।।रजनीश आनंद।।
26 जनवरी का दिन था. रांची जिले के बेड़ो प्रखंड की करकरी पंचायत के लोगों में अलग सा उत्साह नजर आ रहा था. सभी पंचायत सचिवालय की ओर जा रहे थे. महिलाओं का हुजूम भी सचिवालय की ओर जा रहा था. पूछने पर बता चला कि आज झंडोत्ताेलन के साथ ही ग्राम सभा भी होगी. कार्यक्रम स्थल की ओर जा रहे एक वृद्ध ने बताया कि प्रदेश में पंचायत चुनाव तो 2010 में हुआ, लेकिन हमारी पंचायत में ग्राम सभा पहली बार हो रही है. यह बात चौंकाने वाली तो थी, लेकिन सच थी.
बेड़ो प्रखंड के करकरी पंचायत में मुखिया और वार्ड सदस्य तो चुनकर 2010 में ही आ गये थे, लेकिन वे ग्रामीणों के कल्याण के लिए गंभीर नहीं दिखे. परिणाम यह हुआ है कि जनकल्याणकारी राज्य की कई योजनाओं से इस पंचायत के ग्रामीण आज भी अनभिज्ञ हैं. पंचायत चुनाव के इतने वर्षों बाद भी जब ग्रामीणों को इंदिरा आवास, वृद्धा पेंशन और ऐसी ही कई योजनाओं का लाभ नहीं मिला, तो अंतत: करकरी पंचायत की महिलाओं ने एक अहम निर्णय लिया. जनवरी माह में महिला समूह की महिलाओं ने पंचायत सचिवालय में आयोजित संकुल बैठक में यह निर्णय किया कि ग्राम सभा को सक्रिय करना होगा क्योंकि इसके बिना पंचायत और उसके गांवों का विकास संभव नहीं है.
अत: पंचायत की 16 महिला समूहों (जुगनु, रेशम, खुशबू, महिला, दुर्गा, आरती, देवी, शंकर, अर्चना और सरना आदि) की महिलाओं ने यह निर्णय लिया कि वे मुखिया के समक्ष एक आवेदन लेकर जायेंगी, जिसके जरिये वे यह मांग करेंगी कि गांव में ग्राम सभा का आयोजन किया जाये. इसके लिए उन्होंने एक आवेदन तैयार करवाया और उसपर ग्रामीणों का हस्ताक्षर भी लिया. उसके बाद महिला समूह की महिलाएं उक्त आवेदन को लेकर मुखिया ओलिवर मिंज के पास पहुंची. महिला समूह के इस कदम से मुखिया दबाव में आ गये. उन्हें यह अहसास हुआ कि अब आम लोगों की अनदेखी संभव नहीं है.
इसलिए उन्होंने 26 जनवरी को न सिर्फ झंडोत्ताेलन का कार्यक्रम आयोजित करवाया, बल्कि एक ग्राम सभा भी आयोजित की. इस ग्रामसभा में इस बात का भी निर्णय हुआ कि अब हर महीने 26 तारीख को ग्राम सभा का आयोजन किया जायेगा. महिलाओं के इस आंदोलन का मार्गदर्शन करनेवाली महिला सामाख्या की जिला साधनसेवी अंशु एक्का ने बताया कि पंचायत चुनाव के बाद भी मुखिया की लापरवाही के कारण पंचायत में ग्राम सभा आयोजित नहीं हो रही थी. जागरूकता के अभाव में ग्रामीण ग्राम सभा के महत्व को न तो समझ रहे थे और न ही उसके लिए प्रयास कर रहे थे. परिणाम यह हो रहा था कि विकास योजनाओं का लाभ सीमित लोगों तक ही पहुंच रहा था.
वार्ड सदस्य भी ग्राम सभा आयोजित करवाने के लिए मुखिया पर दबाव नहीं बना रहे थे. अंतत: गांव की महिला समूह ने पहल की और उन्हें सफलता मिली. महिला समूह से जुड़ी करकरी पंचायत की सरस्वती खेस ने बताया कि गांव के विकास के लिए हम सब एकजुट हैं. हमने डर को छोड़कर एकता दिखाई और हमें सफलता मिली. सरस्वती ने बताया कि करकरी पंचायत में कुल दस गांव है, जिनमें करकरी, खरदेरी, नरकोपी, टंगराटोली नवाटोली आदि शामिल हैं. करकरी पंचायत एक आदिवासी बहुल क्षेत्र है, जहां कि 80 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है. यहां मुसलमानों की भी आबादी है. साथ ही कुछ पिछड़े वर्ग के लोग भी हैं. लेकिन सभी विकास योजनाओं से वंचित थे. लेकिन अब हमें ऐसा प्रतीत होता है कि हमें हमारा हक मिलेगा और हमारा पंचायत मॉडल बन सकेगा.
ग्राम सभा आयोजित किये जाने के संबंध में मुखिया ओलिवर मिंज ने बताया कि यह कहना गलत होगा कि ग्राम सभा कभी आयोजित ही नहीं हुई, हां यह कहा जा सकता है कि नियमित रूप से ग्राम सभा का आयोजन नहीं होता है. हम वार्ड सदस्यों के साथ मिलकर योजनाओं पर अकसर चर्चा भी करते हैं और उनका चयन भी ग्रामीणों के लिए किया जाता है. लेकिन इस बात से मुङो इनकार नहीं है कि उस चर्चा में ग्रामीणों की भागीदारी न के बराबर होती है, क्योंकि वे उपस्थित ही नहीं रहते हैं. मुखिया ने बताया कि पंचायत सचिवालय से गांवों की दूरी बहुत ज्यादा है, इसलिए ग्रामीण ग्राम सभा को लेकर उदासीन रहे. लेकिन अब हम सब ग्राम सभा को लेकर गंभीर हो गये हैं और यह निर्णय लिया गया है कि हर महीने ग्रामसभा का आयोजन होगा और ग्रामीणों को उनका हक मिलेगा.