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परिणाम कैसा भी हो, अपने बच्चों का हौसला बनाये रखिए

इधर कुछ समय में कैरियर बनाने में असफल कई बच्चों ने आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठाया. कोई भी अपना जीवन यूं ही नहीं खत्म करना चाहता. जीवन से भला किसे मोह नहीं है और जो उम्र सपनों को हकीकत में बदलने की होती है, उस उम्र में बच्चे खुदकुशी करें, तो आप खुद ही अंदाजा […]

इधर कुछ समय में कैरियर बनाने में असफल कई बच्चों ने आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठाया. कोई भी अपना जीवन यूं ही नहीं खत्म करना चाहता. जीवन से भला किसे मोह नहीं है और जो उम्र सपनों को हकीकत में बदलने की होती है, उस उम्र में बच्चे खुदकुशी करें, तो आप खुद ही अंदाजा लगाएं कि कितने दबाव में होंगे वो बच्चे ? उन्हें क्या लग रहा होगा ? एक बच्चे ने अपने सुसाइड नोट में लिखा था- “मुझे माफ कर दो पापा. मैं आपको छोड़के जा रहा हूं. मैं हमेशा आपके करीब रहूंगा. मुझे याद मत कीजिएगा. पापा आपने 2 साल तक मेरा खर्च उठाया. आपने मुझे कभी किसी चीज के लिए नहीं डांटा.
आपने मुझे बहुत सारे पैसे दिये. भाई, प्लीज मां का ख्याल रखना. हमारे मां-पापा का ख्याल रखना. मैं आपके साथ हमेशा रहना चाहता था, लेकिन मैं अगले जन्म में फिर लौटकर आऊंगा.” कुछ और बच्चों के सुसाइड नोट- “मम्मी-पापा, प्लीज मुझे माफ कर दीजिए. मैं नहीं कर सकी आप लोगों की डॉक्टर बनने की इच्छा पूरी. मैं कितना भी पढ़ लूं, लेकिन मेरा चयन नहीं होगा. मेरा पिछला साल खराब हुआ पर इस साल मैं बहुत मेहनत कर रही थी, फिर भी कोई अच्छे परिणाम नहीं मिल रहे थे. इसलिए मुझे माफ कर दीजिएगा.
मेरी हिम्मत नहीं होगी आप लोगों से नजर मिलाने की. इसलिए अपनी जिंदगी खत्म कर रही हूं” एक बच्चे ने अपने दोस्त के बारे में बताया जिसने खुदकुशी कर ली. दोस्त ने बताया कि उसके दोस्त का चयन केमिकल इंजीनियरिंग कोर्स के लिए हो गया था, पर उसके माता-पिता चाहते थे कि वह एक साल और ड्रॉप करके कम्प्यूटर इंजीनियरिंग कोर्स के लिए तैयारी करे. आखिर में उसने खुदकुशी कर ली और एक चिट्ठी में अपने मां-बाप से माफी मांगते हुए लिख गया कि वह उनकी सब उम्मीदें पूरी नहीं कर सका.
आखिर इस तरह का दबाव डालनेवाले पेरेंट्स अपने बच्चों को क्या समझते हैं ? मशीन ? कम्प्यूटर ? रोबोट ? जिससे जब चाहे जितना काम लो. उनकी भी सीमा है, जितना फीड होगा उतना ही वह बताएगा. अपने बच्चों पर क्यों थोपते हैं अपने सपने ? अगर आप डॉक्टर नहीं बन पाये, तो क्या आप अपने बच्चे पर डॉक्टर बनने का बोझ डाल देंगे ? वह क्या चाहता है बनना ? उसकी इच्छा और रुचि क्या है ? क्या यह जानने की आपको जरूरत नहीं महसूस होती ? या अपने बच्चों से प्यार नहीं ? और प्यार है भी, तो आपके ख्वाब, आपके सपने आपके बच्चों से ज्यादा बड़े होते हैं?
माता-पिता का फर्ज है – बच्चों को सही गाइड करना. कुछ बच्चे वाकई इतने तेज होते हैं कि आप उन पर जो भी थोप देंगे, वे पूरा कर लेंगे, लेकिन सभी बच्चे ऐसे नहीं होते. उनकी अपनी क्षमता है, पढ़ाई की और समझ की. उससे ज्यादा वे नहीं कर पायेंगे. फिर भी आपकी खुशी पूरी करने के लिए, इंजीनियर की डिग्री के लिए वे दिन-रात एक कर पढ़ाई में लग जाते हैं. अगर सफल नहीं हो पाये तो क्यों उन्हें डर सताता है कि आप नाराज हो जायेंगे, वह आपका सपना पूरा नहीं कर पाया तो आप टूट जाएंगे और आपको वह टूटते हुए नहीं देख सकता.
इसलिए वह अपना जीवन ही समाप्त कर देता है. सुसाइड नोट लिखते वक्त भी उसे आपका ध्यान होता है. इसलिए वह भाई-बहन को लिखता है कि मां-पापा का ख्याल रखना. अब आप समझिए कि मां-पिता वह है कि आप. वह बच्चा होकर भी आपकी खुशी के लिए जी रहा है और मर भी रहा है तो आपकी फिक्र है उसे. आपके सपने वह नहीं पूरे कर पाया, इसलिए वह जीवन ही खत्म कर रहा है और आप, आप क्या कर रहे हैं? माता-पिता होकर अपने अधूरे सपने का बोझ उसके नन्हे कंधों पर डाल रहे हैं? उसकी मृत्यु के बाद आप जितना भी रोएं, असल में अपने बच्चे की मौत के जिम्मेवार आप ही हैं.
कोचिंग क्लासेस की भी जिम्मेवारी होती है. मेरी एक कोचिंग के टीचर से बात हुई थी. उन्होंने कहा कि सख्ती इसलिए बरती जाती है क्योंकि अगर हम ढील देंगे तो कल माता-पिता हमसे ही सवाल करेंगे कि हमने तो आपके हवाले किया था, रुपया भी दिया तो कैसे नहीं हुआ सेलेक्ट? इसलिए टेस्ट लेते रहते हैं, जिससे बच्चे रोज पढ़ाई करें और काम्प्टीशन निकाल सकें. काम्प्टीशन की तैयारी के लिए पढ़ना तो पड़ेगा ही. कुछ हद तक उनकी बात भी सही है, क्योंकि ऐसे भी पेरेंट्स हैं जो पूरा-पूरा इल्जाम कोचिंग पर डाल देते हैं.
कोचिंग सेंटर्स को तो रेप्यूटेशन बनाये रखनी है, पैसा कमाना है. मगर आपको तो अपने बच्चों को मुस्कुराते देखना है. कोई माता-पिता नहीं चाहता कि उनके बच्चे की अंतिम यात्रा उनके कंधे पर हो, मगर अव्वल आने की होड़, डॉक्टर, इंजीनियर बनने का ख्वाब उन्हें बच्चों से दूर कर देता है.
अब भी समय है चेत जाइए. आपको किसे दिखाना है? किससे काम्प्टीशन करना है? ऑफिस के कलीग या बॉस से, किसी रिश्तेदार से या फिर अपने पड़ोसी से. ये ईर्ष्या कहीं का नहीं छोड़ेगी. कहीं ऐसा न हो कि प्रेस्टिज इश्यू बच्चों की जान ले ले. उनको आसमान में उड़ना सिखाइए, मगर उनके पंख में कितनी शक्ति है, उनका हौसला कितना मजबूत है, यह देखना, जज करना आपका दायित्व है.
उन्हें समझाइए. परीक्षाओं का हिम्मत से सामना करने के लिए हौसला दीजिए. जरूरी नहीं जिस सब्जेक्ट में आपकी रुचि हो, वही आपके बच्चे पढ़ें. उनकी अपनी क्षमता, रुचि है. अपनी रुचि से पढ़ेंगे तो वे बेहतर करेंगे. आपकी प्रेरणा ही उन्हें हिम्मत देगी. उनकी प्रेरणा बनें. परिणाम कैसा भी हो, बच्चों का हौसला बनाये रखें.
क्रमश:

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