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मिस्रः सोशल मीडिया पर सरकार की नज़र, यूज़र्स में ग़ुस्सा

मिस्र में चरमपंथी गतिविधियों की आशंका को लेकर सोशल मीडिया की निगरानी करने की योजना के सरकारी ऐलान के बाद देश में बहुतों के कान खड़े हो गए हैं. मिस्र में इस समय सबसे ज़्यादा ट्रेंडिंग करने वाला हैशटैग है- ‘हम पर नज़र रखी जा रही है.’ महज़ शनिवार तक ही इसे ट्विटर पर 46,000 […]

मिस्र में चरमपंथी गतिविधियों की आशंका को लेकर सोशल मीडिया की निगरानी करने की योजना के सरकारी ऐलान के बाद देश में बहुतों के कान खड़े हो गए हैं.

मिस्र में इस समय सबसे ज़्यादा ट्रेंडिंग करने वाला हैशटैग है- ‘हम पर नज़र रखी जा रही है.’ महज़ शनिवार तक ही इसे ट्विटर पर 46,000 बार ट्वीट किया जा चुका था.

देश के गृह मंत्रालय के ‘आतंकी’ गतिविधियों की पहचान के लिए ट्विटर और फ़ेसबुक की निगरानी करने के ऐलान के जवाब में इस हैशटैग से ट्वीट किए जा रहे हैं.

मंत्रालय के एक प्रवक्ता अब्देल फ़तह उथमन ने एक टीवी टॉक शो में कहा, "हमारा लक्ष्य उन विस्फोटक बनाने वालों को पकड़ना है जो निर्दोषों को शिकार बनाते हैं."

उन्होंने ज़ोर देकर कहा, "हम किसी की निजता में दख़ल नहीं देना चाहते. अमरीका फ़ोन कॉल सुनता है और हर उस व्यक्ति पर नज़र रखता है जो देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा हो सकता है."

लेकिन मिस्र में बहुत से लोग सोशल मीडिया पर इससे सहमत नज़र नहीं आते और ग़ुस्से में या इसका मज़ाक़ बनाते हुए प्रतिक्रिया दे रहे हैं.

‘वजहें होती हैं’

एक यूज़र ने मज़ाक़ किया, "सुप्रभात, ‘वॉचडॉग्स’, मैं उठ गया हूं."

एक अन्य ने पूछा, "क्या कोई आतंकी यह ट्वीट करेगा कि मैंने बम बना लिया है?"

जाने-माने पत्रकार मजदी अल-जलाद का कहना है कि सोशल नेटवर्कों की निगरानी ‘संविधान की विरोधाभासी’ है.

सरकार का यह क़दम हाल ही में देश के नए नेता, अब्दुल फ़तेह अल-सीसी, के राष्ट्रपति की शपथ ग्रहण के बाद उठाया गया है और इस ‘वैज्ञानिक उपलब्धि’ का सरकारी मंत्रालय ने खुलकर स्वागत किया है.

नए सिस्टम के तहत प्रभावशाली आंदोलनकारियों और उन लोगों पर नज़र रखी जाएगी जो "विरोध प्रदर्शन शुरू करते हैं, हड़ताल करवाते हैं और धरने देते हैं."

इसके आलोचकों का ट्विटर पर कहना है कि इसका इस्तेमाल आज़ादी पर बेड़ी डालने और दबाव के एक हथियार के रूप में किया जाएगा.

लेकिन क्या यह योजना चिंता की वजह है या फिर आतंक के ख़तरे को लेकर वास्तविक प्रतिक्रिया है?

थिंक टैंक डेमोस में सोशल मीडिया और राजनीतिक आंदोलनों के विशेषज्ञ जेमी बारलेट कहते हैं, "दरअसल यह इस पर निर्भर करता है कि सरकार इस सूचना का इस्तेमाल कैसे करती है."

2011 के लंदन दंगों का उदाहरण देते हुए वह कहते हैं, "कई बार सरकार के लिए सोशल मीडिया में झांकने के लिए अच्छी वजहें होती हैं."

लेकिन आतंकी हमले का पूर्वानुमान लगाना बहुत दिक्कत भरा हो सकता है. क्योंकि वह कहते हैं, "लोग हर तरह की भाषा इस्तेमाल करते हैं, इसलिए आपको यही पता नहीं चलता कि आप क्या ढूंढ रहे हैं."

चालाक यूज़र्स सिस्टम के साथ खेलना शुरू कर सकते हैं और कई तरह के फ़्रज़ी सिग्नल भेज सकते हैं.

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