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इमामगंज : मांझी पार लगाएंगे नैया या चौधरी की बरकरार रहेगी चौधराहट?

पटना : बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में मध्य बिहार की इमामगंज सीट सबसे हाई प्रफाईल सीट बन गयी है. कारण हैं हम के मुखिया जीतन राम मांझी. मांझी इमामगंज से चुनाव लड़ रहे हैं. उनके प्रतिद्वंद्वी हैं जेडीयू के उदय नारायण चौधरी जिनसे मांझी का छत्तीस का आंकड़ा है मांझी मखदुमपुर सीट के […]

पटना : बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में मध्य बिहार की इमामगंज सीट सबसे हाई प्रफाईल सीट बन गयी है. कारण हैं हम के मुखिया जीतन राम मांझी. मांझी इमामगंज से चुनाव लड़ रहे हैं. उनके प्रतिद्वंद्वी हैं जेडीयू के उदय नारायण चौधरी जिनसे मांझी का छत्तीस का आंकड़ा है मांझी मखदुमपुर सीट के साथ यहां भी ताल ठोक रहे हैं तो उसका एकमात्र कारण है उदय नारायण चौधरी को सदन में प्रवेश करने से रोकना. ध्यान रहे कि मांझी नीतीश से अनबन के बाद उनपर और चौधरी पर ही सबसे ज्यादा बरसे थे. चौधरी ने मांझी के मुख्यमंत्रित्व काल में मांझी को सपोर्ट करने वाले विधायकों को बरखास्त कर दिया था.

दोनों कद्दावर महादलित नेता

दोनों कद्दावर दलित नेता है. इमामगंज सीट की जातीय गोलबंदी को देखा जाए तो इस विधानसभा क्षेत्र में 2.29 लाख मतदाता हैं जिसमें महादलित मतदाताओं की संख्या ज्यादा है. उसके बाद अगर और जातियों की बात करें तो अतिपिछड़ा और पिछड़ी जातियों के वोट भी हैं. मांझी के अच्छी खबर यह है कि यहां मांझी मतदाता लगभग 50 हजार से ज्यादा हैं. राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि इस विधानसभा क्षेत्र में राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा यह नक्सलियों के मिजाज पर भी निर्भर करता है.

राजनीतिक जानकार बताते हैं कि इमामगंज का इलाका चतरा से सटा हुआ है. चतरा का चुनाव हो या इमामगंज का लाल गलियारे के इस इलाके में लाल झंडे को नजरअंदाज करना मुश्किल होता है.

जातीय गोलबंदी भी अहम

अगर जातीय गोलबंदी की बात की जाए तो उदय नारायण चौधरी व मांझी ने कुछ अहम जातियों को अपने पक्ष में गोलबंद कर लिया है. अब इनकी जीत हार फ्लोटिंग वोटर से ही तय होगी या फिर थोक में मिलने वाले किसी खास जातीय समुदाय के वोट जीत हार तय कर सकते हैं.

मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद और अपनी पार्टी का गठन करने के बाद मांझी की लोकप्रियता भी बढ़ी है. यहां तक कि सार्वजनिक मंचों से मांझी कई बार अपने-आपको एनडीए का सबसे लोकप्रिय प्रचारक भी घोषित कर चुके हैं. इसलिए मांझी का इमामगंज सीट जीतना एनडीए के सेहत के लिए भी जरूरी है. वहीं दूसरी ओर उदय नारायण चौधरी इस सुरक्षित सीट से पांच बार विजयी हुए हैं और पिछले चार बार से लगातार वह यहां से विधायक हैं. मांझी एक अन्य सुरक्षित सीट मखदुपुर से भी चुनाव लड रहे हैं जहां से वह पिछली बार चुनाव जीते थे. वहां मांझी का मुकाबला राजद के नेता सुबेदार दास से है.

वहीं इमामगंज में चल रही आम लोगों की चर्चाओं पर नजर डालें तो लोग मानते हैं कि मामला आर-पार की लड़ाई का है. मांझी की पार्टी भाजपा के साथ तालमेल के तहत 21 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और इनमें से चार सीटें मुसलमानों को दी हैं.

आंकड़ों पर गौर करें तो उदय नारायण चौधरी 2010 के विधानसभा चुनाव में राजद के अपने प्रतिद्वंद्वी से मात्र 1200 मतों से विजयी हुए थे और इस बार दोनों दलों के साथ आने से उनके लिए चीजें आसान हुई हैं लेकिन हम के भाजपा के साथ हाथ मिलाने और मांझी के कद ने चीजों को थोडा अनिश्चित बना दिया है. मांझी के एक समर्थक रंजन मांझी ने कहा महादलित मांझी को अपने नेता के रुप में देखते हैं.

मांझी पर एनडीए की खास नजर

जीतनराम मांझी की जीत पर एनडीए की नजर भी बनी हुई है. एनडीए में मांझी को काफी प्रमुखता से लिया जाता है इसका कारण है दलित और महादलित वोटों पर बीजेपी की नजर. यहां चुनावी रणनीति के तहत देखा जाए तो मगध के छह जिलों में 32 सीटों पर चुनाव हो रहा है जिसमें से सात सीटें सुरक्षित हैं. मध्य बिहार की सात सीटों में दो सीटों पर स्वयं मांझी खड़े हैं जिसमें मखदुमपुर और इमामगंज है. गत विधानसभा चुनाव में एनडीए ने 32 में से 27 सीटें हासिल की थी जिसमें जदयू को 18 और बीजेपी को 9 पर विजय श्री हासिल हुई थी. बिहार के दो बड़े दलित चेहरे एनडीए में हैं जिसका फायदा बीजेपी को हासिल होगा, यह सोचकर ही बीजेपी ने पूरी रणनीति तैयार की है.

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