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28 नवंबर 1979: वो दर्दनाक प्लेन क्रैश जिससे न्यूज़ीलैंड हिल गया

<figure> <img alt="टीई901 माउंट एरेबस की पहाड़ी से जा टकराया था." src="https://c.files.bbci.co.uk/82B7/production/_109936433_662183a4-e3eb-4f05-9968-075f789ad8ac.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>टीई901 माउंट एरेबस की पहाड़ी से जा टकराया था.</figcaption> </figure><p>यह न्यूज़ीलैंड की सबसे बुरी त्रासदियों में से एक है. </p><p>28 नवंबर 1979 को टीई901 नामक विमान जब अंटार्कटिका की बर्फ़ीली पहाड़ियों के ऊपर से गुज़र रहा था तभी […]

<figure> <img alt="टीई901 माउंट एरेबस की पहाड़ी से जा टकराया था." src="https://c.files.bbci.co.uk/82B7/production/_109936433_662183a4-e3eb-4f05-9968-075f789ad8ac.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>टीई901 माउंट एरेबस की पहाड़ी से जा टकराया था.</figcaption> </figure><p>यह न्यूज़ीलैंड की सबसे बुरी त्रासदियों में से एक है. </p><p>28 नवंबर 1979 को टीई901 नामक विमान जब अंटार्कटिका की बर्फ़ीली पहाड़ियों के ऊपर से गुज़र रहा था तभी उसमें एक बड़ा धमाका हो गया.</p><p>इस विमान में 257 लोग सवार थे. इस दुर्घटना ने न्यूज़ीलैंड को बड़ा झटका दिया. इस कम आबादी वाले देश का लगभग हर नागरिक इस दुर्घटना से प्रभावित हुआ. </p><p>कई सालों तक इस दुर्घटना की वजहें जानने के लिए जांच चलती रही और तमाम पक्ष एक दूसरे पर आरोप लगाते रहे.</p><p>इस दुर्घटना को माउंट एरेबस त्रासदी नाम दिया गया, जिसे आज 40 साल बाद भी न्यूज़ीलैंड भूल नहीं सका है.</p><h1>कैसे हुआ था वो प्लेन क्रैश?</h1><p>एयर न्यूज़ीलैंड ने इस दुर्घटना से दो साल पहले ही अंटार्कटिका में लोगों को घुमाने के मक़सद से एक ख़ास फ़्लाइट की शुरुआत की थी, यह विशेष सेवा लोगों को बहुत पसंद आ रही थी.</p><p>ऑकलैंड से उड़ान भरकर यह ख़ास फ़्लाइट 11 घंटे आसमान की सैर करते हुए जब धरती के दक्षिणी हिस्से में मौजूद अंटार्कटिका महाद्वीप पर पहुंचती थी तो उसका रोमांच अपने आप में ही अद्भुत होता था.</p><p>फ़्लाइट के भीतर भी बेहतरीन तरीक़े से एशो-आराम की सुविधा थी. पृथ्वी के एक छोर पर बर्फ़ीली पहाड़ियों को देखना बेहद आकर्षक अनुभव था.</p><p>लेकिन साल 1979 के 28 नवंबर वाले दिन, चीज़ें इतनी ख़ूबसूरती से नहीं घटीं.</p><p>दोपहर 12 बजे के आसपास, विमान के पायलट कैप्टन जिम कोलिंस विमान को लगभग 2000 फ़ीट (610 मीटर) नीचे लेकर आए, वो अपने यात्रियों को प्रकृति के और क़रीब लाना चाहते थे. </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/vert-fut-50586322?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">क्या ग़ायब हो जाने वाला है लाल सेब?</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/vert-fut-50575915?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">बालूः जिसके लिए लोग ख़ून बहाने को तैयार</a></li> </ul><p>कैप्टन जिम को लग रहा था कि वो अपनी पुरानी उड़ानों की तरह बिलकुल ठीक रास्ते पर चल रहे हैं. उन्हें विमान में कोई गड़बड़ी नहीं दिख रही थी.</p><p>लोग विमान के भीतर और बाहर तस्वीरें खींचने और वीडियो बनाने में व्यस्त थे. इनमें से कुछ तस्वीरें तो प्लेन क्रैश के चंद सैकेंड पहले की थीं.</p><p>विमान से कुछ दूरी पर बर्फ़ीली पहाड़ियां थीं और विमान उनके ऊपर ऊड़ान भर रहा था, तभी कॉकपिट में मौजूद कैप्टन और उनके साथी को यह एहसास हुआ कि उनके ठीक बगल में कोई पहाड़ी है.</p><p>दोपहर 1 बजे का वक़्त रहा होगा जब विमान में आपातकालीन अलार्म बजा और उसके लगभग छह सेकेंड बाद विमान माउंट एरेबस से जा टकराया.</p><p>कई घंटों तक विमान से संपर्क की कोशिशें जारी रहीं. दुर्घटनास्थल से कई हज़ार किलोमीटर दूर न्यूज़ीलैंड में यह भ्रम हुआ कि विमान का ईंधन ख़त्म होने की वजह से वह आसमान में नहीं दिख रहा है.</p><p>भ्रम के बादल छंटने के बाद डर का माहौल पैदा होने लगा और जब राहत बचाव दल दुर्घटना वाले क्षेत्र में पहुंचा तो जो डर था वो सच साबित हो गया.</p><p>विमान का मलबा माउंट एरेबस की तलहटी में मौजूद रौस आइलैंड पर देखा गया, यह साफ़ था कि विमान में मौजूद कोई भी शख़्स जीवित नहीं हो सकता.</p><p>न्यूज़ीलैंड एयरलाइन पायलट्स एसोसिएशन के प्रमुख कैप्टन एंड्रयू रिडलिंग ने बीबीसी को बताया, ”आज जिस तरह के विमान हमारे पास है, उसमें ऐसा हादसा नहीं हो सकता.” </p><p>”आज के उपकरण बहुत ज़्यादा अच्छे हैं. अब हमारे पास सैटेलाइट से जुड़ा नेविगेशन सिस्टम है. इससे अगर कोई विमान ग़लत रास्ते पर जाने लगता है तो उसे पहले ही रोक दिया जाता है.”</p><p><a href="https://www.youtube.com/watch?v=Uthi8QAKboo">https://www.youtube.com/watch?v=Uthi8QAKboo</a></p><h1>सफ़ेद बर्फ़ का भ्रम </h1><p>इस विमान हादसे के पीछे दो प्रमुख कारण देखे गए. पायलट को फ़्लाइट के जिस मार्ग के बारे में बताया गया था वह उसके कंप्यूटर में मौजूद मार्ग से अलग था.</p><p>कैप्टन को लगा कि वो उसी रास्ते पर हैं जिस पर उन्होंने पहले भी उड़ान भरी है. जब वो रौस आइलैंड के ऊपर गुज़र रहे थे तो वहां बर्फ़ और पानी की आवाज़ें तक सुनी जा सकती थीं.</p><p>दुर्घटना की दूसरी वजह ख़राब मौसम था, जिसकी वजह से विमान के चारों तरफ़ सफ़ेद बर्फ़ीली चादर सी बिछ गई थी, जिसे ‘वाइटआउट’ भी कहते हैं.</p><p>वाइटआउट का मतलब होता है जब विमान बादलों और बर्फ़ीली चोटियों के बीच मौजूद हो तो रौशनी इस तरह से निकलती है कि पायलट को यह भ्रम हो जाता है कि आगे मौसम बिलकुल साफ़ है. </p><p>पायलट ने अपने विमान में दर्ज मार्ग पर भरोसा किया और वो उसी के अनुसार बढ़ते गए, उन्हें लगा कि कॉकपिट से जो साफ़ चमकती हुई सफ़ेदी उन्हें दिख रही है वह पानी के ऊपर जमी बर्फ़ है. उन्हें लगा ही नहीं कि वह एक बर्फ़ीला पहाड़ है.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/vert-cap-50536750?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">इंस्टाग्राम के कैप्शन तस्वीरों से ज़्यादा महत्वपूर्ण क्यों</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/vert-fut-50523245?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">क्या रेड वाइन पीना स्वास्थ्य के लिए बेहतर हो सकता है?</a></li> </ul><h1>पूरा न्यूज़ीलैंड हिल गया</h1><p>इस दुर्घटना में 227 यात्रियों और 30 क्रू सदस्यों की मौत हो गई. 44 लोगों की तो कभी पहचान ही नहीं हो सकी. </p><p>उस समय न्यूज़ीलैंड की आबादी महज़ तीस लाख के क़रीब थी. उस समय लोग कहते थे कि न्यूज़ीलैंड का हर एक शख़्स इस दुर्घटना से जुड़ा हुआ है. </p><p>कैंटबरी यूनिवर्सिटी में इतिहासकार रोवन लाइट बताते हैं, ”यह दुर्घटना ऐसे वक़्त में हुई जब एक युवा राष्ट्र अपनी पहचान बनाने की कोशिश ही कर रहा था.”</p><p>”1960 और 70 के दशक में यह सोच पीछे छूटने लगी थी कि न्यूज़ीलैंड ब्रिटिश साम्राज्य की महज़ एक प्रगतिशील चौकी है.”</p><p>उस दौरान न्यूज़ीलैंड अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश कर रहा था. इस कोशिश में तकनीक एक बड़ा माध्यम था. इसके साथ ही आधारभूत ढांचे में भी बदलाव किया जा रहा था. </p><p>इसी कोशिश में न्यूज़ीलैंड से क़रीब 4500 किलोमीटर दूर मौजूद अंटार्कटिका तक पहुंचना भी न्यूज़ीलैंड की इसी कहानी का अहम हिस्सा था.</p><p>लेकिन इस तरक़्क़ी के बीच ही कुछ बड़े हादसों ने न्यूज़ीलैंड को कई बार झकझोरा.</p><p>साल 1953 में तंगीवाई में एक ट्रेन हादसा हुआ जिसमें 151 लोगों की मौत हो गई. वहीं 1968 में वाहीन फ़ेरी में हादसा हुआ जिसमें 51 लोगों की जान चली गई. </p><p>माउंट एरेबस हादसा इसी कड़ी में तीसरा और सबसे ज़्यादा ख़तरनाक हादसा था.</p><p>इस हादसे के झटके से अभी न्यूज़ीलैंडवासी उभरे भी नहीं थे कि इस हादसे की जांच ने उन्हें और दर्द देना शुरू कर दिया. </p><p>पहली जांच में पाया गया कि हादसे की वजह पायलट की ग़लती थी. इस जांच में कहा गया कि विमान जब ऊंचाई पर था तो वह बिलकुल ठीक उड़ रहा था लेकिन पायलट उसे नीचे तक लेकर गए जिस वजह से वह दुर्घटनाग्रस्त हो गया.</p><h1>’झूठ का पुलिंदा'</h1><p>इसी हादसे से जुड़ी जब दूसरी जांच रिपोर्ट सामने आई तो पायलट पर लगाया गया दोष विवादों में आ गया. दूसरी जांच रॉयल कमिशन की तरफ़ से की गई थी. </p><p>इस बार हादसे की ज़िम्मेदारी पायलट के साथ-साथ एयर न्यूज़ीलैंड पर भी डाल दी गई.</p><p>इस जांच रिपोर्ट में बताया गया कि यह सही है कि विमान सुरक्षित ऊंचाई से नीचे चला गया था लेकिन जांच में पता चला है कि अंटार्कटिका में जाने वाली कई फ़्लाइट इतने नीचे तक पहले भी जाती थीं. </p><p>यहां तक कि इस फ़्लाइट के एक विज्ञापन में जिन तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया है वो सुरक्षित ऊंचाई से नीचे पहुंची फ़्लाइट से ही ली गई हैं. </p><p>रॉयल कमिशन ने कहा कि एयरलाइन ने अपने ऊपर आरोप ना लगाने के लिए साज़िश रची और पूरा आरोप पायलट पर ही लगा दिया. इस साज़िश के चलते एयरलाइन पीड़ित परिवारों को मुआवज़ा देने से भी बच गई.</p><p>रॉयल कमिशन के जज पीटर मेहन ने उस समय एयरलाइन की इस साज़िश को ‘झूठ का पुलिंदा’ क़रार दिया था, ये शब्द हर एक न्यूज़ीलैंडवासी के दिलो-दिमाग़ पर छप चुके थे.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/vert-fut-50487934?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">क्या महिलाओं का दिमाग़ पुरुषों से अलग होता है?</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/magazine-50478472?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">ब्रितानी सैनिकों ने क्या अफ़ग़ान बच्चों की हत्या की?</a></li> </ul><figure> <img alt="हादसे की जगह पर पीड़ित परिवारों को लेकर जाने वाला एक विमान" src="https://c.files.bbci.co.uk/387F/production/_109936441_gettyimages-109158927.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>हादसे की जगह पर पीड़ित परिवारों को लेकर जाने वाला एक विमान</figcaption> </figure><h1>न्यूज़ीलैंड की छवि पर धब्बा</h1><p>इस जांच के बाद एयर न्यूज़ीलैंड एयरलाइन इस मामले को ऊपरी अदालत में लेकर गई, जहां उसकी जीत हुई. अदालत ने माना कि पीटर मेहन ने जानबूझकर मामले की जांच को एयरलाइन की तरफ़ मोड़ दिया.</p><p>इस फ़ैसले के बाद एरेबस हादसा एक ऐसा मामला बन गया जिस पर हर शख़्स शक़ करने लगा. इस हादसे ने न्यूज़ीलैंड की छवि को भी बहुत नुक़सान पहुंचाया.</p><p>अपनी एयरलाइन पर न्यूज़ीलैंड को बहुत गर्व था. लेकिन धीरे-धीरे लोगों को यह लगने लगा कि इस एयरलाइन को कुछ ख़ास वर्ग के लोग ही चला रहे हैं.</p><p>एयर न्यूज़ीलैंड ने दोबारा कभी अंटार्कटिका की फ़्लाइट शुरू नहीं की, हालांकि बाद में ऑस्ट्रेलिया की एक निजी एयरलाइन कंपनी ने इस तरह की विशेष उड़ान ज़रूर चालू की.</p><p>साल 2009 में एयर न्यूज़ीलैंड ने इस हादसे पर अपनी तरफ़ से पहली बार माफ़ी मांगी, हालांकि यह माफ़ी हादसे के बाद उसके व्यवहार के लिए मांगी गई थी ना कि हादसे की ज़िम्मेदारी के लिए.</p><p>लेकिन अब की बार 2019 में जब इस हादसे को 40 साल हो चुके हैं,<a href="https://www.airnewzealand.co.nz/press-release-2019-airnz-statement-on-erebus-40th-anniversary"> एयरलाइन ने पूरे हादसे पर अपनी तरफ़ से माफ़ी मांगी </a>है. शायद पीड़ित परिवारों को इस माफ़ी का सालों से इंतज़ार था.</p><p>एयरलाइन की चेयरवुमेन थेरेसा वॉल्श ने ऑकलैंड में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा, ”मैं एयरलाइन की तरफ़ से 40 साल पहले हुए हादसे के लिए माफ़ी मांगती हूं क्योंकि एयरलाइन उस समय अपने यात्रियों और स्टाफ़ की सुरक्षा की ड्यूटी नहीं निभा सकी थी.”</p><p>”40 साल पहले एरेबस हादसे में जिनकी जान गई वो मेरे इन शब्दों से वापस नहीं आ सकती. लेकिन मैं एयर न्यूज़ीलैंड की तरफ़ से इस पूरे हादसे पर गहरा दुख और अफ़सोस जताना चाहती हूं. इस हादसे में 257 यात्रियों और क्रू सदस्यों की जान चली गई थी.”</p><p>न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न ने भी सरकार की तरफ़ से इस हादसे पर माफ़ी मांगी है. उन्होंने कहा है, ”मैं अपने दिल से यह माफ़ी मांगती हूं, हम आपके दर्द को तो कभी भी नहीं समझ सकते लेकिन मैं जानती हूं कि अब वक़्त आ गया है जब मैं आपसे कहूं, I AM SORRY.”</p><figure> <img alt="न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न" src="https://c.files.bbci.co.uk/D523/production/_109936545_3bed8f53-2481-4969-b700-6bd78bc93729.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> <figcaption>न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न</figcaption> </figure><h1>हादसे को न्यूज़ीलैंड कभी नहीं भूल सका</h1><p>40 साल बीत जाने के बाद भी न्यूज़ीलैंड के इतिहास में यह हादसा बहुत अहमियत रखता है. युद्ध के बाद पैदा हुई पीढ़ी ने शायद इससे बड़ा हादसा नहीं देखा.</p><p>शायद इस हादसे के साथ ही न्यूज़ीलैंड की जनता ने अपनी एक मासूमियत को भी कहीं खो दिया, लोग अब प्रशासन पर पहले की तरह विश्वास नहीं कर पाते.</p><p>हालांकि इतनी महत्ता के बाद भी इस हादसे से जुड़ा कोई मेमोरियल न्यूज़ीलैंड में नहीं बना है. जिस जगह यह हादसा हुआ वहां पर एक क्रोस और एक चांदी के रंग का पत्थर से बना फ़र्न ज़रूर रखा गया है. पीड़ित परिवार के सदस्य वहां अक्सर जाते रहते हैं.</p><figure> <img alt="हादसे की जगह पर लोगों ने कुछ मेमोरियल बना दिए हैं." src="https://c.files.bbci.co.uk/8703/production/_109936543_gettyimages-109088474.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>हादसे की जगह पर लोगों ने कुछ मेमोरियल बना दिए हैं.</figcaption> </figure><p>इस साल की शुरुआत में न्यूज़ीलैंड ने एक योजना को मंज़ूरी दी थी जिसमें बताया गया था कि ऑकलैंड में इस हादसे की याद में एक ढांचा तैयार किया जाएगा. </p><p>आज जब न्यूज़ीलैंड इस हादसे की 40वीं वर्षगांठ पर पीड़ितों को याद कर रहा है, तब माउंट एरेबस की तलहटी में अभी भी उस एयरक्राफ़्ट के कुछ टुकड़े मौजूद हैं, जिन पर बर्फ़ जम चुकी है और वह मृतकों को अपनी शांत श्रद्धांजलि दे रहे हैं.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a 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