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स्मार्टफोन रेडिएशन से नपुंसकता का बढ़ता जोखिम, महिलाओं के लिए खतरे की घंटी
मौजूदा डिजिटल युग में मोबाइल फोन लोगों की रोजमर्रा का अभिन्न हिस्सा बन चुका है. इसका इस्तेमाल अब केवल संचार के एक साधन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसके जरिये रकम या बिल भुगतान से लेकर अनेक जरूरी कार्यों को भी निबटाया जाता है. लोगों की जिंदगी को इसने बहुत हद तक आसान बनाया है. […]
मौजूदा डिजिटल युग में मोबाइल फोन लोगों की रोजमर्रा का अभिन्न हिस्सा बन चुका है. इसका इस्तेमाल अब केवल संचार के एक साधन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसके जरिये रकम या बिल भुगतान से लेकर अनेक जरूरी कार्यों को भी निबटाया जाता है.
लोगों की जिंदगी को इसने बहुत हद तक आसान बनाया है. लेकिन, यही मोबाइल फोन इंसान की सेहत लिए एक बड़ा जोखिम भी पैदा कर रहा है, जिससे ज्यादातर लोग अनभिज्ञ हैं. मोबाइल फोन रेडिएशन से पुरुषों में नपुंसकता का जोखिम बढ़ रहा है. किस आधार पर जतायी गयी है यह आशंका और इससे जुड़े अन्य पहलुओं को इंगित कर रहा है आज का इन्फो टेक पेज …
मोबाइल फोन की हमारी जिंदगी में बढ़ती दखल और इससे जिंदगी आसान होते जाने की खबरों के बीच एक हालिया शोध रिपोर्ट में आशंका जतायी गयी है कि इंसानों की प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य पर इनका सीधा असर हो रहा है.
दरअसल, मोबाइल फोन से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन उत्सर्जित होता है, जिसका सीधा असर स्पर्म पर होता है और इससे पुरुषों की जनन क्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है. रिपोर्ट के मुताबिक, मोबाइल फोन से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन के उत्सर्जन से कैंसर और मानसिक रोग समेत अन्य कई प्रकार के स्वास्थ्य का जोखिम जुड़ा पाया गया है.
ब्राइट्सैंड्ज क्लीन टेक के संस्थापक मानस गांगुली के हवाले से ‘डेक्कन क्रॉनिकल’ की एक रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया है कि मोबाइल फोन विकिरण टेक्नोलॉजी द्वारा पैदा की गयी प्रदूषण के सबसे खतरनाक और अदृश्य प्रारूपों में से एक है, जिससे प्रजनन अंगों को काफी नुकसान हो सकता है.
मोबाइल फोन से उत्सर्जित होने वाली रेडियो तरंगें नॉन-आयोनाइज्ड होती हैं, लिहाजा पैंट की जेब में लंबे समय तक मोबाइल फोन को रखने से उसका असर पुरुषों के शुक्राणुओं की गुणवत्ता और उसकी कार्यप्रणाली पर नकारात्मक रूप से पड़ता है.
जो लोग शरीर के निचले हिस्सों के आसपास अपना सेल फोन रखते हैं, उनके नपुंसक होने की आशंका अधिक पायी गयी है. अक्सर पुरुष अपने मोबाइल फोन को पैंट की आगे की जेब में रखते हैं, जहां मोबाइल रेडिएशन इंसान के निजी अंगों को नजदीकी तौर पर प्रभावित करता है.
शुक्राणुओं की गुणवत्ता पर नकारात्मक असर
अमेरिका में ओहियो की ‘क्लीवलैंड क्लिनिक फाउंडेशन’ द्वारा किये गये अध्ययन के मुताबिक, मोबाइल फोन के इस्तेमाल से पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या, उनकी गतिशीलता, क्षमता और उनकी सामान्य मॉर्फोलॉजी यानी आकृति विज्ञान संबंधी गुणवत्ता में गिरावट आ सकती है.
रोजाना चार घंटों से अधिक समय तक पैंट की आगे की जेब में मोबाइल फोन को रखने से शुक्राणुओं की गुणवत्ता बुरी तरह से प्रभावित पायी गयी है. कमोबेश, इस संबंध में एक उल्लेखनीय बदलाव यह देखा गया है कि इससे पुरुषों में प्रजनन क्षमता संबंधी डीएनए को नुकसान पहुंचा है.
कुछ अन्य शोध रिपोर्ट में भी यह पाया गया है कि मध्यम और उच्च आमदनी वाले समूह में 14 फीसदी शादीशुदा युगलों को गर्भधारण करने में कठिनाई हुई है. मोबाइल फोन से उत्सर्जित रेडिएशन दिमाग की गतिविधि को प्रभावित करता है, नतीजन अनिद्रा, सिरदर्द और थकान जैसी समस्या शुरू होती है और मेलाटोनिन का उत्पादन कम हो जाता है.
बांझपन की दर में बढ़ोतरी
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पाेपुलेशन साइंसेज, मुंबई द्वारा वर्ष 2010 में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में बीते एक दशक (वर्ष 2000 से 2010 के बीच) बांझपन की दर में 30 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है. इससे यह संकेत भी मिला कि भारत में प्रत्येक पांच में एक विवाहित युगल को बांझपन की समस्या से संघर्ष करना पड़ा.
ऑटिज्म का बढ़ता खतरा
बीते एक दशक में भारत में ऑटिज्म का जोखिम तीन गुना तक बढ़ गया है. दुनियाभर में ऑटिज्म के नये मामलों में से 40 फीसदी महज भारत में पाये जाते हैं.
शोधकर्ताओं द्वारा तैयार की गयी एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, किसी शिशु का समय से पहले जन्म लेने या दिमागी तौर पर कमजोर होने में इन तथ्यों का योगदान भी होता है कि लैपटॉप, सेल फोन, वाई-फाई और अन्य डिवाइसों से उत्सर्जित इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन का उस पर कितना असर हुआ है.
दूरसंचार कंपनियों ने भी जारी किया परामर्श
अधिकांश दूरसंचार कंपनियां समय-समय पर इस संबंध में परामर्श जारी करती हैं. इसके तहत ग्राहकों को आगाह किया जाता है कि शरीर और सेल फोन के बीच कम-से-कम पांच एमएम की दूरी जरूर बनाये रखें, ताकि रेडिएशन का असर न्यूनतम हो सके. कई कंपनियों ने तो इसके लिए 30 एमएम तक की दूरी रखने का परामर्श भी दिया है, ताकि हमारे मानसिक और जनन स्वास्थ्य को सही रखा जा सके.
पुरुषों के लिए क्या है बचाव
गर्भधारण करने की योजना बना रहे युगलों को अपने सेल फोन से दूरी बनाने की आदत डालनी चाहिए.अपने मोबाइल फोन को पीछे की जेब में रखें या कमर में बेल्ट के जरिये बांध कर रखें, ताकि रेडिएशन का असर निजी अंग तक कम-से-कम हो.
सेल फोन से बातचीत कम करें, ताकि दिमाग और शरीर के अन्य हिस्सों पर उसका नकारात्मक असर कम हो.सेल फोन इस्तेमाल कम करने का मतलब यह नहीं है कि आप संचार माध्यमों से दूरी बना लें. बल्कि इस बारे में जागरूक होने की जरूरत है.सेल फोन को पैंट की जेब में रखने के बजाय बैग में रखने की आदत डालें, ताकि मोबाइल फोन विकिरण से बचाव किया जा सके.
महिलाओं के लिए खतरे की घंटी
वाकई में, सेल फोन रेडिएशन के प्रति एक्सपोजर महिलाओं के लिए भी गर्भधारण में हानिकारक है. लंबे समय तक रेडिएशन के असर से महिलाओं की डिंब ग्रंथि की गतिविधियां प्रभावित होती हैं, जिससे उनमें बांझपन का जोखिम बढ़ता है. मोबाइल फोन से पैदा होने वाले विद्युत चुंबकीय क्षेत्र की चपेट में आने से भ्रूण का विकास अवरुद्ध होता है. अधिकांश मेडिकल विशेषज्ञों और डॉक्टर महिलाओं को सलाह देते हैं कि उन्हें सेल फोन का इस्तेमाल बहुत सीमित तरीके से करना चाहिए, खासकर गर्भावस्था के दौरान इसका इस्तेमाल और भी कम करना चाहिए.
विश्व स्वास्थ्य संगठन भी जारी कर चुका है चेतावनी
विश्व स्वास्थ्य संगठन की ‘इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर’ भी इस बारे में चेतावनी जारी कर चुका है. ‘यूएस नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसीन नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन से कैंसर की बीमारी होने का जोखिम बढ़ जाता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक हालिया रिपोर्ट में भी इस बारे में आगाह किया गया है कि इंसान का मस्तिष्क मोबाइल फोन के प्रति ज्यादा संवेदनशील होता है. लिहाजा, इससे एक सुनिश्चित दूरी बनाये रखना जरूरी है.
मादक पदार्थों के सेवन की तरह है स्मार्टफोन की लत
स्मार्टफोन का अत्यधिक इस्तेमाल मादक पदार्थों के सेवन की तरह ही है. वैज्ञानिकों ने इस बारे में आगाह किया है कि ‘डिजिटल एडिक्शन’ इंसान को अकेलापन और डिप्रेशन की ओर धकेल रहा है. मौजूदा समय में ज्यादातर लोग अपने स्मार्टफोन से चिपके रहते हैं. स्मार्टफोन में होने वाली किसी भी चिंग, पिंग या वाइब्रेशन से लोग तुरंत सतर्क हो जाते हैं और उन्हें यह जानकारी हो जाती है कि कोई ईमेल, मैसेज या तस्वीर उनके पास आयी है, जिसे तत्काल देखने से वे स्वयं को रोक नहीं पाते हैं.
हाल ही में न्यूरोरेगुलेशन जर्नल में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने स्मार्टफोन के अधिक इस्तेमाल को मादक पदार्थों के सेवन करने की तरह लत होना बताया है. सैन फ्रांसिस्को स्टेट यूनिवर्सिटी के एरिक पेपर का कहना है कि स्मार्टफोन की आदत पड़ जाने से हमारे दिमाग में एक प्रकार से न्यूरोबायोलॉजिकल संपर्क होना शुरू हो जाता है.
इस रिपोर्ट में एक बड़ी बात यह कही गयी है कि सोशल मीडिया टेक्नोलॉजी की लत वास्तविक में हमारे सामाजिक संपर्कों पर नकारात्मक असर डाल रहा है.
बड़े पैमाने पर छात्रों पर किये गये इस अध्ययन में पाया गया कि ज्यादा देर तक स्मार्टफोन का इस्तेमाल करनेवालों में अकेलापन और डिप्रेशन महसूस करने का स्तर बहुत अधिक होता है. उनका मानना है कि अकेलेपन का आंशिक रूप से संचार के प्रारूप में फेस-टू-फेस बातचीत करने का एक निश्चित नतीजा होता है, जहां शरीर की भाषा और अन्य संकेतों की व्याख्या नहीं की जा सकती है.
यह भी पाया गया कि ऐसे छात्र पढ़ते समय और सोशल मीडिया से जुड़ने पर मल्टी-टास्किंग पर जोर देते हैं. इस तरह से लगातार सक्रिय रहने से उनके शरीर और दिमाग को आराम बहुत कम मिल पाता है, जिसका घातक असर सामने आता है.
हालांकि, शोधकर्ताओं का यह भी मानना है कि डिजिटल एडिक्शन के लिए केवल इंसान स्वयं जिम्मेदार नहीं है, बल्कि टेक्निकल इंडस्ट्री का इसमें बड़ा योगदान है, जिसका मकसद केवल मुनाफा कमाना है.
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