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छठ महापर्व : सूरज के प्रति आभार व्यक्त करने का पर्व

दीपों के पर्व को हमने अभी-अभी विदा किया. अब छठ की तैयारी शुरू हो गयी है. आसपास बज रहे छठ गीत हमें भगवान भास्कर के प्रति समर्पण भाव की याद दिला रहे हैं. छठ पर्व हमें आपसी भाईचारा, स्वच्छता और प्रकृति के प्रति मनुष्योचित सम्मान का भाव प्रदर्शित करने को प्रेरित करता है. छठ के […]

दीपों के पर्व को हमने अभी-अभी विदा किया. अब छठ की तैयारी शुरू हो गयी है. आसपास बज रहे छठ गीत हमें भगवान भास्कर के प्रति समर्पण भाव की याद दिला रहे हैं. छठ पर्व हमें आपसी भाईचारा, स्वच्छता और प्रकृति के प्रति मनुष्योचित सम्मान का भाव प्रदर्शित करने को प्रेरित करता है. छठ के विभिन्न पहलुओं पर आज से पढ़िए विशेष आलेख. आज इसकी पहली कड़ी.
पंकज दूबे
ऐसे वक्त में जब संसाधनों पर मारामारी है. छठ के बहाने प्रकृति हमें ठहरकर विचार करने का मौका देती है. छठ का यही मर्म है. छठ का मूल क्या है? दरअसल, यह मैसेज देता है कि सूरज किसी एक का नहीं है. यह हम सबका है. हर जाति का है, हर धर्म का है. किसी के हिस्से की धूप को न कोई रोक सकता है, न छीन सकता है. एक अमीर को भी सूरज की रोशनी उतनी ही मिलती है, जितनी एक गरीब को मिलती है. इसके उजाले के लिए कोई प्रीमियम टिकट नहीं लगता है.
सूरज की नजर में हम सभी समान हैं. सूरज की रोशनी हमें निरोग भी रखती है. इसकी मदद से ही खेतों में अनाज उपजता है. महापर्व छठ में सूरज की इन्हीं खासियतों की वजह से हम उनका आभार प्रकट करते हैं. प्रकृति के प्रति आभार जताने का यह त्योहार है.
इस पर्व की सबसे बड़ी खासियत यह है कि जिसके घर छठ नहीं होता है या किसी कारणवश नहीं हो रहा है, फिर भी वह अपनी भागीदारी सुनिश्चित करना चाहता है. इस तरह के लोग भी सड़कों की सफाई के साथ हर तरह का काम करते हैं, जिससे व्रतियों को सहूलियत हो. घाट पर भी अमीरों के लिए अलग लाइन और गरीबों के लिए अलग कतार नहीं होती है. वहां पर व्रती की जाति और हैसियत नहीं देखी जाती है. सभी के मन में उनके प्रति श्रद्धा होती है. घाट पर व्रतियों का पैर छू कर आशीर्वाद लेने की होड़ रहती है.
महापर्व छठ की एक और खासियत है कि इसमें किसी पूजा कराने वाले की जरूरत नहीं पड़ती है. भक्त और उसके भगवान के बीच सिर्फ आस्था का सेतु होता है जो सफाई – स्वच्छता के पायों पर मजबूती से खड़ा रहता है. व्रती हर काम में सिर्फ और सिर्फ सफाई का ध्यान रखते हैं.
महापर्व छठ हमें जीवन में तीन चीजों के महत्व को भी बताता है. पहला पानी. दूसरा धूप और तीसरा भाईचारा – आपसी सद्भाव. पानी के महत्व को तो हम सभी जानते-समझते हैं. धूप की कितनी जरूरत है, इस बारे में बड़े – बड़े वैज्ञानिक भी बता रहे हैं. आज जैविक ईंधन की जगह सौर ऊर्जा को पूरी दुनिया में प्रोत्साहित किया जा रहा है.
अब बात करते हैं भाईचारे की. अगर हम-आप में से कोई भी जेठ की दुपहरी में किसी अनजान व्यक्ति का दरवाजा खटखटा कर पानी मांगे तो शायद नहीं मिले. मिले भी तो देने वाले के मन में कई तरह के सवाल भी होंगे, जो उसके चेहरे को देख कर ही पता चल जायेगा. लेकिन, छठ में ऐसा नहीं होता है. जिसके घर छठ हो रहा है, उसके घर कोई भी जाकर खरना का प्रसाद मांग सकता है. घरवाले उससे सवाल नहीं करेंगे कि वह कौन है. वह उस अनजान व्यक्ति को आदर के साथ बैठने को कहेंगे और खरना का प्रसाद लाकर देंगे. घाट पर भी ऐसा ही दृश्य होता है.
सभी मांगने वाले को व्रती प्रसाद देते हैं. जिस श्रद्धा से अपनों को देते हैं उसी श्रद्धा के साथ दूसरों को भी बांटते हैं. उस समय उनके मन में अपने और पराये का भेद नहीं रहता है. वह सिर्फ एक व्रती होते हैं. उनके मन में सिर्फ एक ही ख्वाहिश होती है – भगवान भास्कर सबका कल्याण करें. महापर्व छठ की यह सबसे बड़ी खासियत है. वैसे, छठ का नाम सुनते ही मुझे सबसे पहले गुड़ का ठेकुआ याद आता है. प्रसाद के तौर पर मिलने वाले इस ठेकुए में जो स्वाद होता है, वह किसी चीज में नहीं होता है.
परिचय : लेखक मुबई में रहते हैं. जन्म रांची में और पले-बढ़े चाइबासा में हैं. मूल रूप से आरा के हैं. हिंदी और अंग्रेजी में समान रूप से लिखते हैं. अब तक इनकी दो किताबें ‘लूजर कहीं का’ और ‘इश्कियापा’ आ चुकी हैं. तीसरी किताब लव करी आने वाली है.

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