जाता है, ताकि उनके द्वारा लिये गये फैसलों का नागरिकों पर स्थायी प्रभाव पड़ सके. इस प्रकार राष्ट्रमंडल के सदस्य देश एक मंच पर एकत्रित होकर वैश्विक चुनौतियों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करते हैं और प्राथमिकता वाले मुद्दों पर सामूहिक कार्रवाई करने के लिए एकमत होते हैं.

सचिवालय की संरचना

सचिवालय को तीन भागों में बांटा गया है.

1. शासन और शांति

2. व्यापार, महासागर और प्राकृतिक संसाधन

3. आर्थिक, सामाजिक और सतत विकास

तकनीकी सहयोग के लिए धनराशि

इस धनराशि की व्यवस्था को 1971 में कार्यरूप दिया गया था. इसका मुख्य उद्देश्य राष्ट्रमंडल सचिवालय के लिए धनराशि जुटाना था, ताकि वह सदस्य देशों को तकनीकी सहायता मुहैया करा सके. इसी राशि की मदद से आज सचिवालय सदस्य देशों को उनकी जरूरत के अनुसार तकनीकी सहायता के लिए धन मुहैया कराता है.

राष्ट्रमंडल सदस्य देश

दुनिया के इन क्षेत्रों से शामिल सदस्य देश:

महादेश देश

अफ्रीका 19

एशिया 7

कैरेबिया व अमेरिका 13

यूरोप 3

पैसिफिक 11

राष्ट्रमंडल शिखर सम्मेलन 2018 की मुख्य घोषणाएं

इस सम्मेलन में कानून, नीति और कार्यक्रम के माध्यम से महिलाओं के खिलाफ होनेवाले भेदभाव, हिंसा, बाल विवाह आदि को समाप्त करने और महिलाओं को लैंगिक समानता प्रदान करने की घोषणा की गयी.

प्रजातांत्रिक संस्थानों को मजबूती प्रदान करने, शांति को बढ़ावा देने, सभी के लिए न्याय सुनिश्चित करने की जरूरत पर भी बल दिया गया.

सदस्य देशों के बीच पारदर्शी, समावेशी और नियम आधारित बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के तहत मुक्त व्यापार की प्रतिबद्धता को दोहराया गया.

सदस्य देशों के बीच 2030 तक व्यापार को बढ़ाकर दो ट्रिलियन डॉलर करने के लिए कार्य योजना.

कौशल निर्माण, उद्यमिता, अप्रेंटिशशिप के जरिये युवाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना.

समुद्र के जरिये संपर्क बढ़ाने के लिए प्रतिबद्धता जतायी गयी.

साइबर क्रइम से निपटने के लिए साइबर सुरक्षातंत्र की मजबूती के लिए मिलकर काम करने पर सभी देश सहमत हुए. यह घोषण भी हुई कि इस समस्या से निपटने के लिए राष्ट्रमंडल सचिवालय सदस्य देशों को तकनीकी सहायता मुहैया करायेगा.

प्रिंस चार्ल्स चुने गये राष्ट्रमंडल के मुखिया

ब्रिटेन के प्रिंस चार्ल्स राष्ट्रमंडल के अगले मुखिया होंगे. इस पद पर उनकी मां महारानी एलिजाबेथ द्वितीय काबिज हैं. इस सम्मेलन के आखिरी दिन 20 अप्रैल को राष्ट्रमंडल देशों का शासनाध्यक्ष संगठन अगले प्रमुख के रूप में प्रिंस चार्ल्स का समर्थन करने के लिए सहमत हो गये. महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने एक दिन पहले इस पद को छोड़ने और प्रिंस चार्ल्स को यह जिम्मेदारी सौंपने का सदस्य देशों से आग्रह किया था.

कॉमनवेल्थ का इतिहास

कॉ मनवेल्थ दुनिया के अनेक देशों के सबसे पुराने राजनीतिक संगठनों में से एक है. इसकी जड़ें ब्रिटिश साम्राज्य से जुड़ी हैं, जब कई देश प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश शासन के अधीन थे. इनमें से अधिकतर देशों में उनकी अपनी सरकार है, जबकि कुछ के प्रमुख ब्रिटेन के राजकुमार हैं. इन सबने मिल कर ब्रिटिश कॉमनवेल्थ ऑफ नेशंस का गठन किया.

आज जिस संगठन को हम कॉमनवेल्थ के नाम से जानते हैं, वर्ष 1949 में यह अस्तित्व में आया था. तबसे अफ्रीका, अमेरिका, एशिया, यूरोप और पैसिफिक क्षेत्र के स्वतंत्र देश कॉमनवेल्थ में शामिल हुए. इसकी सदस्यता के लिए कोई शुल्क नहीं है और समान स्वैच्छिक सहयोग पर आधारित है. कॉमनवेल्थ में आखिर में शामिल हुए दो देश- रवांडा और मोजांबिक- का ब्रिटिश साम्राज्य से जुड़ाव नहीं रहा है.

कॉमनवेल्थ हेड्स ऑफ गवर्नमेंट मीटिंग, 2018

राष्ट्रमंडल 53 देशों का एक विविध समुदाय है, जो समृद्धि, लोकतंत्र और शांति को बढ़ावा देने के लिए आपस में मिलकर काम करता है. अप्रैल, 2018 में यूनाइटेड किंगडम के नेतृत्व में कॉमनवेल्थ हेड्स ऑफ गवर्नमेंट मीटिंग (सीएचओजीएम) का आयोजन किया है. इसमें हिस्सा लेने वाले देशों के नेता लंदन और विंडसर में जुटे थे.

राष्ट्रमंडल शासन-प्रणाली

हेड ऑफ द कॉमनवेल्थ

क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय कॉमनवेल्थ की प्रमुख हैं. द कॉमनवेल्थ के प्रमुख की भूमिका के तौर पर अनेक सांकेतिक कार्य हैं. ‘हेड ऑफ द कॉमनवेल्थ’ की कोई अधिकतम निर्धारित कार्यावधि नहीं है.

कॉमनवेल्थ सेक्रेटरी-जनरल

पैट्रिसिया स्कॉटलैंड क्यूसी कॉमनवेल्थ सेक्रेटरी-जनरल हैं. सेक्रेटरी-जनरल पर कॉमनवेल्थ को सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी होती है. साथ ही वह कॉमनवेल्थ सेक्रेटेरियट का चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर होता है. सेक्रेटरी-जनरल का चयन कॉमनवेल्थ के नेताओं द्वारा किया जाता है और वह अधिकतम चार वर्षों तक अपनी सेवा दे सकता है.

कॉमनवेल्थ मिनिस्टेरियल एक्शन ग्रुप

कॉमनवेल्थ मिनिस्टेरियल एक्शन ग्रुप राजनीतिक मूल्यों को कायम रखने और इसकी समुचित कार्रवाई के मूल्यांकन की सिफारिश कर सकता है.

बोर्ड ऑफ गवर्नर्स

बोर्ड ऑफ गवर्नर्स कॉमनवेल्थ सेक्रेटिरयट की कार्य योजना और बजट को मंजूरी देता है. इसमें सभी सदस्यों का प्रतिनिधित्व होता है, जिनकी सालाना मीटिंग होती है.

कॉमनवेल्थ चेयर-इन-ऑफिस

माल्टा के प्रधानमंत्री डॉक्टर जोसेफ मस्कट फिलहाल कॉमनवेल्थ चेयर-इन-ऑफिस हैं. द चेयर-इन-ऑफिस कॉमनवेल्थ देश का नेता होता है, जो कॉमनवेल्थ हेड्स ऑफ गवर्नमेंट मीटिंग का आयोजन करता है.

कॉमनवेल्थ थीम ऑफ द ईयर

टूवर्ड्स ए कॉमन फ्यूचर

राष्ट्रमंडल दिवस के लिए प्रत्येक वर्ष एक थीम का चयन किया जाता है. यह थीम इस खास दिन के इवेंट के बारे में जानकारी मुहैया कराता है और राष्ट्रमंडल संगठनों द्वारा वर्षभर आयोजित की जाने वाली गतिविधियों के बारे में सूचना प्रदान करता है. इस थीम का चुनाव सामाजिक मसलों को ध्यान में रखते हुए किया जाता है. इसके लिए ऐसे टॉपिक को चुना जाता है, जिससे समाज की भलाई हो और उसमें एकता बनी रहे. इस वर्ष का थीम है- टूवर्ड्स ए कॉमन फ्यूचर.

तकनीकी सहयोग के लिए धनराशि

इस धनराशि की व्यवस्था को 1971 में कार्यरूप दिया गया था. इसका मुख्य उद्देश्य राष्ट्रमंडल सचिवालय के लिए धनराशि जुटाना था, ताकि वह सदस्य देशों को तकनीकी सहायता मुहैया करा सके. इसी राशि की मदद से आज सचिवालय सदस्य देशों को उनकी जरूरत के अनुसार तकनीकी सहायता के लिए धन मुहैया कराता है.

इस बात की चर्चा चलती रही है कि इस संगठन की प्रशासनिक मशीनरी को विकेंद्रित कर उन्हें लंदन स्थित मार्लबोरो हाउस मुख्यालय से निकाल अन्यत्र स्थानांतरित किया जाना चाहिए, ताकि यह नये रूप में एक नयी प्रासंगकिता हासिल कर सके. ऐसा समझा जाता है कि भारत यह जिम्मा हासिल करने को इच्छुक भी है. निश्चित रूप से इन संभावनाओं के विषय में अनौपचारिक विमर्श तो चल रहे हैं, पर उनकी कोई स्पष्ट अभिव्यक्ति इस सम्मेलन के वक्तव्यों में नहीं हुई है और अभी यह अनिश्चित ही है.

महेंद्र वेद

प्रेसिडेंट, कॉमनवेल्थ जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन

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