<figure> <img alt="बीबीसी 100 वीमेन" src="https://c.files.bbci.co.uk/AEC6/production/_109324744_photo.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>महिलाओं के लिए भविष्य कैसा होने वाला है या वो भविष्य कैसा होना चाहिए. इसी पर मंगलवार को बीबीसी 100 वीमेन- सीज़न 2019 की फ़्यूचर कॉन्फ्रेंस में दिन भर चर्चा हुई.</p><p>दिल्ली में गोदावरी ऑडिटोरियम, आंध्र एसोसिएशन में आयोजित इस कार्यक्रम में अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी छाप छोड़ने वाली महिलाओं ने अपने विचार और अनुभव साझा किए साथ ही महिलाओं के भविष्य पर चर्चा की.</p><p>बीबीसी 100 वीमेन – ये बीबीसी की एक ख़ास मुहिम है जिसकी शुरुआत 2013 में हुई थी. इसके तहत बीबीसी साल दर साल ऐसी महिलाओं की कहानियों को दुनिया के सामने लेकर आती है जिनसे दुनिया भर की दूसरी महिलाओं को प्रेरणा मिल सकती है.</p><p>पिछले 6 सालों में 100 वीमेन सीरीज़ के तहत बीबीसी ने अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं को सम्मानित किया है.</p><figure> <img alt="बीबीसी 100 वीमेन अरण्या जौहर" src="https://c.files.bbci.co.uk/12838/production/_109323857_4eb79bc4-3bc0-40c1-94ae-a4491feed093.jpg" height="512" width="1024" /> <footer>BBC</footer> </figure><h3>शिक्षा से समानता की ओर </h3><p>इस कॉन्फ्रेंस में सबसे पहले कवयित्री <strong>अरण्या जौहर</strong> ने साल 2030 के लिए अपना विज़न साझा किया और बताया कि कैसे ‘युवा, सांवली लड़कियां’ महिलाओं के भविष्य का नेतृत्व कर सकती हैं. </p><p>इस कार्यक्रम की एक प्रमुख स्पीकर अरण्या ने साल 2030 में होने वाली दुनिया के एक चित्र की परिकल्पना की. </p><p>एक ऐसी दुनिया जिसमें सभी को समान शिक्षा मिले, अपने शरीर पर ख़ुद का हक़ हो और हमें सामाजिक बदलाव की दिशा ले जाने वाला नेतृत्व होगा. </p><p>उन्होंने शिक्षा को समानता का बहुत बड़ा माध्यम बताया. अरण्या ने अपनी कविता के ज़रिए कहा, "शिक्षा समानता के लिए बेहद ज़रूरी है. इसमें हैरानी की कोई बात नहीं कि शिक्षा ने महिलाओं को सबसे ज़्यादा प्रभावित किया है. हर बार जब एक लड़की स्कूल जाती है तो पूरी दुनिया को फ़ायदा होता है."</p><figure> <img alt="बीबीसी 100 वीमेन डॉ. साराह मार्टिन्स दा सिल्वा" src="https://c.files.bbci.co.uk/41C0/production/_109323861_eac23c5b-c175-48d6-9125-b3d2a95cd2ab.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><h3>पुरुषों में बांझपन</h3><p>हमारे समाज में अमूमन बच्चे न होने के लिए महिलाओं को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है. पुरुषों के बांझपन की समाज और विज्ञान दोनों में ख़ास चर्चा नहीं होती.</p><p>लेकिन स्कॉटलैंड में प्रमुख गाइनकोलॉजिस्ट <strong>डॉ. साराह मार्टिन्स दा सिल्वा</strong> इसी विषय पर फ़ोकस करती हैं.</p><p><a href="https://twitter.com/JPriyadarshi/status/1186519353551769606">https://twitter.com/JPriyadarshi/status/1186519353551769606</a></p><p>उन्होंने स्त्री प्रधान भविष्य में प्रजनन पर बात की. </p><p>साराह मार्टिन्स ने कहा, "मुझे उम्मीद है कि हम असमानताओं और महिलाओं पर प्रजनन क्षमता के बोझ को कम करने के लिए पुरुष प्रजनन स्वास्थ्य में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, निवेश और इनोवेशन का उपयोग कर सकते हैं."</p><p>उनके 2030 के विज़न के मुताबिक़ पुरुषों में बांझपन का इलाज महिलाओं में बांझपन के विस्तार से जोड़कर नहीं देखा जाएगा. </p><figure> <img alt="बीबीसी 100 वीमेन मैरिलिन वेरिंग" src="https://c.files.bbci.co.uk/8FE0/production/_109323863_96356ad1-4dd2-4bec-b643-33274557f2d0.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><h3>महिलाएं और अर्थव्यवस्था</h3><p><strong>मैरिलिन वेरिंग और शुभलक्ष्मी नंदी</strong> ने महिलाओं के अवैतनिक कामों के मूल्य पर बात की. साथ ही उसके अर्थव्यवस्था में महत्व पर ज़ोर दिया. </p><p><a href="https://twitter.com/yogital/status/1186531191643693056">https://twitter.com/yogital/status/1186531191643693056</a></p><p>मैरिलिन ने कहा कि दुनियाभर में लोगों को ‘फ़ेमिनिस्ट इकोनॉमिस्ट’ को गंभीरता से लेने की ज़रूरत है.</p><p>एक्टिविस्ट शुभलक्ष्मी नंदी ने कहा कि स्त्री-प्रधान भविष्य में आर्थिक प्रदर्शन के लिए लैंगिक समानता, सतत विकास और महिलाओं के मानवाधिकार प्रमुख हिस्से होने चाहिए. </p><figure> <img alt="बीबीसी 100 वीमेन शुभलक्ष्मी नंदी" src="https://c.files.bbci.co.uk/5994/production/_109323922_5a400636-6926-4d28-b12d-f6130e299eee.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>उन्होंने सवाल किया कि जब फसलों, खाद्य पदार्थों पर इतना निवेश होता है तो दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण खाना उत्पादित (बच्चे के लिए दूध) करने वाली औरत को भरपाई क्यों नहीं हो सकती. ये किसी बच्चे के भविष्य और शिक्षा में सबसे महत्वपूर्ण निवेश होगा. </p><p>लैंगिक समानता पर विशेषज्ञ और एक्टिविस्ट शुभालक्ष्मी नंदी ने कहा कि महिलाएं कई कामों में कार्यबल का हिस्सा मानी ही नहीं जातीं. जैसे कि खेती में जीतोड़ मेहनत करने के बावजूद भी वो किसान नहीं कहलातीं. </p><figure> <img alt="बीबीसी 100 वीमेन नताशा नोएल" src="https://c.files.bbci.co.uk/1471E/production/_109324738_399be350-81dd-425d-84b8-c6f4c78d7938.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><h1>अपनी ताकत को पहचान देती महिलाएं </h1><p>योग गुरु और मोटिवेशनल स्पीकर <strong>नताशा नोएल </strong>बॉडी पॉज़िटिविटी पर ज़ोर देती हैं और ख़ुद से प्यार करते रहने को कहती हैं.</p><p>नताशा ने बताया कि कैसे उन्होंने तीन साल की उम्र में अपनी मां खो दिया और यौन शोषण का सामना किया. उन्होंने सात साल की उम्र में इसे झेला. </p><p>नताशा कहती हैं, ”मैं अब भी संघर्ष करती हूं, लेकिन मैं रोज अपने आप से प्यार करना सीख रही हूं.”</p><p>नताशा दूसरों के लिए उदाहरण बनकर उभरी हैं. वो बचपन में झेली प्रताड़ना का लड़कर आज यहां तक पहुंची हैं. </p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>:</strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50115946?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">नताशा नोएल की पूरी कहानी, खुद उनकी जुबानी</a></p><figure> <img alt="बीबीसी 100 वीमेन नताशा नोएल" src="https://c.files.bbci.co.uk/DC8E/production/_109326465_5ea85e0d-03a0-4475-9fd9-0cd821560e1c.jpg" height="640" width="640" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>उन्होंने बचपन के बुरे अनुभवों से निकलने में योगा से मिली मदद पर बात की. वह कहती हैं कि अपने दर्द को स्वीकार करो, उसे समझो और लड़ो, पर उसे अपनी ज़िंदगी से दूर जाने दो. उसे लेकर मत बैठो. </p><p>उन्होंने स्टेज पर ही कुछ योगासन कर दर्शकों में भी ऊर्जा भर दी. </p><p>नताशा ने कहा, ”गति धीमी है लेकिन महिलाएं अपनी ताकत को पहचान दे रही हैं. हमें अच्छे आईक्यू वाली ही नहीं बल्कि गंभीर ईक्यू (भावनात्मक गुण) वाली महिलाओं की भी ज़रूरत है. एक बेहतर इंसान बनने के लिए.” </p><figure> <img alt="बीबीसी 100 वीमेन राया बिदशहरी" src="https://c.files.bbci.co.uk/17658/production/_109323859_dabf12e8-b22c-407a-ba31-853238035db5.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><h3>भविष्य के स्कूल</h3><p>शिक्षा से ही जुड़े एक और पक्ष भविष्य के स्कूलों पर <strong>राया बिदशहरी </strong>ने बात की.</p><p>Awecademy की संस्थापक और सीईओ राया बिदशहरी एक अलग ही तरह के स्कूलों की परिकल्पना पर ज़ोर देती हैं.</p><p><a href="https://twitter.com/DikshitAshish/status/1186516563655983105">https://twitter.com/DikshitAshish/status/1186516563655983105</a></p><p>वह कहती हैं, "आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ही भविष्य है. शिक्षा में वैकल्पिक मॉडल पूरी दुनिया में बढ़े हैं. लेकिन इन्हें मुख्य धारा से जोड़ने से ज़रूरत है."</p><p>राया बिदशहरी ने कहा कि नंबर और जानकारी दो अलग चीजें होती हैं. अकादमिक या तकनीकी मॉडल के बजाए अगर आप बौद्धिक, सामाजिक और नैतिक प्रगति के आधार पर कुछ सीख रहे हैं तो ये ज़्यादा सार्थक होगा.</p><p>वह स्कूलों के भविष्य को एक ऐसी जगह के तौर पर देखती हूं कि युवाओं को आने वाली बड़ी चुनौतियां का हल तकनीक के माध्यम से ढूंढने में मदद करेंगे.</p><figure> <img alt="बीबीसी 100 वीमेन सुस्मिता मोहंती" src="https://c.files.bbci.co.uk/1400C/production/_109323918_3bdd2bc9-658f-4f8f-bf94-eca3ed9e4965.jpg" height="340" width="680" /> <footer>BBC</footer> </figure><h1>अब बात अंतरिक्ष और महिलाओं की </h1><p>स्पेस वुमन कहलाने वालीं <strong>सुस्मिता मोहंती </strong>ने पृथ्वी की बात करते हुए कहा, ”हम सभी इस वक़्त एक नीले अंतरिक्ष यान में ब्रह्मांड में तेज़ी से दौड़ रहे हैं.”</p><p>भारत की पहली स्पेस एंटरप्रयोन्योर हैं. वो स्पेसशिप डिज़ाइन करती हैं और जलवायु परिवर्तन के लिए काम करती हैं. </p><p>सुस्मिता मोहंती ने दर्शकों को ऐसे भविष्य की कल्पना करने के लिए कहा जब पृथ्वी रहने लायक नहीं बचेगी. </p><p>उन्होंने कहा, ”मुझे डर है कि तीन और चार पीढ़ियों के बाद हमारा ग्रह रहने लायक नहीं रहेगा. उम्मीद है कि इंसान जलवायु परिवर्तन को लेकर जागेगा.”</p><p>सुस्मिता मोहंती ने जलवायु परिवर्तन पर निगरानी के लिए स्पेस तकनीक के इस्तेमाल पर बात की. </p><p>साथ ही कहा कि इंसान को युद्ध और हथियारों की बजाय ऊर्जा के स्वच्छ तरीकों की खोज पर निवेश करने की ज़रूरत है. </p><figure> <img alt="बीबीसी 100 वीमेन दनित पेलेग" src="https://c.files.bbci.co.uk/F8FE/production/_109324736_63380d5e-0e6e-4726-8f9f-a08349fc027f.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><h1>3डी प्रिंटिंग और फैशन </h1><p>”एक ऐसे भविष्य की कल्पना करें जब हम अपने दोस्त को ड्रेस ईमेल कर सकें. वो उसे डाउनलोड करे, प्रिंट निकाले और पहन लें.”</p><p>ये कहना था 30 साल से भी कम उम्र की डिज़ाइनर <strong>दनित पेलेग</strong> का, जो 3जी तकनीक और एथिकल फै़शन के मिश्रण से एक नया विज़न देती हैं. </p><figure> <img alt="डिज़ाइनर दनित पेलेग" src="https://c.files.bbci.co.uk/60A6/production/_109324742_230ef0e6-5bb3-4645-9152-ba3e0e056246.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>इज़रायल की दनित पेलेग ने फ़्यूचर कांफ्रेंस में 3डी प्रिंटिंग की भविष्यवादी दुनिया के माध्यम से कपड़ों में क्रांति लाने के बारे में बात की. </p><p>उन्होंने 2030 की परिकल्पना में कहा कि एक फैशन डिज़ाइनर का कलेक्शन मिनटों में तैयार हो जाएगा और वो टिकाऊ व वैकल्पिक फैशन होगा. </p><p>साथ ही उन्होंने अधिकतर रॉ टेक्स्टाइल मटीरियल के रिसाइकिल होने का भी मुद्दा उठाया. </p><figure> <img alt="बीबीसी 100 वीमेन नंदिता दास" src="https://c.files.bbci.co.uk/150A6/production/_109328168_3146cc49-f847-4115-998e-eb2bbdc23dec.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><h1>गोरे रंग का जुनून </h1><p>फ़्यूचर कॉन्फ़्रेंस में आए लोगों के साथ <strong>नंदिता दास</strong> ने फ़िल्म इंडस्ट्री में रंग को लेकर होने वाले भेदभाव पर अपने निजी अनुभव साझा किए. </p><p>उन्होंने बताया कि सांवले अभिनेता-अभिनेत्रियों को कमर्शियल सिनेमा में कैसी दिक्कतें आती हैं.</p><p>नंदिता ने कहा कि फ़िल्मों में शिक्षित, उच्चवर्ग की महिला की भूमिका के लिए उनसे मेकअप करके त्वचा को गोरा करने के लिए कहा जाता है.</p><p>उन्होंने कहा, "लेकिन जब मुझे कोई ग्रामीण पृष्ठभूमि वाला रोल करना होता है तब मेरी तारीफ़ होती है कि मैं कितनी सांवली और ख़ूबसूरत हूं."</p><p>नंदिता दास ने कहा कि भारत में गोरे रंग प्रति जुनून को पूरी तरह से सामान्य बना दिया गया. देश की आधे से ज़्यादा आबादी का इसी जुनून के कारण प्रतिनिधित्व नहीं हो रहा.</p><p>नंदिता ने कहा, "भारत में इतने सारे रंग हैं लेकिन जुनून सिर्फ़ गोरेपन को लेकर है. 80-90 प्रतिशत लोगों के रंग की स्किन कही दिखती ही नहीं." </p><figure> <img alt="नंदिता दास" src="https://c.files.bbci.co.uk/16FE6/production/_109328149_1360abda-b142-4643-866c-7195a8316a56.jpg" height="976" width="1280" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>हालांकि वह संतोष जताती हैं कि हाल के सालों में जागरूकता बढ़ी है. उन्होंने कहा, "युवा महिलाएं कभी एयरपोर्ट या बुकशॉप पर मिलती हैं तो इस बारे में बात करती हैं और त्वचा के रंग को लेकर होने वाले भेदभाव को लेकर किए जा रहे काम को लेकर शुक्रिया कहती हैं."</p><p>उन्होंने कहा, "हमें समाज में पहले से ख़ूबसूरती के बारे बताया जाता है कि रंग कैसा होना चाहिए, क़द क्या होना चाहिए और फिर हम ख़ुद को उन पैमानों पर ढालने की कोशिश करते हैं. क्यों महिलाओं को ख़ूबसूरत जैसे शब्द के भार से लादा जाए? हमें हर तरह की विविधता का सम्मान करना चाहिए."</p><p>नंदिता ने कहा गोरे रंग को ख़ूबसूरती का पैमाना बना दिया गया है. उन्होने पूछा, "अच्छा दिखने में कोई बुराई नहीं कि लेकिन क्या यह आपकी प्राथमिकता होनी चाहिए?"</p><p>भविष्य के लिए अपना विज़न साझा करते हुए उन्होंने कहा, "समाज में निरंतर चल रही हिंसा और नफ़रत को ख़त्म करें. अगर अधिक महिलाएं सक्रिय भूमिका में होंगी तो दुनिया में पहले से अधिक शांति होगी."</p><figure> <img alt="बीबीसी 100 वीमेन पाओला विलारियल" src="https://c.files.bbci.co.uk/7690/production/_109325303_aa65a8fd-b55d-44a1-b74d-a895f596c10e.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><h1>न्याय में डाटा का महत्व </h1><p>मैक्सिको की कंप्यूटर प्रोग्रामर <strong>पाओला विलारियल</strong> सामाजिक संगठनों की असमानता के ख़िलाफ़ लड़ाई में मदद के लिए डाटा साइंस और टेक्नोलॉजी पर भरोसा करती हैं. </p><p>पाओला ने 12 साल की उम्र में खुद ही कोड बनाना सीखा था. अमरीका जाने से पहले 15 साल की उम्र में वेब डिजाइनर के तौर पर काम करना शुरू किया. अमरीका में उन्होंने न्याय व्यवस्था से नस्लीय भेदभाव को मिटाने पर फोकस किया. </p><p>वह मानती हैं कि इस पक्षपातपूर्ण समाज में और प्रभावी प्रशासन वाला समाज बनाने के लिए डाटा और एल्गोरिदम का इस्तेमाल महत्वपूर्ण है. </p><p>पाओला कहती हैं, ”डाटा और तकनीक ऐतिहासिक रूप से भुलाए जा चुके लोगों को फिर से ताकत देने में मदद करते हैं. वह सभी तरह की असमानता और पक्षपात से निपटने में विकासशील देशों की वाकई मदद कर सकते हैं.” </p><figure> <img alt="बीबीसी 100 वीमेन गिना ज़ुर्लो" src="https://c.files.bbci.co.uk/12AAE/production/_109326467_dbded38e-596d-4902-bab9-40d22d5bc14f.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><h1>बच्चे दुनिया का धर्म चलाएंगे </h1><p>धार्मिक विद्वान <strong>गिना ज़ुर्लो</strong> ने दुनिया और धर्म को लेकर भविष्य के लिए एक अलग ही नज़रिया दिया. </p><p>इसमें महिलाओं की भूमिका को लेकर गिना कहती हैं, ”लगातार शोधों से पता चलता है कि महिलाएं पुरुषों के मुकाबले ज़्यादा धार्मिक होती हैं. मैं कहना चाहती हूं कि महिला धर्म को, पृथ्वी को बनाए रखने वालों में से हैं.”</p><p>उन्होंने विस्तार से बताया कि कैसे दुनिया का धार्मिक अतीत वर्तमान के साथ परस्पर प्रभाव डालता है और भविष्य को आकार देता है. </p><figure> <img alt="बीबीसी 100 वीमेन गिना ज़ुर्लो" src="https://c.files.bbci.co.uk/178CE/production/_109326469_7f82ff12-79fd-4472-a84c-726ca4b65a99.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>गिना दुनिया में माने जाने वाले धर्मों को लेकर एक सांख्यिकीविद भी हैं. उन्होंने 1900 से 2050 तक दुनिया में धर्म से जुड़ा एक दिलचस्प चार्ट दिखाया. </p><p>आंकड़ों के आधार पर वह कहती हैं कि 2030 तक ईसाई और मुस्लिम कुल आबादी का 59 प्रतिशत होंगे. </p><p>उन्होंने कहा कि अगर सभी धर्मों में जन्मदर समान रहता है और कोई धर्मपरिवर्तन नहीं होता तो 2030 तक दुनिया में इस्लाम में सबसे ज्यादा बच्चे होंगे. </p><p>दुनिया की धार्मिक जनसांख्यिकीय इससे निर्धारित होने जा रही है कि महिलाओं के कितने बच्चे होते हैं. </p><figure> <img alt="बीबीसी 100 वीमेन डॉ. प्रगति सिंह" src="https://c.files.bbci.co.uk/6B46/production/_109326472_045f48b7-261a-4e5c-ad44-2052f337c803.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><h1>प्यार का भविष्य </h1><p>अपनी आंखें बंद करें और इन शब्दों से आपके सामने आने वाली तस्वीर पर गौर करें: एक उड़ता हाथी, एक अंतरंग संबंध, एक रोमांटिक डेट, शादी, आदर्श परिवार, प्यार. </p><p><strong>डॉ. प्रगति सिंह</strong> के साथ हुआ ये सेशन कांफ्रेंस में मौजूद दर्शकों के लिए बेहद दिलचस्प रहा. </p><p>डॉ. प्रगति सिंह एक हेल्थकेयर प्रोफेशनल हैं. उन्होंने अपने सेशन में सेक्सुएलिटी और लैंगिक पहचान पर बात की. </p><p>उन्होंने संबंधों की अवधारणा को चुनौती देते हुए महिलाओं के लिए अकेले रहने के अधिकार पर चर्चा की और पूछा ”क्या आपको एक पार्टनर की जरूरत है”?</p><p>वह एसेक्सुएलिटी पर वर्कशॉप देती हैं और इस दौरान उन्हें कई ऐसी महिलाओं के संदेश आते हैं जो शारीरिक संबंध नहीं बनाना चाहतीं लेकिन उनकी अरेंज मैरिज हो गई है. </p><p>उन्होंने कहा कि एसेक्सुएलिटी लोगों के लिए ऐसा माहौल बनाने की ज़रूरत है जिसमें वो सहज महसूस कर सकें. वह कहती हैं, ”एक एसेक्सुअल व्यक्ति को सबसे पहले एक समुदाय के अहसास और ये जानने की ज़रूरत होती है कि वो अकेला नहीं हैं.”</p><p>इसके पीछे विचार ये है कि अपनी रुढ़ियों का मुकाबला करें और महिला के नेतृत्व वाले भविष्य में अपने जीवन और पहचान को खुद आकार दें. </p><figure> <img alt="बीबीसी 100 वीमेन हाइफ़ा सदिरी" src="https://c.files.bbci.co.uk/B966/production/_109326474_5bcb2f6c-ffd2-4476-b051-bd2e075af8cc.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><h1>महिलाओं के लिए समान अवसर </h1><p>ट्यूनीशिया की रहने वालीं<strong> हाइफ़ा सदिरी </strong>की उम्र भले ही कम हो लेकिन उनकी सोच कहीं ज़्यादा परिपक्व है. </p><p>महिलाओं के नेतृत्व वाले भविष्य पर बात करते हुए हाइफ़ा सदिरी अपने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म Entr@crush के बारे में बताती हैं. </p><p>ये प्लेटफॉर्म जिन युवाओं के पास बिजनस आईडिया है उन्हें अपनी जैसी सोच वाले लोगों, निवेशकों और अन्य कारोबारियों के साथ नेटवर्क बनाने का मौका देता है. </p><p>हाइफ़ा सदिरी कहती हैं, ”जो महिलाएं शहरों में नहीं रहतीं ये प्लेटफॉर्म उन्हें स्किल सीखने और बिजनस शुरू करने के लिए पहला कदम उठाने में मदद कर सकता है क्योंकि इसमें सबकुछ ऑनलाइन है.”</p><p>2030 के लिए अपने विज़न को साझा करते हुए हाइफ़ा ने कहा कि महिलाओं के नेतृत्व वाला भविष्य वह है जिसमें युवा महिलाओं को नवाचार और रोजगार के पर्याप्त अवसर मिलें. </p><p>उन्होंने कहा कि मैं एक सुबह ऐसी दुनिया में जागना चाहती हूं, जहां सभी पुरुषों और महिलाओं को समान अधिकार और अवसर मिलें. </p><figure> <img alt="बीबीसी 100 वीमेन वासु पीरमलानी" src="https://c.files.bbci.co.uk/10286/production/_109328166_18266a5a-5201-430d-bebc-0f77cd1f760e.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><h1>महिलाएं और पर्यावरण </h1><p>पर्यावरणविद् और स्टैंड अप कॉमेडियन वासु पीरमलानी एक जबरदस्त हंसी के साथ अपना सेशन शुरू करती हैं. </p><p>लेकिन, इसके बाद वो प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण जैसे गंभीर मुद्दे पर चर्चा करने लगती हैं. </p><p>उन्होंने दर्शकों से पूछा कि एक प्लास्टिक को जैविक रूप से नष्ट होने में कितना समय लगता है. जवाब मिला 500 साल. इसके बाद तुलना करते हुए उन्होंने कहा कि एक प्लास्टिक की बोतल से पानी पीने में सिर्फ़ पांच मिनट लगते हैं. </p><p>वासु पीरमलानी ने इस पर ज़ोर दिया कि पर्यावरण बचाने का मसला सिर्फ़ रिसाइक्लिंग से नहीं बल्कि पुन:इस्तेमाल से ज़्यादा जुड़ा है. </p><p>वासु पीरमलानी साल 2015 में राष्ट्रपति से नारी शक्ति अवॉर्ड से भी सम्मानित हो चुकी हैं. </p><p>महिलाओं के भविष्य पर अपना विज़न बताते हुए वासु पीरमलानी ने कहा, ”अपनी आवाज सुनने दो, न कि सिर्फ़ अपने लिए बल्कि पूरी पृथ्वी के लिए.”</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/user/bbchindi">यूट्यूब</a><strong>पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>
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#100WOMEN: “हमारी परवरिश ऐसी है जो औरत के काम को महत्व नहीं देती”
<figure> <img alt="बीबीसी 100 वीमेन" src="https://c.files.bbci.co.uk/AEC6/production/_109324744_photo.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>महिलाओं के लिए भविष्य कैसा होने वाला है या वो भविष्य कैसा होना चाहिए. इसी पर मंगलवार को बीबीसी 100 वीमेन- सीज़न 2019 की फ़्यूचर कॉन्फ्रेंस में दिन भर चर्चा हुई.</p><p>दिल्ली में गोदावरी ऑडिटोरियम, आंध्र एसोसिएशन में आयोजित इस कार्यक्रम में अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी […]
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