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इसराइल में नेतन्याहू के बिना कितना कुछ बदल जाएगा

<figure> <img alt="मध्य-पूर्व की सैटेलाइट तस्वीर" src="https://c.files.bbci.co.uk/14C8E/production/_109343158_hi003607044.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Science Photo Library</footer> <figcaption>मध्य-पूर्व की सैटेलाइट तस्वीर</figcaption> </figure><p>भारत से अगर पश्चिम की ओर उड़ान भरें तो पहले पाकिस्तान आएगा, फिर अफ़ग़ानिस्तान, फिर ईरान, इराक़, सीरिया और लेबनान. और लेबनान के ठीक नीचे स्थित है ये छोटा सा देश इसराइल. जिसके पश्चिमी किनारे पर समंदर है […]

<figure> <img alt="मध्य-पूर्व की सैटेलाइट तस्वीर" src="https://c.files.bbci.co.uk/14C8E/production/_109343158_hi003607044.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Science Photo Library</footer> <figcaption>मध्य-पूर्व की सैटेलाइट तस्वीर</figcaption> </figure><p>भारत से अगर पश्चिम की ओर उड़ान भरें तो पहले पाकिस्तान आएगा, फिर अफ़ग़ानिस्तान, फिर ईरान, इराक़, सीरिया और लेबनान. और लेबनान के ठीक नीचे स्थित है ये छोटा सा देश इसराइल. जिसके पश्चिमी किनारे पर समंदर है और बाक़ी तरफ़ अरब देश. </p><p>इसराइल की आबादी क़रीब 85 लाख की है जिसमें क़रीब 75 फीसदी यहूदी हैं और लगभग 21 फ़ीसदी अरब. हिब्रू और अरबी, दो मुख्य भाषाएं है. और ये देश मशहूर है समुद्री किनारों और अपनी नाइटलाइफ़ के लिए.</p><p>बीते क़रीब साढ़े दस साल से यहां के प्रधानमंत्री हैं बिन्यामिन नेतन्याहू, लेकिन अब सशक्त कहे जाने वाले इस नेता की कुर्सी ख़तरे में है.</p><p>इसराइल में साल में दूसरी बार हुए आम चुनावों के बाद उन्हें सरकार बनाने का न्योता मिला था, लेकिन 26 दिनों के अथक प्रयासों के बावजूद वो 61 सांसदों का समर्थन नहीं जुटा सके. </p><figure> <img alt="बिन्यामिन नेतन्याहू" src="https://c.files.bbci.co.uk/B436/production/_109343164_hi042814276.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> <figcaption>सरकार नहीं बना सके बिन्यामिन नेतन्याहू</figcaption> </figure><p>इसके बाद अपनी हार स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा, &quot;कुछ ही देर पहले मैंने राष्ट्रपति को बता दिया कि मैं सरकार बनाने का जनादेश लौटा रहा हूं. मैंने एक व्यापक नेशनल यूनिटी सरकार बनाने की बहुत कोशिश की. मौजूदा सुरक्षा चुनौतियों को देखते हुए इसराइल को इसी की ज़रूरत है.&quot;</p><p>चूंकि नेतन्याहू सरकार बनाने के प्रयास में विफल हो गए हैं, लिहाज़ा अब सरकार बनाने का मौक़ा मिलेगा बेनी गैंट्ज़ को.</p><p>जोश से लबरेज़ बेनी गैंट्ज़ के समर्थकों ने चुनाव नतीजों के बाद ‘देखो देखो कौन आया, अगला प्रधानमंत्री आया’ के नारे लगाए थे.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49520317?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">कश्मीर को लेकर पाकिस्तान में क्यों है इसराइल की चर्चा? </a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-48533709?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">इसराइल में उतार पर है नेतन्याहू का जादू? </a></li> </ul><figure> <img alt="बेनी गैंट्ज़" src="https://c.files.bbci.co.uk/10256/production/_109343166_hi056616097.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Reuters</footer> <figcaption>बेनी गैंट्ज़ इसराइल के पूर्व सेना प्रमुख हैं और उन्हीं की अगुवाई में 2014 में गज़ा पर विवादित हमले हुए थे</figcaption> </figure><h3>बेनी गैंट्ज़ का समय?</h3><p>59 साल के बेनी गैंट्ज़ इसराइल के पूर्व सेनाध्यक्ष हैं. उन्हीं की अगुवाई में साल 2014 में ग़ज़ा में बहुचर्चित और विवादित हमले किए गए थे. इसराइल के कहा था कि उसने हमास चरमपंथियों को निशाना बनाया था. लेकिन संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ इन हमलों में 2200 से ज़्यादा फ़लस्तीनियों की मौत हो गई थी जिनमें ज़्यादातर आम नागरिक थे. फ़लस्तीन इसे इसराइली सेना का ‘युद्ध अपराध’ बताता है.</p><p>वही बेनी गैंट्ज़ अब कुछ उदार चेहरे के साथ बिन्यामिन नेतन्याहू के ख़िलाफ़ राजनीति के मैदान में खड़े हैं और उनकी नज़रें नेतन्याहू की कुर्सी पर हैं. बहुमत हासिल करने के लिए उनके पास 28 दिनों का समय होगा. </p><p>गैंट्ज़ की पार्टी बिल्कुल नई पार्टी है. इस पार्टी ने अप्रैल 2019 में अपना पहला चुनाव लड़ा था.</p><p>इसराइल में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार हरेंद्र मिश्रा कहते हैं कि गैंट्ज़ को सत्ता का कोई अनुभव नहीं है. वो नेतन्याहू की अगुवाई वाली सरकार में ही सैन्य प्रमुख रहे हैं. हालांकि एक फ़ौजी के रूप में वो काफ़ी मशहूर रहे हैं और उनकी जनता में काफ़ी पकड़ और इज्ज़त है. इसी वजह से जब उन्होंने दल बनाया तो बदलाव चाह रहे सभी लोग उनके साथ आ गए. </p><p>इस साल हुए दो आम चुनावों में बेनी गैंट्ज़ जीते तो नहीं, लेकिन नेतन्याहू को भी नहीं जीतने दिया. सितंबर में हुए चुनावों में गैंट्ज़ की ब्लू एंड व्हाइट पार्टी को 120 में से 33 और नेतन्याहू की लिकुड पार्टी को 32 सीटें मिलीं. दोनों का बहुमत से फ़ासला लगभग बराबरी का रहा लेकिन गैंट्ज़ ने कहा कि उन्होंने अपना मिशन पूरा कर लिया है.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-48250741?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">इसराइल: नेतन्याहू जीत के बाद भी सरकार क्यों नहीं बना रहे </a></li> </ul><figure> <img alt="बेनी गैंट्ज़" src="https://c.files.bbci.co.uk/17F6/production/_109343160_hi057030467.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>सरकार बनाना इनके लिए भी आसान नहीं</h1><p>इसराइल में भारत के राजदूत रहे नवतेज सरना कहते हैं कि नेतन्याहू के व्यक्तित्व के साथ कई दल असहज महसूस करने लगे थे. इसलिए गैंट्ज़ के लिए सरकार बनाना नेतन्याहू के मुक़ाबले थोड़ा कम चुनौतीपूर्ण होगा.</p><p>नवतेज सरना के मुताबिक़, &quot;गैंट्ज़ का मोर्चा सेंट्रिस्ट राइट विचार का है इसलिए उनके साथ कोई भी आ सकता है. लेकिन वे चाहते हैं कि ब्लू एंड व्हाइट और लिकुड पार्टी एक साथ मिल जाएं, लेकिन गैंट्ज़ की शर्त है कि उसमें नेतन्याहू न हों तो यूनिटी सरकार बन सकती है. इसकी संभावना बहुत कम है लेकिन ऐसा हो भी सकता है.&quot;</p><p>अगर यूनिटी सरकार नहीं बनती तो गैंट्ज़ के सामने दूसरा विकल्प है कि वो दूसरे छोटे-छोटे दलों का समर्थन लेकर अल्पमत की सरकार बनाएं. </p><p>नवतेज सरना कहते हैं, &quot;इसके लिए उन्हें पूर्व रक्षा मंत्री लीबरमैन का समर्थन चाहिए होगा और साथ ही इसराइली अरब दलों की 13 सीटों के भी बाहर से समर्थन की ज़रूरत होगी ताकि अविश्वास प्रस्तावों के समय सरकार बचाई जा सके.&quot;</p><p>गैंट़्ज़ ने अरब दलों से बातचीत करके उनका गतिरोध तोड़ा है. लेकिन हरेंद्र मिश्रा बताते हैं कि अरब दल इसराइल की सत्ता में शामिल होने से बचते हैं और अगर वे गैंट्ज़ की सरकार में शामिल होने का फ़ैसला करते हैं तो यह एक बड़ा परिवर्तन होगा.</p><p>59 साल के बेनी गैंट्ज़ ने दिसंबर 2018 में इसराइल रेज़िलियंस पार्टी बनाकर अपनी राजनीतिक पारी शुरू की थी. इस दल के अपने तीन अहम विचार माने जाते हैं – यहूदी राष्ट्रवाद, सामाजिक उदारवाद और भ्रष्टाचार का विरोध. महज़ दस महीने के राजनीतिक करियर में वो इसराइल के प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी कर रहे हैं. </p><p>क्या अब इसराइल की सियासत में गैंट्ज़ का समय आ गया है, हरेंद्र मिश्रा कहते हैं, &quot;जो मौजूदा हालात हैं उसमें वो 61 लोगों का समर्थन जुटा पाएंगे इसके आसार नज़र नहीं आ रहे लेकिन अब सारी संभावनाएं खुल गई हैं. लेकिन तीसरे चुनाव को लेकर अनिच्छा उनके पक्ष में है और हो सकता है इस वजह से कुछ दल उनके साथ आ जाएं, अगर ऐसा हुआ तो बेनी गैंट्ज़ का समय ज़रूर शुरू हो जाएगा.&quot;</p><figure> <img alt="नेतन्याहू, गैंट्ज़" src="https://c.files.bbci.co.uk/1626E/production/_109343709_a7a21e4b-58d8-4cbb-993f-6a159da5cea5.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Reuters</footer> </figure><h1>विचारधारा में क्या फ़र्क़</h1><p>बेनी गैंट्ज़ राजनीति में नेतन्याहू सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों को मुद्दा बनाते हुए उभरे हैं. जानकार मानते हैं कि अभी उनके विचारों में बहुत स्पष्टता नहीं है और उन्होंने जान-बूझकर अपने भाषणों का रुख़ व्यापक रखा है. </p><p>तो बेनी गैंट्ज़ और नेतन्याहू की विचारधारा में फ़र्क़ क्या है, हरेंद्र मिश्रा बताते हैं, &quot;दोनों की विचारधारा में बहुत फ़र्क़ नहीं है और दोनों देश की सुरक्षा के इर्द-गिर्द बात करते रहे हैं. हालांकि इसराइल की अरब आबादी के साथ जुड़ने की एक पहल उनकी ओर से हुई है. दस अरब सांसदों ने उनका समर्थन किया है. इसके लिए उन्हें उनसे बातचीत करनी पड़ी, इसके लिए उन्होंने एक गतिरोध तोड़ा है और उनकी तरफ़ हाथ बढ़ाया है. ऐसे में कहा जा सकता है कि ये नेतन्याहू के मुक़ाबले कुछ उदारवादी हैं लेकिन अभी तक विचारधारा को लेकर कोई स्पष्ट राय बना पाना आसान नहीं होगा.&quot;</p><p>नवतेज सरना इसे सिर्फ़ उन्नीस-बीस का फ़र्क़ बताते हैं. बिन्यामिन नेतन्याहू ने बीते साल एक नेशनल लॉ पारित किया था जिसने यहूदीवाद को इसराइल के केंद्रीय भाव के तौर पर स्थापित कर दिया था. कहा गया कि इसने इसराइल में अल्पसंख्यक अरबी लोगों को आधिकारिक तौर पर दोयम दर्जे पर धकेल दिया है. इस क़ानून की काफ़ी आलोचना भी हुई थी लेकिन बेनी गैंट्ज़ ने सत्ता में आने पर इस पर पुनर्विचार करने का वादा किया है. लेकिन उनका सबसे बड़ा चुनावी वादा फ़लस्तीन से जुड़ा है. </p><p>हरेंद्र मिश्रा बताते हैं, &quot;नेतन्याहू के दौर में फ़लस्तीनियों के साथ शांति वार्ता पर पूर्ण विराम लग गया था. कोई पहल नहीं हुई, न कोई रियायत दी गई. इसे लेकर फ़लस्तीन में भी मायूसी है और इसराइल में भी कुछ लोग महसूस करने लगे हैं कि यह एक बम है जो कभी भी फट सकता है. तो गैंट्ज़ और उनके मोर्चे में शामिल दूसरे दलों ने इस शांति प्रक्रिया की बातचीत को फिर से शुरू करने का वादा किया है.&quot;</p><p>बेनी गैंट्ज़ ख़ुद को तटस्थ बताते हैं लेकिन नेतन्याहू और उनकी लिकुड पार्टी ने उनके लिए ‘कमज़ोर वामपंथी’ शब्द का इस्तेमाल किया. चुनाव से पहले नेतन्याहू ने यह भी कहा कि अगर वो नहीं जीते तो इसराइल में अरब प्रायोजित सरकार बन जाएगी. लेकिन चुनाव बाद उन्होंने यूनिटी सरकार बनाने के लिए गैंट्ज़ को साथ लाने की नाकाम कोशिशें कीं.</p><figure> <img alt="गज़ा में फलस्तीनी झंडे के साथ प्रदर्शन करते युवक" src="https://c.files.bbci.co.uk/2DD6/production/_109343711_hi010010536.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>गज़ा में फलस्तीनी झंडे के साथ प्रदर्शन करते युवक</figcaption> </figure><h1>विदेश नीति पर गैंट्ज़ की राय</h1><p>इसराइल में अगर सत्ता बदली और बेनी गैंट्ज़ सरकार बनाने में सफल रहे तो क्या इसराइल की विदेश नीति में भी फेरबदल होंगे? क्या विवादित बस्तियों और सैन्य अभियानों पर गैंट्ज़ के आने से कुछ बदलेगा? </p><p>नवतेज सरना कहते हैं, &quot;नेतन्याहू ने जो वेस्ट बैंक को जॉर्डन घाटी वगैरह में मिलाने की बात कही थी. इस पर गैंट्ज़ का कहना था कि ये उनका ही प्रस्ताव है. तो ज़्यादा फ़र्क़ नहीं होगा, सिर्फ़ टोन और बारीकियों का फ़र्क़ होगा. सिर्फ़ चेहरा बदलेगा और व्यक्तित्व बदलेगा. नेतन्याहू का जो ‘लार्जर दैन लाइफ़’ व्यक्तित्व बन गया था, वो बदल जाएगा.&quot;</p><p>हरेंद्र मिश्रा भी मानते हैं कि गैंट्ज़ के आने के बाद भी विदेश नीति के स्तर पर किसी बड़े बदलाव के आसार नहीं हैं, सिवाय एक मसले के, जो अमरीका, बल्कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप से जुड़ा है.</p><p>वो कहते हैं, &quot;नेतन्याहू और ट्रंप के बीच ख़ासी गर्मजोशी दिखी है और दोनों एक दूसरे के राजनीतिक फ़ैसलों में एक दूसरे का साथ देते रहे हैं. लेकिन इसराइल की पारंपरिक नीति रिपब्लिकन और डेमोक्रैट्स के बीच भेद न करके अमरीका से संबंध मज़बूत रखने की रही है. तो गैंट्ज़ अगर सत्ता में आते हैं तो हो सकता है कि वो इसराइल-अमरीका संबंधों को मज़बूत करने पर ज़ोर देंगे, बजाय ट्रंप से व्यक्तिगत संबंधों को बढ़ाने पर.&quot;</p><figure> <img alt="नेतन्याहू के साथ मोदी" src="https://c.files.bbci.co.uk/7BF6/production/_109343713_2d787a06-7558-437e-85a1-8b6835e0d4bc.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>नेतन्याहू के साथ मोदी</figcaption> </figure><p>2014 के बाद से ही भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिन्यामिन नेतन्याहू के बीच ख़ासी दोस्ती देखी गई. दोनों नेता एक दूसरे के देशों के दौरे पर गए. मित्रता दिवस पर भारत में इसराइली दूतावास ने नरेंद्र मोदी को हिंदी में ‘ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे’ लिखकर शुभकामनाएं दीं. तो अगर बेनी गैंट्ज़ प्रधानमंत्री बन जाते हैं तो भारत के लिए उसका क्या अर्थ होगा?</p><p>हरेंद्र मिश्रा कहते हैं, &quot;नब्बे के दशक से ही दोनों देशों में चाहे जो सरकार हो, संबंध अच्छे रहे हैं. हालांकि उसे लेकर वैसा शोर नहीं रहा है. भारत में कांग्रेस के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती सरकार यहां की भू-राजनीतिक हालात, आबादी और अपने वोटिंग पैटर्न जैसे घरेलू राजनीतिक कारणों से इसराइल से दोस्ती के भव्य प्रदर्शन से बचते रहे हैं.&quot;</p><p>हरेंद्र मिश्रा के मुताबिक़, कांग्रेस सरकार के समय भी नेतन्याहू भारत आना चाहते थे लेकिन भारत सरकार उससे पीछे हटती रही. लेकिन बीजेपी के समय ऐसा नहीं है और सरकार खुलकर इसराइल और उनके नेता के साथ अपनी दोस्ती का इज़हार करती है. </p><p>वह कहते हैं, &quot;बस मोदी की सत्ता के साथ यही एक अहम बदलाव आया है. इसराइल में सत्ता परिवर्तन से इस पर कोई असर पड़ने के आसार नहीं है. इसराइल भारत को बहुत अहमियत देता है और चाहे जिसकी सरकार बने यह अहमियत बरक़रार रहेगी.&quot;</p><p>ज़्यादातर जानकार यही मानते हैं कि गैंट्ज़ के आने से इसराइल की नीतियों में कोई आमूलचूल बदलाव आने के आसार कम हैं. हालांकि ये आकलन ही हैं. </p><p>गैंट्ज़ ने अपने कई पत्तों का मुंह नहीं खोला है जिन पर वे भविष्य में वे घरेलू राजनीति की दशा-दिशा के मुताबिक़ फ़ैसला ले सकते हैं. </p><p>लेकिन उससे पहले गैंट्ज को 28 दिनों के भीतर बहुमत हासिल करने की मुश्किल चुनौती पार करनी है. वो ऐसा नहीं कर पाए तो इसराइल को एक साल में तीसरी बार आम चुनावों का बोझ झेलना होगा. </p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते 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