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अमरीका और ईरान के बीच संकट क्यों क़ायम है, 5 कारण

<figure> <img alt="ईरान" src="https://c.files.bbci.co.uk/11827/production/_110491717_8cd37e18-a4eb-4998-a8df-b0db6e44d0de.jpg" height="549" width="976" /> <footer>EPA</footer> <figcaption>ईरान में अमरीका के विरोध में प्रदर्शन</figcaption> </figure><p>ये राहत की बात है कि ईरान के शीर्ष कमांडर क़ासिम सुलेमानी की हत्या से पैदा हुआ संकट एक व्यापक युद्ध में तब्दील नहीं हुआ.</p><p>इस मायने में देखिए तो तनाव कम हुआ है.</p><p>लेकिन जिन बुनियादी बातों के कारण दोनों देश […]

<figure> <img alt="ईरान" src="https://c.files.bbci.co.uk/11827/production/_110491717_8cd37e18-a4eb-4998-a8df-b0db6e44d0de.jpg" height="549" width="976" /> <footer>EPA</footer> <figcaption>ईरान में अमरीका के विरोध में प्रदर्शन</figcaption> </figure><p>ये राहत की बात है कि ईरान के शीर्ष कमांडर क़ासिम सुलेमानी की हत्या से पैदा हुआ संकट एक व्यापक युद्ध में तब्दील नहीं हुआ.</p><p>इस मायने में देखिए तो तनाव कम हुआ है.</p><p>लेकिन जिन बुनियादी बातों के कारण दोनों देश युद्ध के कगार पर आ गए थे, उनमें कोई बदलाव नहीं आया है.</p><p>आइए आपको बताते हैं कि क्यों ये संकट अभी भी ख़त्म नहीं हुआ है.</p><h1>1. अस्थायी है तनाव में कमी </h1><p>कई जानकार मानते हैं कि ये तनाव में कमी नहीं है.</p><p>ईरानी नेता सुलेमानी की हत्या से अंदर तक हिल गए थे. वो बदले के लिए जितना कर सकते थे, उन्होंने किया. ईरान अमरीकी ठिकाने पर निशाना लगाकर बदला लेना चाहता था. वो अमरीका को सीधा संदेश देना चाहता था. इसलिए ईरान ने अपनी ज़मीन से मिसाइलें दाग़ीं.</p><p>लेकिन उसकी कार्रवाई के व्यावहारिक और राजनीतिक बाध्यताएँ थी. वो जल्द से जल्द कुछ करना चाहता था. साथ ही वो व्यापक युद्ध भी नहीं चाहता था.</p><p>ये भी कहा जा रहा है कि यूक्रेन के यात्री विमान को मिसाइल से मार गिराने की बात स्वीकार करने में ईरान की सहमति तनाव कम करने की कोशिश है. लेकिन ये ग़लत है.</p><figure> <img alt="यूक्रेन के दुर्घटनाग्रस्त विमान का मलबा" src="https://c.files.bbci.co.uk/16647/production/_110491719_72d24f7a-aaef-4ef5-842f-0ba9e395b369.jpg" height="549" width="976" /> <footer>AFP</footer> </figure><p>ईरान की स्वाभाविक प्रतिक्रिया ये थी कि विमान हादसे में उसकी कोई भूमिका नहीं है. लेकिन जब अमरीका ने दावा किया कि उसके ख़ुफ़िया विभाग को कुछ अलग ही पता चला है, जब यूक्रेन को मिसाइल हमले का सबूत मिला और जब स्वतंत्र जाँचकर्ताओं ने विमान को मार गिराने वाले वीडियो को सही माना, तो ईरान के पास ये मानने के अलावा कोई चारा नहीं था.</p><p>जैसे ही बुलडोज़र की मदद से दुर्घटनास्थल को साफ़ किया जाने लगा, ये स्पष्ट था कि ईरान को ये पता है कि वाकई क्या हुआ था. अगर कोई दुर्घटना की आशंका होती, तो अधिकारी मलबे को छूते तक नहीं.</p><p>ईरान का यूक्रेन के विमान को मिसाइल हमले में मार गिराने की बात मानना उसकी अपनी घरेलू समस्याओं से ज़्यादा जुड़ा हुआ था. कुछ ही महीने पहले ईरान में भ्रष्टाचार और चरमराती अर्थव्यवस्था के ख़िलाफ़ ख़ूब प्रदर्शन हुए थे.</p><p>दरअसल ये घरेलू मोर्चे पर नुक़सान को कम करना था न कि अमरीका के साथ तनाव कम करना.</p><h1>2. नहीं बदल रही है अमरीका की नीति</h1><figure> <img alt="सुलेमानी" src="https://c.files.bbci.co.uk/12443/production/_110491847_fd235327-0aeb-4523-ad90-8dbff925cef5.jpg" height="549" width="976" /> <footer>AFP</footer> </figure><p>अमरीका ने सुलेमानी को क्यों मारा और यमन में एक अन्य वरिष्ठ ईरानी अधिकारी को मारने की कोशिश क्यों की? शायद क़ानूनी वजहों से अमरीका ने ये दावा किया कि वो अमरीकी हितों के ख़िलाफ़ एक संभावित और गंभीर हमलों को रोकने की कोशिश कर रहा था.</p><p>लेकिन अमरीका का ये तर्क कई जानकारों के गले नहीं उतर रहा और न ही अमरीका में डोनल्ड ट्रंप के विरोधी ये तर्क स्वीकार कर रहे हैं.</p><p>ये बहुत संभव है कि ये हमले प्रतिरक्षा के रास्ते को फिर से स्थापित करने की कोशिश हो. शायद कुछ समय तक ये काम भी करे.</p><p>ईरान को आगे की कार्रवाई बहुत जाँच-पड़ताल करके सावधानीपूर्वक करनी होगी.</p><p>वैसे अमरीका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ईरान तो तबाह करने की धमकी दे रहे हैं. वो ये भी संकेत दे रहे हैं कि वे मध्य पूर्व के मामलों से बाहर रहना चाहते हैं. वे इसे दूसरों की समस्या के रूप में देखते हैं. </p><p>अमरीका ईरान की अर्थव्यवस्था को चोट पहुँचाना जारी रखेगा. अमरीका ईरान को समझौते के लिए बातचीत के टेबल पर लेकर नहीं आया है. </p><p>उसने तो ईरान पर बदले की कार्रवाई के लिए ही दबाव बना दिया. अमरीका ईरान पर दोगुना प्रहार करना चाहता है, साथ ही वो इस क्षेत्र में अपने संसाधनों में कमी भी चाहता है. लेकिन दोनों चीज़ें एक साथ नहीं कर सकता.</p><h1>3. ईरान का रणनीतिक लक्ष्य बदला नहीं है</h1><figure> <img alt="ईरान में प्रदर्शन" src="https://c.files.bbci.co.uk/CDEF/production/_110491725_ff775107-8fbf-482a-9018-b82a0fafb336.jpg" height="549" width="976" /> <footer>AFP</footer> </figure><p>ईरान की अर्थव्यस्था भले ही कमज़ोर हो रही है, इसके नागरिकों की नाराज़गी भले ही बढ़ रही है, लेकिन ये एक ‘क्रांतिकारी साम्राज्य’ है.</p><p>ये सरकार एकाएक सत्ता छोड़ने वाली नहीं. ईरान का इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प (आईआरजीसी) काफ़ी मज़बूत है.</p><p>घरेलू मोर्चे पर कार्रवाई के साथ-साथ इनका काम अमरीकी दबाव को कम भी करना है. ये जारी रहेगा.</p><p>ईरान का रणनीतिक लक्ष्य है अमरीका को इस क्षेत्र से बाहर करना, कम से कम इराक़ से. सुलेमानी की मौत के बाद ईरान इस लक्ष्य के थोड़ा और क़रीब हुआ है.</p><p>ईरान के नज़रिए से देखें तो उसकी नीति को कई सफलताएँ मिली हैं. इसने सीरिया में बशर अल असद की सरकार बचाए रखी है. ईरान ने इसराइल के साथ एक नया मोर्चा खोलने में भी सफलता पाई है.</p><p>इराक़ में भी उसका काफ़ी प्रभाव है. राष्ट्रपति ट्रंप की नीतियों में अंतर्विरोध की वजह से अमरीका के सहयोगी देश ऐसा सोचने लगे हैं कि वे इस क्षेत्र में अकेले ही हैं.</p><p>सऊदी अरब ईरान के साथ छोटे स्तर पर बातचीत शुरू करने का रास्ता खोज रहा है. तुर्की भी अपने ही रास्ते चल रहा है और रूस के साथ नए रिश्ते स्थापित कर रहा है.</p><p>सिर्फ़ इसराइल को ऐसा लगता है कि सुलेमानी की मौत से शायद इस क्षेत्र में ट्रंप नए सिरे से अपनी भागीदारी बढ़ाएँ. </p><p>लेकिन वे शायद निराश हो सकते हैं. आंतरिक असंतोष और चरमराती अर्थव्यवस्था के कारण आईआरजीएस शायद आने वाले समय में अमरीका पर दबाव बढ़ाए. दो-दो तगड़े झटके झेलने के बाद उनमें बदला लेने की टीस बची हुई है.</p><h1>4. इराक़ की स्थिति में अंतर्विरोध</h1><figure> <img alt="अमरीकी सैनिक" src="https://c.files.bbci.co.uk/31AF/production/_110491721_f73648f5-8acf-442e-9a2b-88875146a047.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Reuters</footer> </figure><p>इराक़ से अमरीकी सैनिकों की वापसी का परिदृश्य पहले से ज़्यादा संभव दिख रहा है.</p><p>इराक़ की अस्थायी सरकार संकट में है और उसे हाल में बड़े विरोध प्रदर्शनों को झेलना पड़ा था. </p><p>कई लोग देश में अमरीका की मौजूदगी के अलावा देश पर ईरान के प्रभाव से भी नाराज़ हैं.</p><p>पिछले दिनों इराक़ी संसद ने एक प्रस्ताव पारित कर अमरीकी सैनिकों को देश से जाने को कहा था. हालांकि ये प्रस्ताव बाध्यकारी नहीं है. लेकिन इससे इतना तो तय हो गया है कि अमरीकी सैनिकों की इराक़ से वापसी उनके एजेंडे में है. इसका ये भी मतलब नहीं है कि अमरीकी सैनिक कल ही इराक़ छोड़कर जाने वाले हैं.</p><p>वैसे अमरीकी सैनिकों के वहाँ बने रहने के लिए कुशल कूटनीति की आवश्यकता होगी.</p><p>लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप ने उनके सैनिकों को वहाँ से भेजने की स्थिति में अमरीकी बैंकों में मौजूद इराक़ी सरकार के फंड को फ़्रीज़ करने की धमकी दी है.</p><p>इराक़ में अमरीका की उपस्थिति मायने रखती है. जब अमरीका और उसके सहयोगी देशों के सैनिकों ने इराक़ में इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों के ख़िलाफ़ अभियान शुरू किया था, तो ये हमेशा से लग रहा था कि ये दीर्घकालिक तैनाती है. आईएस के प्रमुख बग़दादी के मारे जाने के बाद भी ये माना जा रहा था कि अमरीकी सैनिक वहाँ आने वाले कई वर्षों तक रहेंगे.</p><p>अगर वहाँ से अमरीकी सैनिकों को वापस भेज दिया जाता है, तो आईएस के उत्थान को रोकना काफ़ी मुश्किल होगा. साथ ही पूर्वी सीरिया में बचे हुए अमरीकी सैनिकों की स्थिति भी मुश्किल में पड़ जाएगी.</p><p>क्योंकि सीरिया में मौजूद अमरीकी सैनिकों को इराक़ स्थित अमरीकी ठिकाने से मदद मिलती है. अमरीकी सैनिकों की मौजूदगी पर बहस तो सिर्फ़ एक शुरुआत है. और अगर इसमें अमरीका हारा, तो इसे ईरान की जीत माना जाएगा.</p><h1>5. परमाणु समझौता असली समस्या है</h1><figure> <img alt="डोनल्ड ट्रंप" src="https://c.files.bbci.co.uk/7FCF/production/_110491723_4983c055-8974-49db-8e2d-c87294940aa8.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>मौजूदा संकट की शुरुआत मई 2018 में हुई, जब ट्रंप सरकार ने ईरान के साथ परमाणु समझौते को किनारे कर दिया.</p><p>उस समय से ही अमरीका ईरान की अर्थव्यवस्था पर ज़्यादा से ज़्यादा दबाव बना रहा है. दूसरी ओर ईरान अपने दम पर क्षेत्रीय दबाव बनाने की कोशिश में है. इसी के तहत ईरान समझौते की शर्तों का उल्लंघन कर रहा है.</p><p>अगर समझौता ख़त्म नहीं हुआ है, तो इसकी वजह सिर्फ़ ये है कि राष्ट्रपति ट्रंप के अलावा कोई नहीं चाहता कि ये समझौता टूट जाए. आगे जब तक कुछ बदलाव नहीं होता, तो ये अंत की शुरुआत अवश्य है.</p><p>ये समझौता मायने रखता है. इस समझौते से पहले, युद्ध का असली ख़तरा था. ये भी आशंका थी कि इसराइल ईरान के परमाणु ठिकाने पर हमला कर सकता है.</p><p>ईरान इस परमाणु समझौते में शामिल अन्य देशों को जब तक संभव होगा, अपने साथ रखना चाहेगा. लेकिन ये तेज़ी से बढ़ता हुआ संकट है. </p><p>कई यूरोपीय देशों की कोशिशों के बावजूद ऐसा नहीं लगता कि ईरान को आर्थिक दबाव से राहत मिलेगी. आख़िरकार ये समझौता टूट सकता है और इस बीच ईरान परमाणु बम के और क़रीब आ सकता है.</p><p>इस समझौते का जो भी हो, राष्ट्रपति ट्रंप की नीतियों के कारण अमरीका एक बार फिर मध्य पूर्व संकट में खिंचता चला आया है, जबकि अमरीका की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति इससे अलग होने की कोशिश कर रही है.</p><p><strong>(</strong><strong>बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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