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भारत में होगा दुनिया का सबसे बड़ा सर्वे

।। चंदन कुमार ।। मानचित्र किसी देश की भौगोलिक एवं प्राकृतिक स्थिति को ही नहीं दर्शाते, बल्कि उसकी मदद से विकास का सटीक खाका भी तैयार किया जाता है. इन्हीं उद्देश्यों के साथ भारतीय सव्रेक्षण विभाग अपने देश का एक ऐसा सर्वे शुरू करने जा रहा है, जो दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा […]

।। चंदन कुमार ।।

मानचित्र किसी देश की भौगोलिक एवं प्राकृतिक स्थिति को ही नहीं दर्शाते, बल्कि उसकी मदद से विकास का सटीक खाका भी तैयार किया जाता है. इन्हीं उद्देश्यों के साथ भारतीय सव्रेक्षण विभाग अपने देश का एक ऐसा सर्वे शुरू करने जा रहा है, जो दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा सर्वे होगा.

इसमें आधुनिक जीआइएस तकनीक की मदद ली जायेगी. पहले के तमाम सर्वे से कैसे अलग होगा यह सबसे बड़ा सर्वे और भारत में सर्वे का क्या रहा है इतिहास, ऐसे ही पहलुओं के बीच ले जा रहा है आज का नॉलेज..

‘हम अपने राष्ट्र के एक-एक इंच से परिचित हैं, क्योंकि हमने इसके प्रत्येक इंच का मानचित्रण किया है.’ यह स्लोगन है भारतीय सर्वेक्षण विभाग यानी सर्वे ऑफ इंडिया का. यही विभाग हमारे देश के तमाम क्षेत्रों को मानचित्र के पटल पर लाता है, जिससे हम वाकिफ होते हैं कि देश का कौन-सा हिस्सा कहां है और किस हिस्से में क्या-क्या है.

अब यही सर्वे ऑफ इंडिया नये सिरे से पूरे देश का ऐसा मैपिंग (मानचित्र सर्वे) करने जा रहा है, जो दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा होगा. यह सर्वे कितना बड़ा और अलग होगा, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस विशेष परियोजना पर कुल 1800 करोड़ रुपये की लागत आयेगी और इसमें मानचित्रण की आधुनिक तकनीकों को इस्तेमाल किया जाएगा.

इस सर्वे के मायने

भारतीय सर्वेक्षण विभाग अब तक सर्वेक्षण की पुरानी विधियों का इस्तेमाल करता रहा है, जिसमें मानचित्रण के दौरान देश की महत्वपूर्ण स्थितियों और जगहों का विवरण तो होता था, लेकिन वहां की बारीक जानकारी उपलब्ध नहीं होती थी. दरअसल, मानचित्रों से संबंधित सर्वे स्केल पर आधारित होते हैं.

मसलन, भू-आकृतियों का पैमाना 4 मील के लिए एक इंच से लेकर एक मील के लिए 2.5 इंच तक हो सकता है. हालांकि, यह पैमाना इससे अधिक भी हो सकता है, लेकिन अब तक ऐसा सर्वे नहीं किया गया है. इसी तरह नगर और कस्बों के मानचित्रण का पैमाना 3 इंच के 1 मील से 24 इंच के 1 मील तक होता है.

हालांकि, पहले कहा गया था कि भविष्य में यह पैमाना 1:20,000 या उससे अधिक का हो सकता है, लेकिन इस पर काम नहीं किया गया. अब भारतीय सर्वेक्षण विभाग इन पैमानों से कहीं अधिक 1:10,000 के स्केल पर मानचित्रण सर्वे शुरू करेगा. इसका मतलब है कि इस मानचित्रण के बाद देश की हर छोटी-छोटी जगहों, मसलन प्लेटफॉर्म से लेकर सड़कों और ट्रांसफॉर्मर तक की बारीक जानकारी उपलब्ध हो सकेगी.

कैसे अलग होगा यह सर्वे

भारतीय सव्रेक्षण विभाग दुनिया के इस सबसे बड़े सर्वे को पूरा करने के लिए जिस आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करनेवाला है, उसका नाम है जीआइएस यानी भौगोलिक सूचना प्रणाली.

जीआइएस एक ऐसी प्रणाली है, जिससे सभी प्रकार के भौगोलिक आंकड़ों को संग्रह और संकलन करने के साथ-साथ उसका विश्लेषण किया जा सकता है. इतना ही नहीं, इस तकनीक के माध्यम से उन आंकड़ों को संपादित यानी उसमें बदलाव भी किया जा सकता है. मैपिंग की इस तकनीक का जिक्र सबसे पहले 1968 में रोजर टोमलिन्सन द्वारा किया गया था.

नये सर्वे के फायदे

जीआइएस तकनीक में इंजीनियरिंग, योजना, प्रबंधन, परिवहन, बीमा, दूर-संचार और व्यापार से संबंधित कई अप्लीकेशन जुड़े होते हैं. आज तीव्र विकास के लिए इ-गवर्नेस काफी लोकप्रिय हो रहा है.

इसलिए पूरे देश के समग्र विकास के लिए आवश्यक है कि देश के हर पहलू और हर क्षेत्र का व्यापक और संपूर्ण विवरण हमारे पास हो. ऐसे में जीआइएस तकनीक से होनेवाला मैपिंग सर्वे काफी कारगर और लाभदायक साबित हो सकता है.

भारत में सर्वेक्षणों का इतिहास

भारतीय सर्वेक्षण विभाग का इतिहास 18वीं सदी से शुरू होता है. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के तहत आनेवाले भारतीय सर्वेक्षण विभाग की स्थापना 1767 में ईस्ट इंडिया कंपनी के सर्वेक्षकों ने की थी. हालांकि, इससे पहले 1750 में ही बंबई, कलकत्ता और मद्रास के आसपास प्रशासन, राजस्व निर्धारण और व्यापार की दृष्टि से सर्वेक्षण शुरू किये. इसके बाद 1767 में मेजर रेनेल बंगाल के पहले महासर्वेक्षक बनाये गये. इनकी नियुक्ति का मकसद सफल प्रशासन और वाणिज्य प्रसार के लिए बंगाल का एक व्यापक मानचित्र तैयार करना था.

विश्वस्त अभिलेखों और सर्वेक्षणों के आधार पर बना रेनेल का ‘हिंदुस्तान का मानचित्र’ इंग्लैंड में 1782 में मुद्रित हुआ. देशभर में धरातल और भौगोलिक बिंदुओं का निर्धारण करने के लिए 1800 में कैप्टन लैंटबटन को नियुक्त किया गया. उन्होंने देशभर में फैले संबंधित बिंदुओं के अक्षांश और देशांतर का ज्ञान करने के लिए आधार रेखा (बेस लाइन) और त्रिकोणीय ढांचे पर त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण किया.

लैंबटन की मृत्यु के बाद इस सर्वेक्षण का नाम 1 जनवरी, 1818 को ‘भारत का महान त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण’ रखा गया और कर्नल एवरेस्ट ने 1840 ई के बाद इस सर्वे के काम को उत्तर में हिमालय की ओर बढ़ाया.

1815 तक बंगाल, मद्रास और बंबई में अलग-अलग महासर्वेक्षक थे. इसी साल इन तीन पदों को मिला कर एक पद कर दिया गया और कर्नल मैकेंजी को भारत का महासर्वेक्षक नियुक्त किया गया. कर्नल मैकेंजी का पहला काम भारत का प्रामाणिक मानचित्र तैयार करना था. भारत का चौथाई इंच एटलस चालू होने पर 1825 ई के आसपास भारत का मानचित्र सामने आया और इसका पहला नक्शा 1827 ई में मुद्रित हुआ.

इस एटलस में 1868 ई तक देश के आधे से अधिक भाग के मानचित्रों को प्रदर्शित कर दिया गया था. 1905 ई में मैपिंग के क्षेत्र में थोड़ा बदलाव आया और इंच अंश मानचित्रों के नये विन्यास व एक इंच नक्शों की लगातार मालाओं ने पुराने मानचित्रों का स्थान ले लिया.

आधुनिक सर्वेक्षण और मानचित्र

सन् 1905 तक किये गये स्थलाकृति सर्वेक्षण आधुनिक भारत की आवश्यकताओं को देखते हुए अपर्याप्त थे. इस कारण 1904-1905 में इंडियन सर्वे कमेटी नामक समिति गठित की गयी. इस तरह भारत में आधुनिक सर्वेक्षण की शुरुआत 1905 में हुई.

इस समिति ने व्यापक योजना बना कर भविष्य में होनेवाले ऐसे सर्वेक्षणों के संबंध में नीति निर्धारित की और ‘भारतीय सर्वेक्षण विभाग’ ने अनेक रंगों में स्थलाकृति मानचित्र (जंगलों के नक्शे सहित) तैयार करने का दायित्व संभाला.

भारतीय सर्वेक्षण विभाग का महत्व

भारतीय सर्वेक्षण विभाग के मैपिंग से संबंधित सर्वे का मुख्य उद्देश्य है देशभर में फैले इलाकों का मानचित्रण करना, ताकि विकास के लिए मानक मानचित्र उपलब्ध हो सके. भारतीय सर्वेक्षण विभाग मानचित्रण संबंधी कार्यों के अलावा वैज्ञानिक सर्वेक्षणों का भी काम करता है.

साथ ही, यह कई संगठनों को भी चलाता है, जैसे भू-भौतिकी, भूकंपशास्त्र संबंधी अध्ययन, हिमखंड विज्ञान अध्ययन, अंटार्कटिक जानेवाले भारतीय वैज्ञानिक अभियानों में हिस्सेदारी, डिजिटल काटरेग्राफी से संबंधित परियोजनाएं, डिजिटल फोटोग्रेमेटरी आदि, ताकि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विकास के अनुकूल मूल आंकड़े प्राप्त हो सकें. इस संगठन ने प्राकृतिक नक्शों का डिजिटल काटरेग्राफिकल डाटा बेस बनाने का काम भी शुरू किया है. यह बड़े पैमाने पर विभिन्न विकास परियोजनाओं, जैसे पनबिजली, सिंचाई, संग्रहण क्षेत्र, नहर क्षेत्र तथा छावनी क्षेत्र परियोजनाओं आदि के लिए सर्वेक्षण का काम करता है.

मानचित्रों के प्रकार

भौगोलिक मानचित्र : इन मानचित्रों में देश की भौगोलिक आकृतियां होती हैं और उनमें गैर जरूरी स्थलाकृतियों का विवरण नहीं होता है. इन मानचित्रों का पैमाना 1 इंच बराबर 8 मील से लेकर 1/120 लाख या इससे भी छोटा हो सकता है.

स्थलाकृतिक मानचित्र : स्थलाकृतिक मानचित्रों में प्राकृतिक और कृत्रिम आकृतियां विवरण सहित पैमाने के अंदर दर्ज होती हैं. इसमें पहाड़ी क्षेत्रों और समतल को रेखापद्धति से दिखाया जाता है. विशेष आकृतिवाले स्थलों को औसत समुद्रतल से ऊपर की ऊंचाई के अंक देकर दिखाया जाता है.

भौतिक एवं सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं प्रशासनिक सीमाओं, आकृतियों और स्थानों के नामों से युक्त होने के कारण ये मानचित्र बहुत व्यापक होते हैं. ये मानचित्र ही विविध पैमानों में भौगोलिक मानचित्र तैयार करने के आधार बनते हैं. इनका पैमाना एक मील बराबर 2.5 इंच से, चार मील बराबर एक इंच तक हो सकता है (भविष्य में मानक स्थलाकृति मानचित्र का पैमाना 1:2500; 1:50,000; 1:100,000; और 1:250,000 होगा. जैसे भारतीय सर्वेक्षण विभाग द्वारा किया जाने वाला नया सर्वे 1:10,000 स्केल का होगा.)

भू-कर व राजस्व मानचित्र : ये मानचित्र राजस्व उद्देश्य से राज्य सरकार द्वार बनाये जाते हैं. इनका उद्देश्य गांव, शहर और व्यक्तिगत भूमि संपत्ति का परिसीमन करना है. इनका पैमाना आमतौर पर एक मील बराबर 16 इंच का है.

नगर और कस्बों के दर्शक मानचित्र : जैसा कि नाम से प्रकट है, इन मानचित्रों में नगर या कस्बे के सारे विवरण, जैसे सड़क, मकान, नगरपालिका सीमा, सरकारी दफ्तर, अस्पताल, बैंक, सिनेमा, बाजार, शिक्षण संस्थान, बाग आदि दिखाये जाते हैं. ये मानचित्र स्थानीय संगठनों, परिवहन और नगर विकास समितियों, वाणिज्य संस्थाओं तथा पर्यटकों के लिए उपयोगी होते हैं.

छावनी मानचित्र : ये मानचित्र विशेष तरीके से सैनिक इंजीनियरी सेवा और छावनी अधिकारियों के लिए बने होते हैं. इन मानचित्रों के अलावा सरकारी विभागों और संस्थाओं को प्रशासन और विकास कार्यो के लिए विशेष विषयों से संबंधित नक्शे की आवश्यकता होती है. इनका इस्तेमाल कई विशेष अध्ययनों के लिए किया जाता है.

मसलन, तटीय और सिंचाई मानचित्र, सड़क और रेलवे मानचित्र, भूवैज्ञानिक, मौसमविज्ञान, पर्यटक, नागरिक उड्डयन, टेलीग्राफ और टेलीफोन मानचित्र और औद्योगिक संयंत्र स्थलों आदि के लिए मानचित्र. विश्व वैमानिक चार्ट (इंटरनेशनल सिविल एविएशन ऑर्गनाइजेशन) भी मानचित्रों का एक प्रकार है.

भारतीय सर्वेक्षण द्वारा तैयार किये गये अंतरराष्ट्रीय असैनिक वैमानिकी के मानचित्र भी महत्व के हैं. शैली और विन्यास, मानक संकेत, रंग और संगमन, और तैयारी की विधि की एकरूपता के लिए नियम बने हैं. इन मानचित्रों का पैमाना अधिकतर 1:10,00,000 होता है.

अब तक के बड़े और महत्वपूर्ण सर्वे

भारतीय सर्वेक्षण विभाग ने अब तक जिन बड़े सर्वे को पूरा किया है उनमें एक लाख 15 हजार किलोमीटर लंबे रेल नेटवर्क का मानचित्र तैयार करने के साथ-साथ विभिन्न राज्यों की नदियों का मानचित्र भी शामिल है. इसी तरह पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के तहत आनेवाले धरोहरों और स्थलों का सर्वे भी भारतीय सर्वेक्षण विभाग ने ही किया है.

इन महत्वपूर्ण सर्वे के बाद अब भारतीय सर्वेक्षण विभाग दुनिया के सबसे बड़े सर्वे का काम शुरू करनेवाला है. भारत के महासर्वेक्षक स्वर्ण सुब्बाराव ने कहा है कि यह सर्वे भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया का सबसे बड़ा सर्वे होगा. हालांकि, यह कब से शुरू होगा, इस बाबत अभी अधिकृत जानकारी नहीं दी गयी है, लेकिन इसके लिए 1800 करोड़ रुपये के बजट को मंजूरी मिल चुकी है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सर्वे ऑफ इंडिया जल्द ही दुनिया के इस सबसे बड़े सर्वे को अंजाम देनेवाला है.

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