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दक्षिण चीन सागर पर भारत के बयान पर चीन की सधी प्रतिक्रिया

बीजिंग : दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र समर्थित न्यायाधिकरण के फैसले पर भारत के बयान पर सावधानी के साथ प्रतिक्रिया देते हुए आज चीन ने कहा कि वह भी अंतरराष्ट्रीय नियमों का ‘पूर्ण पालन’ करते हुए विवाद को सुलझाना चाहता है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग ने यहां संवाददाताओं को बताया, […]

बीजिंग : दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र समर्थित न्यायाधिकरण के फैसले पर भारत के बयान पर सावधानी के साथ प्रतिक्रिया देते हुए आज चीन ने कहा कि वह भी अंतरराष्ट्रीय नियमों का ‘पूर्ण पालन’ करते हुए विवाद को सुलझाना चाहता है.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग ने यहां संवाददाताओं को बताया, ‘‘विभिन्न सरकारों की ओर से जारी किए गए सार्वजनिक बयानों में यदि यह कहा गया है कि विवाद का निपटान अंतरराष्ट्रीय नियम के पूर्ण पालन के साथ होना चाहिए तो मुझे लगता है कि चीनी सरकार का भी यही रुख है.’ वह भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान से जुड़े सवालों का जवाब दे रहे थे. भारतीय विदेश मंत्रालय ने दक्षिण चीन सागर से जुड़े सभी पक्षों से कहा है कि वे इस समुद्री विवाद को शांतिपूर्ण तरीकों से और बिना बल प्रयोग के सुलझाएं और दि हेग स्थित स्थायी मध्यस्थता न्यायाधिकरण के फैसले के प्रति ‘‘सर्वोच्च सम्मान प्रदर्शित’ करें.
भारत की प्रतिक्रिया न्यायाधिकरण के फैसले के बाद आई थी. न्यायाधिकरण ने फैसला सुनाया था कि दक्षिण चीन सागर में द्वीपों पर चीन के ‘ऐतिहासिक अधिकार’ के दावों का कोई कानूनी आधार नहीं है. इस समुद्र के रास्ते वार्षिक तौर पर तीन खरब डॉलर का व्यापार होता है.
विदेश मंत्रालय ने कल कहा कि भारत अंतरराष्ट्रीय नियम के सिद्धांतों के आधार पर नौवहन एवं उड्डयन की स्वतंत्रता और निर्बाध वाणिज्य का समर्थन करता है. यह यूएनसीएलओएस (संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन) में देखने को भी मिला था.
मंत्रालय ने कहा, ‘‘भारत का मानना है कि देशों को शांतिपूर्ण ढंग से, बल के इस्तेमाल या धमकी के बिना और शांति एवं स्थिरता पर असर डालकर विवादों को बढ़ा सकने वाली गतिविधियों में आत्मसंयम बरतते हुए विवादों को सुलझाना चाहिए.’ मंत्रालय ने कहा कि दक्षिण चीन सागर से होकर जाने वाली संचार लाइनें शांति, स्थिरता, समृद्धि और विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं.
मंत्रालय ने कहा, ‘‘यूएनसीएलओएस का एक पक्ष होने के नाते, भारत सभी पक्षों से अपील करता है कि वे सागरों और महासागरों के लिए अंतरराष्ट्रीय कानूनी व्यवस्था स्थापित करने वाले यूएनसीएलओएस के प्रति सर्वोच्च सम्मान दिखाएं.’ मध्यस्थता अदालत ने यह निष्कर्ष निकाला कि चीन की ‘नाइन-डैश लाइन’ के भीतर पड़ने वाले समुद्री इलाकों पर ‘‘ऐतिहासिक अधिकारों के चीन के दावों का कोई कानूनी आधार नहीं है.’ चीन ने इस फैसले को ‘अमान्य’ करार देते हुए कहा कि वह इस फैसले को ‘मान्यता और स्वीकार्यता नहीं देता’.
चीन लगभग पूरे ही दक्षिण चीन सागर पर संप्रभुता का दावा करता है. वहीं दक्षिणपूर्वी एशिया में उसके पडोसी भी इस सागर पर अपना दावा करते हैं. फिलीपीन ने वर्ष 2013 में चीन के खिलाफ मुकदमा दायर करते हुए कहा था कि 17 साल तक चलीं वार्ताओं के बाद उसने सभी राजनीतिक एवं रणनीतिक रास्तों को कमजोर कर दिया है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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