9.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

प्रकृति की लूट पर टिका है पूंजीवाद

31 जनवरी, 2014 को प्रकाशित जाने-माने समाजवादी विचारक सच्चिदानंद सिन्हा के लेख औद्योगीकरण पर भूल सुधारे वाम पर बड़ी संख्या में प्रतिक्रियाएं मिली हैं, जिनमें से कुछ को हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं. इसके अलावा हम यहां कुछ अन्य समसामयिक विषयों पर आये पत्रों को भी दे रहे हैं. * जनता को वाम पर […]

31 जनवरी, 2014 को प्रकाशित जाने-माने समाजवादी विचारक सच्चिदानंद सिन्हा के लेख औद्योगीकरण पर भूल सुधारे वाम पर बड़ी संख्या में प्रतिक्रियाएं मिली हैं, जिनमें से कुछ को हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं. इसके अलावा हम यहां कुछ अन्य समसामयिक विषयों पर आये पत्रों को भी दे रहे हैं.

* जनता को वाम पर भरोसा है, उससे जुड़ें

मैं वापमंथी यूनियन का एक सदस्य हूं. हम सबको यह बैठ कर सोचना चाहिए कि क्यों सब जगह वामपंथ को पराजय का सामना करना पड़ रहा है. कहीं कुछ बुनियादी भूल है क्या? आज पर्यावरण का संकट पूंजीवाद का ही परिणाम है. खनिज के लिए झारखंड, छत्तीसगढ़ के पहाड़ों को तोड़ कर, जंगलों को काट कर देश चलाया जा रहा है. लेकिन वहां के परिवेश और समाज का क्या हुआ? देश की सभी कम्युनिस्ट पार्टियों को इस पर सोचने की जरूरत है. बड़े-बड़े सभागारों में बैठ कर हम गरीबों, मजदूरों के बारे में सोचते हैं, बड़े-बड़े भाषण देते हैं, पर अपने जीवन में वह कोई काम नहीं करते हैं जो बोलते हैं.

इतने दिनों में दुनिया के सभी गरीब, मजदूर, अनपढ़ लोग यह समझ गये कि सभी पार्टियों की तरह वामपंथ भी अपना सिद्धांत खोता जा रहा है, बल्कि लगभग खो चुका है. आज खुद कम्युनिस्ट पार्टियों के अंदर एक ऐसा समूह पैदा हो गया है, जो जनता से बिल्कुल अलग हो गया है. अंतत: यह हुआ कि जनता में इतना असंतोष हुआ कि वह भी धीरे-धीरे बदल गयी. समाजवादी आंदोलन को इन गलतियों को सुधारने की जरूरत है. लोगों से जुड़ने की जरूरत है. इसी के जरिये हम लोग मानवीय समाज की स्थापना कर सकेंगे. आज भी कम्युनिस्ट पार्टियों पर गरीब, मजदूर व वंचित जनता सबसे ज्यादा भरोसा करती है.

केशव मोहन सुधाकर, बिहार

* बदलाव की उम्मीद बाकी

औद्योगीकरण का मूल आधार प्राकृतिक संसाधनों व सस्ते मजदूरों की उपलब्धता है. मार्क्स ने जहां मजदूर वर्ग के शोषण को मुद्दा बनाया और दुनिया के मजदूरों को संगठित होकर क्रांति से पूंजीपतियों को उखाड़ फेंकने का आह्वान किया, वहीं उन्होंने पूंजीपतियों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों जैसे- जल, जंगल, जमीन, खनिज आदि के दोहन पर विशेष ध्यान नहीं दिया. परिणाम यह हुआ कि इन संसाधनों के अनियंत्रित दोहन से प्राकृतिक संसाधनों के भंडार वाले क्षेत्रों की आबादी का विस्थापन हुआ जो महानगरों में जनसंख्या दबाव का, और सामाजिक ताना-बाना टूटने का कारण बना. औद्योगीकरण कि रफ्तार तेज करने हेतु जो अवसंरचनाओं के निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण किये गये, उससे किसान भूमिहीन होकर शहरों की ओर पलायन को मजबूर हैं.

आज महानगरों में बढ़ रही आबादी और ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन, आदिवासी बहुल क्षेत्रों में नक्सल आंदोलन इसी का परिणाम है. देर से ही सही, भारत ने 1976 में संविधान में संशोधन करके समाजवादी व्यवस्था अपना तो ली, लेकिन औद्योगीरण के मूल आधार प्राकृतिक संसाधनों के नियंत्रण पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया. परिणामस्वरूप, इन संसाधनों की लूट से एक नये वर्ग का उदय हुआ. यह वर्ग नेताओं, अफसरों और उद्योगपतियों का है, जो काफी ताकतवर है. इस कारण देश में संविधान के विपरीत समाजवादी की जगह पूंजीवादी व्यवस्था हावी है जो समतामूलक समाज की स्थापना कि राह में सबसे बड़ी बाधक है. इस ताकतवर वर्ग के कारण मध्यमवर्ग से जिस क्रांतिकारी बदलाव कि उम्मीद थी वह नहीं हो पा रही है. पिछले कुछ वर्षों से जिस तरह देश में प्राकृतिक संसाधनों की लूट का नेतृत्व करनेवालों के खिलाफ जनमत बन रहा है और देश का मध्यमवर्ग इसे समझ रहा है, उससे लगता है यदि सही तरीके से नेतृत्व प्रदान किया जाये तो बड़ा बदलाव आ सकता है.

बिनोद कुमार, अररिया

* वाम अंध-औद्योगीकरण रोकने के लिए काम करे

सच्चिदानंद सिन्हा जी ने उल्लेख किया है कि दुनिया में लैटिन अमेरिका को छोड़ कर लगभग सभी देशों में वामपंथ ढलान पर है. चाहे वह साम्यवादी विचारधारा का प्रबल एवं सशक्त देश रहा सोवियत रूस हो या दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश चीन जहां आजकल भूमंडलीकरण, उदारीकरण, पूंजीवाद एवं आर्थिक प्रगति के नाम पर उद्योगों का तेजी से विकास तो हो रहा है, लेकिन आर्थिक विषमता की खाई गहरी होती जा रही है. विकास के नाम पर गांव उजड़ रहे हैं, गांवों से छोटे-छोटे किसान व मजदूर शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, रोजगार के नाम पर.

जहां इनकी सामाजिक व आर्थिक दशा बद से बदतर स्थिति में है. विकास के नाम पर पर्यावरण का घोर दोहन एवं शोषण हो रहा है, जिसका अंतत: कुप्रभाव लोगों खास कर सर्वसाधारण जनता पर ही पड़ रहा है. उद्योगों का विकास आज समय की मांग है, लेकिन अंध-औद्योगीकरण नहीं होना चाहिए. समाजवादियों एवं वामपंथियों को अपनी विचारधारा को मजबूत, प्रभावकारी एवं जन कल्याणकारी बनाने की दिशा में अंध औद्योगीकरण को रोकने के लिए संघर्ष करना चाहिए. औद्योगीकरण का समुचित समावेशी लाभ देश-दुनिया के जो सर्वसाधारण हैं, उन्हें दिलाने और साथ ही पर्यावरण के संवर्धन एवं उसे प्रदूषणमुक्त करने में वामपंथ को अपनी अहम भूमिका निभानी चाहिए.

विनय कृष्ण, समस्तीपुर

* प्रकृति की लाज लूटने का कृत्य हो रहा है

वाम अंग यानी प्रक्षालन का औजार. स्त्री को वाम अंग कहें, तो एक प्रतिबद्ध जीवन जीने का सहयोगी. जीने की दुरूहता हो तो परिस्थिति और विधाता को वाम कहते हैं. राजनीति में वामपंथ एक सशक्त प्रतिपक्ष है जो जनहित के खिलाफ निर्णय लेनेवालों के विरुद्ध आवाज बुलंद करता है. यह आवाज हर सत्ता के विरुद्ध उठती आयी है चाहे ब्रितानी शासक हों या रूस का जार, फ्रांस का लुई हो या चीन का शासक. मार्क्सवाद का उदय औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप हुआ जिसकी चरम परिणति लेनिन के समय हुई. चीन में माओत्से तुंग आये उग्र वाम के रूप में. प्राय: यूरेशिया में समाजवादी विचार को लेकर सत्ता संघर्ष हुआ.

वियतनाम, इंडोनेशिया, बर्मा, रूस, चीन, कोरिया में जनवादी सत्ता कायम हुई. मार्क्स के विचार में पूंजी केंद्र में थी, जिसके ईद-गिर्द कच्चा माल, श्रम, उत्पादन, विनिमय और वितरण में समाज के अंतिम नागरिक तक की भागीदारी सुनिश्चित करनी थी, परंतु हुआ कुछ और. मार्क्स ने अपने विचार में प्रकृति, परिवेश, पर्यावरण, पृथ्वी और उस पर पोषित प्राणतत्व को समाहित नहीं किया. यह एक बड़ी फिसलन थी, भूल थी. इसका नतीजा हुआ प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध. मुनाफाखोरी, उत्पादित वस्तुओं से अधिक से अधिक पूंजी जमा करने की प्रवृत्ति. इन्सानियत की पूरी उपेक्षा और मशीनी ताकत का पूरा इस्तेमाल. दुनिया की गुलामी का इतिहास तो औद्योगिक क्रांति की ही उपज है. सर्वसत्तावाद ने वाम विचार को भी लील लिया. एशिया में वामदलों का सफाया हुआ और अभी अफ्रीका में घोर संघर्ष चल रहा है. लैटिन अमेरिका में जनवादी विचार बचा हुआ है.

मशीनों से मानव श्रमशक्ति का ह्रास हुआ है. विस्थापन की समस्या मुंह बाये खड़ी है. हिमालय के पहाड़ टूटे, प्रलय आया. सिंगूर का कारखाना लगा और टूटा, वाम की बंगाल सरकार गयी. उजड़ते जंगल और खानों ने छत्तीसगढ़ और झारखंड को तबाह कर दिया है. बिजली के लालच में नदियों पर पचीसों बांधों ने उत्तर भारत को बाढ़ के हवाले कर दिया है. शहरों में महलों के जंगल खड़े हो रहे हैं और कारखानों ने धुआं उलग-उगल कर देश में कैंसर फैला दिया है. प्रकृति का दोहन नहीं, उसकी लाज लूटने जैसा कृत्य चल रहा है. भोगवाद, महत्वाकांक्षा और विश्वासहीनता के कारण नागरिकों ने जनवादी विचार ही छोड़ दिया है. लोहिया, जयप्रकाश और नरेंद्रदेव का समाजवाद किताबी चीजें हैं. पूंजीवादी सत्ता जनतंत्र और वाम शक्ति पर ठठा कर हंस रही है. हठधर्मिता प्रतिपक्ष की अहमियत ही नहीं समझती.

रामदेव पंडित राजा, चंद्रनगर, खगडि़या

* ऐसे ही लेख छापते रहें

मैं प्रभात खबर में छपनेवाले नॉलेज पन्ने और विभिन्न विषयों पर लेखों का नियमित पाठक हूं. मुझे सच्चिदानंद सिन्हा का लेख ह्यऔद्योगीकरण पर भूल सुधारे वामह्ण बहुत अच्छा लगा. यह काफी रोचक और जानकारी से परिपूर्ण था. इसने हमें औद्योगीकरण, विस्थापन, पर्यावरण और विकास से जुड़े विभिन्न पहलुओं को समझने में काफी मदद की. हमारा अनुरोध है कि आप विभिन्न सेमिनारों और सम्मेलनों में विद्वानों द्वारा दिये जानेवाले भाषणों और पढ़े जानेवाले परचों को इसी तरह विस्तारपूर्वक प्रकाशित करें. बहुत-बहुत साधुवाद

अरविंद उरांव, ई-मेल से

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें