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जनसंख्या : समस्या या समाधान?

बड़ी आबादी बन सकती है विकास का औजार प्रो मुनीर आलम इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ, दिल्ली एक हालिया आकलन के मुताबिक, 2020 तक देश में कामकाजी उम्र के लोगों की आबादी 90 करोड़ तथा नागरिकों की औसत आयु 29 वर्ष हो जायेगी. आगामी दो वर्षों में भारत आबादी के लिहाज से दुिनया मेें दूसरे से […]

बड़ी आबादी बन सकती है विकास का औजार
प्रो मुनीर आलम
इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक
ग्रोथ, दिल्ली
एक हालिया आकलन के मुताबिक, 2020 तक देश में कामकाजी उम्र के लोगों की आबादी 90 करोड़ तथा नागरिकों की औसत आयु 29 वर्ष हो जायेगी. आगामी दो वर्षों में भारत आबादी के लिहाज से दुिनया मेें दूसरे से पहले स्थान पर पहुंच जायेगा. भारत समेत कई देश ऐसे हैं जहां आबादी को समायोजित करने में कठिनाई हो रही है.
एक तरफ देश में रोजगार के अवसरों के सृजन की गति बहुत धीमी है, दूसरी तरफ उपलब्ध संसाधनों पर आबादी का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है. जबकि युवाओं की बड़ी संख्या अर्थव्यवस्था और जीवन-स्तर को ऊपर उठाने की प्रक्रिया का आधार बन सकती है, परंतु इसके लिए समुचित निवेश, प्रशिक्षण और नीतिगत पहल की जरूरत है़ आबादी से जुड़े विभिन्न मसलों पर चर्चा आज के इन डेप्थ में…
अलग-अलग देशों में देशकाल और परिस्थितियों के अनुसार जनसंख्या वृद्धि के अलग-अलग कारण होते हैं. जहां तक भारत में जनसंख्या वृद्धि का सवाल है, तो इसके भी कई कारण हैं, लेकिन वर्तमान में इसका सबसे बड़ा कारण देश की कुल जनसंख्या में 60 प्रतिशत से ज्यादा युवाओं का होना है. जाहिर है, जिस देश में साठ प्रतिशत से ज्यादा प्रजनन आयु समूह के युवा होंगे, वहां आप फर्टिलिटी को कम करने की चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, जनसंख्या बढ़ती रहेगी.
दूसरी बात यह है कि दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले भारत में शादी एक सार्वभौमिक संस्था (यूनिवर्सल इंस्टीट्यूशन) की तरह है, जो जनसंख्या वृद्धि को बढ़ावा देता है. इन दोनों कारणों के चलते देश की जनसंख्या वृद्धि में कमी नहीं आयेगी. लेकिन हमें यह देखना जरूरी है कि यह जनसंख्या वृद्धि किस दर से हो रही है. यह देखना होगा कि भारत में टीएफआर यानी टोटल फर्टिलिटी रेट (कुल प्रजनन दर) क्या है. टीएफआर का अर्थ है कि अपने प्रजनन की अवधि में एक महिला कितने बच्चों को जन्म देती है.
अच्छी बात यह है कि पिछले दो जनगणनाओं से हमने इस बात को देखना शुरू किया है. वर्तमान में भारत में प्रति महिला टीएफआर 2.4 है यानी प्रति भारतीय महिला से औसतन ढाई बच्चों का जन्म होता है और यह दर कम होती जा रही है. कहने का अर्थ यह है कि देश में युवाओं की संख्या ज्यादा है, इसलिए अगले 30-40 साल तक देश की जनसंख्या तो बढ़ती रहेगी, लेकिन उम्मीद है कि जनसंख्या वृद्धि की दर पहले से कम होती जायेगी. जनसंख्या नियंत्रण के लिए जनसंख्या वृद्धि दर का कम होना जरूरी है.
देश की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा गांवों में रहता है, जहां बहुत सी स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है. हालांकि, सरकारों ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता का ध्यान रखा है, लेकिन ग्रामीणों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के मजबूत न होने से उन सुविधाओं तक उनकी पहुंच को लेेकर उनमें कोई जागरूकता का भाव नहीं पनप पाता है.
ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक स्थिति के कमजोर होने का असर प्रजनन दर पर पड़ना तय है, क्योंकि उनमें जनसंख्या नियंत्रण को लेकर कोई बड़ी समझ नहीं होती है. यही वजह है कि पिछले कुछ वर्षों में शहरी क्षेत्रों में रहनेवाले देश के 30 प्रतिशत लोगों की जनसंख्या वृद्धि दर में कमी होती गयी है, लेकिन वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में रहनेवाले 70 प्रतिशत लोगों की जनसंख्या वृद्धि दर में कोई खास फर्क नहीं पड़ा है.
यहां जनसंख्या वृद्धि का एक धार्मिक कारण भी है, जो खासतौर से मुसलमानों में है. मुसलमानाें का मानना है कि बच्चे अल्लाह की देन होते हैं और अल्लाह जब किसी को पैदा करता है, तो उसके साथ उसका रिज्क (उम्र भर का दाना-पानी) भी देता है. मुसलमानों में यह सोच ग्रामीण क्षेत्रों में ही ज्यादा प्रबल है. मगर फिर भी, अहम बात यह है कि मुसलिम प्रजनन दर भी पिछले कुछ वर्षों से नीचे जा रही है. कुल मिला कर कहें, तो अभी हमें चाहिए कि अपने गांवों को सामाजिक-आर्थिक रूप से मजबूत और शैक्षणिक रूप से जागरूक बनाएं, जिससे कि उनमें जनसंख्या नियंत्रण की समझ विकसित हो सके.
यह जरूरी नहीं कि किसी देश में तेजी से जनसंख्या बढ़ रही है, तो इससे बड़ी मुश्किलें खड़ी हो जायेंगी. हां, कुछ मुश्किलें जरूर होती हैं. लेकिन, असल मसला जनसंख्या वृद्धि का नहीं, बल्कि उस जनसंख्या के हिसाब से संतुलित विकास का है. अगर भारी जनसंख्या के बावजूद हम सभी तक सारी मूलभूत सुविधाएं पहुंचाते हैं, तो हमें वह भारी जनसंख्या कहीं से भी मुश्किल में नहीं डाल सकती और यह हमारी सफलता होगी. लेकिन, अगर बहुत कम जनसंख्या होते हुए भी हम सभी तो एक भी सुविधा नहीं पहुंचा पाते हैं, तो यह हमारी विफलता होगी.
इसी सिद्धांत के मद्देनजर अगर हम अपने देश को देखें, तो हमें खुद ही समझ में आ जायेगा कि हमने क्या किया है और अभी हमें क्या करना चाहिए. अगर सरकार अपनी जनसंख्या के ऊपर खर्च करने को तैयार हो, तो एक बड़ी जनसंख्या भी देश के लिए विकास का टूल बन सकती है. लेकिन, इसके लिए हमारे पास बेहद ठोस नीति होनी चाहिए, क्योंकि 130 करोड़ लोगों का सवाल है. हालांकि यह बहुत मुश्किल है, इसलिए जनसंख्या नियंत्रण जरूरी हो जाता है.
अठारहवीं सदी में क्लासिकल इकोनाॅमिक्स के जानकार ब्रिटिश अर्थशास्त्री थामस माल्थस का मानना था कि जनसंख्या वृद्धि मुसीबत लाती है और जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती चली जायेगी, वैसे-वैसे ग्रोथ (विकास) भी कम होती चली जायेगी. माल्थस ने अपने जनसंख्या के सिद्धांत में बताया था कि मानव जनसंख्या ज्यामितीय अाधार पर बढ़ती है, मसलन- 1, 2, 4, 8, 16, 32, 64, 128… लेकिन वहीं, भोजन और प्राकृतिक संसाधन अंकगणितीय आधार पर बढ़ते हैं, मसलन-1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10… यही वजह है कि जनसंख्या और संसाधनों के बीच का अंतर उत्पन्न हो जाता है. कुदरत इस अंतर को पाटने के लिए आपदाएं लाती है, कभी सूखा पड़ता है कभी बाढ़ इसकी मिसालें हैं. इसलिए ऐसा माना जाता रहा कि हर हाल में जनसंख्या पर नियंत्रण होना चाहिए. लेकिन धीरे-धीरे जब हम आगे बढ़े, तो हमने तकनीकी विकास और हरित क्रांति करके माल्थस की अवधारणा को थोड़ा गलत साबित किया.
आज की अवधारण यह है कि अगर जनसंख्या की गुणवत्ता अच्छी हो, उसकी सेहत और शिक्षा अच्छी हो, सरकारें अपनी जनसंख्या के लिए विकास-निवेश की अच्छी नीति अपना रही हों, सभी तक रोजगार उपलब्ध हो, तो बड़ी से बड़ी जनसंख्या भी हमारे लिए कोई समस्या नहीं है. आज बढ़ती जनसंख्या को उस नजरिये से नहीं देखा जाता, जिस नजरिये से 60-70 साल पहले देखा जाता था. आज हमें जनसंख्या की गुणवत्ता बढ़ाने की जरूरत है, ऐसा हुआ तो जनसंख्या अपने-आप नियंत्रित हो जायेगी.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)
दस सबसे अिधक आबादी वाले देश (2016 के संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े)
देश जनसंख्या वार्षिक वृद्धि जनसंख्या घनत्व क्षेत्रफल शहरी आबादी
% व्यक्ति प्रति वर्ग किमी वर्ग किमी %
चीन 1,382,323,332 0.46 147 9,390,784 57.9
भारत 1,326,801,576 1.2 446 2,972,892 32.4
अमेरिका 324,118,787 0.73 35 9,155,898 82.7
इंडोनेशिया 260,581,100 1.17 144 1,812,108 54
ब्राजील 209,567,920 0.83 25 8,349,320 84.2
पाकिस्तान 192,826,502 2.07 250 770,998 38.9
नाइजीरिया 186,987,563 2.63 205 910,802 49
बांग्लादेश 162,910,864 1.19 1,252 130,172 34.9
रूस 143,439,832 -0.01 9 16,299,981 73.2
मेक्सिको 128,632,004 1.27 66 1,943,082 78.3
दस सबसे अिधक आबादी वाले राज्य (2011 की जनगणना के अनुसार)
राज्य जनसंख्या वृद्धि % (2001 से) क्षेत्रफल वर्ग किमी घनत्व
उत्तर प्रदेश 199,812,341 20.23 240,928 829
महाराष्ट्र 112,374,333 15.99 307,713 365
बिहार 104,099,452 25.42 94,163 1,106
पश्चिम बंगाल 91,276,115 13.84 88,752 1,028
आंध्र प्रदेश+तेलंगाना 84,580,777 10.98 275,045 308
मध्य प्रदेश 72,626,809 20.35 308,252 236
तमिलनाडु 72,147,030 15.61 130,060 555
राजस्थान 68,548,437 21.31 342,239 200
कर्नाटक 61,095,297 15.60 191,791 319
गुजरात 60,439,692 19.28 196,244 308

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