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क्यों घर छोड़कर भाग रहे हैं ये पाकिस्तानी

पाकिस्तान के उत्तरी वज़ीरिस्तान क्षेत्र में चरमपंथियों के ख़िलाफ़ जारी सेना के अभियान के बाद हज़ारों की संख्या में लोग वहां से सुरक्षित ठिकानों की तरफ़ भाग रहे हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि बन्नू के पास विस्थापित लोगों के लिए एक कैंप लगाया गया है, लेकिन वहां भोजन, पानी और बिजली का अभाव […]

पाकिस्तान के उत्तरी वज़ीरिस्तान क्षेत्र में चरमपंथियों के ख़िलाफ़ जारी सेना के अभियान के बाद हज़ारों की संख्या में लोग वहां से सुरक्षित ठिकानों की तरफ़ भाग रहे हैं.

स्थानीय लोगों का कहना है कि बन्नू के पास विस्थापित लोगों के लिए एक कैंप लगाया गया है, लेकिन वहां भोजन, पानी और बिजली का अभाव है.

कई विस्थापित परिवार अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के यहां पनाह खोज रहे हैं. लोगों को बाहर जाने देने के लिए उत्तरी वज़ीरिस्तान में कर्फ़्यू हटा लिया गया है.

अधिकारियों को लगता है कि आने वाले दिनों हज़ारों की संख्या में लोग सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन करेंगे.

‘अपने ही घरों में क़ैद’

उत्तरी वज़ीरिस्तान के मीर अली क़स्बे के मुहम्मद नियाज़ ने बीबीसी को बताया, "हम कर्फ़्यू लगने के बाद चार दिन से अपने ही घरों में क़ैद हैं."

उन्होंने कहा, "बाज़ार बंद हो गए थे और खाने-पीने की किल्लत हो गई. यहां तक कि मैं अपने बच्चे को अस्पताल भी नहीं ले जा सकता. ऐसा लग रहा था मानो हम बाक़ी दुनिया से कट गए हैं."

अपना घर छोड़ने वाले एक अन्य व्यक्ति ख़ुर्शीद ख़ान ने कहा, "मैं यहां महिलाओं और बच्चों के साथ आया हूं. रास्ते में एक बूंद पानी भी नहीं मिला. मेरे बच्चे का चेहरा प्यास से पीला पड़ गया. हम अभी भी नहीं जानते कि हम किस तरफ़ जा रहे हैं."

पाकिस्तानी सेना का कहना है कि रविवार को शावल और उत्तरी वज़ीरिस्तान के अन्य क्षेत्रों में हुए हवाई हमलों में 160 से ज़्यादा चरमपंथी मारे गए हैं.

इस क्षेत्र में किसी स्वतंत्र मीडिया की पहुंच नहीं है और हताहतों की संख्या की पुष्टि करने का कोई तरीक़ा नहीं है.

सेना के मुताबिक़ अफ़ग़ानिस्तान सीमा के पास मौजूद तालिबान और विदेशी चरमपंथियों के ठिकानों के ख़िलाफ़ पूरा अभियान चलाने के लिए टैंक और सेना की टुकड़ियां भेजी जा रही हैं.

‘कड़ी धूप और पैदल सफ़र’

बन्नू क्षेत्र में मौजूद बीबीसी उर्दू रिफ़तुल्लाह ओराकज़ई ने आंखों देखा हाल बयां किया है. उनके मुताबिक़ विस्थापित लोग अपने सामान और बच्चों के साथ आ रहे हैं. कड़ी धूप में वे पैदल सुरक्षित जगहों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं.

लोग थके और भूखे लग रहे हैं. यहां उनके रुकने और आराम करने की कोई जगह नहीं है.

कुछ एक धार्मिक संगठनों ने रास्ते में राहत कैंप लगाए हैं, जहां खाने-पानी की व्यवस्था है, लेकिन यहां एक भी सरकारी कैंप नज़र नहीं आता.

अधिकांश परिवार अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के यहां रुकना चाहते हैं क्योंकि उनके लिए विस्थापित व्यक्ति की तरह कैंप में रहना सांस्कृतिक रूप से अस्वीकार्य है.

सोमवार को स्थानीय लोगों ने सरकार से मांग की थी कि उन्हें इस क़बीलाई इलाक़े से सुरक्षित जाने दिया जाए.

पाकिस्तानी सेना ने सैन्य अभियान के मद्देनज़र शुरुआत में उत्तरी वज़ीरिस्तान से बाहर जाने वाले सभी रास्ते बंद कर दिए थे.

कर्फ़्यू हटाए जाने के बावजूद, बुधवार से पलायन कर रहे लोगों को व्यवस्थित करने के लिए सरकार की तैयारी काफ़ी लचर दिख रही है.

‘गर्मी, सांप और बिच्छू’

अर्द्ध स्वायत्त इलाक़ा बाकाखेल में बन्नू के समीप विस्थापितों के लिए केवल एक कैंप स्थापित किया गया है. लेकिन यहां केवल तीन-चार परिवार ही रह रहे हैं.

इनका कहना है कि भीषण गर्मी में उन्हें पर्याप्त भोजन और पानी नहीं मिल रहा. वहां सांप-बिच्छुओं की बहुतायत है. यहां शरण खोजने वालों के लिए यह काफ़ी हतोत्साहित करने वाली बात है.

उत्तरी वज़ीरिस्तान की आबादी क़रीब 70 लाख है. अधिकारियों का कहना है कि सेना के बढ़ते हमलों के बाद भी लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या इन क्षेत्रों में रह रही है.

सरकार ने अपने ताज़ा बयान में कहा कि हेलीकॉप्टर से उत्तरी वज़ीरिस्तान के मीरान शाह क्षेत्र के पहाड़ों में हुए हमलों में करीब 15 चरमपंथी मारे गए.

ऐसा कहा जा रहा है कि मीरानशाह और मीर अली क़स्बों के बीच सड़कों के किनारे विस्फोटक लगाते समय आठ उज़्बेक सेना के निशानेबाज़ों के हाथ मारे गए.

इस महीने कराची हवाई अड्डे पर होने वाले घातक हमलों के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने सेना की कार्रवाई को हरी झंडी दे दी. इन हमलों की जिम्मेदारी उज़्बेक चरमपंथी समूह और पाकिस्तानी तालिबान ने ली थी.

समस्या

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बीबीसी उर्दू की सबा एतिज़ाज़ का कहना है कि इस विस्थापन से पाकिस्तान के संसाधनों पर भार पड़ेगा.

बीबीसी उर्दू की सबा एतिज़ाज़ के अनुसार, बड़े पैमाने पर होने वाले सामूहिक विस्थापन से देश के संसाधनों पर बड़ा भार पड़ेगा.

2009 में स्वात घाटी में चरमपंथियों के ख़िलाफ़ चलाए गए सैन्य अभियान के बाद पाकिस्तान क़रीब 20 लाख लोगों के विस्थापन से उपजे हालात से जूझ रहा है.

उनमें से कई लोग अभी भी अपने घरों को नहीं लौट सके हैं और अभी भी अस्थायी कैंपों या कराची की झुग्गी बस्तियों में रह रहे हैं.

सरकार अभी भी 2010 की बाढ़ में आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों का मसला हल करने की कोशिश में है. बाढ़ से देश के क़रीब 20 फ़ीसदी हिस्से पर असर पड़ा था और इससे क़रीब दो करोड़ लोग प्रभावित हुए थे.

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