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बृहस्पति की दृष्टि हर राशि के लिए है शुभ, ऐसे करें शांत

देव गुरु बृहस्पति देवताओं के गुरु माने जाते हैं. ज्योतिष शास्त्र में इनका बहुत अहमियत है. ये ज्ञान व बुद्धि के दाता हैं. इनकी कृपा से ही जातकों को वरिष्ठ अधिकारियों का सहयोग मिलता है. व्यवसाय फलता-फूलता है. जातक सही निर्णय लेने में समर्थ होता है. बृहस्पति को जीव या अंगिरस भी कहते हैं. संपूर्ण […]

देव गुरु बृहस्पति देवताओं के गुरु माने जाते हैं. ज्योतिष शास्त्र में इनका बहुत अहमियत है. ये ज्ञान व बुद्धि के दाता हैं. इनकी कृपा से ही जातकों को वरिष्ठ अधिकारियों का सहयोग मिलता है. व्यवसाय फलता-फूलता है. जातक सही निर्णय लेने में समर्थ होता है. बृहस्पति को जीव या अंगिरस भी कहते हैं. संपूर्ण नक्षत्र मंडल का भ्रमण ये 12 वर्षो में पूरा करते हैं.
ये अस्त होने के एक महीने बाद उदित होते हैं तथा चार महीने बाद वक्री हो जाते हैं. ये सूर्य के प्रकाश से ही प्रकाशित हैं. ये महर्षि अंगिरा के पुत्र हैं तथा देवतावों के पुरोहित हैं. इनके अधिदेवता इंद्र तथा प्रत्यधिदेवता ब्रह्मा हैं. ये विद्या, बुद्धि, संतान तथा राज कृपा के कारक हैं. इनकी दृष्टि गंगा जल जैसा पवित्र है. जिस भाव पर इनकी दृष्टि पड़ती है, वहां सब कुछ सुधर जाता है. ये धनु और मीन राशि के स्वामी हैं. इनकी महादशा 16 वर्ष की है, एक राशि पर लगभग एक वर्ष रहते हैं.
कर्क इनकी उच्च राशि एवं मकर नीच राशि है. सूर्य, मंगल एवं चंद्र इनके मित्र हैं. शनि, शुक्र एवं बुध से इनकी नहीं बनती. इनके ही प्रभाव से महान राजयोगों, जैसे- गजकेसरी कुलदीपक, केसरी, हंस आदि की सृष्टि होती है. इनकी चार भुजाएं हैं, तीन भुजाओं में दंड, रुद्राक्ष की माला और कमण्डलु तथा चौथी भुजा वरमुद्रा में है.
मांगलिक कुंडली में यदि मंगल को गुरु देख ले, तो मंगल दोष तत्काल समाप्त हो जाता है. जैसा कि इस श्लोक में स्पष्ट है – न मंगली यस्य पश्यन्ति जीव:
कुंडली की छह राशियों में ये पूर्ण या आंशिक शुभ होते हैं, लेकिन इनकी दृष्टि हर राशियों के लिए शुभ है .सामान्यत: गुरु शुभ फल देते हैं, किंतु पापी ग्रह यदि उसके साथ विराजमान हो जाये अथवा गुरु अपनी नीच राशि में स्थित हो, तो यही गुरु जातक के लिए अनिष्टकारी हो जाता है, अर्थात् अशुभ फल देने लगता है.
विभिन्न अवस्थाओं का फल : उच्च के बृहस्पति महान सुख कीर्ति वाहन एवं राज्यसुख देते हैं, लेकिन नीच के बृहस्पति में सुख का आभाव होगा. मेष राशि के गुरु जननायक पुत्र आदि सुख के प्रदाता हैं. वृष राशिगत गुरु साहस देता है, विदेश वास करवाता है, लेकिन आनंद छिन लेता है. मिथुन राशिगत गुरु जातक को पवित्र बनाता है, लेकिन कुटुंब से विरोध कराता है.
कर्क राशिगत गुरु ख्याति प्राप्त कराता है, तो सिंह राशि में धन, विद्या, पुत्र आदि से भर देता है. कन्या राशि का गुरु मान एवं प्रतिष्ठा दिलाता है, तो तुला राशि में यह पत्नी तथा पुत्रों से वैर कराता है. वृश्चिक में यह विद्वान तो बनाता है, लेकिन जातक की दिनचर्या खराब रहती है.
धनु के 13 अंश तक का गुरु जातक को राजा या उच्चाधिकारी बनाता है. मकर राशि के गुरु पेट में समस्या निश्चित देते हैं. कुंभ राशि में जातक धनी और बुद्धिमान तो होगा, लेकिन अन्य स्त्रियों से लिप्त रहेगा. मीन राशि में यह अति शुभ होता है.
बृहस्पति को कैसे करें शांत
ज्योतिष के अनुसार यदि बृहस्पति कुंडली में पीड़ित हो, तो कुछ चीजें दान में न लें, बल्कि इनका दान अवश्य करें, जैसे- कलम, पुस्तक, फल आदि.
दत्तात्रेय मंत्र का जप एवं शिव सहस्त्र नाम का पाठ करें. पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण व्रत करें. संतान बाधा होने पर हरिवंश पुराण एवं संतान गोपाल मंत्र का जप करें. 40 दिनों तक वट वृक्ष का 108 बार परिक्रमा करें. गुरुवार को संभव हो तो स्वर्ण दान करें या स्वर्ण को जल में मिला कर उस जल को पीएं. चमेली के फूल जल में प्रवाहित करें. चांदी की कटोरी में केशर एवं हल्दी लें उसका तिलक लगाएं. मांसाहार नहीं करें.

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