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ग्रह और हमारा परिवार
मार्कण्डेय शारदेय परिवार’एक ऐसा घेरा है, जिसके प्रत्येक सदस्य एक-दूसरे के लिए होते हैं. एक-दूसरे को जोड़ते हैं तथा एक-दूसरे के खुशी-गम को अपना ही मानते हैं. तिनके-तिनके से बनी मजबूत रस्सी की तरह स्वयं को पूरक बनाते हैं और विचलित सदस्य को अविचलित करते हैं. भारतीय संस्कृति में परिवार का दायरा बड़ा रहा है, […]
मार्कण्डेय शारदेय
परिवार’एक ऐसा घेरा है, जिसके प्रत्येक सदस्य एक-दूसरे के लिए होते हैं. एक-दूसरे को जोड़ते हैं तथा एक-दूसरे के खुशी-गम को अपना ही मानते हैं. तिनके-तिनके से बनी मजबूत रस्सी की तरह स्वयं को पूरक बनाते हैं और विचलित सदस्य को अविचलित करते हैं.
भारतीय संस्कृति में परिवार का दायरा बड़ा रहा है, परंतु आज पति-पत्नी और बच्चों तक सिमटा जा रहा है, जिसका दुष्परिणाम अनेक तरह के तनाव पैदा कर रहा है. बच्चे भी उचित वात्सल्य एवं संरक्षण के अभाव में पूर्ण विकास नहीं पा रहे हैं. हम परेशानियों के चक्रव्यूह में फंसते जा रहे हैं.
हम भारतीय आस्तिकतावश ही सही, सुख-दुःख, मान-अपमान, जीवन-मरण तथा लाभ-हानि का कारण कहीं-न-कहीं से ईश्वर को ही मानते हैं. ईश्वर के विविध रूपों में ग्रहों का भी स्थान है. इसीलिए ज्योतिष पर विश्वास करनेवालों का ग्रहकृत्य मानना गलत नहीं. महर्षि पराशर भी कहते हैं कि कुकर्मों का दंड और सुकर्मों का पुरस्कार देने के लिए भगवान विष्णु ही ग्रह हैं-‘ग्रहरूप-धरो हरिः’.
ज्योतिष के अनुसार नौ ग्रह हैं, जो विविध वस्तुओं, शारीरिक अवयवों, पारिवारिक सदस्यों, वनस्पतियों, तत्वों आदि के कारक हैं, इसलिए जो ग्रह जिस-जिसका कारक है, अगर उससे किसी व्यक्ति को परेशानी जान पड़ती है, तो उसकी पूजा करने से व शास्त्र-निर्दिष्ट उसकी उपासना से शांति मिल सकती है.
चूंकि सभी ग्रहों का आपस में एक पारिवारिक संबंध है, इसलिए परिवार से भी ग्रहशांति व ग्रहकृपा की प्राप्ति संभव है. ग्रहराज सूर्य राजा व पिता आदि का कारक है. यदि अधिकारियों, पिता एवं पितृतुल्य जनों के प्रति सद्भाव रखा जाये, उनका समादर किया जाये तो सूर्य-संबंधी बाधाएं दूर होंगी और आत्मबल, राजत्व व प्रशासनिक क्षेत्र में सफलता प्राप्त हो सकती है.
इसी तरह मां, मौसी, चाची, सास-जैसी मातृरूपा स्त्रियों के समादर से मातृकारक चंद्रमा प्रसन्न होकर मानसिक एवं रक्त संबंधी बीमारियों व अशांति से दूर रखकर हमें सुख-शांति प्रदान करेगा. बलिष्ठ, सेनापति, भूमि-भवन तथा भ्रातृकारक मंगल भाई-बहनों के साथ सही व्यवहार से अपने क्षेत्र की सारी शुभ संभावनाओं का दरवाजा खोल रखेगा. इसी तरह मामा, साला, बहनोई-जैसे संबंधियों के साथ सौहार्द्र से बुध वाकपटुता, हास्य-व्यंग्य, खेल आदि में हमारा मार्ग प्रशस्त कर सकता है.
बृहस्पति गुरु, विद्या, संतान आदि का, शुक्र प्रेम, सौंदर्य व दाम्पत्य आदि का, शनि सेवाकर्म, न्यायालयीय, अधीनस्थ वर्ग आदि का राहु दादा-दादी एवं केतु नाना-नानी आदि का कारक है. इसलिए महादशा-अंतर्दशा व गोचर में प्रतिकूलता की स्थिति में या ग्रहजन्य विषमता को दूर करने के लिए इनकी सदा अनुकूलता की कामना से इन-इन संबंधियों के साथ संबंध सुधारना होगा. यदि सबको आत्मीयता देते रहें, तो अवश्य ही सभी ग्रह प्रसन्न रहकर हमारे इहलोक और परलोक को सुगंधित कर देंगे.
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