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…तब टेंपो से चुनाव प्रचार करना भी बड़ी बात थी
राजू नंदन, चास : बिहार सरकार के पूर्व मंत्री अकलू राम महतो वर्ष 2009 तक राजनीति में सक्रिय रहे. इसके बाद राजनीतिक जीवन से लगभग संन्यास ले लिया है. इन दिनों सिर्फ सामाजिक कार्य व मजदूर यूनियन में सक्रिय हैं. श्री महतो वर्ष 1980 व 1995 में बोकारो के विधायक चुने गये थे. 1995 में […]
राजू नंदन, चास : बिहार सरकार के पूर्व मंत्री अकलू राम महतो वर्ष 2009 तक राजनीति में सक्रिय रहे. इसके बाद राजनीतिक जीवन से लगभग संन्यास ले लिया है. इन दिनों सिर्फ सामाजिक कार्य व मजदूर यूनियन में सक्रिय हैं. श्री महतो वर्ष 1980 व 1995 में बोकारो के विधायक चुने गये थे. 1995 में विधायक बनने के बाद बिहार सरकार में वित्त व सांख्यिकी क्रियान्वयन मंत्री बनाये गये थे. उन्होंने 1977 में बोकारो विधानसभा का चुनाव लड़ा था.
इस चुनाव में वह पराजित हुए थे. इस चुनाव में उन्होंने मात्र 1700 रुपये खर्च किये थे. चुनाव प्रचार के दौरान पैदल व साइकिल से बोकारो विधानसभा क्षेत्र का भ्रमण करते थे. वहीं 1980 में लोकदल के टिकट से 5500 रुपये खर्च कर बोकारो के विधायक बने थे. इस चुनाव में भी उन्होंने साइकिल व टेंपो से प्रचार किया था. तब टेंपो से चुनाव प्रचार करना भी बड़ी बात होती थी.
10,000 खर्च कर लड़े सांसद का चुनाव
श्री महतो 1989 में धनबाद लोकसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़े थे. इस चुनाव में मात्र 10 हजार रुपये खर्च हुए थे. इसके अलावा 1999 में हजारीबाग व 2009 में गिरिडीह लोकसभा से चुनाव लड़ चुके हैं. वर्ष 1999 में आरजेडी के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़े थे. इस चुनाव में सिर्फ सात लाख रुपये खर्च कर तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा को कड़ी टक्कर दी थी.
समर्थकों के साथ करते थे प्रचार : श्री महतो ने कहा कि पहले के चुनाव में तड़क-भड़क नहीं था. कार्यकर्ताओं के साथ गांव का भ्रमण करते थे. साथ ही मतदान करने की अपील करते थे. भूख लगने पर कार्यकर्ताओं के घर पर ही भोजन करके दूसरे गांव प्रचार करने निकल जाते थे.
पूर्व के चुनाव में कार्यकर्ता बिना स्वार्थ के साथ देते थे. लेकिन आज के दौर में कोई भी बिना पैसे के कार्यकर्ता नहीं बनता है. इस कारण आज लोकतंत्र कमजोर पड़ता जा रहा है. लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए जनता को नि:स्वार्थ मतदान करना होगा.
कमजोर पड़ रही है समाजवाद व वामपंथ की राजनीति : श्री महतो ने कहा कि वर्ष 2000 के बाद से चुनाव काफी खर्चीला हो गया है. इस कारण ईमानदार लोग चुनाव नहीं लड़ पाते हैं. बल्कि चंद पैसे वाले लोग चुनाव लड़ कर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं. जबसे पैसे का बोलबाला बढ़ा है, पूरे देश में समाजवाद व वामपंथ की राजनीतिक पकड़ कमजोर होती जा रही है.
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