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मोबाइल एप इनोवेशन के जरिये बदलाव ला रही बालिकाएं
छोटी-बड़ी तमाम समस्याओं का हल ढूंढने के लिए टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन की भूिमका पहले से कहीं ज्यादा प्रभावी हो चुकी है़ मसलन, शिक्षा और स्वास्थ्य समेत जीवन से जुड़ी तमाम परेशानियों का समाधान टेक्नोलॉजी की मदद से आसान हो चुका है़ खास बात यह कि इस कार्य में लड़कियों की भागीदारी अभूतपूर्व तरीके से बढ़ रही […]
छोटी-बड़ी तमाम समस्याओं का हल ढूंढने के लिए टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन की भूिमका पहले से कहीं ज्यादा प्रभावी हो चुकी है़ मसलन, शिक्षा और स्वास्थ्य समेत जीवन से जुड़ी तमाम परेशानियों का समाधान टेक्नोलॉजी की मदद से आसान हो चुका है़
खास बात यह कि इस कार्य में लड़कियों की भागीदारी अभूतपूर्व तरीके से बढ़ रही है़ हाल ही में गूगल ने संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध एजेंसियों व अन्य सहयोगी संगठनों के साथ मिल कर ‘टेक्नोवेशन चैलेंज’ की शुरुआत की है, जिसका मकसद प्रतिभावान बालिकाओं को प्रोत्साहित करने के लिए मंच मुहैया कराना है.
अारंभिक दौर में इसमें 103 देशों की 11,000 से ज्यादा लड़कियों ने भाग लिया था. फाइनलिस्ट टीम को गूगल के अमेरिका स्थित मुख्यालय माउंटेन व्यू ले जाया जाता है और संबंधित तकनीकी विशेषज्ञों से रूबरू कराया जाता है. क्या है टेक्नोवेशन चैलेंज और विविध श्रेणी में चुने गये भारतीय फाइनलिस्ट टीम समेत संबंधित अन्य पहलुओं को रेखांकित कर रहा है आज का साइंस टेक पेज …
दुनियाभर में तमाम इनोवेशन में जुटी स्कूली छात्राओं को एक मंच मुहैया कराने के लिए गूगल की पहल रंग ला रही है. बड़ी बात यह कि इसमें भारत से भी छात्राओं ने हिस्सा लिया और बीते सात से 11 अगस्त तक अमेरिका की सिलिकॉन वैली में आयोजित फाइनलिस्ट में जगह बनाने में कामयाबी हासिल की. बीते वर्षों के दौरान गूगल द्वारा लॉन्च किये गये इस अभियान ने दुनियाभर में लाखों बालिकाओं को प्राेत्साहित किया और विविध क्षेत्रों में किये गये उनके इनोवेशन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में मदद की है.
‘पीआर न्यूजवायर’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले आठ वर्षों से टेक्नोवेशन का आयोजन किया जा रहा है. दुनियाभर में अब तक इसने विविध सामाजिक समस्याओं का निदान करने के मकसद से मोबाइल एप्स और स्टार्टअप्स विकसित करने के लिए 15,000 से अधिक लड़कियों को मदद दी है
सीनियर डिवीजन फाइनलिस्ट
वर्ष 2017 की सीनियर डिवीजन फाइनलिस्ट में छह टीम को शामिल किया गया. इसमें से दो टीम भारत से, दो कजाखस्तान से, एक आर्मेनिया से और
एक केन्या से है. इसमें भारत की दो टीम और उनके कार्य इस प्रकार हैं :
प्रेगकेयर : गर्भवती माताओं के लिए
प्रेगकेयर एक मोबाइल एप्लीकेशन है, जो गर्भवती महिलाओं को संबंधित सूचनाएं मुहैया कराता है और इस प्रकार उनके सशक्तीकरण में व्यापक भूमिका निभाता है. यह मोबाइल एप्स बच्चों के जन्म से पहले और बाद में माताओं को किन जरूरी चीजों पर ध्यान देना चाहिए, और उनके पोषण समेत उनके स्वास्थ्य के लिए सभी जरूरी तथ्यों के बारे में बताता है. फिलहाल यह दिल्ली के नजदीक नोएडा के ग्रामीण क्षेत्रों में गर्भवती महिलाओं को विविध तरीके से मदद मुहैया कराने में जुटा है.
‘टीम इंजीनियस एपीएसएन’ ने इस मोबाइल एप्लीकेशन को विकसित किया है. ‘एडोब’ के सॉफ्टवेयर इंजीनियर और टीम इंजीनियस एपीएसएन के मेंटर शशांक जैन के हवाले से ‘ब्लॉग्स डॉट एडोब डॉट कॉम’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि इस एप को विकसित करने के लिए इस टीम में शामिल सभी लड़कियों ने समर्पित होकर काम किया है. 15 से 17 वर्ष की उम्र की इन पांचों छात्राओं ने इसके लिए आसपास के इलाके में मौजूदा हालातों समेत इसकी जरूरतों के बारे में व्यापक सर्वेक्षण किया था.
विशक्राफ्ट : जरूरतमंद बच्चों की इच्छापूर्ति
यह एनजीओ यानी गैर-सरकारी संगठनों और चैरिटेबल ट्रस्ट से जुड़े बच्चों की इच्छाओं को लोगों तक पहुंचाता है, ताकि वे चाहें तो जरूरतमंद बच्चों की इन इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं. सरकारी एजेंसियों में रजिस्टर्ड एनजीओ बच्चों की इच्छाओं को एप के जरिये अपलोड करते हैं. इससे दान देने वाले लोगों द्वारा खास चीजें खरीद कर जरूरतमंद बच्चों तक पहुंचायी जाती है. इस कॉन्सेप्ट को धरातल पर उतारने का विचार सबसे पहले बेंगलुरू की तीन छात्राओं के दिमाग में आया.
इन तीनों छात्राओं के बीच आपस में गहरी दोस्ती है. ये बालिकाएं जिस स्कूल में पढ़ती थीं, उसके संचालक आसपास के लोगों से रद्दी अखबार एकत्रित करते थे और उसे बेचने से हासिल हुई रकम को चैरीटेबल संगठनों को दान देते थे. ‘9 बिट्स’ के रूप में काम करने वाली इस टीम के एक सदस्य का कहना है कि उन्होंने बेंगलुरू के बाहरी इलाके में मौजूद सरकारी स्कूलों में बच्चों को खेल सामग्री दान करने से इस कार्यक्रम की शुरुआत की थी.
एडोब में सॉफ्टवेयर डेवलपर और 9 बिट्स के मेंटर अभिषेक माहेश्वरी ने इन छात्राओं के आइडिया को अमलीजामा पहनाने में बड़ी भूमिका निभायी और इस प्रोजेक्ट को समय पर पूरा किया. माहेश्वरी कहते हैं कि इन छात्राओं द्वारा किया गया यह प्रयास बेहतरीन है. वे स्वीकारते हैं कि इस उम्र में जब वे थे, तो इस बारे में सोच भी नहीं सकते थे, इसलिए उन्हें इससे बहुत खुशी हुई.
2017 के सेमीफाइनलिस्ट
सीनियर डिवीजन की टीम
– फैंटेसी गर्ल्स
– ओएनजी (ऑप्टिमाइजिंग द नेक्स्ट जेनरेशन)
– टीम जेस्ट
जूनियर डिवीजन की टीम
– द डायनामोज
– द क्विंटपल्स
छह थीम
टेक्नोवेशन में वर्ष 2017 में मुख्य रूप से इन छह थीम पर फोकस किया गया :
– गरीबी उन्मूलन
– पर्यावरण
– शांति – समानता
– शिक्षा- स्वास्थ्य
10 से 18 वर्ष की छात्राओं के लिए टेक्नोवेशन चैलेंज
टेक्नोवेशन 10 से 18 वर्ष की उम्र की बालिकाओं के लिए विश्व का सबसे बड़ा टेक्नोलॉजी एंटरप्रेन्योरशिप प्रोग्राम है. यूनेस्को, पीस कॉर्प्स और यूएन वोमेन के सहयोग से दुनिया के 100 से भी ज्यादा देशों में इसका संचालन किया जाता है, जिसमें गूगल की बड़ी हिस्सेदारी है. टेक्नोवेशन के जरिये बालिकाएं अपनी महिला मेंटर के साथ काम करती हैं और अपने समुदाय में समस्याओं की तलाश करती हैं व उनके लिए एप विकसित करती हैं.
इसके लिए उन्हें मेंटर मुहैया कराये जाते हैं, ताकि उनकी कुशलता और समृद्ध हो सके. टेक्नोवेशन उन बालिकाओं को मदद मुहैया कराता है, जो तकनीकी उद्यमी के रूप में आगे बढ़ना चाहती हैं. पिछले आठ वर्षों से इसका आयोजन किया जा रहा है. इस दौरान 15,000 से अधिक लड़कियों ने खाद्य सामग्रियों की बरबादी रोकने, पाेषण और महिला सुरक्षा समेत विविध समस्याओं के समाधान के लिए मोबाइल एप विकसित किये और स्टार्टअप की शुरुआत की.
जूनियर डिवीजन फाइनलिस्ट
लक्ष्यशाला
टीम एस्पायर द्वारा चेन्नई में विकसित किया गया यह एप छात्रों को कैरियर की दिशा तय करने में मदद करता है. इसके लिए वह उन्हें एलुमनाइ मेंटरों से जोड़ता है. इसका मकसद जरूरतमंद छात्राें को मदद मुहैया कराना है. साथ ही अभिभावकों, आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों, पढ़ाई छोड़ चुके छात्रों समेत इनकी बुनियादी समस्याओं को सुलझाने में यह व्यापक मदद करता है.
सीनियर डिवीजन रनर अप
इकोविस्ट : इसमें भारत से बेंगलुरू की एकमात्र टीम को शामिल किया गया, जो पर्यावरण पर काम करती है.
जूनियर डिवीजन रनर अप
द आइडिया रूट्स : इसमें भारत से बेंगलुरू की एकमात्र टीम को शामिल किया गया, जो स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करती है.
विशेषज्ञ की राय
गूगल का मेड विद कोड टेक्नोवेशन चैलेंज का साझेदार है और इस बात से उसे यह फख्र है कि वह दुनियाभर में युवा छात्राओं द्वारा किये गये इनाेवेशन की पहचान करते हुए उन्हें प्रोत्साहित कर रहा है. इस कार्य में 85 लोगों की टीम लगी हुई है. इसमें अनेक मेंटर और क्षेत्रीय जज शामिल हैं, जो इन बालिकाओं को उद्यमिता, लीडरशिप और टीमवर्क की विधाओं और नये कौशल विकसित करने का प्रशिक्षण देते हैं.
– मैगी जॉनसन, वीपी, एजुकेशन
इंजीनियरिंग, गूगल
तकनीकी बैकग्राउंड की समझ के बिना भी लोगों के पास यदि आइडिया होगा, तो वे स्कूल छोड़ कर अपनी कंपनी का गठन करेंगे. इस प्रकार वे अन्य महिलाओं को भी रोजगार मुहैया करा सकते हैं और कंप्यूटर साइंस की अवधारण बदल सकती है.
– ओमोजू मिलर, टेक्नोवेशन इंस्ट्रक्टर और फेसिलिटेटर
टेक्नोवेशन चैलेंज की टीम ने फाइनलिस्ट के लिए बहुत मुश्किल टास्क चुना था. जो टीम इसका हिस्सा नहीं बन सके, वे भी अपने हुनर के जरिये 21वीं सदी में दुनिया की तसवीर को बदलने में जुटे हैं और बेहतर भविष्य निर्माण के लिए अपना योगदान दे रहे हैं. भले ही फाइनलिस्ट तक इनका चयन नहीं हो सका, लेकिन इतना जरूर है कि इन्हें भी प्रोत्साहन मिला होगा और अपने समुदाय को बदलने में ये अपना योगदान जारी रखेंगी.
– माधवी भसीन, सीनियर डायरेक्टर,
टेक्नोवेशन
टेक्नोवेशन ने न केवल हमारी बालिकाओं की जिंदगी बदली है, बल्कि इसने मुझे भी बदल दिया. और आखिरकार मुझे यह एहसास हो रहा है कि किस तरह से मैं अपने कैरियर में बदलाव ला सकता हूं, ताकि अपनी जरूरतों को पूरा कर सकूं.
– चिप मोरलैंड, पीस कॉर्प्स वोलेंटियर,
माल्डोवा टीम मेंटर
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