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नए ज़माने के डेटिंग एप्स आपके रिश्तों पर कैसे डाल रहे हैं असर

<figure> <img alt="रिश्ते, डेटिंग ऐप्स" src="https://c.files.bbci.co.uk/10D70/production/_110667986_1.png" height="549" width="976" /> <footer>Puneet Barnala/BBC</footer> </figure><p>मैच… चैट… डेट. – यानी पहले एक-दूसरे को पंसद करो, फिर बात करो और फिर मुलाक़ात. </p><p>वो भी फ़ोन पर उंगलियां चलाते हुए कुछ ही देर में. </p><p>गए वो ज़माने जब ये सब करने में महीनों-सालों लगते थे. किसी से बात करने और डेट […]

<figure> <img alt="रिश्ते, डेटिंग ऐप्स" src="https://c.files.bbci.co.uk/10D70/production/_110667986_1.png" height="549" width="976" /> <footer>Puneet Barnala/BBC</footer> </figure><p>मैच… चैट… डेट. – यानी पहले एक-दूसरे को पंसद करो, फिर बात करो और फिर मुलाक़ात. </p><p>वो भी फ़ोन पर उंगलियां चलाते हुए कुछ ही देर में. </p><p>गए वो ज़माने जब ये सब करने में महीनों-सालों लगते थे. किसी से बात करने और डेट पर चलने के लिए कहने की हिम्मत जुटानी पड़ती थी. </p><p>अब तकनीक ने दुनिया को इतना तेज़ बना दिया है कि किसी ख़ास को ढूंढने में भी पल भर लगता है. आपके एक उंगली पर हां या ना निर्भर करता है. </p><p>और ये सब हो रहा है नए ज़मान के ‘डेटिंग एप्स’ से.</p><figure> <img alt="रिश्ते, डेटिंग ऐप्स" src="https://c.files.bbci.co.uk/15B90/production/_110667988_3.png" height="549" width="976" /> <footer>Puneet Barnala/BBC</footer> </figure><h1>डेटिंग एप्स </h1><p>देखने में तो ये साधारण से ऐप होते हैं. जो आपके मोबाइल में इंटरनेट की मदद से चल रहे हैं.</p><p>लेकिन ये ज़िंदगियों पर ख़ास असर डालते हैं, क्योंकि ये एक इंसान को उसकी पसंद के दूसरे इंसान से जोड़ने का काम करते हैं. जहां लोग एक दूसरे से फ्लर्ट करते हैं, बातचीत करते हैं और प्यार करने लगते हैं और कुछ शादी भी कर लेते हैं.</p><p>ये ऐप्स लोकेशन बेस्ड भी होते हैं, यानी वो आपके आस-पास ही आपके लिए साथी को ढूंढते हैं.</p><p>टिंडर भारत में ख़ासा लोकप्रिय डेटिंग ऐप है. इसके अलावा बंबल, हैप्पन, ट्रूली मैडली, ओके क्यूपिड, ग्राइंडर जैसे तमाम ऐप लोग आज़मा रहे हैं.</p><p>वैसे तो अधिकतर ऐप फ्री में इस्तेमाल किए जा सकते हैं, लेकिन ये पैसे देकर मैच की संभावनाओं को बढ़ाने का दावा भी करते हैं.</p><p>ये ऐप आपका मैच ढूढ़ने के लिए ना सिर्फ़ आपकी लोकेशन और उम्र को ध्यान में रखते हैं, बल्कि आपकी सेक्शुअल ओरिएंटेशन के हिसाब से लोगों को आपसे मिलवाते हैं.</p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-43214476?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">स्पीड डेटिंग क्यों कर रहे हैं भारतीय?</a></p><figure> <img alt="रिश्ते, डेटिंग ऐप्स" src="https://c.files.bbci.co.uk/7518/production/_110667992_5.png" height="549" width="976" /> <footer>Puneet Barnala/BBC</footer> </figure><h1>इसके ज़रिए कैसे मिल रहे लोग</h1><p>24 साल की मीनाक्षी अलग-अलग शिफ्ट में काम करती हैं. काम के लिए काफ़ी ट्रेवल भी करती हैं.</p><p>वो कहती हैं कि उनके पास वक़्त ही नहीं है कि वो बाहर जाकर लोगों से मिलें. </p><p>उन्होंने टिंडर डाउनलोड किया, जहां उन्होंने कई सारे लड़कों की प्रोफ़ाइल देखी.</p><p>टिंडर में एक स्वाइपिंग टूल होता है. आपको कोई पसंद आए तो राइट स्वाइप कीजिए या अगर पसंद ना आए तो लेफ्ट स्वाइप कीजिए. अगर दोनों एक दूसरे को राइट स्वाइप करते हैं यानी दोनों पक्ष एक दूसरे को पंसद कर लें तो ये हुआ एक &quot;मैच.&quot;</p><p>टिंडर के मुताबिक़ उनके ज़्यादातर यूज़र 18 से 30 साल की उम्र के बीच के होते हैं. </p><p>टिंडर की वेबसाइट का दावा है कि दुनियाभर में हर हफ्ते 10 लाख डेट्स इसके ज़रिए होती हैं. अब तक 30 अरब से ज़्यादा लोग इसके ज़रिए मैच हुए हैं, यानी उन्होंने एक-दूसरे को पसंद किया है. और 190 से ज़्यादा देशों में लोग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं.</p><p>भारत में टिंडर की जनरल मैनेजर तरु कपूर ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि पढ़ाई और काम में व्यस्तता के चलते आज-कल के युवाओं का सर्कल बहुत छोटा हो गया है. उनके कुछ गिने-चुने दोस्त होते हैं. डेटिंग ऐप का चलन बढ़ने का कारण ही यही है कि लोग नए लोगों से मिलना चाहते हैं, अपनी पसंद के लोगों से मिलना चाहते हैं, जिनसे उनके विचार मिलते हों और पसंद मिलती हो.</p><p>मीनाक्षी ने कई और डेटिंग ऐप्स भी आज़माए. उनका कहना है कि वो इन डेटिंग ऐप्स के ज़रिए कुछ ऐसे लोगों से मिलीं, जिनसे शायद वो कभी नहीं मिलती, उनके रास्ते शायद कभी टकराते नहीं. </p><p>इसलिए उन्हें लगता है कि डेटिंग ऐप्स ने उनके लिए इस दायरे को बढ़ा दिया है.</p><p>तरु कपूर कहती हैं कि पहले लोग जहां पैदा हुए, स्कूल गए, वहीं सारी ज़िंदगी रहते हैं. लेकिन अब नई पीढ़ी, पढ़ाई और नौकरी के लिए अलग-अलग शहरों में जाती है. वहां वो अपना नया सर्कल बढ़ाना चाहते हैं. आज हर किसी के पास स्मार्टफोन है. लोग अपने इस पर्सनल डिवाइस के ज़रिए सब काम करने लगे हैं. आज का युवा अपनी ज़िंदगी पर कंट्रोल भी चाहता है और अपनी ज़िम्मेदारी भी लेता है. </p><p>उनका ये भी कहना है कि जैसे-जैसे औरतों की शिक्षा और फाइनेंशियल इंडिपेंडेंस बढ़ती जा रही है. अब वो अपने करियर, फ़ैमिली, दोस्त-प्यार-शादी के बारे में ख़ुद फ़ैसले लेना चाहती हैं. </p><p>वहीं रिलेशनशीप एक्सपर्ट निशा खन्ना कहती हैं कि आजकल जब तक युवा अपना करियर सेट करते हैं वो 30-35 साल के हो जाते हैं. तब तक वो शादी नहीं करते और कमिटमेंट में नहीं जाना चाहते. लेकिन वो चाहते हैं कि कोई उनके साथ हो, जिसके साथ वो घूम सकें .</p><p>वो कहती हैं कि डेटिंग ऐप्स पर कई लोग ऐसा रिश्ते ढूंढते हैं, जो लॉन्ग टर्म ना हों. टिंडर और बंबल पर लोग सेक्शुएल रिलेशन के लिए जाते हैं. और ऐसे शार्ट टर्म रिलेशन के लिए जाते हैं जिसमें इमोशनल अटैचमेंट ना हो. </p><p>26 साल के रवि भी डेटिंग ऐप पर हैं. उनके मुताबिक़ वो सिर्फ़ हुकअप्स के लिए डेटिंग ऐप्स पर जाते हैं. यानी वो कोई सीरियस रिलेशन नहीं देख रहे होते हैं, उन्हें केजुअल सेक्स के लिए पार्टनर चाहिए होता है. उन्होंने कुछ लड़कियों के साथ वन नाइट स्टैंड भी किया है.</p><p>वहीं शिवानी कहती हैं कि जिन लड़कों से वो डेटिंग ऐप्स पर मिली उनसे अपनी सेक्शुएलिटी के बारे में खुल कर बात कर पाई. वो कहती हैं कि हो सकता है बाहरी दुनिया में उन्हें इसपर कोई जज करे, लेकिन डेटिंग ऐप्स पर लोग खुलकर अपनी सेक्शुएल डिज़ायर्स के बारे में एक-दूसरे से बात कर पाते हैं. </p><p>रिलेशनशीप एक्सपर्ट निशा खन्ना कहती हैं, &quot;पहले रिश्तों में महिलाएं ज़्यादा कॉम्प्रोमाइज़ करती थीं. वो ज़्यादा एडजस्टमेंट करती थीं. लेकिन अब ज़माना बदल गया है. अब महिलाएं अपने अधिकारों को लेकर ज़्यादा सजग हैं. अब वो काम करने लगी हैं तो उनके पास ज़्यादा एक्पोज़र है पहले महिलाएं ज़्यादा डेटिंग ऐप इस्तेमाल नहीं करती थी, पुरुष ज़्यादा करते थे. लेकिन अब महिलाएं भी अपनी सेक्शुअल इच्छाओं के बारे में बात कर रही हैं, अपनी पसंद-नापसंद के बारे में बात कर रही हैं, ऑर्गेज़्म के बारे में बात कर रही हैं. कुछ महिलाएं शादी ना करके सिंगल रहना चाहती हैं, पहले लव मैरिज का कल्चर भी नहीं था.&quot;</p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50983703?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">जिस लड़की को सेक्स की चाहत नहीं उसे कैसा परिवार चाहिए? </a></p><figure> <img alt="रिश्ते, डेटिंग ऐप्स" src="https://c.files.bbci.co.uk/C338/production/_110667994_gettyimages-1140423077.jpg" height="650" width="976" /> <footer>Rafael Henrique/SOPA Images/LightRocket via Getty</footer> </figure><p><strong>'</strong><strong>फ़ेमनिस्ट </strong><strong>डेटिंग ऐप'</strong></p><p>हालांकि इन ऐप्स को इस्तेमाल करने वाले अधिकतर पुरुष हैं. ‘वू’ नाम के डेटिंग ऐप ने 2018 में एक अध्ययन किया था, जिसमें पाया गया था कि इन डेटिंग ऐप्स पर जेंडर गैप बहुत ज़्यादा है. स्टडी के मुताबिक़ भारत में डेटिंग ऐप इस्तेमाल करने वाले कुल लोगों में सिर्फ़ 26 प्रतिशत के क़रीब ही महिलाएं हैं. यानी कहने का मतलब ये है कि भारत में हर एक महिला के लिए यहां तीन पुरुष हैं.</p><p>लेकिन डेटिंग कंपनियों का मानना है कि महिलाओं की वजह से डेटिंग ऐप चल रहे हैं. इसलिए वो चाहते हैं कि ज़्यादा से ज़्यादा महिलाएं इन ऐप्स को इस्तेमाल करें. </p><p>तरु कपूर कहती हैं कि इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों में पुरुष 70 प्रतिशत हैं और महिलाएं सिर्फ़ 30 प्रतिशत. दूसरी बात आज की पीढ़ी ने शादी की उम्र को बढ़ा दिया है, लेकिन लड़कों के मुक़ाबले लड़कियों की शादी जल्दी हो जाती है. लिहाज़ा सिंगल पूल में लड़के ज़्यादा हैं, लड़कियां कम. हालांकि वो कहती हैं कि &quot;लड़कियों को डेटिंग ऐप्स तक लाने और यहां उन्हें ज़्यादा कंफ़र्टेबल करने की हम पूरी कोशिश कर रहे हैं.&quot; </p><p>तरु के मुताबिक़ उन्होंने देखा है कि लड़किया लड़कों के मुक़ाबले टिंडर पर दोगुना वक़्त बिताती हैं. चाहे वो स्वाइप करने में हो या चैट करने में. तरु के मुताबिक़ औरते चाहती हैं कि उनकी ज़िंदगी में जो भी हो, उनपर उनका ज़्यादा कंट्रोल हो, लेकिन पितृसत्तातमक समाज की वजह से असल दुनिया में उनके पास वो कंट्रोल कम है.</p><p>डेटिंग ऐप्स को लड़कियों के लिए ज़्यादा सहज बनाने के मक़सद से व्हिटनी वोल्फ हर्ड ने भी 2014 में बंबल ऐप शुरू किया. वोल्फ हर्ड बंबल को ‘फेमनिस्ट डेटिंग ऐप’ बताती हैं.</p><p>भारत में भी कई लोग अब इसे इस्तेमाल कर रहे हैं. इस ऐप की ख़ासियत ये है कि अगर एक लड़का और लड़की एक दूसरे को पसंद करते हैं यानी मैच होते हैं तो लड़की ही लड़को को पहले मैसेज कर सकती है, लड़का नहीं. यानी बातचीत शुरू करने का राइट लड़की के पास है. </p><p>बंबल की एक और ख़ास बात ये है कि यहां तीन तरह के विकल्प हैं. <strong>डेट, </strong><strong>बीएफ़एफ़ </strong><strong>और बिज़.</strong> ऐप डाउनलोड होने के बाद आपसे पूछा जाता है कि आप किस तरह का रिश्ता चाह रहे हैं – किसी को डेट करना चाहते हैं? एक अच्छा दोस्त चाहते हैं? या करियर की संभावनाओं के लिए नेटवर्क बढ़ाना चाहते हैं? इसके हिसाब से आप तीनों में से एक विकल्प चुन सकते हैं. </p><p>ओके क्यूपिड नाम के डेटिंग ऐप में भी महिलाओं के लिए ख़ास कोशिशें की गई हैं. जैसे साइन अप करते हुए महिलाओं से कई तरह के सवाल पूछे जाते हैं – जैसे क्या वो शादी के बाद भी काम करना जारी रखना चाहती हैं और वो अपने पार्टनर से इसको लेकर कैसा जवाब चाहती हैं, और वो #MeToo मूवमेंट को कैसे देखती हैं? </p><p>ऐप का दावा है कि संभावित मैच इन सवालों का जो जवाब देते हैं, उसके हिसाब से महिलाओं के लिए उन्हें फ़िल्टर किया जाता है.</p><p>वहीं ट्रूली मैडली डेटिंग ऐप दावा करता है कि वो सीरियस डेटिंग चाहने वाले लोगों को मिलवाता है. </p><p>ट्रूली मैडली के सीईओ स्नेहिल खनोर ने बीबीसी से बातचीत में कहा, &quot;हमारे ज़्यादातर यूज़र 25 साल से ऊपर हैं. कुल 50 लाख यूज़र्स हैं. युवा अब अरेंज मैरिज सेटअप में नहीं रहना चाहते. ट्रेडिशनल मैट्रिमोनियल पर नहीं जाना चाहते, क्योंकि वो भी एक तरह से अरेंज मैरिज ही है. केजुअल हुकअप डेटिंग ऐप पर तो आप प्यार नहीं ढूंढ सकते.&quot;</p><p>प्रिया भी अपने पति से डेटिंग ऐप के ज़रिए ही मिली थी. दोनों की शादी को दो साल हो गए हैं और दोनों साथ में काफ़ी ख़ुश हैं. दोनों ही छोटे शहर से हैं. प्रिया के पति लखनऊ से और प्रिया वाराणसी की रहने वाली थीं. </p><p>स्नेहिल खनोर कहते हैं कि छोटे शहरों में भी डेटिंग ऐप्स का इस्तेमाल बढ़ रहा है. </p><p>वहीं तरु कपूर भी कहते हैं कि छोटे शहरों में टिंडर इस्तेमाल करने का ग्रोथ रेट बड़े शहरों से कहीं ज़्यादा है.</p><figure> <img alt="रिश्ते, डेटिंग ऐप्स" src="https://c.files.bbci.co.uk/4E08/production/_110667991_4.png" height="549" width="976" /> <footer>Puneet Barnala/BBC</footer> </figure><h1>संभावनाएं बढ़ाने के लिए पैसे खर्च कर रहे लोग </h1><p><a href="https://www.statista.com/outlook/372/119/online-dating/india">ऑनलाइन मार्केट रिसर्चर स्टेटिस्टा </a>के मुताबिक़ भारत में 2020 में दो करोड़ पच्चीस लाख लोग ऑनलाइन डेटिंग ऐप इस्तेमाल कर रहे हैं. अनुमान है कि 2024 तक ये यूज़र दो करोड़ 68 लाख हो जाएंगे. </p><p>फ़िलहाल यूज़र 1.6% की दर से बढ़ रहे हैं और 2024 तक ये दर 1.9% होने का अनुमान है. </p><p>अच्छा मैच मिलने की संभावना को बढ़ाने के लिए इनमें से कई लोग डेटिंग ऐप्स पर पैसा भी ख़र्च करते हैं. </p><p>इससे कंपनियों को अच्छा ख़ासा मुनाफ़ा हो रहा है. स्टेटिस्टा के मुताबिक़ 2020 में ऑनलाइन डेटिंग मार्केट की आमदनी छह करोड़ तीस लाख अमरीकी डॉलर रही है. औसतन एक यूज़र से ये मार्केट क़रीब 199 रुपए कमा रहा है. </p><p>स्टेटिस्टा की <a href="https://www.statista.com/outlook/372/119/online-dating/india">रिपोर्ट</a> में अनुमान लगाया गया है कि अगले चार साल में इस मार्केट की आमदनी सालाना 5.2% की दर से बढ़ेगी. जिससे 2024 तक ये बाज़ार सात करोड़ सत्तर लाख अमरीकी डॉलर का हो जाएगा. </p><p>टिंडर की तरु कपूर कहती हैं कि एशिया में भारत टिंडर का सबसे बड़ा मार्केट है. उनका कहना है कि भारत में आज 18 से 30 के बीच 10 करोड़ लोग हैं, जो सिंगल हैं और उनके पास स्मार्ट फोन हैं. </p><p>उनका कहना है कि ये तादात बढ़ेगी क्योंकि हर साल कई लोग इस एज ग्रूप में जुड़ जाते हैं.</p><p>स्नेहिल के मुताबिक़ हर महीने 10 लाख लोग 18 साल के हो रहे हैं, इसलिए डेटिंग ऐप का मार्केट बहुत बड़ा है.</p><p>स्नेहिल के मुताबिक़ जहां भी इंटरनेट पहुंच रहा है, वहां डेटिंग ऐप्स का इस्तेमाल बढ़ रहा है. डेटिंग ऐप्स की ज़्यादातर कमाई दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों से होती है. लेकिन अब इंदौर, लखनऊ जैसे शहरों में भी डेटिंग ऐप्स का इस्तेमाल बढ़ रहा है. </p><p>ऐप्स पर लड़कियों की मौजूदगी को बढ़ाने की भी कोशिशें की जा रही हैं. इसके लिए मार्केटिंग का सहारा लिया जा रहा है. </p><figure> <img alt="रिश्ते, डेटिंग ऐप्स" src="https://c.files.bbci.co.uk/182A0/production/_110667989_6.png" height="549" width="976" /> <footer>Puneet Barnala/BBC</footer> </figure><h1>समलैंगिकों के लिए डेटिंग ऐप्स ज़्यादा मददगार कैसे</h1><p>इनाया बाइसेक्सुअल हैं, यानी वो लड़कों और लड़कियों दोनों की ही तरफ़ मानसिक या शारीरिक रूप से आकर्षित होती हैं. </p><p>वो कहती हैं, &quot;टिंडर पर जब मैं अपनी प्रोफाइल बना रही थी तो उसमें ऑप्शन था कि आप पुरुषों की प्रोफाइल देखना चाहती हैं, औरतों की देखना चाहती हैं, या दोनों की? तो मैंने दोनों वाला ऑप्शन चुना.&quot;</p><p>टिंडर में आप अपना सेक्शुएल ओरिएंटेशन भी बता सकते हैं. उसमें इसके लिए कई सारे विकल्प होते हैं, जैसे – स्ट्रेट, गे, लेस्बियन, बाइसेक्सुअल, एसेक्सुअल, डेमीसेक्सुअल, पैनसेक्सुअल, क्वीर, बाई-क्यूरियस, एरोमैंटिक.</p><p>इनाया को एक लड़की पसंद भी आई हैं. दोनों एक-दूसरे से बातचीत कर रहे हैं और बाहर मिलने के बारे में सोच रहे हैं. </p><p>समलैंगिकों के लिए ख़ास तौर पर अलग से कई डेटिंग ऐप्स भी हैं. ग्राइंडर इन्हीं में से एक है. इस ऐप का दावा है कि 192 देशों में लोग इसके ज़रिए जुड़ रहे हैं. </p><p>ऐसे ही ‘ब्लूड इंडिया’ एक गे डेटिंग ऐप है, जिसका दावा है कि उसके 20 से 30 प्रतिशत यूज़र छोटे शहरों के रहने वाले लोग हैं और यूज़र सात भारतीय भाषाओं – हिंदी, मलयालम, तमिल, तेल्गू, कन्नड़, मराठी और पंजाबी में ऐप इस्तेमाल कर सकते हैं. </p><p>दिल्ली में रहने वाले गौरव उत्तराखंड के एक छोटे से गांव से आते हैं. दिल्ली में वो डांस टीचर हैं. वो ख़ुद को गे मेल मानते हैं. </p><p>उन्होंने अपने घर वालों को इस बारे में कुछ नहीं बताया है. वो तीन साल पहले दिल्ली आए थे और तबसे गे डेटिंग ऐप – ग्राइंडर इस्तेमाल कर रहे हैं.</p><p>वो बताते हैं कि इसके ज़रिए वो अपने बॉयफ्रेंड से मिले. कई महीनों दोनों साथ रहे, लेकिन फिर किसी वजह से दोनों को अलग होना पड़ा.</p><p>ट्रूली मैडली के सीईओ स्नेहिल खनोर कहते हैं कि एलजीबीटी कम्युनिटी के लिए बाहरी दुनिया में दोस्त या पार्टनर ढूंढना ज़्यादा मुश्किल होता है. इसी को ध्यान में रखते हुए ‘डेल्टा’ ऐप में सिर्फ डेटिंग ही नहीं, बल्कि नेटवर्किंग बढ़ाने और कमुयूनिटी से जुड़ने का मौक़ा भी मिलता है. यहां समलैंगिक पार्टनर ढूंढ सकते हैं और करियर की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए भी नेटवर्क बढ़ा सकते हैं.&quot;</p><p>वो बताते हैं कि डेल्टा में समलैंगिकों को ऐसे रेस्टोरेंट्स के बारे में भी बताया जाता है जो एलजीबीटीक्यू फ्रेंडली हैं. </p><p>ख़ुद को गे मेल कहने वाले 18 साल के आर्यन भी कुछ गे ऐप इस्तेमाल करते हैं. वो बताते हैं कि इस डेटिंग ऐप पर उन्हें कुछ अच्छे दोस्त तो मिले, लेकिन कुछ फेक लोग भी मिले.</p><figure> <img alt="रिश्ते, डेटिंग ऐप्स" src="https://c.files.bbci.co.uk/26F8/production/_110667990_2.png" height="549" width="976" /> <footer>Puneet Barnala/BBC</footer> </figure><p><strong>वर्चुअल डेटिंग के </strong><strong>ख़तरे</strong></p><p>ऐसी शिकायत कई लोगों की है कि डेटिंग ऐप्स पर कुछ लोग फ़ेक प्रोफाइल बना लेते हैं. वो अपनी उम्र, असली तस्वीर, पहचान, हैसियत के बारे में झूठ बोलते हैं. </p><p>फ़रवरी 2018 में तो एक मामले ने सबको चौंका दिया था. जिसमें प्रिया सेठ नाम की एक लड़की और दुष्यंत शर्मा नाम के एक लड़के की टिंडर डेट अपराध में बदल गई.</p><p>शर्मा की मौत हो गई और सेठ को जेल जाना पड़ा. दोनों ने एक दूसरे को झूठ बोला था. </p><p>लड़के ने दिखाया कि वो लखपति है. वहीं लड़की ने डेट के बहाने उसे अपने फ्लैट पर बुलाया और अपने प्रेमी के साथ मिकर उसे किडनैप कर लिया. फिरौती में मोटी रक़म मांगी लेकिन क्योंकि लड़के ने अपनी हैसियत को लेकर झूठ बोला था, उसके घर वाले वो रक़म नहीं दे पाए. लिहाज़ा प्रिया सेठ ने अपने बॉयफ्रैंड के साथ मिकर दुष्यंत शर्मा को मार डाला. </p><p>तरु कपूर कहती हैं कि यूज़र्स की सेफ्टी उनकी पहली प्राथमिकता है. </p><p>वो कहती हैं, &quot;24 घंटे हमारी एक मोडरेशन टीम सक्रिय रहती है. अगर आपको कुछ भी ग़लत लगता है, चाहे वो कोई इमेज हो या चैट. और अगर आपसे किसी ने ऑफ़ लाइन या ऑन लाइन कुछ कहा तो आप तुरंत हमारी टीम को इमेल, वेबसाइट या ऐप के ज़रिए रिपोर्ट कर बता सकते हैं. फिर हमारी टीम आपसे संपर्क करती है.&quot;</p><p>टिंडर का कोई कस्टमर केयर नंबर नहीं है. </p><p>लेकिन कई लोगों को इन डेटिंग ऐप्स से अच्छे लोग भी मिले हैं.</p><p>28 साल के श्रेयस एक सीरियस रिलेशन के बारे में सोच रहे हैं. उनके मुताबिक़ डेटिंग ऐप के ज़रिए वो कई लड़कियों से मिले. उनमें से कुछ उनकी अच्छी दोस्त बन गईं, कुछ के साथ डेट पर गए और उनमें से एक लड़की उन्हें ऐसी मिली, जिसके बारे में वो काफ़ी सीरियस हैं.</p><p>बेंगलुरू में रहने वाले अविनाश और प्रीती भी डेटिंग ऐप के ज़रिए ही मिली थे. दोनों का रिश्ता अच्छा चला और दोनों ने एक दूसरे से बारे में शादी को लेकर भी सोचा. लेकिन कहीं-ना-कहीं दोनों एक दूसरे पर भरोसा नहीं कर पा रहे थे. </p><p>दोनों को लग रहा था कि &quot;हम डेटिंग ऐप के ज़रिए मिले. जिसके तुरंत बाद हमारे बीच जिस्मानी रिश्ते भी बने. पता नहीं ऐसे ही दोनों के कितने रिश्ते रहे होंगे.&quot;</p><p>इन बातों ने दोनों के रिश्ते में खटास डाली और आख़िरकार दोनों अलग हो गए.</p><p>रिलेशनशीप एक्सपर्ट निशा खन्ना कहती हैं कि शॉर्ट टर्म रिलेशन दिमाग़ी स्वास्थ्य पर बुरा असर भी डालते हैं. </p><p>ख़ासकर तब जब कथित तौर पर हर छह में से एक इंसान अपनी ज़िंदगी में कभी ना कभी एंग्जाइटी जैसी मानसिक परेशानी से जूझता है. </p><p>एंग्ज़ाइटी की एक वजह ख़राब स्तर की बातचीत, डेट्स और रिश्ते शामिल हैं, जो ख़ुद के लिए मन में शंका पैदा करते हैं. </p><p>निशा कहती हैं, &quot;कुछ लोग हैं जिन्हें शादी तो घर वालों की मर्ज़ी से करनी है, तबतक वो ऐसे ही डेटिंग करते हैं. इस तरह ये ऐप मददगार भी हैं. लेकिन मेरे पास कई लोग आते हैं, जो बताते हैं कि केजुअल डेटिंग करते हुए वो सामने वाले से इमोशनली अटैच हो गए. लेकिन सामने वाला नहीं हुआ. जिससे अब वो परेशान हो रहे हैं.&quot;</p><p>प्रशांत बताते हैं कि वो दिन-रात राइट स्वाइप-लेफ्ट स्वाइप कर करके फ्रस्ट्रेट हो गए थे. उन्हें लगता था कि वो एक जाल में उलझते जा रहे हैं. अंत में उन्होंने सारे डेटिंग ऐप डिलीट कर दिए. </p><p><strong>(इस कहानी में एप यूज़र्स के नाम बदले गए हैं. कहानी में इलेस्ट्रेशन पुनीत बरनाला ने बनाए हैं. प्रोड्यूसर, सुशीला सिंह.)</strong></p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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