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एकला चल झामुमो ने संभाला मोरचा

मोरचा संभालने के लिए झामुमो की दूसरी पीढ़ी तैयार आनंद मोहन रांची : झारखंड विधानसभा चुनाव में राजनीतिक उलट-फेर और परिघटनाओं ने नेताओं-दलों के लिए नयी चुनौतियां पैदा की. राज्य में डेढ़ वर्ष पूर्व सियासत की नयी कहानी का प्लॉट तैयार हुआ था. कांग्रेस-झामुमो दोस्त बने. नयी दोस्ती ने वर्तमान विधानसभा में तीसरी सरकार को […]

मोरचा संभालने के लिए झामुमो की दूसरी पीढ़ी तैयार

आनंद मोहन

रांची : झारखंड विधानसभा चुनाव में राजनीतिक उलट-फेर और परिघटनाओं ने नेताओं-दलों के लिए नयी चुनौतियां पैदा की. राज्य में डेढ़ वर्ष पूर्व सियासत की नयी कहानी का प्लॉट तैयार हुआ था. कांग्रेस-झामुमो दोस्त बने. नयी दोस्ती ने वर्तमान विधानसभा में तीसरी सरकार को जन्म दिया. हेमंत सोरेन सरकार की बुनियाद लोकसभा-विधानसभा चुनाव के शर्तो पर तैयार हुई. तय हुआ कि दोनों दल लोकसभा-विधानसभा का चुनाव साथ लड़ेंगे.

लोकसभा में दोनों ही दल साथ लड़े भी, लेकिन दोस्ती की बुनियाद में लगे सीमेंट-गारे भरभरा गये. आठ महीने बाद ही दोनों दलों के रास्ते अलग-अलग हो गये. कांग्रेस ने राजद-जदयू के साथ नयी जोड़ी बनायी, लेकिन झामुमो अकेला खड़ा था. बदली हुई परिस्थिति में मोरचा लेने के लिए झामुमो की दूसरी पीढ़ी तैयार थी. सरकार चलाते हुए हेमंत सोरेन ने दल और बाहर के राजनीतिक गलियारे में अपनी कद-काठी बढ़ा ली थी. झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन के रहते हुए प्रत्यक्ष रूप से कमान हेमंत सोरेन के हाथों में है.

लोकसभा चुनाव में 25-30 वर्षो से साथ रहे नेताओं को भाजपा ने झटक लिया. हेमलाल मुरमू, साइमन मरांडी, विद्युतवरण महतो जैसे ताकतवर लीडर चले गये. झामुमो ने लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बीच दुमका और राजमहल सीट बचा ली. झामुमो के नये नेतृत्व के लिए यह पहली चुनौती थी. हवा का रूख विपरीत रहने के बाद भी कश्ती घाट लगी.

विधानसभा चुनाव के दौरान भी दल-बदल की आंधी चली. 40 वर्षो से साथ रहे साइमन मरांडी जैसे नेता भाजपा के खेमे में चले गये. झामुमो के गढ़ संताल परगना में झामुमो को कमजोर करने की रणनीति में विरोधी लगे थे. लेकिन हेमंत सोरेन ने तरीके से मोरचाबंदी की. झामुमो ने भी धीरे-धीरे मजबूत दावेदारों को अपने खेमे में कर लिया. भाजपा-आजसू गंठबंधन से बिदके नेताओं को अपने पाले में कर चुनावी समीकरण को मजबूत करने का प्रयास किया. एक -एक सीट पर झामुमो ने पूरी रणनीति के साथ गोटियां बिछायी.

अपने पुराने साथी स्टीफन मरांडी की घर वापसी करायी. स्टीफन की वापसी कर संताल में अपनी मजबूती का मैसेज भी दिया. स्टीफन के साथ जमीनी पकड़ रखने वाले अनिल मुरमू को लाकर लिट्टीपाड़ा सीट से साइमन की मुश्किलें बढ़ा दी. तृणमूल कांग्रेस के चमरा लिंडा को भी तीर-घनुष थाम दिया. निर्दलीय विधायक हरिनारायण राय को अपने पाल में कर लिया. हुसैनाबाद से दशरथ सिंह को जदयू से झामुमो में लाकर टिकट दिया. यही नहीं झामुमो ने झाविमो घर भी सेंधमारी की.

झाविमो के जोबा मांझी, कृष्णा गागराई जैसे नेताओं को चुनावी साथी बना लिया. भाजपा ने दल-बदल की जिस आंधी की शुरुआत की थी, उसे झामुमो ने न केवल रोका, बल्कि ताकतवर नेताओं को अपने पाले में किया. पूर्व सांसद घुरन राम, दिनेश षाडंगी, नियेल तिर्की जैसे नेता झामुमो के साथ आये. हालांकि चुनावी हवा का रुख भांपना अभी आसान नहीं है, पर इतना स्पष्ट है कि झामुमो की दूसरी पीढ़ी ने राजनीति का रण कौशल बखूबी समझ लिया. राजनीति को परख-समझ लिया है. दावं पर दावं चलने का हुनर भी आ गया है. चुनावी अटकलों का दौर अब शुरू होगा, लेकिन इतना साफ है कि चुनाव में अकेले उतरने वाला झामुमो अपने दम पर एक कोण जरूर बनायेगा.

Prabhat Khabar Digital Desk
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