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भक्तों का मनोरथ सिद्ध करते हैं संकटमोचन, पूजा में मंत्र जाप का रखें विशेष ध्यान

II मार्कण्डेय शारदेय II ज्योतिष व धर्मशास्त्र विशेषज्ञ रामकथा के सम्मान्य पात्रों की अग्रिम पंक्ति में विराजते हैं हनुमान जी. किष्किन्धा कांड से उत्तर कांड तक यह महती भूमिका में सदा दिखते हैं. स्वयं श्रीराम इनके सुकृतों से इतने अभिभूत हैं कि ऋणी बन जाते हैं. माता जानकी के भी यह बड़े दुलारे हैं. यह […]

II मार्कण्डेय शारदेय II
ज्योतिष व धर्मशास्त्र विशेषज्ञ
रामकथा के सम्मान्य पात्रों की अग्रिम पंक्ति में विराजते हैं हनुमान जी. किष्किन्धा कांड से उत्तर कांड तक यह महती भूमिका में सदा दिखते हैं. स्वयं श्रीराम इनके सुकृतों से इतने अभिभूत हैं कि ऋणी बन जाते हैं. माता जानकी के भी यह बड़े दुलारे हैं. यह तो प्रभु-सेवक के रूप में समर्पित हैं, पर प्रभु भ्रातृत्व ही रखते हैं-
‘तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई’।
नवधा भक्ति के जीवन्त प्रतिमान बजरंगी समग्र दैवी सम्पदाओं से युक्त न-विज्ञान, नीति-नियम, ल-गुण, वीरता-धीरता, चाल-चरित्र में कहीं से अपना उपमान नहीं रखते. यह सीता-रामजी के स्नेहमय सान्निध्य के कारण सीताराममय हैं. इसीलिए अपने आश्रितों, भक्तों का हर कार्य बिना देर किये सिद्ध कर देते हैं. इसीलिए यह संकटमोचन भी कहलाते हैं.
हनुमान जी आज के प्रसिद्ध देवताओं में प्रमुख स्थान रखते हैं. इसका कारण इनकी साधना से सहजतया लोगों की मनःकामनाएं पूर्ण हो जाना है. लोग किसी संकट, परेशानी में रहें, जब भी इन्हें ध्याते हैं, समस्याओं का हल पाते हैं.
शनि की साढ़ेसाती हो, भूत-प्रेत का उत्पात हो, काम में रुकावट हो, चाहे संकट का जो रूप हो, लोग बिना किसी के उपदेश के भी हनुमान जी की आराधना में लग जाते हैं. तुलसीदास जी का ‘हनुमान चालीसा’ तो कंठ-कंठ में बसा है. हम भारतीयों का तो यह कंठहार ही है. कोई अनहोनी देख या आशंका में भी ‘हनुमान चालीसा’ का पाठ चलते-फिरते, जागते-सोते चालू हो जाता है.
विशेष विषम परिस्थितियों में 108 आवृत्ति पाठ करने लगते हैं. यह सुगम उपासना है, इसलिए क्या बड़े-बूढ़े और क्या बच्चे, सभी इस पाठ को सौ रोगों की एक दवा मानते हैं. ‘सुंदरकांड’ घर में मुद-मंगल व शनिजन्य पीड़ा की अचूक औषधि है.
इनके अतिरिक्त, हनुमानाष्टक, बजरंगबाण, हनुमान साठिका- जैसे ठेठ भाषा के स्तोत्र भी बहुत कारगर होते हैं. संस्कृतज्ञ जन संस्कृत में विद्यमान वाल्मीकिकृत ‘सुन्दरकांड’ एवं ‘पंचमुखि-हनुमत्कवच’, सहस्रनाम-जैसे स्तोत्र आदि का आनुष्ठानिक विधि से पाठ करने लगते हैं.
इनके हर रूप का है विशेष अर्थ : यों तो हनुमान जी की वानराकृति ही प्रधान है, परंतु भक्तों के कल्याण के लिए सूक्ष्म से सूक्ष्म और स्थूल से स्थूल विविध रूपों में वे उपस्थित रहते हैं. समुद्र लांघने के समय भी तो पवनसुत ने विविध रूपों से विघ्न-बाधाओं से अपने चातुर्य का परिचय दिया था.
चूंकि बजरंगबली रुद्रावतार हैं, इसलिए इनमें अष्ट सिद्धियां तथा नौ निधियां ही नहीं, समस्त तात्विक शक्तियां भी समाहित हैं. शिव के पंचानन रूप की प्रसिद्धि है. वैसे ही आंजनेय हनुमान जी लोगों के कार्य की सिद्धि के लिए एकमुखी से पंचमुखी और दस भुजाधारी हो जाते हैं, इसीलिए इनके इस रूप को ‘सर्वकामार्थ-सिद्धिदम्’ कहा गया है. इनका पूरबवाला मुख कपि का ही है, जो करोड़ों सूर्यों की तरह प्रभा बिखेरता है. दक्षिणवाला मुख नृसिंह भगवान की तरह अद्भुत, अति उग्र एवं समस्त भयों का विनाशक है.
पश्चिमवाला मुंह श्रीहरि के वाहन विनितानंदन गरुड़ जी की तरह है, जो सर्पबाधा और प्रेतबाधा का निवारक है. उत्तरवाला श्रीविष्णु के वराहावतार की तरह है, जो अन्तः व पाताल में स्थित ज्वर आदि रोगों, दोषों, दुष्टों के मूल को उखाड़ फेंकनेवाला है. ऊपर (ऊर्ध्व) में स्थित पांचवां मुख हयग्रीव भगवान के समान है, जो दानवों का अंत करनेवाला है. कुल मिलाकर देखा जाये तो वानरावतार भगवान रुद्र की यह वैष्णवात्मक समष्टि है, जिसमें जगत की रक्षा व सृष्टिपालन ही समाया है.
पूजा में मंत्रजप का रखें विशेष ध्यान : हनुमान जी के अनेक सिद्धिप्रद अनुभूत मंत्र हैं. ये बड़े भी हैं और छोटे भी. सहज उच्चरित हो सकनेवाले मंत्रों को ही प्रयोग में लाना उपयुक्त है. उच्चारण में कठिन एवं बड़े मंत्रों की अधिक महिमा जान-सुनकर लोभवश जपना आत्मघातक भी हो सकता है. हनुमान जी के बहुसंख्यक मंत्रों में ‘हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्’ यह बारह अक्षरों वाला मंत्र साधक की समस्त कामनाएं पूर्ण करनेवाला है.
एकांत में ब्रह्मचर्य पूर्वक भगवान की प्रतिमा या चित्र के समक्ष तेल का दीप जलाकर सवा लाख जपने का विधान है. पहले शिव जी ने श्रीकृष्ण को, इसके बाद श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इस मंत्र का उपदेश किया था. इसी तरह ‘हं पवन-नन्दनाय स्वाहा’,’ऊँ हरि मर्कट मर्कटाय स्वाहा’ आदि शीघ्र सिद्धिप्रद मंत्रों में अग्रगण्य हैं.
शास्त्र-वर्णित हनुमान जी से संबंधित अनेक टोटके भी हैं. एक अनुभूत प्रयोग के अनुसार गेहूं,चावल, मूंग, उड़द तथा तिल को बराबर मात्रा में लेकर सबको मिला लें और पीसकर आटा गूंथकर उससे दीप बना लें. इस दीप में सुगंधित तेल एवं लाल बाती डालकर जला लें और हनुमान को अर्पित करें. इससे भारी से भारी संकट टल जाते हैं.
चैत्र पूर्णिमा में जयंती मनाने का विधान
वायुपुराण के अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी मंगलवार, स्वाती नक्षत्र, मेष लग्न में हनुमान जी का जन्म बताया गया है और परम्परातः हम उत्तरी भारत के लोग इसी दिन मनाते भी आ रहे हैं, परंतु दाक्षिणात्य मत चैत्र पूर्णिमा के पक्ष में है, इसलिए साल में हुनमान जी की जयंती दो बार मना रहे हैं. इस बार 31 मार्च शनिवार को इस जयंती का उत्सव है और इस दिन व्रत, पूजन व अनुष्ठान का विशेष महत्व है.
इस मंत्र से समस्त कामनाएं होंगी पूर्ण
कपीश्वर हनुमान जी की आराधनाओं, उपासनाओं के अनेक प्रकार हैं. तान्त्रिक विधियां भी हैं और मान्त्रिक विधियां भी. इनका ध्वज-पताका अमंगलों का निवारक व इनके निवास के रूप में मान्य है. इनकी हर तरह की पूजा का मूल आत्मबल का विकासक है.
इन्हें सिंदूर मिला तेल लेपन से कर्ता का मनोरथ पूर्ण होता है. इनकी पूजा का सरल मन्त्र ‘ऊँ हं हनुमते नमः’ है. मंगलवार इनका सबसे प्रिय दिन है, अतः मंगलवार का व्रत करना तथा भगवान को चूरमा चढ़ाना एवं चूरमा केला खाना सभी तरह की पीड़ाओं एवं कर्ज के बोझ को दूर करनेवाला माना गया है.

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