‘ए त$ जैत-पैत के आधार पर वोट नै केकरो भेटतै. एतुका मूल मुद्दा विकासक बात रहत, जे नेता विकासक लेल अपन प्रतिबद्धता देखवत. एई बेर उनकरै वोट मिलत. एई बेर जे चुनाव भ रहल छय, ओहि मॉ कोनो नेता हमरा सबका आपस में बैंट नहि सकइ छय. नेता सब चाहे किछौ कहलय, हमर सबके मानसिकता में कोई परिवर्तन नइ आइब सकय छय. हमरा सबका मूल मुद्दा विकासक बात अइछ.’
यह कहते हुए विनोदानंद मधुबनी शहर के विद्यापति टावर चौक से आगे बढ़ते हैं. उनके साथ कुछ और लोग भी हैं, जो समाहरणालय में काम के लिए आये हैं. इसी दौरान चुनावी चर्चा छिड़ जाती है. बात आगे बढ़ती है, तो भरत कामत बोले पड़ते हैं – विकास तो हो रहा है. पहले हमलोग साइकिल से बेनीपट्टी जाते थे, लेकिन अब मोटरसाइकिल है. गली-कूचा तक की रोड बनी है. इस पर पास में ही पान की दुकान चलानेवाले वैद्यनाथ साह कहते हैं, बहुत नीक चलय छलय. नीक हतै. दरअसल, वैद्यनाथ साह पास के सरकारी ऑफिस में पान देने जा रहे थे. बगल में चल रहे लोग जब चुनावी चर्चा करने लगे, तो वो खुद को रोक नहीं सके. बोले, विकास ही मधुबनी का मुद्दा होगा. वोट काम के आधार पर ही मिलेगा.
नेपाल का प्रभाव बिहार पर
विधान परिषद के पूर्व सभापति ताराकांत झा ने विद्यापति टावर चौक पर पार्क बनवाया था. उस समय कहा गया था कि यहां पर शहर के प्रबुद्ध लोग शाम में बैठेंगे, लेकिन बनने के साथ ही इसके दुर्दिन शुरू हो गये. टॉवर के अंदर महाकवि विद्यापति की मूर्ति लगी है, लेकिन इसकी सफाई महीनों से नहीं हुई लगती है. घास ने झाड़ियों का रूप ले लिया है. टावर में लगी घड़ी बंद है. इसके चारों ओर रिक्शे व ढेले लगे हैं. सामने नगर थाना है, जिसे 2013 में उपद्रवियों ने फूंक दिया था. पास में रहिका सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक का परिसर है. यहां राधारमण चौधरी पांच-छह अन्य लोगों के साथ चुनावी गणित पर बात कर रहे हैं. परिसर में खड़ी मोटरसाइकिलों का सहारा लेकर खड़े सभी लोग एक साथ बोल पड़ते हैं -वोट का आधार, तो विकास ही बनेगा इस बार. जाति की बात भले ही राज्य में हो रही है, लेकिन मिथिलांचल के मधुबनी में इसका प्रभाव नहीं है. हां, हमारी स्थानीय समस्याओं पर जनप्रतिनिधियों को ध्यान देना होगा. बॉर्डर से लगनेवाला जिला है, लेकिन नेपाल में जो हालात चल रहे हैं, उससे आपसी विश्वास टूटा है. अब नेपाल जाना मुश्किल है. ये इलाका आपदा प्रभावित भी है. यहां बाढ़ की समस्या रहती है. पानी नेपाल में बरसता है, लेकिन परेशानी मिथिलांचल व कोसी के इलाके में होती है. यहां के बड़े भू-भाग में सालों भर पानी रहता है. इससे निजात की दिशा में कदम उठने चाहिए. इन बातों पर अरुण कुमार भगत, अजय कुमार व विवेकानंद झा सहमति जताते हैं.
जातीय समीकरण पर प्रत्याशी तय
मधुबनी की दस सीटों पर आखिरी चरण में वोटिंग होनी है. प्रमुख गंठबंधनों के प्रत्याशी घोषित होने से चुनाव का माहौल अभी से बनने लगा है. लोग भले विकास के मुद्दे पर वोट देने की बात करते हैं, लेकिन राजनीतिक दलों ने जातीय समीकरण को देखते हुए प्रत्याशी उतारे हैं. मधुबनी सीट सूढ़ी बाहुल्य है, तो राजनगर सुरक्षित सीट पर केवट, कुरमी, ब्राह्मण व भूमिहार वोटरों की संख्या ज्यादा है. झंझारपुर व बेनीपट्टी का इलाका ब्राह्मण बाहुल्य है, जबकि फुलपरास व बाबूबरही इलाके में यादव वोटरों की अधिकता है. लौकही व खजाैली में व्यापारी वर्ग प्रधान भूमिका में हैं. हरलाखी में भूमिहार व बिस्फी सीट पर मुसलिम वोट निर्णायक साबित होंगे.
मुद्दों पर हो रही गोलबंदी
मिठाई की दुकान चलानेवाले दानी मंडल के हाथ तेजी से चल रहे हैं. वेऑर्डर के डिब्बे पैक करने में जुटे हैं. उनका सहयोग बजरंगी यादव कर रहे हैं. दानी कहते हैं कि मेरी उम्र 26 साल हो गयी, लेकिन अभी तक वोट नहीं दिये हैं. इस बार जरूर वोट डालेंगे. वे एक पार्टी का समर्थन करते हैं, इसके साथ विकास की बात कहना नहीं भूलते. दानी से उलट बजरंगी कहते हैं कि हम तो गरीबों की बात करनेवालों का साथ देंगे? अभी जब हम कमाने के लिए जाते हैं, तो हमारा पेट नहीं भर रहा है. बजरंगी की बात काटते हुए अधेड़ महेंद्र कामत एक ही सांस में विकास की परिभाषा समझाने लगते हैं. केंद्र व राज्य सरकार के काम पर नंबर भी देते हैं. कहते हैं, कई चुनावों से वोट देते आ रहे हैं. इस बार भी देंगे. डंके की चोट पर देंगे.
मधुबनी रेलवे स्टेशन के सामने की सड़क भीड़-भाड़ वाली है. दिन में यहां से पैदल गुजरने में भी परेशानी होती है. सड़क पर चारों ओर अतिक्रमण नजर आता है. स्टेशन परिसर में ज्यादा चहल-पहल नहीं रहती है. ट्रेनों के आने के समय गहमा-गहमी बढ़ती है. फल खरीद रही रूपा झा बीए पार्ट टू की छात्र हैं. चुनाव का नाम लेते ही बोल पड़ती हैं, हम पहली बार वोट देंगे. बस हमारी एक ही चाहत है कि सरकार को उच्च शिक्षा के लिए कुछ और करना चाहिए. महिला कॉलेज रोड की रहनेवाली डॉ सुप्रिया कुमारी प्लस टू की छात्रओं को ट्यूशन पढ़ाती हैं. कहती हैं, अभी बहुत खराब स्थिति है. मुजफ्फरपुर के एलएस कॉलेज में पिता शिक्षक थे और हमारे पति भी महिला कॉलेज में हैं. अभी उच्च शिक्षा की स्थिति ठीक नहीं है. इस पर आनेवाली सरकार को ज्यादा से ज्यादा काम करना चाहिए.
विकास की बात और चीनी मिलें बंद
रांटी गांव में षष्ठिनाथ झा की ग्राम विकास परिषद नाम की संस्था चलती है. वे इसके सचिव हैं. कहते हैं, दिल्ली से कई पत्रकार आये और यहां के बारे में जान कर गये. अब आप लोग आये हैं. खड़ी बोले में बोलते-बोलते वे मैथिली में बात करने लगते हैं. कहते हैं, एहिठां के जे परिस्थिति छय. ये इंडो नेपाल खुला बॉर्डर छय. एहिके नाते इहां चाइल्ड लेबर (बाल मजदूरी) व मानव तस्करी के बहुत संभावना छय. इसके बाद फिर खड़ी बोली पर आते हैं. कहते हैं, सरकार कितना भी प्रयास करती है, लेकिन कोई हल नहीं निकल रहा है. जिले में आपदा से निबटने की भी कोई सक्षम व्यवस्था नहीं है. आपदा से पहले जो तैयारी होनी चाहिए, वह भी ठीक से नहीं हो पाती है. बाजार में खरीदारी के लिए निकले संजीव प्राइवेट नौकरी करते हैं. कहते हैं, यहां से पलायन भी बड़े पैमाने पर होता है. लोग बटाई पर जमीन देने से डरते हैं, क्योंकि उन्हें बटाईदार कानून का डर सताता है. इसीलिए उपजाऊ जमीन पर पेड़ लगाये जा रहे हैं. संजीव के साथ जा रहे कुंदन सवाल करते हैं, नेता क्या हैं? नेता ऐसे लोग हैं, जो लोगों को जाति की खांई में बांट देते हैं. अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं और गांव के लोग आपस में लड़ने पर उतारू हो जाते हैं. सकरी चौक के रहनेवाले मिथिलेश कहते हैं कि जिले की तीन चीनी मिलें बंद हैं. विकास की बात हो रही है, लेकिन मिलों को खोलने के लिए कोई नहीं बोल रहा? ये कैसे होगा. क्या मिलें अपने आप चालू हो जायेंगी. बैकवर्ड फारवर्ड से काम नहीं चलनेवाला है.
मधुबनी कलाकारों के ट्रेनिंग की कब होगी व्यवस्था
मधुबनी की पहचान यहां की पेंटिंग से भी है. शहर व इससे आसपास के गांवों में मधुबनी पेंटिंग के कई इंस्टीट्यूट चलते हैं, जहां बच्चों को पेंटिंग बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है. रांठी, जितवारपुर, मंगरौनी व तिलकवार ऐसे गांव हैं, जहां पर मधुबनी पेंटिंग करनेवाले कलाकार बड़े पैमाने पर हैं. सेवा यात्र के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पद्मश्री महासुंदरी देवी से मिलने के लिए रांठी गांव आये थे. इस दौरान उन्होंने सौराठ में मधुबनी पेंटिंग का इंस्टीट्यूट बनाने की घोषणा की थी. कुछ दिन अधिकारियों ने चक्कर भी लगाये, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ. षष्ठिनाथ झा कहते हैं कि अभी भी बाजार की समस्या बनी हुई है. सरकार व्यवस्था करती, तो बिचौलियों से मुक्ति मिलती.
