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अमर प्रेम कथा : लोकगीतों में आज भी जिंदा है ढोला मारू की कहानी
राजस्थान की लोक कथाओं में ढोला-मारू की प्रेम गाथा सबसे लोकप्रिय मानी जाती है़ आठवीं सदी की इस घटना का जनमानस पर ऐसा प्रभाव है कि आज भी पति-पत्नी की हर सुंदर जोड़ी को ढोला-मारू की उपमा दी जाती है. आज भी लोकगीतों में स्त्रियां अपने प्रियतम को ढोला के नाम से ही संबोधित करती […]
राजस्थान की लोक कथाओं में ढोला-मारू की प्रेम गाथा सबसे लोकप्रिय मानी जाती है़ आठवीं सदी की इस घटना का जनमानस पर ऐसा प्रभाव है कि आज भी पति-पत्नी की हर सुंदर जोड़ी को ढोला-मारू की उपमा दी जाती है. आज भी लोकगीतों में स्त्रियां अपने प्रियतम को ढोला के नाम से ही संबोधित करती हैं और ढोला शब्द पति शब्द का पर्यायवाची ही बन चुका है. क्या है इनकी कहानी, आइए जानें-
पूंगल देश का राजा पिंगल अपने यहां अकाल पड़ने पर नरवर राज्य आया. यहां उसने अपनी बेटी राजकुमारी मारवणी (मारू) का विवाह नरवर के राजकुमार साल्ह कुमार (ढोला) से कर दिया. उस समय ढोला की उम्र तीन और मारू की डेढ़ साल थी. सुकाल आने पर पूंगल का राजा परिवार सहित अपने महल लौट गया. उस वक्त ढोला तीन वर्ष का मारू मात्र डेढ़ वर्ष की थी, इसीलिए शादी के बाद मारू को ढोला के साथ नरवर नहीं भेजा गया. कई साल बीत गये, तो ढोला बचपन के विवाह को भूल गया.
बड़ा होने पर उसका दूसरा विवाह मालवणी से हो गया़ बचपन में हुई शादी के बारे को ढोला भी लगभग भूल चुका था. उधर मारू जब यौवन को प्राप्त हुई, तो मां-बाप ने उसे ले जाने के लिए ढोला को संदेश नरवर कई भेजे. ढोला की दूसरी रानी मालवणी को ढोला की पहली शादी का पता चल गया था. उसे यह भी पता चल गया था कि मारवणी जैसी बेहद खुबसूरत राजकुमारी कोई और नहीं.
सो उसने डाह व ईर्ष्या के चलते राजा पिंगल द्वारा भेजा कोई भी संदेश ढोला तक पहुंचने ही नहीं दिया़ वह संदेशवाहकों को ढोला तक पहुंचने से पहले ही मरवा डालती थी.
उधर मारू के अंकुरित यौवन ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया. एक दिन उसे स्वप्न में अपने प्रियतम ढोला के दर्शन हुए़ उसके बाद तो वह ढोला के वियोग में जलती रही. उसे न खाने में रुचि रही, न किसी और कार्य में. उसकी हालत देख उसकी मां ने राजा पिंगल से ढोला को फिर से संदेश भेजने का आग्रह किया, इस बार राजा पिंगल ने सोचा, संदेशवाहक को तो मालवणी मरवा डालती है इसीलिए इस बार क्यों न किसी चतुर ढोली को नरवर भेजा जाये, जो गाने के बहाने ढोला तक संदेश पहुंचा उसे मारू के साथ हुई उसकी शादी की याद दिला दे. जब ढोली नरवर के लिए रवाना हो रहा था, तब मारू ने उसे अपने पास बुलाकर मारू राग में दोहे बना कर दिये और समझाया कि कैसे ढोला के सम्मुख जाकर गा कर सुनाना है. ढोली (गायक) ने मारू को वचन दिया कि वह जीता रहा तो ढोला को जरूर लेकर आयेगा और अगर मर गया तो वहीं का हो कर रह जायेगा.
चतुर ढोली याचक बन कर किसी तरह नरवर में ढोला के महल तक पहुंचने में कामयाब हो गया और रात होते ही उसने ऊंची आवाज में गाना शुरू किया. उस रात बादल छा रहे थे, अंधेरी रात में बिजलियां चमक रही थीं, झीनी-झीनी पड़ती वर्षा की फुहारों के शांत वातावरण में ढोली ने मल्हार राग में गाना शुरू किया़ ऐसे सुहाने मौसम में ढोली की मल्हार राग का मधुर संगीत ढोला के कानों में गूंजने लगा और ढोला फन उठाये नाग की भांति राग पर झूमने लगा़ तब ढोली ने साफ शब्दों में गाया – ‘ढोला नरवर सेरियां, धण पूंगलीयांह’
गीत में पूंगल व मारू का नाम सुनते ही ढोला चौंका और उसे बालपने में हुई शादी की याद ताजा हो आयी़ ढोली ने तो मल्हार राग में व मारू के रूप का वर्णन ऐसे किया जैसे किताब खोल कर सामने कर दी हो. उसे सुन कर ढोला तड़फ उठा. ढोली पूरी रात गाता रहा. सुबह ढोला ने उसे बुला कर पूछा तो उसने पूंगल से लाया मारू का पूरा संदेशा सुनाते हुए बताया कि कैसे मारू उसके वियोग में जल रही है.
आखिर ढोला ने मारू को लाने के लिए पूंगल जाने का निश्चय किया़ लेकिन मालवणी ने उसे रोक दिया. ढोला ने कई बहाने बनाये पर मालवणी उसे किसी तरह रोक देती. पर एक दिन ढोला एक बहुत तेज चलने वाले ऊंट पर सवार होकर मारू को लेने चल ही दिया और पूंगल पहुंच गया. मारवणी ढोला से मिल कर खुशी से झूम उठी. दोनों ने पूंगल में कई दिन बिताये और एक दिन ढोला ने मारू को अपने साथ ऊंट पर बिठा नरवर जाने के लिए राजा पिंगल से विदा ली. आगे बढ़ने पर ढोला उमर सुमरा के षड्यंत्र में फंस गया, उमर-सुमरा ढोला को घात से मार कर मारू को हासिल करना चाहता था़ इसलिए वह उसके रास्ते में जाजम बिछा महफिल जमा कर बैठ गया.
ढोला जब उधर से गुजरा तो उमर ने उसे किसी बहाने से रोक लिया. ढोला ने मारू को ऊंट पर ही बैठे रहने को कहा़ उमर के इस षड्यंत्र को मारू ने भांप लिया था़ मारू ने ऊंट को एड लगायी, ऊंट भागने लगा तो उसे रोकने के लिए ढोला दौड़ा, पास आते ही मारू ने कहा, धोखा है जल्दी ऊंट पर चढ़ो और ढोला उछल कर ऊंट पर चढ़ गया. उमर सुमरा ने घोड़े पर बैठ पीछा किया, पर ढोला का वह काला ऊंट उसके हाथ लगने वाला नहीं था़ ढोला मारू को लेकर नरवर पहुंच गया और उमर सुमरा हाथ मलता रह गया. नरवर पहुंचकर चतुर ढोला ने सौतनों के बीच की नोंक-झोंक का समाधान भी किया और मारुवणी व मालवणी के साथ आनंद से रहने लगा.
…और आखिर में
राजस्थान की लोक कथाओं में खास जगह रखनेवाली ढोला मारू की इस प्रेम कहानी की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आठवीं सदी की इस घटना का नायक ढोला राजस्थान में आज भी एक-प्रेमी नायक के रूप में याद किया जाता है और पति-पत्नी की हर सुंदर जोड़ी को ढोला-मारू की उपमा दी जाती है.
यही नहीं, आज भी लोकगीतों में स्त्रियां अपने प्रियतम को ढोला के नाम से ही संबोधित करती हैं, ढोला शब्द पति शब्द का प्रयायवाची ही बन चुका है. राजस्थान की ग्रामीण स्त्रियां आज भी विभिन्न मौकों पर ढोला-मारू के गीत बड़े चाव से गाती हैं. ‘राजस्थान की प्रेम कथाएं’ शीर्षक से लिखी अपनी किताब में रानी लक्ष्मीकुमारी चुण्डावत ने मारू के गीतों का उनके भावार्थ के साथ उल्लेख किया है़
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