<figure> <img alt="नागरिक संशोधन बिल" src="https://c.files.bbci.co.uk/10D13/production/_110538886_gettyimages-1192963962.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>केरल सरकार ने नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है. केरल सरकार ने इससे पहले विधानसभा से एक प्रस्ताव पारित कर नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) को रद्द करने की माँग की थी.केरल सरकार का कहना है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है. </p><p><strong>क्या राज्य सरकार, संसद में पारित किसी क़ानून के विरोध में सुप्रीम कोर्ट जा सकती है</strong><strong>?</strong></p><p>ऐसा कई बार हुआ है जब संसद ने कोई क़ानून बनाया है और राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट गई हैं. </p><p>लेकिन ये वो मामले होते थे जिनमें राज्य सरकार संसद की शक्तियों या कहें, अधिकारों पर प्रश्न चिन्ह लगाती थीं.</p><p>भारत से संविधान में केंद्र और राज्य सरकार के बीच अधिकारों का विभाजन है. यूनियन लिस्ट में 97 मुद्दे हैं, स्टेट लिस्ट में 66 आइटम हैं और कॉनकरंट लिस्ट में 44 मुद्दे हैं. </p><p>यूनियन लिस्ट में दिए मुद्दों पर केवल देश की संसद क़ानून बना सकती है और नागरिकता इस लिस्ट में 17वें स्थान पर है. </p><p>तो ऐसे में स्पष्ट है कि नागरिकता के संबंध में केवल संसद क़ानून बना सकती है, किसी राज्य को ये क़ानून बनाने का अधिकार नहीं है. संविधान के अनुच्छेद 11 में भी साफ़ तौर पर ये अधिकार संसद को दिया गया है.</p><p>आमतौर पर इंटरप्रिटेशन में विवाद ये होता है कि कोई चीज़ यूनियन लिस्ट में है या फिर स्टेट लिस्ट में. और ऐसे सैकड़ों मामले हैं जिनमें राज्य सरकार ने कहा है कि संसद को फ़लां क़ानून बनाने का हक़ नहीं था.</p><p>लेकिन केरल का मामला अलग है. मेरे हिसाब से ये शायद चौथी-पांचवी बार ऐसा मामला आया है जिसमें राज्य सरकार का कहना है कि नागरिकता संशोधन क़ानून संविधान के मूलभूत ढांचे के ख़िलाफ़ है. ये कुछ समुदायों को स्वीकार करता है, कुछ को नहीं करता. साथ ही कुछ पड़ोसी देशों को शामिल करता है तो कुछ को नहीं करता. उन देशों के भी सभी प्रताड़ित अल्पसंख्यक समुदाय को ये शामिल नहीं करता.</p><p>इससे पहले भी ऐसी बात हुई है. मुझे सुप्रीम कोर्ट का एक फ़ैसला याद है- मध्य प्रदेश से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र के क़ानून को राज्य सरकार अनुच्छेद 32 के तहत चुनौती दे सकती है. इसके तहत किसी भी मौलिक अधिकार के उल्लंघन के मामले में कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा सकते हैं.</p><p><a href="https://twitter.com/vijayanpinarayi/status/1217069318602543104">https://twitter.com/vijayanpinarayi/status/1217069318602543104</a></p><p>लेकिन केरल के मामले में राज्य सरकार ने अनुच्छेद 131 के तहत कोर्ट में गुहार लगाई है. इसके तहत राज्य सरकार केंद्र सरकार के विरुद्ध किसी भी क्वेश्चन ऑफ़ फैक्ट और क्वेश्चन ऑफ़ लॉ पर जिसमें क़ानूनी अधिकार का एक्ज़िस्टेंस या एक्सटेंट पर विवाद हो.</p><p>इस पर पहले सुप्रीम कोर्ट की दो जज बेंच ने कहा था कि अनुच्छेद 32 के तहकत कोर्ट जा सकते हैं लेकिन 131 के तहत कोर्ट नहीं जा सकते. </p><p>लेकिन झारखंड बनाम बिहार का एक मामला था जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार को 131 के तहत कोर्ट में जाने से रोका नहीं जा सकता और उन्होंने ये मामला एक बड़ी बेंच को भेजने की बात की थी.</p><p>और केरल का मामला पहले ही कोर्ट की एक बड़ी बेंच के सामने है. मैं मानता हूं कि अनुच्छेद 131 के तहत राज्य सरकार केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ जा सकती है और इसमें ऐसी कोई पाबंदी नहीं है.</p><p><a href="https://twitter.com/nyayamindia/status/1216930433666957312">https://twitter.com/nyayamindia/status/1216930433666957312</a></p><p><strong>ख़ुद </strong><strong>बीजेपी सरकार भी संसद के बनाए क़ानून के </strong><strong>विरुद्ध </strong><strong>सुप्रीम कोर्ट जा चुकी है</strong></p><p>साल 1981 के अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संशोधन पर क़ानून की संवैधानिकता को लेकर विवाद हुआ था. इंदिरा गांधी सरकार ने इस यूनिवर्सिटी को माइनॉरिटी इंस्टीट्यूशन का दर्जा दिया था.</p><p>मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट में गया जिसे <a href="https://www.deccanherald.com/national/sc-refers-7-judge-bench-issue-718034.html">2006 में कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया</a>. इस पर यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया</p><p>2014 में बीजेपी की सरकार आने के बाद, 2016 में इस <a href="https://www.livemint.com/Politics/5H9eQq59r17lUigUwZ6NaO/Govt-to-withdraw-plea-against-verdict-on-Aligarh-Muslim-Univ.html">अपील को वापस लेने की अर्ज़ी</a> दी गई थी. </p><p>केंद्र सरकार का फ़र्ज़ होता है कि संसद में पारित क़ानून की रक्षा करे, लेकिन सरकार ने कहा कि ये क़ानून ग़लत था.</p><p>एक और उदाहरण है असम और नागरिकता, एनआरसी से जुड़ा. मौजूदा मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल <a href="https://indiacode.nic.in/handle/123456789/1766?locale=hi">1983 में बने इल्लीगल माइग्रेंट डिटर्मिनेशन ट्रिब्यूनल एक्ट</a> के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट गए थे. </p><p>इस क़ानून के तहत अगर किसी की नागरिकता को कोई चुनौती देता है तो जो चुनौती देगा उसे ये साबित करना होगा कि ये व्यक्ति नागरिक नहीं है.</p><p>संसद द्वारा पारित इस क़ानून के मामले में <a href="https://thewire.in/rights/citizenship-bill-legislative-chaos-or-amnesia">वाजपेयी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि ये क़ानून ग़लत है</a>.</p><p>ऐसे में एक तरफ राज्य सरकार संसद द्वारा पारित क़ानून को लेकर कोर्ट जा सकती है तो, दूसरी तरफ केंद्र सरकार भी संसद द्वारा पारित क़ानून को लेकर कोर्ट जा सकती है.</p><p>मोदी सरकार ने 2014 में नेशनल ज्यूडिशियल कमीशन एक्ट बनाया था और संविधान का भी संशोधन किया था. लोकसभा और राज्यसभा में ये पारित हुआ था (राज्यसभा में केवल राम जेठमलानी से इसके ख़िलाफ़ वोट दिया था).</p><p>इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी और <a href="https://economictimes.indiatimes.com/news/politics-and-nation/supreme-court-declares-national-judicial-appointments-commission-njac-act-unconstitutional/articleshow/49403764.cms?from=mdr">कोर्ट ने इसे निरस्त किया</a> था.</p><h3>क्या केरल दूसरे राज्यों के लिए उदाहरण बनेगा?</h3><p>केरल पहला राज्य है जिसने नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में जाने का फै़सला किया है.</p><p>ऐसे में फ़ैसला जो भी आए, केरल देश के दूसरे राज्यों के लिए उदाहरण ज़रूर स्थापित करेगा.</p><p>लेकिन मुझे लगता है कि जब इस मामले में दलीलें शुरु होंगी तो और राज्य भी कोर्ट का रुख़ कर सकते हैं.</p><figure> <img alt="संसद" src="https://c.files.bbci.co.uk/74BB/production/_110538892_gettyimages-1158659163.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>मामला क़ानूनी नहीं राजनीतिक है</h3><p>लेकिन ये बात भी स्पष्ट तौर पर समझी जानी चाहिए कि संसद द्वारा पारित क़ानून को लागू करना केरल के लिए बाध्यकारी है. उसे क़ानूनी तौर पर ये अधिकार नहीं है कि वो ये न माने.</p><p>अनुच्छेद 256 के तहत केंद्र सरकार, राज्य सरकार को निर्देश दे सकती है और राज्य सरकार को वो निर्देश मानने होंगे. </p><p>अगर राज्य निर्देश नहीं मानती है तो अनुच्छेद 356 के तहत केंद्र मानेगा कि राज्य में संवैधानिक व्यवस्था चरमरा गई है. </p><p>लेकिन मुझे नहीं लगता कि ये प्रश्न क़ानून से हल होगा. ये एक राजनीतिक सवाल है.</p><p>केरल ने जो प्रस्ताव अपनी विधानसभा में पारित किया है उसकी कोई संवैधानिक हैसियत नहीं है. लेकिन ये एक राजनीतिक संकेत है.</p><p>केंद्र की सरकार में जनता के चुने हुए लोग हैं तो राज्य की सरकार में भी जनता के ही चुने हुए लोग हैं.</p><p>तो ऐसे में ये प्रस्ताव पारित होना एक संदेश है कि इस क़ानून पर राष्ट्र एकमत नहीं है. </p><p>इस तरह के प्रस्ताव अगर आठ-नौ राज्य की विधानसभओं ने पास किए या फिर आठ-नौ राज्य सरकारें इस क़ानून के विरुद्ध जाएंगी तो सुप्रीम कोर्ट को भी लगेगा कि देश में इस क़ानून को लेकर एकमत नहीं है.</p><p>ये क़ानूनी लड़ाई नहीं है, ये राजनीतिक लड़ाई है.</p><figure> <img alt="आरिफ़ मोहम्मद ख़ान" src="https://c.files.bbci.co.uk/C2DB/production/_110538894_9ab89a36-8e5c-4866-8f6b-dae12aa329e4.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>आरिफ़ मोहम्मद ख़ान</figcaption> </figure><h3>क्या सुप्रीम कोर्ट जाकर केरल की सरकार ने राज्यपाल की अवहेलना की है?</h3><p>केरल के गवर्नर का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में जाने के राज्य सरकर के फ़ैसले के बारे में राज्य सरकार को उन्हें जानकारी देनी चाहिए थी.</p><p>संविधान के अनुच्छेद 167 के तहत गवर्नर को ये अधिकार है कि उन्हें राज्य के मुख्यमंत्री बताएं कि राज्य के प्रशासन के बारे में कैबिनेट के क्या फ़ैसले हैं और ऐसे कौन से प्रस्ताव हैं जिन पर राज्य विधानसभा क़ानून बनाने वाली है.</p><p>इस मामले में क़ानून बनाने का कोई प्रस्ताव है नहीं क्योंकि केरल विधानसभा को इस मामले में क़ानून बनाने का कोई अधिकार ही नहीं है. दूसरी तरफ विधानसभा में इस संबंध में जो प्रस्ताव पारित हुआ है वो क़ानून नहीं है.</p><p>अनुच्छेद 167 बी के तहत राज्यपाल को राज्य के प्रशासन से जुड़ी ख़बरों की जानकारी दी जानी चाहिए. </p><p>तो क्या कोर्ट में एक केस दायर करना राज्य के प्रशासन से जुड़ा मामला है, इस पर संविधानविदों की राय बंटी हो सकती है.</p><p>कुछ कहेंगे कि ये प्रशासन का मामला नहीं है क्योंकि आप कोर्ट जा रहे हैं ये पूछने के लिए कि क्या ये क़ानून संवैधानिक है या नहीं.</p><p>मुख्य बात जो है वो ख़ुद राज्यपाल ने भी कहा है कि ये मामला क़ानून के दायरे में कम और उचित विधि के पालन का अधिक है.</p><p>देश में अक्सर ये देखा गया है कि राज्यपाल राजनीतिक व्यक्ति होते हैं, केंद्र सरकार खुद उनका चुनाव करती हैं. ऐसे में हमने देखा है कि मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच तनाव रहता है, जैसा पश्चिम बंगाल और केरल में.</p><p>देश में जो एक ऐसी व्यवस्था बन गई है कि राज्यपाल केंद्र सरकार से जुड़े प्रतिनिधि होंगे, इससे एक तरह से भरोसे में कमी आई है.</p><figure> <img alt="पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री" src="https://c.files.bbci.co.uk/14DEB/production/_110538458_961c19ca-8aa1-42db-a677-9c658d574d5b.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p><strong>ग</strong><strong>वर्न</strong><strong>र के चुनाव पर कई बार हुआ है विवाद</strong></p><p>संविधान सभा में पहले ये प्रस्ताव था कि राज्यपाल का चुनाव राज्य के ही लोग करेंगे. लेकिन इस पर संविधान निर्माता आंबेडकर ने कहा कि दो चुने हुए नेता- मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच तनाव की स्थिति पैदा हुई तो मुश्किल हो सकती है,.</p><p>इसके बाद जवाहरलाल नेहरू ने ये प्रस्ताव दिया कि राज्यपाल का पद गै़र-राजनीतिक होना चाहिए. कुछ ऐसे प्रस्ताव भी आए कि सीधे चुनाव की जगह राज्य की विधानसभा राज्यपाल का चुनाव करे.</p><p>आख़िरकार फ़ैसला ये किया गया कि राज्यपाल के पद पर अकादमिक व्यक्ति या सेवानिवृत्त अधिकारियों की नियुक्ति की जाएगी जो गै़र-राजनीतिक होंगे. </p><p>लेकिन सभी सरकारों ने राज्यपाल के पद पर अपनी पार्टी के लोगों को ही लेना शुरु कर दिया. इस पद के लिए इतने ग़लत चुनाव हुए हैं कि मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच भरोसे की कमी है.</p><p><a href="https://www.business-standard.com/article/pti-stories/sarkaria-commission-norms-on-governors-flouted-narayanasamy-119090200360_1.html">सरकारिया कमीशन</a> ने भी कहा था कि जब राज्यपाल के पद पर नियुक्ति करने का वक्त हो तो मुख्यमंत्री से भी सलाह ले ली जाए. </p><p>लेकिन चाहे वो कांग्रेस की हो या फिर बीजेपी की, किसी भी सरकार ने इन सुझावों की तरफ़ कभी ध्यान नहीं दिया.</p><p><strong>ये भी पढ़ेंः </strong></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50949281?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">इतिहासकार इरफ़ान हबीब और केरल के राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद ख़ान के बीच आख़िर क्या हुआ था</a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50969956?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">फ़ैज़ की नज़्म हिंदू विरोधी या पाकिस्तान तानाशाह विरोधी?</a></p><p>(बीबीसी संवाददाता <strong>मानसी दाश</strong> से बातचीत पर आधारित)</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a 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CAA: संसद में बने क़ानून के ख़िलाफ़ बीजेपी भी गई है सुप्रीम कोर्ट
<figure> <img alt="नागरिक संशोधन बिल" src="https://c.files.bbci.co.uk/10D13/production/_110538886_gettyimages-1192963962.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>केरल सरकार ने नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है. केरल सरकार ने इससे पहले विधानसभा से एक प्रस्ताव पारित कर नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) को रद्द करने की माँग की थी.केरल सरकार का कहना है कि यह कानून […]
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